इस इकाई का लक्ष्य विद्यार्थियों के साथ विचार-मंथन की तकनीकों के उपयोग करने में आप की विशेषज्ञता हासिल करने में मदद करना है।
विचार-मंथन में विद्यार्थियों को कोई विषय या थीम (कोई ध्वनि देकर विद्यार्थियों को विचार–मंथन के लिए कहें, जैसे–बाँसुरी) देकर, उनसे उनके मन में उठने वाले सारे विचारों को आपको बताने के लिए कहना शामिल है। इस प्रकार, आप किसी विषय के बारे में विद्यार्थियों की समझ की एक तस्वीर बनाते हैं। यह विद्यार्थियों को गलत होने की चिंता किए बिना पाठों में अधिक सहभागिता करने के लिए प्रोत्साहित करने का एक तरीका है क्योंकि आप उनके सभी उत्तरों को स्वीकार कर लेते हैं।
यह इकाई आपको बोध कराती है कि विचार-मंथन का उपयोग कैसे करना है? यह इकाई, अधिक प्रभावी पाठ–योजना बनाने के लिए जानकारी कैसे एकत्रित करेंगे? इस सम्बन्ध में योजना बनाने में भी आपकी मदद करता है। इन पाठों की संरचना इस बात पर होती है कि आपके विद्यार्थी पहले से कितना जानते हैं, न कि जो पाठ्य पुस्तकों में है। ऐसी तकनीकें, विद्यार्थियों को सीखने तथा आपको उनकी सक्रिय सहभागिता के प्रभाव का आंकलन करने का एक अवसर प्रदान करेगा। विशेष रूप से केवल पाठ्य पुस्तकों पर ध्यान केन्द्रित करने के बजाए इस अध्याय में ऐसा क्या है? जो विद्यार्थी पहले से जानते हैं।
विचार–मंथन एक त्वरित कार्यनीति है इसलिए यह महत्वपूर्ण एवम् उपयोगी है। जिसका उपयोग आप यह पता लगाने में कर सकते हैं कि आपके विद्यार्थी कोई नया विषय पढ़ाना शुरू करने से पहले क्या जानते हैं? इसका उपयोग किसी पाठ या प्रकरण के प्रारंम्भ, मध्य या अंत में किया जा सकता है, ताकि आप देख सकें कि विद्यार्थी इससे क्या संबंध बना रहे हो सकते हैं? इससे आपको यह जानने में मदद मिलती है कि आपके विद्यार्थी किन चीज़ों को महत्वपूर्ण मानते हैं और उनकी गलतफहमियों को रेखांकित कर सकते हैं।
विचार के लिए रुकें क्या, आपने कभी विद्यार्थियों से नए विषयों के बारे में, विज्ञान की किसी विशेष घटना या पर्यावरणीय अध्ययन के बारे में उनके विचार पूछे हैं? यदि हाँ तो क्या यह उपयोगी था? कैसे? यह एक उपयोगी कार्यनीति क्यों हो सकती थी? |
विचार-मंथन एक तकनीक है जो विद्यार्थियों को किसी विषय के बारे में अपने विचार साझा करने के लिए प्रोत्साहित करती है। ‘ध्वनि’ या ‘ध्वनि कैसी बनती है?’ जैसे एक शब्द या प्रश्न का उपयोग करके, आप विद्यार्थियों से उनके मन में उठने वाले विचारों को आपको बताने के लिए कह सकते हैं। जब विद्यार्थी उत्तर दें तब उनके सभी उत्तरों को आप के (या किसी विद्यार्थी) द्वारा ब्लैकबोर्ड पर अंकित किया जाएगा, जैसा चित्र 1 में दिखाया गया है।
विचार–मंथन तकनीक का उपयोग छोटी कक्षाओं के साथ–साथ बड़ी कक्षाओं में भी किया जा सकता है। इस तकनीक का उपयोग विद्यार्थियों के समूहों या जोड़े में साथ भी किया जा सकता है। विचार–मंथन से पहले विद्यार्थियों को विषय के बारे में सहपाठियों से कुछ समय के लिए उस पर बातचीत करने की अनुमति दी जाती है, जिससे विद्यार्थियों को अधिक गहराई से सोचने में मदद मिलती है। विद्यार्थियों को अपने विचार प्रस्तुत करने का एक अवसर दिया जाता है। जब कोई विद्यार्थी बोलता है, तो दूसरे विद्यार्थी उसके विचार सुनकर और अधिक व्यापक रूप से सोचने के लिए प्रेरित होते हैं। विचार–मंथन तकनीक का मुख्य उद्देश्य यही है कि विद्यार्थियों को किसी विषय को अधिक गहराई और रचनात्मकता से सोचने के लिए प्रोत्साहित करना। (जैसे ध्वनि के बारे में) अब केस स्टडी 1 को पढ़ें, जो यह बोध कराता है कि कैसे एक अध्यापक ने पहले तकनीक का अनुभव करके इसका अपनी कक्षा में उपयोग किया।
श्रीमती खान बताती हैं कि कैसे उन्होंने पहली बार विचार–मंथन का अनुभव किया और वे बहुत रोमांचित थी कि किस प्रकार से बड़े समूह में वार्ता करने में उनका आत्मविष्वास बढ़ा। विचार–मंथन तकनीक ने श्रीमती खान को और गहराई से सोचने में उनकी मदद की कि किस प्रकार उनकी कक्षा ज्यादा से ज्यादा सीखने वाली है।
मैंने सबसे पहले विचार-मंथन के बारे में तब जाना जब मैं पर्यावरण अध्ययन के पाठों को विद्यार्थियों के लिए अधिक संवादात्मक बनाने के संबंधी एक दिवसीय प्रशिक्षण में प्रतिभाग किया। जब प्रशिक्षक ने श्यामपट्ट पर ‘संवादात्मक अध्यापन’ लिखा और 20 अध्यापकों के एक समूह से कहा कि मन में आने वाले सभी विचारों पर विचार-मंथन करें। प्रशिक्षक ने हमसे हमारे मन में उठने वाले विचारों को बोलने के लिए कहा मैं पहले तो कुछ भी कहने में घबरा रही थी। जब प्रशिक्षक ने मेरे द्वारा कहे गये शब्दों को श्यामपट्ट पर लिखा तब मैं उन शब्दों के बारे में ज्यादा सोच सकी। अब मैंने खुद के विचारों पर सोचना शुरू कर दिया था, इसलिए मैंने कहा ‘विचार साझा करना’, जिस पर प्रशिक्षक ने कहा था कि यह एक अच्छा विचार है। इस टिप्पणी से मेरा आत्मविष्वास बढ़ गया और इसलिए मैंने अन्य विचार प्रस्तुत करने शुरू कर दिये। मैंने अनेक सेवारत् शिक्षक प्रशिक्षण में प्रतिभाग किया था परन्तु कभी बोली नहीं थी, इसलिए मैं इस प्रशिक्षण में बहुत खुश थी।
श्यामपट्ट सुझावों की विस्तृत श्रृंखला से भर जाने के कारण प्रशिक्षक को लिखना बन्द करना पड़ा। तब उन्होंने हमारे विचारों को ठीक से देखा और हमसे पूछा कि क्या ऐसे तरीके हैं? जिनसे हम इन विचारों को समूहों में बांट सकते हैं, जैसे– जो अध्यापक के लिए हैं और दूसरे जो विद्यार्थियों के लिए हैं।
मुझे बहुत सारे विचारों और कार्यनीतियों को व्यवस्थित करने का यह तरीका काफी अच्छा लगा। शेष दिन में हमने इस बात पर ध्यान केंद्रित किया कि इनमें से कुछ कार्यनीति का उपयोग कैसे किया जाए? एक था ‘विद्यार्थियों के साथ विचार-मंथन कैसे करें’? जो मुझे वास्तव में उपयोगी लगा। मैं यह सोचते हुए घर गयी कि मैं अपनी कक्षा के साथ इस तकनीक का इस्तेमाल कैसे कर सकती हूँ। मैंने इस संबंध अपने एक सहकर्मी से बात की। पाठों और विषय-बिंदुओं से संबंधित विचारों को अपनी कक्षा में आज़माने से पहले अकसर मैं उन्हीं के साथ विचारों को साझा करती हूँ।
श्रीमती ख़ान इस अनुभव से बहुत प्रभावित हुईं। यदि संभव हो तो आप भी निम्नलिखित गतिविधि को अपने किसी सहकर्मी के साथ करके देखें।
ऐसे पाठ्य/प्रकरणों पर नज़र डालें, जिन्हें आप पर्यावरणीय विज्ञान या विज्ञान में पढ़ाने जा रहे हैं। उस प्रकरण को चुनें, जिसके बारे में आप यह मानते हो कि आपके विद्यार्थी पहले से जानते हैं या तो स्वयं, या समान कक्षा को पढ़ाने वाले या कक्षा में नई और भिन्न कार्यनीतियों का उपयोग करने में रुचि रखने वाले सहकर्मी के साथ, ध्वनि (या किसी अन्य विषय) के बारे में आप क्या जानते हैं, इस पर विचार-मंथन करने की कोशिश करें।
ज़ोर से ‘ध्वनि’ उच्चारित करें और अपने मस्तिष्क में उठने वाले विचारों को सुनें। उन विचारों पर ध्यान दें तथा उन विचारों को लिख लें। एक-दूसरे से बात करने के दौरान यह कार्य तेजी से करें। कुछ मिनटों के बाद, रुकें और आपने जो लिखा है, उस पर नज़र डालें।
इसके बाद, सोचें कि आप शब्दों को समूहबद्ध कैसे कर सकते हैं। समूहबद्ध करने के लिए आपको इस बारे में यह सोचना होगा कि ध्वनि के पाठ का केंद्र बिंदु क्या हो सकता है? या फिर, क्या सिखाना चाहते हैं? उसके अनुसार शब्दों को साथ में समूहबद्ध करें। यदि आप यह जानकारी कर रहे थे कि ध्वनियां कैसे बनती हैं? तो आप विभिन्न वस्तुओं और जंतुओं द्वारा की जाने वाली ध्वनि के प्रकार की जानकारी करने की तुलना में, शब्दों को अलग ढंग से समूहबद्ध करते।
साथ ही, चर्चा करें कि कैसे कार्यनीति ने आप दोनों को ध्वनि के विषय पर अधिक केन्द्रित किया?
विचार के लिए रुकें क्या आपको अपने सहकर्मी के साथ इसे करने में आनंद आया? ध्वनि के बारे में और अधिक विचार करने में आपको इससे कितनी मदद मिली? सोचें कि आप अपनी कक्षा या कक्षा में किसी समूह के साथ इसे कैसे कर सकते हैं? |
विद्यार्थियों की कल्पना शक्ति को बढ़ाने और, वे क्या जानते हैं? उन्हें इस बारे में सोचने के लिए प्रेरित करने के लिए आपको कार्य करने के तरीके में सृजनशील होना होगा। गतिविधि 1 में आपने जो अभ्यास करके देखा वह विचार-मंथन का केवल एक तरीका है। जब, आप इसका अनुभव कर लेंगे, तो यह मस्तिष्क को प्रेरित करेगा तथा आपको और अधिक व्यापक स्तर पर सोचने के लिए प्रोत्साहित करेगा। अब आप विचार-मंथन करने के अन्य तरीकों की जानकारी करने से पहले इस पद्धति को अपनी कक्षा के साथ करके देखें।
विद्यार्थियों को विचार-मंथन करने की तकनीक से परिचित कराने की आवश्यकता है। इससे पहले कि आप विचार-मंथन करें, आप इस बारे में सोचें कि तकनीक का परिचय कैसे देंगे। वे कौन सी मुख्य बातें हैं? जो उन्हें करनी है तथा जिनको जानना उनके लिए जरूरी है।
विचार मंथन के समय यह महत्वपूर्ण है कि
आपको इस विषय में स्पष्ट होना होगा कि आप अपनी कक्षा के साथ विचार-मंथन क्यों कर रहे हैं? ध्वनि या किसी अन्य विषय के बारे में आपके विद्यार्थी जो जानते हैं, उसके बारे में आप क्या पता लगाना चाहते हैं?
योजना को लिख लेने पर, आप विद्यार्थियों के साथ विचार-मंथन के लिए तैयार रहें। अपनी कक्षा के साथ विचार-मंथन करें। यदि संभव हो, तो अपने सहकर्मी से कक्षा में छात्रों के मध्य विचार–मंथन करायें।
जब सहकर्मी के साथ विचार-मंथन कर चुके हों, तब इस बारे में सोचने में थोड़ा समय लगाएं कि आपको ऐसा क्यों लगता है कि सत्र अच्छा चला?
विचार के लिए रुकें विचार-मंथन सत्र के बाद, निम्नांकित के बारे में सोचें:
|
अध्यापक द्वारा पढ़ाये जाने वाले पाठों/प्रकरणों (ध्वनि) के बारे में सभी छात्र कुछ न कुछ ज्ञान रखते हैं परन्तु सभी विद्यार्थियों के विचार एक जैसे नहीं होंगे तथा जो विचार उनके पास होंगे उनके पूर्ण विकसित होने की संभावना भी कम है।
जब आप शिक्षण सत्र की योजना बनाते हैं, चाहे वह प्रयोगात्मक हो या सैद्धांतिक पाठ हो, आपको यह जानना महत्वपूर्ण होता है कि आपके विद्यार्थी पहले से क्या जानते हैं? जिससे आप अधिक प्रभावी ढंग से शिक्षण कर सकते हैं। आपके विद्यार्थी जो पहले से जानते हैं उसे पुनः पढ़ाकर समय बर्बाद करने के बजाए आगे के विषयवस्तु/प्रकरणों के सम्बन्ध में उनकी समझ को बढ़ाना है। इसलिए किसी विषय के बारे में सोचने और अपने विचार साझा करने में विद्यार्थियों की मदद करने के लिए विचार-मंथन एक अच्छा तरीका है।
ध्वनि पर विचार-मंथन संभवतः यह दर्शाता है कि, ध्वनियां कैसे बनती हैं? इस बारे में विद्यार्थी कहां पर भ्रमित हो गए हैं? या कहां पर उनकी अवधारणाएँ अल्प–विकसित हैं? इसकी जानकारी होने के बाद आप अपने शिक्षण को प्रत्यक्ष रूप से सीखने की आवश्यकताओं पर अधिक लक्षित कर सकेंगे तथा उनके विचारों को अधिक गहराई से सोचने के लिए चुनौती देंगे। उदाहरण के लिए आप ऐसी कुछ लघु गतिविधियों की योजना बना सकते हैं, जो उन्हें इस बारे में सोचने में मदद करें कि जब ध्वनियां बनती हैं तब क्या होता है? और ध्वनि इस तरह से निर्मित क्यों होती है?
विशिष्ट आवश्यकता वाले छात्रों (CWSN)को अधिक सहयोग चाहिए।
विचार-मंथन से न केवल आपको यह समझने में मदद मिलती है कि आपके विद्यार्थी पहले से क्या जानते हैं? बल्कि इससे आपके विद्यार्थी पाठ में अधिक सक्रिय रूप से भाग लेने के लिए प्रोत्साहित होते हैं जिससे उनका आत्मविश्वास बढ़ सकता है। कुछ मुख्य लाभ चित्र 2 में संक्षिप्त कर दिये गये हैं।
संसाधन 1, ‘सीखने के लिए बात–चीत करें’, सीखने–सिखाने की क्रिया में बात–चीत अधिगम को बढ़ाता है। अपने विद्यार्थियों के साथ कार्य जारी रखने से पहले इसे अभी पढ़ लेना संभवतः आपको उपयोगी लगे – इससे आपको विद्यार्थियों को उनके विचारों और समझ के बारे में बातचीत करने के लिए प्रोत्साहित करने के तरीकों की छानबीन करने में मदद मिलेगी।
विचार-मंथन पर मिले फीडबैक के अभिलेखीकरणे हेतु विभिन्न तरीके मौजूद हैं। आप अपने विद्यार्थियों से जानकारी का अभिलेखीकरण किस तरीके से करने के लिए कहते हैं। यह इस बात पर निर्भर करेगा कि आप गतिविधि से क्या हासिल करना चाहते हैं?
विचार-मंथन सत्र की समाप्ति पर, आपके पास बहुत सी प्रतिक्रियाएं होनी चाहिए, जिनका उपयोग शुरूआती तौर पर विद्यार्थियों की समझ को बढ़ाने के लिए करेंगे। कुछ प्रतिक्रियाओं पर जिसमें पढाये जा रहे विषय के लिए वास्तविक संभावनाएं है। उन पर आप विशेष रूप से प्रकाश डालना चाहते होंगे। बाकी प्रतिक्रियाओं पर बाद में किसी दिन नज़र डाली जा सकती है। या फिर विद्यार्थियों को व्यक्तिगत रूप से कार्य करने के लिए विचार चुन लें। किसी भी परिस्थिति में विद्यार्थियों को स्पष्ट करें कि कैसे एक-दूसरे के साथ बातचीत करते हुए उन्होंने अपनी सोच को विकसित किया, तथा उनके विचारों में भी विकास व वृद्धि हुई।
आप अपने पाठ को इस पर केंद्रित कर सकते हैं कि ध्वनि कैसे बनती है, जिसके लिए संभवतः आप कुछ ऐसी सरल गतिविधियों की योजना बना सकते हैं, जिनमें यह देखा जा सके कि कंपन पैदा करने से ध्वनि उत्पन्न होती है। इसमें कुछ सरल कार्य शामिल हो सकते हैं, जैसे– किसी रबर बैंड या तार को कंपित करना, किसी ड्रम पर थोड़े बीज रख देना और ड्रम को जब हल्के से बजाया जाता है तो क्या होता है। विद्यार्थियों के विचार-मंथन पर आप किस प्रकार से प्रतिक्रिया देंगे यह इन बातों पर निर्भर करेगा कि आप क्या सिखाना चाहते हैं? तथा सीखने वाले अपने विद्यार्थियों के बारे में आप क्या जानते हैं? चूंकि आप कक्षा को नियमित रूप से पढ़ाते हैं इसलिए आपको पता होगा कि किस प्रकार की गतिविधि और प्रायोगिक कार्य संचालित करने के तरीके आपके विद्यार्थियों के लिए सर्वाधिक लाभकारी रहेंगे।
अगले केस स्टडी में, श्रीमती शर्मा दिखाती हैं कि किस प्रकार वे अपने विद्यार्थियों की रुचि पैदा करती है कि ध्वनि कैसे बनती है? इसकी छानबीन करने के लिए वाद्य यंत्रों का उपयोग करती हैं। वाद्य यंत्र स्थानीय समुदाय में आसानी से मिल जाते हैं और विद्यार्थी इन्हें ला सकते हैं।
श्रीमती शर्मा एक एम.जी. सरकारी विद्यालय में विज्ञान की शिक्षिका हैं। विद्यालय में वार्षिकोत्सव की तैयारियां चल रही हैं। वे इस अवसर का उपयोग अपने विद्यार्थियों को ध्वनि से परिचित कराने में करती हैं।
वार्शिकोत्सव के लिए नृत्य का अभ्यास चल रहा था और अपनी कक्षा में बैठे हुए मैं वाद्य यंत्रों से निकल रहे संगीत की और उसके साथ-साथ नाचते हुए पैरों की धमक से निकलने वाली घुंघरुओं की ध्वनि सुन सकती थी। मैंने प्रत्येक वाद्य यंत्र द्वारा उत्पन्न ध्वनि की पहचान करने की कोशिश की। बाद में मैं यंत्रों को नजदीक से देखने के लिए संगीत कक्ष में गई [चित्र 3]। वहां ढोलक, तबला, हारमोनयिम, सितार, बाँसुरी और कुछ घुंघरू रखे थे। मैंने उन सभी को बजाने की कोशिश की। मैंने संगीत शिक्षिका से कहा कि वे प्रत्येक वाद्य यंत्र को अलग-अलग बजाएं और मैंने प्रत्येक वाद्ययंत्र की ध्वनि को अपने मोबाइल फोन पर रिकॉर्ड कर लिया। मैंने सिक्कों, कंचों, पत्थरों और स्थानीय पक्षियों द्वारा उत्पन्न ध्वनियों की रिकॉर्डिंग भी बनाई। मैं कक्षा में इन रिकॉर्डिंग का उपयोग करना और विद्यार्थियों से इन ध्वनियों को उत्पन्न करने वाली वस्तुओं की पहचान करवाना चाहती थी।
अगले पाठ में मैंने रिकॉर्डिंग चलाईं और विद्यार्थियों से प्रत्येक ध्वनि के स्रोत की मन ही मन पहचान करने को कहा। इसके बाद मैंने विद्यार्थियों से कहा कि समूह में कार्य करते हुए आस-पास आमतौर पर सुनाई देने वाली कुछ ध्वनियों और उनके स्रोत की एक सूची तैयार करें। [अपने पाठों में योजना बनाने तथा समूहों को संगठित करने में मुख्य संसाधन ‘‘समूह कार्य का उपयोग करना’ आपकी मदद करेगा।] मैंने प्रत्येक समूह को एक कागज़ दिया, जिस पर उन्हें ‘आम ध्वनियां’ शीर्षक के तहत अपने उत्तर लिखने थे। मैंने विद्यालय में आए कुछ बड़े लिफाफों के अन्दर के हिस्से से कागज़ बचाए थे, क्योंकि मेरी कक्षा के लिए कागज़ों का मिलना मुश्किल से होता है।
अब, मैंने प्रत्येक समूह से कहा कि वे अपने-अपने विचारों का साझा पूरी कक्षा के साथ करें। उनके बोलने के दौरान मैंने कुछ मुख्य शब्दों और विचारों को चुना और उन्हें श्यामपट्ट पर लिख दिया। इससे मुझे यह समेटने में मदद मिली कि कक्षा ने इस बारे में क्या कहा है कि उन्होंने किस प्रकार की ध्वनियां सुनीं और उनके स्रोत क्या हैं?
विद्यार्थियों अपेक्षाकृत छोटे समूहों में बातचीत करने का अवसर देकर, श्रीमती शर्मा ने अपनी पूरी कक्षा को बोलने और चर्चा में जुड़ने का अधिक अवसर दिया। विद्यार्थी पूरी कक्षा के सामने बोलने से भयभीत या परेशान नहीं थे। विद्यार्थियों में विचार सुव्यक्त या स्पष्ट नहीं थे तो भी उन्हें कोई अधिक चिंता नहीं थी। यह उन विद्यार्थियों के लिए बहुत अच्छा है जिन्हें सीखने की प्रक्रिया कठिन लगती है। इसी प्रकार आप बाकी समूह से ऐसे सीखने वालों की मदद करने और उन्हें सहारा देने के लिए कह सकते हैं।
जब किसी वस्तु के बारे में एक विद्यार्थी को दूसरे विद्यार्थियों को समझानी पड़ती हैं, तो उसकी स्वयं की समझ स्पष्ट होती है। धीरे-धीरे विद्यार्थी बोलने में और अपने विचारों को साझा करने में अधिक आत्मविश्वासी हो जाएंगे। विभिन्न योग्यताओं वाले विद्यार्थियों के लिए विचार-मंथन एक अच्छी गतिविधि है क्योंकि इसमें प्रतिभावान विद्यार्थियों और सीखने की क्रिया में मुश्किल महसूस करने वाले विद्यार्थियों दोनों लिए प्रतिस्पर्धा किए बिना साथ मिल कर कार्य करने में मदद मिलती है।
वीडियो: सभी को शामिल करना |
यदि, आपकी कक्षा में कम आयु के विद्यार्थी हैं, तो आपको यह सुनिश्चित करना होगा कि कोई समूह में से कोई एक समूह प्रमुख के रूप में कार्य कर सकता हो तथा अन्य विद्यार्थी उनके उत्तर लिख सकते हों। अधिक आयु वाले विद्यार्थियों के साथ ऐसी कोई दिक्कत नहीं आएगी।
आप योग्यता के आधार पर, अपने समूहों को संगठित करने के अन्य आधार भी सोच सकते हैं। आप इसके लिए कक्षा को अनुभागों में विभाजित कर सकते हैं, ताकि आपके पास मिश्रित योग्यता वाले समूह हों। समूहों में अधिक योग्य विद्यार्थी समूह के विचारों को लिखने के लिए अभिलेखक (रिकॉर्डर) के रूप में कार्य कर सकता है। इससे समूह में हर कोई अंतिम विचार-मंथन में योगदान दे सकने में समर्थ होगा। यदि आपकी कक्षा बड़ी हो, तो समूह विचार-मंथन संचालित करने का यह सर्वोत्तम तरीका हो सकता है क्योंकि इसमें विद्यार्थियों को ज्यादा दूर तक जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। हो सकता है कि बस घूम कर बैठना मात्र ही काफ़ी हो। वैकल्पिक तौर पर आप विद्यार्थियों को उनकी रुचियों के अनुसार समूहबद्ध कर सकते हैं।
किसी पाठ की छानबीन करने का एक अन्य तरीका यह है कि ऐसा पाठ चुनें जिसमें छानबीन करने के कई अलग-अलग पहलू हों। आप प्रत्येक समूह से एक अलग पहलू की छानबीन करने को कह सकते हैं। यदि आपका विषय ध्वनि है, तो आप प्रत्येक समूह से उसके अपने क्षेत्र, जैसे वाद्य यंत्र, ध्वनि के प्रकार, ध्वनि कैसे बनती है या ध्वनि प्रदूषण आदि की छानबीन करने को कह सकते हैं।
आपको निम्नांकित बिन्दुओं पर विचार करते हुए अपने विचार-मंथन सत्र की योजना बनाने के लिए थोड़ा समय देना पड़ेगा:
अपने विद्यार्थियों को आप कैसे बताएंगे कि उन्हें क्या करना है? इस सम्बन्ध में गतिविधि 2 की कार्यनीति के उपयोग को बेहतर कैसे बनाएं इस बारे में आपने सोचा था।
विचार के लिए रुकें सोचें कि विचार-मंथन से जो जानकारी आपने एकत्र किया है उससे आपको अगले पाठ की योजना बनाने में किस प्रकार मदद मिलेगी? इस पर नज़र डालें और समान प्रकार के विचारों को समूहबद्ध करने के लिए कोशिश करें। आप इस सम्बन्ध में मुख्य संसाधन ‘पाठों की योजना बनाना’ पर भी नज़र डाल सकते हैं। उदाहरण के लिए, जैसा श्रीमती शर्मा ने किया था। वैसे ही ध्वनियां कैसे बनती हैं, क्या आप बनाना चाहते हैं? विद्यार्थियों के साथ इसका विश्लेषण करने से पहले ध्वनियां उत्पन्न करने के अपने अनुभव को विस्तार देने के लिए कुछ सरल गतिविधिया जांच-पड़ताल करें । इनमें आपको विद्यार्थियों की मदद करने की आवश्यकता है? |
विचार-मंथन से प्राप्त परिणामों का उपयोग करने के कई तरीके हैं। ध्वनि या विज्ञान के किसी अन्य क्षेत्र के विषय में विद्यार्थियों के शुरूआती विचारों को आपको समझने का तरीका हो सकता है। ताकि आप विज्ञान की पाठ्य पुस्तक में दिये गये वैज्ञानिक अवधारणाओं के प्रति विद्यार्थियों की समझ को कैसे विस्तारित किया जाए? इससे सम्बन्धी शैक्षिक योजना बना सकें।
विचार-मंथन के परिणामों का उपयोग विद्यार्थियों की प्रगति पर नज़र रखने के लिए किया जा सकता है। वे ऐसा स्वयं कर सकते हैं या आपके साथ मिलकर कर सकते हैं। विचार-मंथन मजेदार गतिविधि है और इसमें अधिक समय भी नहीं लगता है। इसलिए, यह अपनी कक्षा के विभिन्न योग्यता वाले विद्यार्थियों से प्रासंगिक जानकारी एकत्र करने का एक अच्छा तरीका है।
अब केस स्टडी 3 को पढ़ें जिसमें यह वर्णन किया गया है कि किस प्रकार एक शिक्षिका ने ध्वनि कैसे उत्पन्न होती है? के बारे में अपनी कक्षा की सोच को विस्तार देने पाठ एवं योजना बनाने के लिए कक्षा के विचार-मंथन के परिणामों के साथ कार्य किया। संसाधन 2, के ‘प्रगति व प्रदर्शन का मूल्यांकन करना’, शीर्षक के बारे में गहरी जानकारी प्रदान करता है– कि विद्यार्थियों की समझ और प्रगति के बारे में एकत्र की गई जानकारी का उपयोग कैसे किया जाए?
कुंजा ने अपनी कक्षा के साथ ‘ध्वनि’ पर एक विचार-मंथन किया था जिसे नीचे दिखाया गया है। उन्होंने अपने अगले पाठ योजना बनाने के लिए विचार-मंथन का उपयोग करने से पहले, विद्यार्थियों की समझ के बारे में और गहरी छानबीन करने के लिए कुछ प्रश्न पूछे।
मैंने सभी विद्यार्थियों से पूछा कि जब मैं शब्द ‘ध्वनि’ उच्चारित किया तो उनके मन में जो-जो शब्द व विचार आए वे मुझे बताएं। मैंने उन्हें बिना किसी विशेष क्रम के ब्लैकबोर्ड पर लिख दिया। कुछ मिनटों बाद मैं रुकी और कक्षा में बताए गये उनके विचारों के लिए धन्यवाद दिया। मैंने विद्यार्थियों द्वारा दिये गये कुछ उत्तरों के बारे में कुछ प्रश्न पूछा ताकि मैं जान सकूं कि उन्होंने जो कहा उसके बारे में वे क्या जानते हैं? मैंने पाया कि अधिकतर विद्यार्थी ध्वनि के प्रकारों का वर्णन तो आसानी से कर पा रहे थे, परन्तु वे यह वर्णन करने में असमर्थ थे कि ध्वनि कैसे बनती है और ध्वनियों में विभिन्नता किस कारण से होती है? मैंने निर्णय लिया कि इस विचार-मंथन के परिणामों का उपयोग करके यह योजना बनाऊंगी कि ध्वनियां कैसे बनती हैं तथा किस प्रकार उनके सुरों में परिवर्तन (मॉडुलन) किया जा सकता है? यह समझाने के लिए विद्यार्थियों की मदद कैसे की जा सकती है।
सबसे पहले मैंने एक बार फिर से विचार-मंथन को करीब से देखा और शब्दों को विभिन्न क्षेत्रों में समूहबद्ध किया [चित्र 4]।
मैंने उन यंत्रों को सूचीबद्ध किया, जिनका उल्लेख विद्यार्थियों ने सबसे पहले किया था। इसके बाद विद्यार्थियों द्वारा सुझाई गई ध्वनियों के विवरण और प्रकार लिखे। अंत में मैंने ऐसे शब्द तलाशे जिनको ध्वनियां कैसे बनती हैं? इससे जोड़ा जा सकता है। इस सूची में मैंने ‘फूंकना’, ‘बजाना’, ‘कंपन’, ‘बोलना’ और ‘तार छेड़ना’ रखे। इसके बाद मैंन यही कार्य ध्वनि के प्रकारों के साथ किया। मैंने विद्यार्थियों ध्वनि उत्पन्न करने के तरीकों के बारे में और अधिक समझाने के लिए कहा था, पर वे यह नहीं समझा सके कि असल में क्या होता है?
योजना बनाने के कार्य को आरंभ करने के लिए मेरे पास ऐसे चार वाद्य यंत्रों का उपयोग करने का विचार था, जिनसे ध्वनि उत्पन्न करने के लिए चोट करनी होती है, तार छेड़ना होता है या फूंकना होता है, और साथ ही मैंने कुछ साधारण वस्तुएं एकत्र करने का भी सोचा था, जिसे ध्वनि उत्पन्न करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता था। जैसे– टिन का खाली डिब्बा, तार और रबर बैंड। मैंने पाया कि विद्यार्थी ध्वनि उत्पन्न तो कर सकते थे, परन्तु उन्हें यह नहीं पता था कि ध्वनि उत्पन्न किस कारण से हो रही है? इसलिए मैंने थोड़े चावल भी ले लिए ताकि कंपन को दर्शाने के लिए उन्हें ड्रम पर रखा जा सके।
मैंने छोटी-छोटी गतिविधियों की एक शृंखला संचालित करने की योजना बनाई, जिसमें विद्यार्थी जोड़ियों में कार्य करते हुए ध्वनि उत्पन्न करने के विभिन्न तरीके आज़मा सकेंगे। विद्यार्थियों उनके द्वारा गतिविधि करने के दौरान मैं उनसे पूछ सकूंगी कि ध्वनि किस कारण से उत्पन्न हो रही है। मैं उन्हें वस्तुओं तथा यंत्रों पर हाथ रखने को प्रोत्साहित करूंगी ताकि वे कंपन का अनुभव कर सकें। इसके बाद जब मुझे लगेगा कि उन सभी को कंपनों का अनुभव हो गया है तो ध्वनि कैसे उत्पन्न होती है, इसके बारे में मैं उनके लिए एक आरेख बनाऊंगी।
मैं सभी छोटी-छोटी गतिविधियों को कमरे में व्यवस्थित करूंगी और वे बारी-बारी से एक से दूसरी गतिविधि पर जा सकेंगे। उनके लिए सभी गतिविधियां तो नहीं पर कम-से-कम चार या पाँच गतिविधि करना आवश्यक होगा।
केस स्टडी 3 में श्रीमती धा द्वारा की गई गतिविधि, में उन्होंने इसकी छानबीन की थी कि ध्वनियां कैसे उत्पन्न होती हैं? जैसे अन्य किसी गतिविधि को करने की कोशिश करें।
आप, ऐसी किसी योजना के लिए अपनी कक्षा को किस प्रकार अनुकूलित कर सकते हैं?
आपने देखा कि किस प्रकार श्रीमती धा ने जाना कि उनकी कक्षा को क्या-क्या जानकारी है और उनके ज्ञान में कहां-कहां कमियाँ हैं? उन्होंने विद्यार्थियों के उत्तरों का विश्लेषण किया। ध्वनि के मुख्य पहलुओं में श्रेणीबद्ध किया। सबसे पहले, ध्वनि कैसे उत्पन्न होती है इस पर ध्यान केंद्रित करने के लिए। उनका अगला चरण, विभिन्न यंत्रों या वस्तुओं को बजाने के तरीके में बदलाव करने से उत्पन्न होने वाली विभिन्न प्रकार की ध्वनियों की छानबीन करना हो सकता था। विद्यार्थियों को ध्वनि उत्पन्न करने के ठोस उदाहरण देने से कंपनों को कहीं बेहतर ढंग से समझने में उन्हें मदद मिलेगी।
विचार-मंथन करने से श्रीमती धा को अपने शिक्षण को अपने विद्यार्थियों की आवश्यकताओं पर अधिक प्रत्यक्ष रूप से निर्देशित करने में मदद मिली है। इस प्रकार की पद्धति आपके लिए भी ऐसा ही सकारात्मक असर दे सकती है।
विचार-मंथन, आपके विद्यार्थियों के लिए किसी विषय के पूर्व-ज्ञान का निर्धारण करने तथा उसे सक्रिय करने का एक उपयोगी तरीका है। (विचारमंथन सत्र की व्यवस्था करने एवं प्रभावी विचार-मंथन के बारे में जानकारी के लिए संसाधन 3 व 4 देखें।)
जैसा कि आपने देखा है कि विचार-मंथन आपके शिक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। विचार-मंथन के माध्यम से आपके विद्यार्थी जानकारी, अनुभवों और विचारों को सक्रिय रूप से साझा कर के विषय के बारे में सीखने के लिए प्रोत्साहित होते हैं। साथ ही साथ, इससे आपको उनकी वर्तमान समझ के बारे में जानकारी मिलती है जिससे आप ध्वनि या विज्ञान के अन्य विषयों जैसे विद्युत, जल व प्रकाश के बारे में सीखने के उनके अगले चरणों की योजना बना सकते हैं। विचार-मंथन का उपयोग करने से आप यह पता लगा पाएंगे कि यदि विद्यार्थियों को कोई विषय समझना है, तो किन विद्यार्थियों को कार्य-विशेष में अतिरिक्त सहायता चाहिए।
आपके विद्यार्थी पहले से क्या जानते हैं? यह जानने से आपका शिक्षण बेहतर बन सकता है। यह बात स्वयं को याद रखने के लिए अब आप चाहें तो संसाधन 3, के ‘प्रगति व प्रदर्शन का मूल्यांकन करना’ पर एक बार फिर से नज़र डाल सकते हैं।
बातचीत मानव विकास का हिस्सा है, जो सोचने-विचारने, सीखने और विश्व के सम्बन्ध में जानकारी का बोध प्राप्त करने में हमारी मदद करती है। लोग भाषा का इस्तेमाल तार्किक क्षमता, ज्ञान और समझ को विकसित करने के औज़ार के रूप में करते हैं। अत: विद्यार्थियों को उनके शैक्षिक अनुभवों पर बात करने के लिए प्रोत्साहित करने का अर्थ होगा उनकी शैक्षणिक प्रगति का बढ़ाना। सीखे गए विचारों के बारे में बात करने का अर्थ होता है–
किसी कक्षा में रटा-रटाया दोहराने से लेकर उच्च श्रेणी की चर्चा तक छात्र वार्तालाप करने के लिए विभिन्न तरीके अपनाते हैं।
पारंपरिक तौर पर, शिक्षक की बातचीत की अधिकता होती थी और वह विद्यार्थियों की बातचीत या विद्यार्थियों के ज्ञान के मुकाबले अधिक महत्वपूर्ण समझी जाती थी। यद्यपि, पढ़ाई के लिए पाठों के नियोजन में बात–चीत शामिल होती है ताकि शिक्षक, विद्यार्थियों से अधिक बात–चीत इस ढ़ंग से करें कि उनके पूर्व अनुभवों और सीखने के मध्य सम्बन्ध कायम रहे। यह किसी शिक्षक और उसके विद्यार्थियों के बीच प्रश्न और उत्तर सत्र से कहीं अधिक होता है क्योंकि इसमें छात्र की अपनी भाषा, विचारों और रुचियों को ज्यादा समय दिया जाता है। हम में से अधिकांश कठिन मुद्दे के बारे में या किसी बात का पता लगाने हेतु किसी से बात करना चाहते हैं, जिसे अध्यापक बेहद सुनियोजित गतिविधियों से इस सहज-प्रवृत्ति को बढ़ा सकते हैं।
शिक्षण की गतिविधियों के लिए बातचीत की योजना बनाना महज साक्षरता और शब्दावली के लिए नहीं है। यह गणित, विज्ञान के काम एवं अन्य विषयों के नियोजन का हिस्सा भी है। इसे समूची कक्षा में, जोड़ी कार्य या सामूहिक कार्य में, आउटडोर गतिविधियों में, भूमिका पर आधारित गतिविधियों में, लेखन, वाचन, प्रायोगिक छानबीन और रचनात्मक कार्य में योजनाबद्ध तरीके से किया जा सकता है।
यहां तक कि साक्षरता और गणना के सीमित कौशलों वाले नन्हें छात्र भी उच्चतर श्रेणी के चिंतन कौशलों का प्रदर्शन कर सकते हैं। बशर्ते कि उन्हें दिया जाने वाला कार्य उनके पहले के अनुभव पर आधारित और आन्नदायी हो। उदाहरण के लिए विद्यार्थी, तस्वीरों, आरेखों या वास्तविक वस्तुओं से किसी कहानी, पशु या किसी आकृति के बारे में पूर्वानुमान लगा सकते हैं। यह विद्यार्थी भूमिका निभाते समय कठपुतली या पात्र की समस्याओं के बारे में सुझावों तथा संभावित समाधानों को सूचीबद्ध कर सकते हैं।
जो कुछ आप विद्यार्थी को सिखाना चाहते हैं उसके इर्दगिर्द पाठ की योजना बनायें और साथ ही इस बारे में भी सोचें कि आप किस प्रकार की बातचीत को विद्यार्थियों में विकसित होते देखना चाहते हैं? कुछ प्रकार की बातचीत अन्वेषी होती है उदाहरण के लिए– ‘इसके बाद क्या होगा?’, ‘क्या आपने इसे पहले देखा है?’, ‘यह क्या हो सकता है?’ या ‘आप ऐसा क्यों सोचते हैं कि वह यह है?’ अन्य प्रकार की वार्ताएं ज्यादा विश्लेषणात्मक होती हैं उदाहरण के लिए विचारों, साक्ष्य या सुझावों का आकलन करना।
सभी विद्यार्थियों द्वारा संवाद में भाग लेने के लिए इसे रोचक, आन्नदायी और संभव बनाने की कोशिश करें। विद्यार्थियों को उपहास का पात्र बनने या गलत होने के भय के बिना दृष्टिकोणों को व्यक्त करने हेतु विचारों का पता लगाने में सहज और सुरक्षित महसूस कराने की जरूरत होती है।
शिक्षण के लिए बात–चीत अध्यापकों को निम्न अवसर प्रदान करती है
सभी उत्तरों को लिखना या उनका औपचारिक आकलन नहीं करना होता है क्योंकि बात–चीत के जरिये विचारों को विकसित करना शिक्षण का महत्वपूर्ण हिस्सा है। आपको अपने शिक्षण को प्रासंगिक बनाने के लिए उनके अनुभवों और विचारों का यथासंभव प्रयोग करना चाहिए। सर्वश्रेष्ठ विद्यार्थी छात्र वार्ता अन्वेषी होती है जिसका अर्थ होता है कि विद्यार्थी एक दूसरे के विचारों की जांच करते हैं और चुनौती पेश करते हैं ताकि वे अपने प्रतिउत्तर को लेकर आश्वस्त हो सकें। एक साथ बातचीत करने वाले समूहों को किसी के भी द्वारा दिए गए उत्तर को स्वीकार करने के लिए प्रोत्साहित नहीं किया जाना चाहिए। आप, विद्यार्थियों के समूहों में हो रही बात–चीत को सुनते हुए कक्षा में घूम सकते हैं तथा अधोलिखित प्रकार के प्रश्न पूछकर उनकी विचारशीलता को बढ़ा सकते हैं। आपने इसका निर्णय क्यों लिया? क्या आपको उस हल में कोई समस्या नजर आती है? इसके अतिरिक्त जांच वाले प्रश्नों को प्रयोग के माध्यम से चुनौतीपूर्ण बनाते हुए विचारशीलता को बढ़ा सकते हैं।
अगर विद्यार्थियों की वार्ता में आये विचारों और अनुभवों की कद्र और सराहना की जाती है तो वे प्रोत्साहित होंगे। बातचीत करने के दौरान उनके व्यवहार, सावधानी से सुनने, एक दूसरे से प्रश्न पूछने, और बाधा न डालना सीखने के लिए अपने विद्यार्थियों की प्रशंसा करें। कक्षा में कमजोर बच्चों के बारे में सावधान रहें और उन्हें भी शामिल करने के तरीकों पर विचार करें। कामकाज के ऐसे तरीकों को स्थापित करने में थोड़ा समय लग सकता है, जो सभी विद्यार्थियों को पूरी तरह से भाग लेने की सुविधा प्रदान करते हों।
अपनी कक्षा में ऐसा वातावरण तैयार करें जहां अच्छे चुनौतीपूर्ण प्रश्न पूछे जाते हैं तथा विद्यार्थियों के विचारों को सम्मान दिया जाता है और उऩकी प्रशंसा की जाती है। अगर विद्यार्थी प्रश्न नहीं पूछेंगे तो उनके साथ किए जाने वाले व्यवहार को लेकर भय होगा या उन्हें लगेगा कि उनके विचारों का मान नहीं किया जाएगा। विद्यार्थियों को प्रश्न पूछने के लिए आमंत्रित करना उनको जिज्ञासा दर्शाने के लिए प्रोत्साहित करता है, उनसे अपने शिक्षण के बार में अलग ढंग से विचार करने के लिए कहता है और उनके नजरिए को समझने में आपकी सहायता करता है।
आप कुछ नियमित समूह या जोड़े में कार्य करने, या ‘विद्यार्थियों के प्रश्न पूछने का समय’ जैसी कोई योजना बना सकते हैं ताकि छात्र प्रश्न पूछ सकें या स्पष्टीकरण मांग सकें। आप इसके लिए यह कर सकते हैं–
किसी एक को हॉट-सीट पर बैठा सकते हैं तथा दूसरे विद्यार्थियों को उस विद्यार्थी से प्रश्न पूछने के लिए प्रोत्साहित कर सकते हैं जैसे कि वे पात्र हों, उदाहरणार्थ– पाइथागोरस या मीराबाई
जब विद्यार्थी प्रश्न पूछने और उन्हें मिलने वाले प्रश्नों के उत्तर देने के लिए स्वतंत्र होते हैं तो उस समय आपको रुचि और विचारशीलता के स्तर को देखकर हैरानी होगी। जब विद्यार्थी अधिक स्पष्टता और सटीकता से संवाद करना सीख जाते हैं तो वे न केवल अपनी मौखिक और लिखित शब्दावलियां बढ़ाते हैं अपितु उनमें नया ज्ञान और कौशल भी विकसित होता है।
विद्यार्थियों के अधिगम का मूल्यांकन करने के दो उद्देश्य हैं–
निर्माणात्मक मूल्यांकन अधिगम को बढ़ाता है, क्योंकि अधिकांश विद्यार्थियों को अवश्य में सीखने के लिए :
जानना चाहिए कि अपनी पढ़ाई में वे इस समय किस स्तर पर हैं?
समझना चाहिए कि वे किस प्रकार प्रगति कर सकते हैं? (अर्थात क्या पढ़ना चाहिए और कैसे पढ़ना चाहिए?)
शिक्षक के रूप में, यदि आप प्रत्येक पाठ में उपर्युक्त चार बिंदुओं पर ध्यान देंगे तो आप विद्यार्थियों से सर्वश्रेष्ठ परिणाम प्राप्त करेंगे। इस प्रकार पढ़ाने से पहले, पढ़ाते समय और पढ़ाने के बाद मूल्यांकन किया जा सकता है:
जब आप तय करते हैं कि विद्यार्थियों को पाठ या पाठों की शृंखला में क्या सीखना चाहिए? तो आपको उसके साथ साझा करना चाहिए। सावधानी से अंतर करें कि विद्यार्थियों को आप क्या करने के लिए कह रहे हैं? और विद्यार्थियों से क्या सीखने की उम्मीद की जा रही है? ऐसा प्रश्न पूछिये जिससे कि आपको इस बात का आकलन करने का अवसर प्राप्त हो कि क्या उन्होंने वाक़ई समझा है या नहीं? उदाहरण के लिए–
विद्यार्थियों को जवाब देने से पहले सोचने के लिए कुछ सेकंड दें या विद्यार्थियों को पहले जोड़े या छोटे समूहों में अपने जवाब पर चर्चा करने के लिए कहें। जब वे आपको अपना उत्तर बताएँ, तभी आप जान जाएँगे कि क्या वे समझते हैं और उन्हें क्या सीखना है?
आपके विद्यार्थियों में सुधार हेतु मदद करने के क्रम में आपको और उन्हें अपने ज्ञान और समझदारी की वर्तमान अवस्था को जानने की ज़रूरत पड़ेगी। जैसे ही आप वांछित शिक्षण परिणामों या लक्ष्यों को साझा कर लें आप तब निम्नलिखित कार्य कर सकते हैं:
महत्वपूर्ण शब्दावली को बोर्ड पर लिखें और प्रत्येक शब्द के बारे में वे क्या जानते हैं? यह बताने के लिए स्वेच्छा से उन्हें आगे आने के लिए कहें। फिर बाक़ी कक्षा से कहें कि यदि वे शब्द समझते हैं तो अपने अंगूठे की दिशा को ऊपर रखें यदि वे बहुत कम जानते हैं या बिल्कुल नहीं जानते हैं, तो अंगूठे की दिशा को नीचे की ओर रखें और यदि वे कुछ जानते हैं, तो बराबर में रखकर दिखायें।
कहाँ से शुरुआत करनी है? यह जानने का मतलब है कि आप अपने विद्यार्थियों के लिए व्यवहारिक और रचनात्मक रूप से पाठ योजना बना सकते हैं। यह भी महत्वपूर्ण है कि आपके विद्यार्थी यह मूल्यांकन करने में सक्षम हों कि वे कितनी अच्छी तरह सीख रहे हैं ताकि आप और वे दोनों जान सकें कि उन्हें आगे क्या सीखने की ज़रूरत है? आपके विद्यार्थियों को स्वयं अपने शिक्षण का भार उठाने का अवसर प्रदान करने से उन्हें आजीवन शिक्षार्थी बनाने में मदद मिलेगी।
जब आप विद्यार्थियों से उनकी प्रगति के बारे में बात करते हैं तो यह सुनिश्चित करें कि उनको आपका फीडबैक उपयोगी और रचनात्मक लगे।
आपको विद्यार्थियों विद्यार्थियों के लिए उनके शिक्षण को बेहतर बनाने के लिए अवसर प्राप्त कराने की ज़रूरत पड़ेगी। इसका अर्थ यह हुआ कि पढ़ाई के मामले में विद्यार्थियों के वर्तमान स्तर और जहाँ आप उन्हें देखना चाहते हैं, इसके बीच के अंतराल को भरने के लिए हो सकता है कि आपको अपनी पाठ योजना को संशोधित करना पड़े। ऐसा करने के लिए आपको निम्नलिखित कार्य करने होंगेः
पाठों की गति को धीमा करके अक्सर आप दरअसल पढ़ाई को तेज़ करते हैं क्योंकि आप विद्यार्थियों को उस पर सोचने और समझने का समय देकर उनके आत्मविश्वास को बढ़ाते हैं, जिसमें उन्हें सुधार लाने की ज़रूरत होती है। विद्यार्थियों को आपस में अपने काम के बारे में बात करने का मौक़ा देकर, और इस बात पर चिंतन करके कि अंतराल कहाँ पर है और वे इसे किस प्रकार से ख़त्म कर सकते हैं आप उन्हें स्वयं का आकलन करने के तरीक़े मुहैया करा रहे हैं।
जब शिक्षण–अधिगम चल रहा हो कराने के बाद और गृह कार्य देने के बाद, ज़रूरी है कि–
मूल्यांकन की चार प्रमुख स्थितियों की नीचे चर्चा की गई है।
प्रत्येक विद्यार्थी में सीखने की गति अलग–अलग होती है, वह स्कूल के अंदर और बाहर अलग प्रकार से सीखता है। इसलिए, विद्यार्थियों का मूल्यांकन करते समय आपको ध्यान देना होगा–
विद्यार्थियों का व्यक्तिगत रूप से जोड़ों में और समूहों में मूल्यांकन करें, तथा स्व-मूल्यांकन को बढ़ावा दें। अलग विधियों का भी प्रयोग महत्वपूर्ण है, क्योंकि कोई एक पद्धति आपके वह सभी जानकारी उपलब्ध नहीं कराती जिसकी आपको ज़रूरत है। विद्यार्थियों के सीखने और प्रगति के बारे में जानकारी इकट्ठा करने के विभिन्न तरीक़ों में शामिल हैं जैसे– देखना, सुनना, विषयों पर चर्चा, तथा लिखित वर्ग और गृह-कार्य की समीक्षा करना।
भारत भर के सभी स्कूलों में रिकॉर्डिंग का सबसे आम स्वरूप रिपोर्ट कार्ड के उपयोग के माध्यम से होता है लेकिन इसमें आपको एक विद्यार्थी के सीखने या व्यवहार के सभी पहलुओं को रिकॉर्ड करने की अनुमति नहीं हो सकती है। इस काम को करने के कुछ सरल तरीक़े हैं जिन पर भी आप विचार कर सकते हैं जैसे कि–
जैसे ही जानकारी एवं प्रमाण एकत्रित और अभिलिखित हो जाए उसकी व्याख्या करना ज़रूरी है ताकि यह समझा जा सके है कि प्रत्येक विद्यार्थी किस प्रकार सीख रहा है और प्रगति कर रहा है। इस पर सावधानी से विचार करने और विश्लेषण की आवश्यकता है। फिर आपको शिक्षण में सुधार करने, संभवतः विद्यार्थियों को फ़ीडबैक देकर, नए संसाधनों की खोज करके, समूहों को पुनर्व्यवस्थित करके, शिक्षण बिंदु को दोहरा कर अपने निष्कर्षों पर कार्य करने की आवश्यकता है।
मूल्यांकन, प्रत्येक विद्यार्थियों को विशिष्ट और विभेदक शिक्षण गतिविधियों की स्थापना करते हुए सार्थक ढंग से सीखने का अवसर प्रदान करती है। अधिक ज़रूरतमंद विद्यार्थियों पर ध्यान देने तथा अधिक उन्नत विद्यार्थियों को चुनौती देते हुए सार्थक शैक्षिक अवसर उपलब्ध कराने में आपकी मदद कर सकता हैं।
विचार-मंथन एक सामूहिक गतिविधि है, जो किसी विशिष्ट मुद्दे या समस्या पर अधिकतम संभव विचार उत्पन्न करता है तथा यह निर्णय लेता है कि कौन से विचार सर्वश्रेष्ठ समाधान प्रदान करते हैं। इसमें समूह द्वारा उनके सामने मौजूद मुद्दे या समस्या को हल करने के नए विचारों को सोचने के लिए विचार–विमर्ष किया जाता है। विचार-मंथन से विद्यार्थियों को निम्नांकित में मदद मिलती है–
सत्र आरंभ करने से पहले, आपको किसी स्पष्ट मुद्दे या समस्या की पहचान करनी होगी। इसमें ‘ऊर्जा’ जैसे सरल शब्द और समूह के लिए इसका क्या अर्थ है? ‘हम अपने विद्यालय के पर्यावरण को कैसे विकसित कर सकते हैं?’ जैसे प्रश्न शामिल हो सकते हैं। अच्छे विचार-मंथन की व्यवस्था करने के लिए यह आवश्यक है कि हमारे पास वह शब्द, प्रश्न या समस्या हो जिस पर समूह द्वारा प्रतिक्रिया या उत्तर दिए जाने की संभावना है। बहुत बड़ी कक्षाओं में अलग अलग समूहों के लिए प्रश्न अलग अलग हो सकते हैं। लिंग और योग्यता की दृष्टि से समूहों को अधिकतम संभव विविधतापूर्ण बनाया जाना चाहिए।
कागज़ की एक बड़ी शीट की भी जरूरत पड़ेगी, जिसको छह से आठ बच्चों के समूह में सभी देख सकें। सत्र आगे बढ़ने के साथ-साथ, समूह के विचारों को अभिलेखित किया जाना होगा ताकि हर कोई यह जानता रहे कि क्या कुछ कहा जा चुका है? और पहले दिए जा चुके विचारों में वह कुछ अपना जोड़ सके। प्रत्येक विचार को लिखा जाना चाहिए, भले ही वह कितना भी असामान्य हो।
सत्र प्रारम्भ करने से पहले, निम्नांकित नियम स्पष्ट किए जाने चाहिए–
कोई भी किसी के विचारों या सुझावों की आलोचना नहीं करेगा।
प्रत्येक को तेजी से कार्य करना होगा। विचार-मंथन बेहद तेजी से की जाने वाली गतिविधि है।
आरंभ में शिक्षक की भूमिका है कि वह बात–चीत में संलग्नता और विचारों के लिखने को प्रोत्साहित करना। जब बच्चे विचारों के लिए जूझने लगें या समय समाप्त हो जाए, तो समूह या समूहों से उनके तीन सर्वोत्तम विचारों का चयन करवाएं और कहलवाएं कि उन्होंने उनका चयन क्यों किया अंत में–
विचार-मंथन प्रभावी हों इसके लिए आपको यह करना आवश्यक है:
तृतीय पक्षों की सामग्रियों और अन्यथा कथित को छोड़कर, यह सामग्री क्रिएटिव कॉमन्स एट्रिब्यूशन-शेयरएलाइक लाइसेंस (http://creativecommons.org/ licenses/ by-sa/ 3.0/ ) के अंतर्गत उपलब्ध कराई गई है। नीचे दी गई सामग्री मालिकाना हक की है तथा इस परियोजना के लिए लाइसेंस के अंतर्गत ही उपयोग की गई है, तथा इसका Creative Commons लाइसेंस से कोई वास्ता नहीं है। इसका अर्थ यह है कि इस सामग्री का उपयोग अननुकूलित रूप से केवल TESS-India परियोजना के भीतर किया जा सकता है और किसी भी बाद के OER संस्करणों में नहीं। इसमें TESS-India, OU और UKAID लोगो का उपयोग भी शामिल है।
इस यूनिट में सामग्री को पुनः प्रस्तुत करने की अनुमति के लिए निम्न स्रोतों का कृतज्ञतारूपी आभार किया जाता है:
इस यूनिट में सामग्री को पुनः प्रस्तुत करने की अनुमति के लिए निम्न स्रोतों का कृतज्ञतापूर्ण आभार: संसाधन 4 http://www.tessafrica.net/ files/ tessafrica/ kr_brainstorming.pdf से (CC-BY-SA) (Resource 4: from http://www.tessafrica.net/ files/ tessafrica/ kr_brainstorming.pdf(CC-BY-SE))।
कॉपीराइट के स्वामियों से संपर्क करने का हर प्रयास किया गया है। यदि किसी को अनजाने में अनदेखा कर दिया गया है, तो पहला अवसर मिलते ही प्रकाशकों को आवश्यक व्यवस्थाएं करने में हर्ष होगा।
वीडियो (वीडियो स्टिल्स सहित): भारत भर के उन अध्यापक शिक्षकों, मुख्याध्यापकों, अध्यापकों और छात्रों के प्रति आभार प्रकट किया जाता है जिन्होंने उत्पादनों में दि ओपन यूनिवर्सिटी के साथ काम किया है।