यह इकाई इस बारे में है कि बोलने और सुनने के सार्थक अवसर प्रभावी कक्षा शिक्षण और अधिगम में किस प्रकार योगदान करते हैं।
अपने छात्रों के बोलने और सुनने के कौशल के विकास के लिए आप विभिन्न गतिविधियों की योजना बनाएँगे और उनका मूल्यांकन करेंगे। आप उन तरीकों पर भी विचार करेंगे, जिनके द्वारा छात्रों के विचार सुनकर आपको उनके सीखने का आकलन करने और अपने भावी पाठों की योजना बनाने में मदद मिल सकती है।
बोलना और सुनना सभी शैक्षणिक क्षेत्रों में शिक्षण और अधिगम के केंद्र में होते हैं। बोलना साक्षरता का आधार भी है। छोटे बच्चे पढ़ना और लिखना शुरू करने से बहुत पहले ही अच्छी तरह से सुनने और बोलने लगते हैं। वे सीखते हैं कि बोलकर वे अपनी ज़रूरतों और इच्छाओं को व्यक्त कर सकते हैं, वस्तुओं के बारे में जान सकते हैं, और काल्पनिक, अन्वेषक खेल में शामिल हो सकते हैं। बच्चों में भाषा कौशल विकसित करने के लिए उन्हें सुनने व विभिन्न सन्दर्भों में अलग–अलग विषयों पर बोलने के पर्याप्त अवसर मिलने चाहिए, जिससे उनकी स्कूली उपलब्धियों में भी वृद्धि होगी।
पारंपरिक कक्षाओं में, अक्सर शिक्षक ही ज्यादातर समय बोलते हैं। हालांकि सीखने के प्रति छात्रों के दृष्टिकोण सीखने से उनके लाभ के साथ – तब उल्लेखनीय रूप से सुधार होता है, जब वे अपनी खुद की बातचीत के द्वारा, सीखने की प्रक्रिया में सक्रिय रूप से शामिल होते हैं।
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सीखने में व्यक्ति के मौजूदा ज्ञान, कौशल और अनुभवों में वृद्धि करना और नए दृष्टिकोण प्राप्त करना शामिल होता है। बातचीत इस प्रक्रिया में मुख्य भूमिका निभाती है, क्योंकि इससे छात्रों को उनके विचारों को स्पष्ट करने, वे क्या नहीं समझ सके हैं- यह बताने, प्रश्न पूछने, नए विचारों को जानने और शिक्षकों व सहपाठियों के साथ आपसी बातचीत के द्वारा नई बातें सीखने में मदद मिलती है।
इस पहली गतिविधि में, आप सीखने के लिए बातचीत के महत्व पर विचार करेंगे।
यदि संभव हो, तो यह गतिविधि अपने किसी सहकर्मी के साथ करें।
पहले संसाधन 1, ‘सीखने के लिए बोलना’ पढ़ें। जब आप इसे पूरा कर लेते हैं, तब ध्यानपूर्वक निम्नलिखित दो अंश पढ़ें:
जो कुछ आप छात्रों को सिखाना चाहते हैं, उससे सम्बन्धित (जोड़ते हुए) पाठ की योजना बनायें और इस बारे में सोचें, और साथ ही इस बारे में भी कि आप किस प्रकार की बातचीत को छात्रों में विकसित होते देखना चाहते हैं।
विचार के लिए रुकें संसाधन 1 बताता है कि छात्र कहानी के बारे में, किसी जानवर के बारे में या आकृति के बारे में फोटो, ड्रॉइंग या वास्तविक वस्तुओं से अनुमान लगा सकते हैं, और छात्र किसी नाटिका में कठपुतली या पात्र की समस्याओं के बारे में सुझाव और संभावित समाधान दे सकते हैं।
इन प्रश्नों पर विचार करें: ‘इसके बाद क्या होगा?’, ‘क्या हमने इसे पहले देखा है?’, ‘यह क्या हो सकता है?’ और ‘आपके अनुसार वह क्यों है?’
अब अपने हाल के पाठों के बारे में सोचें। क्या आप पहचान सकते हैं कि किस समय आपके छात्रों ने खोजपूर्ण बातचीत की थी? इस तरह की बातचीत किन विषयों या बातों से संबंधित थी? |
सीखने के लिए बातचीत करना सभी आयुवर्ग के छात्रों के लिए मूल्यवान होता है। छात्रों को एक उद्देश्यपूर्ण तरीके में बात करने के जितने अधिक अवसर दिए जाएंगे, वे विचारपूर्वक बोलने और सुनने में उतने ही अधिक कुशल बनेंगे।
केस स्टडी एक पढ़ें, जिसमें बताया गया है कि किस प्रकार एक शिक्षिका चित्रों का उपयोग करके अपने छात्रों को प्रोत्साहित करती है कि उन्हें जो बातें मालूम हैं, वे उनके बारे में बताएँ।
सुश्री प्रियंका उत्तर प्रदेश के एक ग्रामीण स्कूल में कक्षा एक की शिक्षिका हैं। यहाँ वे बताती हैं कि किस प्रकार वे कक्षा में बातचीत को आगे बढ़ाने के लिए परिचित दृश्यों वाले चित्रों का उपयोग करती हैं।
मैं अपने छात्रों को बातचीत के लिए प्रोत्साहित करने के लिए चित्रों [चित्र 1 देखें] का उपयोग करती हूँ। स्थानीय कलाकारों द्वारा बनाए गए ये चित्र टिकाऊ कागज़ की बड़ी शीटों पर छापे गए हैं और प्लास्टिक से ढंके हुए हैं। पहले चित्र का शीर्षक है ‘मेरा गाँव’ और दूसरे का शीर्षक है ‘कृषि’।
सबसे पहले मैं दीवार पर चित्र लगाती हूँ। मैं उनके विषय में नहीं बताती बल्कि इन्तजार करती हूँ कि बच्चे खुद से इन पर ध्यान दें व इन्हें जाँचे परखें। अगले एक या दो दिनों तक मैं अपने छात्रों को इन चित्रों के बारे में एक-दूसरे से बात करते और इनके विवरणों के बारे में चर्चा करते हुए सुनती हूँ।
इसके बाद मैं 20-मिनट का एक सत्र आयोजित करके हर दिन छात्रों के एक समूह के साथ दो चित्रों पर चर्चा करती हूँ। कभी-कभी मैं इस काम के लिए समूह को बाहर भी ले जाती हूँ। मैं शेष कक्षा को उस समय चुपचाप करने के लिए कोई और काम देती हूँ।
मैं पहले से ही कई प्रश्नों की सूची बनाकर रखती हूँ। कुछ प्रश्न सरल वर्णनों को प्रकाश में लाने के लिए होते हैं, जबकि अन्य प्रश्न ज्यादा अन्वेषक बातचीत को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से, तर्क, अनुमान और बातों को छात्रों के स्वयं के अनुभवों से जोड़ने के रूप में होते हैं। यहाँ प्रत्येक प्रकार के प्रश्नों के कुछ उदाहरण दिए गए हैं।
इस चित्र का कौन-सा भाग आपको सबसे अच्छा लगा? और क्यों?
मैं छात्रों की बातों में कोई सुधार या टोकाटाकी किए बिना हर छात्र की बात ध्यान से सुनती हूँ। मैं जोर देती हूँ कि बाकी छात्र भी ध्यान से सुनें। मेरे छात्र जो देखते और जानते हैं, उसके बारे में बोलने के लिए उन्हें प्रोत्साहित करने से मुझे उनके बारे में बहुत कुछ सीखने को मिलता है। इससे मुझे उनकी क्षमता का आकलन करने और उन्हें आगे सहायता करने और बढ़ाने के तरीकों के बारे में सोचने में मदद मिलती है।
मेरे कुछ छात्र बोलने में शर्माते हैं, लेकिन वे अपने सहपाठियों की बातें अवश्य ध्यान से सुनते हैं। मैं उनसे सरल प्रश्न पूछने की कोशिश करती हूँ, जिनके जवाब वे एक शब्द में या इशारे से या सिर हिलाकर दे सकते हैं, जिससे मुझे पता चले कि वे मेरी बात समझ गए हैं।
मैं हमेशा अपने छात्रों को बोलने और सुनने के अच्छे नमूने देने की कोशिश करती हूँ। मैं स्पष्ट रूप से बात करती हूँ, उत्तर देने वालों के साथ दृष्टि संपर्क बनाती हूँ तथा आगे और प्रश्न पूछती हूँ, जिससे उनके उत्तरों के प्रति मेरी रुचि का संकेत मिलता है।
विचार के लिए रुकें
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आपके छात्र संभवतः विविध सामाजिक, सांस्कृतिक और भाषायी पृष्ठभूमि वाले होंगे। आपके द्वारा कक्षा में शामिल की जाने वाली बोलने और सुनने की गतिविधियाँ छात्रों के विविध तरह के ज्ञान पर आधारित होनी चाहिए। यह विशिष्ट रूप से उन छात्रों के लिए ज्यादा लागू होता है, जिनके घर की भाषा स्कूल की भाषा से अलग है। इस बात पर ध्यान दें कि किस प्रकार (केस स्टडी) 1 में उपयोग किए गए चित्र संकेत सुश्री प्रियंका के सभी छात्रों के परिचित दृश्यों वाले थे। इस बात का ध्यान रखें कि जो छात्र चुप रहते हैं, वे भी सुनकर, सोचकर और सीखकर इस गतिविधि में भाग लेते हैं।
निम्नलिखित गतिविधि में आप अपने छात्रों को बोलने और सुनने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए चित्रों का उपयोग करेंगे।
इस गतिविधि के लिए आप अपनी पाठ्यपुस्तक से या अपने स्कूल अथवा समुदाय के अन्य स्रोतों से कोई भी चित्र ले सकते हैं।
विचारों के लिए (केस स्टडी) 1 का उपयोग करके, एक पाठ की योजना बनाएँ, जिसमें आप एक चित्र या चित्रों की श्रंखला के द्वारा अपने छात्रों को प्रोत्साहित करते हैं कि वे जो देखते या कल्पना करते हैं, उसे अपने ज्ञान और अनुभव से जोड़कर उसके बारे में बताएँ।
पाठ की योजना बनाने से पहले, निम्नलिखित कार्य करें:
निम्नलिखित प्रश्न चित्र 2 में प्रदर्शित चित्र पर आधारित हैं। आपके द्वारा उपयोग किये जाने वाले चित्रों व छात्रों की उम्र के अनुसार आपको अन्य प्रश्न तैयार करने पड़ेंगे:
विचार के लिए रुकें अपनी कक्षा के साथ यह गतिविधि पूरी कर लेने के बाद, निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें:
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अपनी अध्यापन योजनाओं और गतिविधियों में प्रश्नों के उपयोग के बारे में अधिक जानकारी के लिए संसाधन 2, ‘विचार को आगे बढ़ाने के लिए प्रश्नों का उपयोग करना’ देखें।
अगली गतिविधि में आप अपने छात्रों को कहानियाँ बनाने और कक्षा में सुनाने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए चित्रों का उपयोग कर्नेगे।
चित्र 3 के चारों चित्र देखें। इन चित्रों से संबंधित एक कहानी बनाएँ। यह आपकी इच्छा के अनुसार छोटी या बड़ी हो सकती है, और इसमें संवाद भी हो सकते हैं। अपनी कहानी किसी सहकर्मी को सुनाएँ। उन्हें यह कैसी लगी?
अब अपने छात्रों के साथ एक चित्र-आधारित कहानी गतिविधि आज़माएं। इस उद्देश्य के लिए आप चित्रों की किसी भी श्रंखला का उपयोग कर सकते हैं - किसी पुस्तक से, पत्रिका या अखबार से, अथवा आपके द्वारा, आपके मित्र या सहकर्मी के द्वारा बनाए गए चित्र।
सबसे पहले चित्र 3 में दिए गए क्रमानुसार स्वयं एक लघुकथा सुनाकर इस गतिविधि का अभ्यास करें। इसके बाद अपने छात्रों को जोड़ियों या समूहों में व्यवस्थित करें उन्हें इन्हीं चित्र संकेतों का उपयोग करके अलग अलग कहानियाँ तैयार करने को कहें। जिन छात्रों के घर की भाषा एक समान है, उन्हें एक ही जोड़ी या समूह में रखें, ताकि वे उसी भाषा में कहानी सुनाने की तैयारी कर सकें। यदि संभव हो, तो उन्हें अलग अलग आवाज़ों और हावभावों का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित करें।
जब सब लोग तैयार हो जाएँ, तो अपने छात्रों से उनकी कहानी दूसरी जोड़ी या समूह को, अथवा पूरी कक्षा को सुनाने को कहें। घर की भाषा की कहानियों का अनुवाद किस प्रकार स्कूल की भाषा में भी किया जा सकता है, इसके तरीकों के बारे में चर्चा के लिए समय दें।
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छात्र अक्सर अपने शिक्षण के बारे में बात करते हैं। अब क्रियाकलाप 4 करके देखें।
एक अधिगम संसाधन के रूप में छात्रों की बातचीत की सफलता की संभावना को समझने के लिए, छात्रों की किसी बातचीत को चुपचाप सुनें। यदि संभव हो, तो एक से ज्यादा बार ऐसा करें।
देखें कि क्या आप अपने छात्रों को निम्नलिखित में से कुछ करते हुए सुन सकते हैं:
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एक शिक्षक होने के नाते, एक अच्छा श्रोता होना महत्वपूर्ण है। अक्सर आप अपने छात्रों की जिन बातों को सुनते हैं, उनके तत्वों को आप अपने आगे के पाठों की योजनाओं में शामिल कर सकते हैं।
अब केस स्टडी 2 में दो उदाहरण पढ़ें। इन्हें पढ़ते समय इस बारे में सोचें कि शिक्षक जो सुनते हैं, उसका उपयोग अपने अध्यापन में सहायता के लिए किस प्रकार करते हैं। जब आप इसे पूरा कर लेते हैं, तो अपने छात्रों को सुनने का अगला अवसर ढूंढें। उनकी बातचीत के कौन-से पहलू आपकी अगली कक्षा गतिविधियों के लिए उपयोगी हो सकते हैं?
सुश्री भूमि मुरादाबाद में कक्षा दो की शिक्षिका हैं।
एक दिन मैं बाहर बैठकर खाना खा रही थी कि तभी मैंने छात्रों को ऊंची आवाज़ में बहस करते हुए सुना। मैंने दखल देने के बजाय, ध्यान से सुनने का फैसला किया। चार छात्र एक कविता के बारे में बहस कर रहे थे, जो मैंने उन्हें उस दिन सुबह पढ़कर सुनाई थी। जब मैं कविता पढ़ रही थी, तो कक्षा ने चुपचाप वह कविता सुनी थी। इसलिए मैंने यह मान लिया था कि सब लोग उसे समझ गए हैं। लेकिन जब मैंने अपने छात्रों को बहस करते हुए सुना, तब मुझे अहसास हुआ कि उनमें से ज्यादातर ने उसे बिलकुल ही गलत अर्थ में समझा था। कविता के मुख्य शब्दों के लिए उनके द्वारा की गई अलग अलग व्याख्या को सुनकर मुझे यह बात पता चली।
मैंने अगले दिन उन्हें यह कविता फिर से सुनाई और यह जानने का प्रयास किया कि कविता उन्हें समझ में आई अथवा नहीं। इस घटना ने मुझे सिखाया कि जब हम पाठ्यपुस्तक-आधारित अन्य पाठ पढ़ते हैं, तो हमें इस बात को जाँचने के लिए ज्यादा समय देना चाहिए कि क्या कोई अपरिचित शब्दावली है और यदि ऐसा है, तो उसे ध्यानपूर्वक समझाना चाहिए। मैं उसके बाद से नियमित रूप से ऐसा कर रही हूँ और मैंने इसके फायदे भी देखे हैं।
श्रीमती सरोज बिठूर में कक्षा पाँच की शिक्षिका हैं।
मैं अपने छात्रों को लेखन कार्य देते समय कुछ मुख्य बिन्दु बता देती थी। इससे उनके लेख एक समान हो जाते थे।
एक दिन सुबह कक्षा से पहले, मैंने कई छात्रों को आपस में बातें करते हुए सुना। मुझे अचंभा हुआ कि उन कुछ मिनटों में ही उन्होंने कई तरह के विषयों पर चर्चा की, उन्हें समझाया, प्रश्न पूछे, तर्क दिए और अनुमान लगाया। उनके पास कई रोचक विचार थे।
उनकी बातें सुनने के परिणामस्वरूप मुझे अहसास हुआ कि यदि मैं अपने छात्रों को उनके मौखिक भाषा संसाधनों, अनुभवों और रुचियों का इस तरह उपयोग करने दूँ, तो वे और भी ज्यादा रचनात्मक और सार्थक रूप से लिख सकेंगे।
अब मैं अपने छात्रों को चार या पाँच के समूहों में रखती हूँ और उन्हें चर्चा करने के लिए एक विषय देती हूँ व इसके बाद उन्हें उस विषय पर लिखने के लिए आमंत्रित करती हूँ। अभी तक, उन्होंने स्कूल के बाहर वाली चाय की दुकान, एक स्थानीय त्यौहार, हाल ही में हुए एक खेल आयोजन और आस-पास के पेड़ों जैसे विषयों के बारे में बात की है और लिखा है। कभी-कभी मैं अपने छात्रों को स्कूल के परिसर में भेजती हूँ और उनसे कहती हूँ कि वे वस्तुओं का अवलोकन करें, आपस में चर्चा करें और फिर उनके बारे में लिखें।
अंतिम गतिविधि में, आप एक समूह गतिविधि आज़माएंगे, जिसमें बोलना और लिखना शामिल होगा। मुख्य संसाधन ‘समूह कार्य का उपयोग करना’ आपके लिए उपयोगी हो सकता है।
श्रीमती सरोज की स्थिति अध्ययन (केस स्टडी) का मार्गदर्शक के रूप में का उपयोग करके, एक पाठ तैयार करें, जिसमें आप अपने छात्रों को किसी विषय पर चर्चा करने और फिर उसके बारे में अकेले-अकेले लिखने के लिए आमंत्रित करेंगे।
इस इकाई में आपको ऐसे अवसर तैयार करने के बारे में कुछ विचार दिए गए , जिनके द्वारा आपके छात्र कक्षा में सीखने में सहायता के लिए एक दूसरे से बात कर सकते हैं और सुन सकते हैं। इसमें यह दर्शाया गया है कि विषय के बारे में और भाषा कौशल के बारे में छात्रों की समझ और प्रगति की जानकारी प्राप्त करने में छात्रों की चर्चा किस तरह मूल्यवान हो सकती है। ऐसी जानकारी आपके कक्षा अभ्यास और पाठों की योजना दोनों में योगदान कर सकती है। अपने छात्रों की बातचीत को सुनकर , आप पाठों की योजना इसके अनुरूप बना सकते हैं कि आप अपने छात्रों को क्या सिखाना चाहते हैं और उनकी सोच को किस प्रकार विकसित करना चाहते हैं , ताकि उनकी उपलब्धि में सुधार हो सके।
बातचीत मानव विकास का हिस्सा है, जो सोचने-विचारने, सीखने और विश्व का बोध प्राप्त करने में हमारी मदद करती है। लोग भाषा का इस्तेमाल तार्किक क्षमता, ज्ञान और बोध को विकसित करने के लिए औज़ार के रूप में करते हैं। अत: छात्रों को उनके अधिगम अनुभवों पर बात करने के लिए प्रोत्साहित करने का अर्थ होगा उनकी शैक्षणिक प्रगति का बढ़ना। सीखे गए विचारों के बारे में बात करने का अर्थ होता है:
किसी कक्षा में रटा-रटाया दोहराने से लेकर उच्च श्रेणी की चर्चा तक छात्र वार्तालाप के विभिन्न तरीके होते हैं।
पारंपरिक तौर पर , कक्षा में शिक्षक ही अधिक समय बोलता था और उसकी बातें छात्रों की बातचीत या छात्रों के ज्ञान के मुकाबले अधिक मूल्यवान समझी जाती थी। तथापि , पढ़ाई के लिए बातचीत में पाठों का नियोजन शामिल होता है जिसमें शिक्षक छात्रों के पूर्व अनुभवों से जोड़ते हुए चर्चा करें ताकि छात्र अधिक बात कर सकें व अधिक सीख भी सकें। यह किसी शिक्षक और उसके छात्रों के बीच प्रश्न और उत्तर सत्र से कहीं अधिक होता है क्योंकि इसमें छात्र की भाषा , विचारों और रुचियों को ज्यादा समय दिया जाता है। हम में से अधिकांश कठिन मुद्दे के बारे में या किसी बात का पता करने के लिए किसी से बात करना चाहते हैं , और अध्यापक बेहद सुनियोजित गतिविधियों से इस सहज - प्रवृत्ति को बढ़ा सकते हैं।
शिक्षण की गतिविधियों के लिए बातचीत की योजना बनाना केवल साक्षरता और शब्दावली के लिए नहीं है, यह गणित एवं विज्ञान के काम तथा अन्य विषयों के नियोजन का हिस्सा भी है। इसे समूची कक्षा में, जोड़ी कार्य या सामूहिक कार्य में, आउटडोर गतिविधियों में, भूमिका पर आधारित गतिविधियों में, लेखन, वाचन, प्रायोगिक छानबीन और रचनात्मक कार्य में योजनाबद्ध किया जा सकता है।
यहां तक कि साक्षरता और अंकों के सीमित कौशलों वाले नन्हें छात्र भी उच्चतर श्रेणी के चिंतन कौशलों का प्रदर्शन कर सकते हैं, बशर्ते कि उन्हें दिया जाने वाला कार्य उनके पहले के अनुभव पर आधारित और आनंदप्रद हो। उदाहरण के लिए, छात्र चित्रों, आरेखन या वास्तविक वस्तुओं से किसी कहानी, पशु या आकृति के बारे में पूर्वानुमान लगा सकते हैं। छात्र भूमिका निभाते समय कठपुतली या पात्र की समस्याओं के बारे में सुझावों और संभावित समाधानों को सूचीबद्ध कर सकते हैं।
जो कुछ आप छात्रों को सिखाना चाहते हैं, उस पर केन्द्रित पाठ की योजना बनायें, साथ ही इस बारे में भी सोचें कि आप किस प्रकार की बातचीत को छात्रों में विकसित होते देखना चाहते हैं। कुछ बातचीत अन्वेषी होती है, उदाहरण के लिए: ‘इसके बाद क्या होगा?’, ‘क्या हमने इसे पहले देखा है?’, ‘यह क्या हो सकता है?’ या ‘आप ऐसा क्यों सोचते हैं कि वह यह है?’ कुछ अन्य प्रकार की वार्ताएं ज्यादा विश्लेषणात्मक होती हैं, उदाहरण के लिए विचारों, साक्ष्यों या सुझावों का आकलन करना।
इसे रोचक व मजेदार बनाने का प्रयास करें जिससे सभी छात्र इसमें भाग ले सकें। इसके लिए उन्हें ऐसा वातावरण देने की आवश्यकता है जिसमें छात्र अपने दृश्टिकोण व विचारों को व्यक्त करने में सहज व सुरक्षित अनुभव करें व उन्हें उपहास का पात्र बनने व गलत होने का भय भी न लगे।
अधिगम के लिए वार्ता अध्यापकों को निम्न अवसर प्रदान करती है
सभी उत्तरों को लिखना या उनका औपचारिक आकलन नहीं करना होता है, क्योंकि वार्ता के जरिये विचारों को विकसित करना शिक्षण का महत्वपूर्ण हिस्सा है। आपको उनके अधिगम को प्रासंगिक बनाने के लिए उनके अनुभवों और विचारों का यथासंभव प्रयोग करना चाहिए। सर्वश्रेष्ठ छात्र वार्ता अन्वेषी होती है, जिसका अर्थ होता है कि छात्र एक दूसरे के विचारों की जांच करते हैं और चुनौती पेश करते हैं ताकि वे अपने प्रत्युत्तरों को लेकर विश्वस्त हो सकें। एक साथ बातचीत करने वाले समूहों को किसी के भी द्वारा दिए गए उत्तर को स्वीकार करने के लिए प्रोत्साहित नहीं किया जाना चाहिए। आप समूची कक्षा की सेटिंग में ‘क्यों?’, ‘आपने उसका निर्णय क्यों किया?’ या ‘क्या आपको उस हल में कोई समस्या नजर आती है?’ जैसे समस्यात्मक प्रश्नों के प्रयोग के माध्यम से चुनौतीपूर्ण चिंतनशीलता उत्पन्न कर सकते हैं। आप छात्र समूहों को सुनते हुए कक्षा में घूम सकते हैं और ऐसे प्रश्न पूछकर उनकी चिंतन प्रवृत्ति को बढ़ा सकते हैं।
अगर छात्रों की वार्ता, विचारों और अनुभवों की कद्र और सराहना की जाती है तो वे प्रोत्साहित होंगे। बातचीत करने के दौरान अपने व्यवहार, सावधानी से सुनने, एक दूसरे से प्रश्न पूछने, और बाधा न डालना सीखने के लिए अपने छात्रों की प्रशंसा करें। कक्षा में कमजोर बच्चों के बारे में सावधान रहें और उन्हें भी शामिल किया जाना सुनिश्चित करने के तरीकों पर विचार करें। कामकाज के ऐसे तरीकों को लागू करने में थोड़ा समय लग सकता है, जो सभी छात्रों को पूरी तरह से भाग लेने की सुविधा प्रदान करते हों।
अपनी कक्षा में ऐसा वातावरण तैयार करें जहां अच्छे चुनौतीपूर्ण प्रश्न पूछे जाते हैं और जहां छात्रों के विचारों को सम्मान दिया जाता है और उऩकी प्रशंसा की जाती है। छात्र प्रश्न नहीं पूछेंगे अगर उन्हें उनके साथ किए जाने वाले व्यवहार को लेकर भय होगा या अगर उन्हें लगेगा कि उनके विचारों का मान नहीं किया जाएगा। छात्रों को प्रश्न पूछने के लिए आमंत्रित करना उनको जिज्ञासा दर्शाने के लिए प्रोत्साहित करता है, उनसे अपने शिक्षण के बार में अलग ढंग से विचार करने के लिए कहता है और उनके नजरिए को समझने में आपकी सहायता करता है।
आप कुछ नियमित समूह या जोड़े में कार्य करने, या ‘छात्रों के प्रश्न पूछने का समय’ जैसी कोई योजना बना सकते हैं ताकि छात्र प्रश्न पूछ सकें या स्पष्टीकरण मांग सकें। आप:
जब छात्र प्रश्न पूछने और उन्हें मिलने वाले प्रश्नों के उत्तर देने के लिए स्वतंत्र होते हैं तो उस समय आपको रुचि और विचारशीलता के स्तर को देखकर हैरानी होगी। जब छात्र अधिक स्पष्टता और सटीकता से संवाद करना सीख जाते हैं, तो वे न केवल अपनी मौखिक और लिखित शब्दावलियां बढ़ाते हैं, अपितु उनमें नया ज्ञान और कौशल भी विकसित होता है।
शिक्षक हमेशा अपने छात्रों से सवाल पूछते रहते हैं; सवालों का अर्थ ये होता है कि शिक्षक सीखने और सीखते रहने में अपने छात्रों की मदद कर सकते हैं। एक अध्ययन के अनुसार औसतन, एक शिक्षक अपने समय का एक-तिहाई हिस्सा छात्रों से सवाल पूछने में खर्च करता है (हेस्टिंग्स, 2003)। पूछे गए प्रश्नों में से, 60 प्रतिशत में तथ्यों को दोहराया गया था और 20 प्रतिशत प्रक्रियात्मक थे (हैती, 2012), जिनमें से ज्यादातर के उत्तर सही या गलत में थे। लेकिन क्या सिर्फ सही या गलत में उत्तर वाले सवाल पूछने से सीखने को प्रोत्साहन मिलता है?
छात्रों से कई अलग अलग तरह के सवाल पूछे जा सकते हैं। शिक्षक किस तरह के उत्तर और परिणाम पाना चाहते हैं, उनसे पता चलता है कि शिक्षक को किस तरह के सवाल पूछने चाहिए। शिक्षक आमतौर पर छात्रों से सवाल पूछते हैं, ताकि वे:
प्रश्नों का उपयोग आमतौर पर यह देखने के लिए किया जाता है कि छात्र क्या जानते हैं, इसलिए यह उनकी प्रगति का आंकलन करने के लिए महत्वपूर्ण है। प्रश्नों का उपयोग प्रेरणा देने, छात्रों के सोचने के कौशल को बढ़ाने और जिज्ञासु मन विकसित करने में भी किया जा सकता है। उन्हें मोटे तौर पर दो श्रेणियों में बाँटा जा सकता है:
खुले सवाल छात्रों को पाठ्यपुस्तक पर आधारित, सीधे सपाट जवाबों से परे सोचने को प्रोत्साहित करते हैं, इसलिए उत्तरों की श्रेणी खींच निकालते हैं। इनसे शिक्षकों को भी सामग्री के बारे में छात्र की समझ का आंकलन करने में मदद मिलती है।
कई शिक्षक एक सेकंड से भी कम समय में अपने प्रश्न का उत्तर चाहते हैं और इसलिए अक्सर वे खुद ही प्रश्न का उत्तर दे देते हैं या प्रश्न को दूसरी तरह से दोहराते हैं (हेस्टिंग्स, 2003)। छात्रों को केवल प्रतिक्रिया देने का समय मिलता है – उनके पास सोचने का समय ही नहीं होता! अगर आप उत्तर चाहने से पहले कुछ सेकंड इंतजार करते हैं तो छात्र को सोचने के लिए समय मिल जाएगा। इसका छात्रों की उपलब्धि पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। प्रश्न को प्रस्तुत करने के बाद इंतजार करने से निम्नांकित में वृद्धि होती है:
आप दिए गए सभी उत्तरों को जितने सकारात्मक ढंग से स्वीकार करते हैं, छात्र भी उतना ही ज्यादा सोचना और कोशिश करना जारी रखेंगे। यह सुनिश्चित करने के कई तरीके हैं कि गलत उत्तरों और गलत धारणाओं को सुधार दिया जाए, और यदि एक छात्र के मन में कोई गलत विचार है, तो आप निश्चित रूप से यह मान सकते हैं कि कई अन्य छात्रों के मन में भी वही गलत धारणा होगी। आप निम्नलिखित का प्रयास कर सकते हैं:
सभी उत्तरों को ध्यान से सुनकर और आगे समझाने के लिए छात्रों को प्रेरित करके उन्हें महत्व दें। उत्तर चाहे सही हो या गलत, लेकिन यदि आप छात्रों से अपने उत्तरों को विस्तार में समझाने को कहते हैं, तो अक्सर छात्र अपनी गलतियाँ खुद ही सुधार लेंगे, आप एक विचारशील कक्षा का विकास करेंगे और आपको वास्तव में पता चलेगा कि आपके छात्र कितना सीख गए हैं और अब किस तरह आगे बढ़ना चाहिए। यदि गलत उत्तर देने पर अपमान या सज़ा मिलती है, तो दोबारा शर्मिंदगी या डांट के डर से आपके छात्र कोशिश करना ही छोड़ देंगे।
यह महत्वपूर्ण है कि आप प्रश्नों का एक ऐसा क्रम अपनाने की कोशिश करें, जो सही उत्तर पर ख़त्म न होता हो। सही उत्तरों के बदले फॉलो-अप प्रश्न पूछने चाहिए, जो छात्रों का ज्ञान बढ़ाते है और उन्हें शिक्षक के साथ संलग्न होने का मौका देते हैं। यह आप पूछकर कर सकते हैं:
छात्रों ज्यादा गहराई में जाकर सोचने में मदद करना और उनके उत्तरों की गुणवत्ता को बेहतर बनाना आपकी भूमिका का बहुत ही महत्वपूर्ण हिस्सा है। निम्नलिखित कौशल अधिक उपलब्धि हासिल करने में छात्रों की मदद करते हैं:
एक शिक्षक के रूप में, आपको ऐसे प्रश्न पूछने चाहिए जो प्रेरित करने वाले और चुनौतीपूर्ण हों, ताकि आप अपने छात्रों से रोचक और आविष्कारक उत्तर पा सकें। आपको उन्हें सोचने का समय देना चाहिए और आप सचमुच यह देखकर चकित रह जाएंगे कि आपके छात्र कितना कुछ जानते हैं और आप सीखने में उनकी प्रगति में कितनी अच्छी तरह मदद कर सकते हैं।
याद रखें कि प्रश्न यह जानने के लिए नहीं पूछे जाते कि शिक्षक क्या जानते हैं, बल्कि वे यह जानने के लिए पूछे जाते हैं कि छात्र क्या जानते हैं। यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि आपको कभी भी अपने खुद के प्रश्नों का जवाब नहीं देना चाहिए! आखिरकार यदि छात्रों को यह पता ही हो कि वे आगे कुछ सेकंड तक चुप रहते हैं, तो आप खुद ही उत्तर दे देंगे, तो फिर उन्हें उत्तर देने का प्रोत्साहन कैसे मिलेगा?
तृतीय पक्षों की सामग्रियों और अन्यथा कथित को छोड़कर, यह सामग्री क्रिएटिव कॉमन्स एट्रिब्यूशन-शेयरएलाइक लाइसेंस के अंतर्गत उपलब्ध कराई गई है( http://creativecommons.org/ licenses/ by-sa/ 3.0/ ). । नीचे दी गई सामग्री मालिकाना हक की है तथा इस परियोजना के लिए लाइसेंस के अंतर्गत ही उपयोग की गई है, तथा इसका Creative Commons लाइसेंस से कोई वास्ता नहीं है। इसका अर्थ यह है कि इस सामग्री का उपयोग अननुकूलित रूप से केवल TESS-India परियोजना के भीतर किया जा सकता है और किसी भी बाद के OER संस्करणों में नहीं। इसमें TESS-India, OU और UKAID लोगो का उपयोग भी शामिल है।
इस यूनिट में सामग्री को पुनः प्रस्तुत करने की अनुमति के लिए निम्न स्रोतों का कृतज्ञतापूर्ण आभार:
चित्र 1: बायाँ, ‘My Village’ और दायाँ, ‘Agriculture’, © स्थानीय कलाकार – अज्ञात (Figure 1: left, ‘My Village’ and right, ‘Agriculture, © local artists – unidentified)।
चित्र 2: एनसीईआरटी, रिमझिम, हिंदी, कक्षा 1, अध्याय 2: http://ncert.nic.in/ NCERTS/ textbook/ textbook.htm?ahhn1=2-23 .
चित्र 3: श्रेय: विद्या भवन शिक्षा संसाधन केंद्र, उदयपुर (Figure 2: Credit: Vidya Bhawan Education Resource Centre, Udaipur.)।
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वीडियो (वीडियो स्टिल्स सहित): भारत भर के उन अध्यापक शिक्षकों, मुख्याध्यापकों, अध्यापकों और छात्रों के प्रति आभार प्रकट किया जाता है, जिन्होंने उत्पादनों में दि ओपन यूनिवर्सिटी के साथ काम किया है।