सारी विज्ञान संबंधी पूछताछ अवलोकन के कौशल से शुरू होती है। अवलोकन वैज्ञानिक पद्धति का एक बुनियादी हिस्सा है। यह विश्लेषण करने, व्याख्या करने और निष्कर्ष निकालने में शामिल होता है।
इस इकाई में उन तरीकों के बारे में बताया गया है जो विद्यार्थियों को ज्यादा सावधानी और व्यवस्थित तरीके से अवलोकन करने में मदद करते हैं ताकि वे उभरते हुए पैटर्न (pattern) को देख सकें। इस इकाई का संदर्भ छायाएं और रात व दिन हैं। यह एक ऐसा विषय है जिसके बारे में विद्यार्थियों ने स्कूल में आने से पहले अपने विचार बना लिए होंगे। विद्यार्थी दिन और रात के बारे में जानते होंगे, आकाश को देखते होंगे और परछाइयाँ भी देखते होंगे। यह इकाई इस बात का परीक्षण करती है कि आप शिक्षक के रूप में, विद्यार्थियों के पूर्व ज्ञान से जोड़ते हुए, इस विषय पर उनकी समझ कैसे विकसित कर सकते हैं?
विद्यार्थियों को यह हिदायत अवश्य दी जानी चाहिए कि वे सूरज की ओर सीधे या किसी आईने के माध्यम से न देखें। धूप का चश्मा पहने होने पर भी सूरज की रोशनी उनकी आंखों को नुकसान पहुंचा सकती हैं।
विद्यार्थियों को कक्षा के बाहर के संभावित खतरों के बारे में पता होना और उन्हें कभी भी बिजली के उपकरण, टेलीफोनों या संचार उपकरणों की जांच–पड़ताल नहीं करनी चाहिए या ऐसे स्थानों पर खेलना या काम नहीं करना चाहिए जहां मशीनें या वाहन चल रहे हों।
विद्यार्थी अवलोकन के विषय में जिज्ञासा–शांति और प्रश्नोत्तर सत्र के अवसर उत्पन्न करना।
विद्यार्थियों में सूक्ष्म अवलोकन करने की क्षमता विकसित करना प्रभावी विज्ञान शिक्षण का बुनियादी हिस्सा है। बच्चे स्वभाव से ही जिज्ञासु होते हैं और वे जानना चाहते हैं कि दुनिया कैसे काम करती है। इस प्रकार अवलोकन उनके लिए एक स्वाभाविक गतिविधि है। उदाहरण के लिए, बहुत से विद्यार्थी (और बड़े भी) समय और दिन के गुजरने का अंदाज आसमान में देखकर लगाते हैं – लेकिन अपने अवलोकनों के माध्यम से वे क्या पैटर्न देखते हैं? इसका पता वे कैसे करते हैं कि दिन और रात किस तरह होते हैं? या छायाएं कैसे बनती हैं? विद्यार्थी ज्यादा से ज्यादा सीख सकें, इसके लिए आप अपने विद्यार्थियों को कैसे व्यवस्थित करेंगे?
समय के साथ–साथ पैटर्नों का अवलोकन करना महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह–
आपको विद्यार्थियों को सूक्ष्मता और सही रूप से देखने के लिए प्रोत्साहित करने में समय लगेगा और उन्हें इसके लिए अवसर प्रदान करने होंगे। यद्यपि, यह एक ऐसा निवेश है जो उन्हें उनकी दुनिया और एक विषय के रूप में विज्ञान में ज्यादा रुचि जगाएगा और उत्साहित करेगा।
ऐसी कई गतिविधियां हैं जिनके उपयोग से आप अपने विद्यार्थियों को छाया के बारे में अवलोकन करने और सीखने में मदद कर सकते हैं। इसमें छाया कठपुतलियाँ (छायाओं का ऐसा खेल जिसमें विद्यार्थी किसी की छाया पर खड़े होकर उसे पकड़ते हैं) और परछाइयों की क्रमबद्ध जाँच–पड़ताल शामिल है। जब मामला छोटे बच्चों का हो, तो सर्वस्वीकृत बातें जैसे छायाएँ कैसे बनती हैं? और आकार बदलती हैं, बताने से पहले उन्हें ऐसे विचारों के साथ खेलने के लिए प्रोत्साहित करना महत्वपूर्ण होता है।
खेल के माध्यम से, जो हो रहा है उसके बारे में विद्यार्थी स्वयं के विचार बनाने में लग जाते हैं – ये विचार सभी विद्यार्थियों के लिये अलग–अलग होते हैं। आपकी भूमिका उनकी सोच को विकसित करना, विस्तारित करना और जो वास्तव में होता है उसे स्वीकार करने के लिए चुनौती देना है। इसके लिए उन्हें, उनके विचारों के बारे में बातचीत के अवसर देने होंगे।
कक्षा की विज्ञान शिक्षिका, श्रीमती लतिका ने अपने विद्यार्थियों के साथ इस गतिविधि का प्रयोग किया। उन्होंने इसके बारे में क्या किया? यह उन्हीं के मुंह से सुनते हैं।
सबसे पहले, मैंने यह जानने की कोशिश की कि क्या मेरे विद्यार्थी को पता है कि छाया कैसे बनती हैं? मैंने एक पहेली पूछने से इसकी शुरुआत की। ‘ऐसी कौन सी चीज है जो दिन भर तुम लोगों का पीछा करती है, लेकिन कभी–कभी गायब हो जाती है?’ उन लोगों ने बताया कि वह छाया है। मैंने उनसे पूछा कि उनकी छाया कैसे बनती है? मैंने एक टॉर्च का प्रयोग करते हुए उन्हें दिखाया कि जब प्रकाश को उसके स्रोत से आते हुए, बीच में कोई चीज रोकती है, तो किस प्रकार छाया बन जाती है। उसके बाद उन लोगों ने खेल के मैदान में अपनी छाया देखी और कक्षा में टॉर्च का प्रयोग करते हुए फिर से अपनी छाया देखी। विद्यार्थियों को अपने हाथों का प्रयोग करके अजीब–अजीब आकृतियों और जानवरों की छायाएं बनाकर तथा यह देखकर खूब मजा आया कि कैसे टॉर्च को घुमाकर वे छाया की आकृति बदल सकते हैं।
अगले पाठ में, मैनें विद्यार्थियों से पूछा ‘क्या छाया दिन भर एक जैसी रहती है?’ कुछ विद्यार्थियों ने तो इस पर ध्यान दिया कि छायाओं की आकृति बदलती है, लेकिन कुछ ने इस पर ध्यान नहीं दिया। मैंने उनसे पूछा ‘वे कैसे बदल जाती हैं?’ उन्हें ठीक से पता नहीं था कि छायाओं की आकृति कैसे बदल जाती है, इसलिए मैंने उनसे छोटे–छोटे समूहों में विभाजित होकर इस बात पर बात–चीत करने के लिए कहा कि इसकी पड़ताल कैसे की जाए? क्या छाया आकार बदलती है? और कैसे? बात–चीत अधिक जीवंत रही और हम छाया–अवलोकन कैसे कर सकते हैं? आरै हमारे पास इसके ढेरों सुझाव आए। अंत में, यह तय किया गया कि हमारे विचारों की पुष्टि के लिए दिन के विभिन्न समय पर खेल के मैदान में किसी एक वस्तु की छाया का अवलोकन करना सबसे आसान है।
विभिन्न समूहों ने अपनी–अपनी वस्तुएं चुन लीं और एक चॉक का टुकड़ा, नोटबुक तथा पेंसिल निकाल ली, साथ ही एक स्केल भी। खेल के मैदान में उन लोगों ने अपनी–अपनी वस्तु की छाया बनाई और उस स्थान पर चॉक से निशान लगा दिया और उसका माप ले लिया (ताकि वे प्रत्येक बार उसी स्थान पर जा सकें) और जमीन पर चॉक से छाया का चित्र बना दिया [चित्र 2]। कुछ विद्यार्थियों ने कड़ी जमीन पर अपनी छायाएं बनाई थी जहां चॉक नहीं चल सकता था। उन लोगों ने वहां जमीन पर छाया का अंकन करने के लिए एक डंडी का प्रयोग किया और माप ले लिया। विद्यार्थियों ने अपनी छाया की लंबाई–चौड़ाई का माप लिया और दिन का समय नोट कर लिया। उन लोगों ने यह भी नोट किया कि आसमान में उस समय सूरज कहां था, हालांकि मैंने इस बात का ख्याल रखा था कि वे लोग सीधे सूरज की ओर न देखों। प्रत्येक समूह में एक विद्यार्थी ने छाया की आकृति का अपनी नोटबुक में अंकन किया और अपने अवलोकन को इसमें रिकार्ड किया। दिन में, हम फिर तीन बार और माप लेने के लिए बाहर गए। मैंने ध्यान दिया कि वे उन लोगों ने इस पर कितनी बात–चीत की कि वे क्या कर रहे हैं? और दिन भर में जो हुआ उस पर अपने विचारों को साझा किया। मैंने उनको काम करते हुए और उनकी दिन भर की छाया की तस्वीर ले ली ताकि वे बाद में उन्हें देखकर तुलना कर सकें और जो बदलाव आया है उसे पहचान सकें।
अंत में, मैंने विद्यार्थियों से कहा कि वे अपने चित्रांकन और अवलोकनों को ध्यान से देखें और आपस में बात–चीत करें कि इससे क्या निष्कर्ष निकल रहे हैं? ज्यादातर विद्यार्थी समझ गए थे कि छायाएं बदलती हैं और एक जगह से दूसरी जगह भी जाती हैं, और आसमान में सूरज का स्थान बदलने के कारण छायाएं बदलती हैं। अन्य विद्यार्थियों को मेरे फोन पर ली गई तस्वीरों से अंतर को पहचानना आसान लगा।
विचार के लिए रुकें श्रीमती लतिका ने यह कैसे पता लगाया कि छायाओं के बारे में उनके विद्यार्थियों के पहले से क्या विचार हैं? |
श्रीमती लतिका को अपनी गतिविधि के नतीजों से बहुत खुशी हुई, क्योंकि पिछले साल की तुलना में इस साल अधिक विद्यार्थी यह समझ पाए कि छाया कैसे बनती? और बदलती है? पिछले साल उन लोगों ने सिर्फ पाठ्यपुस्तक की सहायता से ही सीखा था। श्रीमती लतिका को लगा कि यह विद्यार्थियों द्वारा किये गये अवलोकन और समय के साथ बनते पैटर्नों को देखने के कारण हुआ था। वे लोग अपने समूहों में इस बारे में भी बात कर पा रहे थे कि उनके अवलोकन और ली गई तस्वीरें किस प्रकार उनके निष्कर्षों से मिलते हैं। (अपनी कक्षा में समूहों और बात–चीत के लिए योजना बनाने और संगठित करने के बारे में ज्यादा जानने के लिए आप प्रमुख संसाधन ‘सामूहिक कार्य का प्रयोग करना’ और ’सीखने के लिए बातचीत’ देख सकते हैं।)
किसी नए पाठ या विषय को कैसे शुरू करते हैं, इसका आपके विद्यार्थियों की प्रतिक्रिया और पाठों में भागीदारी पर बड़ा प्रभाव पड़ता है। विद्यार्थियों की रुचि पैदा करने, उनके पूर्वज्ञान को जानने के रचनात्मक और विचारोत्तेजक तरीके निकालने के लिए थोड़ा समय देना जरूरी होता है। श्रीमती लतिका ने पहेली के माध्यम से छाया के विचार की शुरुआत की। आप एक कहानी का इस्तेमाल कर सकते हैं। छाया के बारे में अपने विद्यार्थियों में रुचि पैदा करने के लिए आप एक कहानी लिख सकते हैं या किसी पारंपरिक किस्से की मदद ले सकते हैं। उदाहरण के लिए, आपकी कहानी एक विद्यार्थी के बारे में हो सकती है जो बिल्कुल अकेला है तथा वह अपनी छाया के साथ दोस्ती कर लेता है, और जब उसकी छाया गायब हो जाती है तब वह दुखी हो जाता है।
इन गतिविधियों में से कुछ को आप विद्यार्थियों के साथ करने के पहले नीचे सूची में दी गई गतिविधियों को आप स्वयं करें और सोचें कि ये विद्यार्थियों को पैटर्नों की समझ विकसित करने में कितनी मदद करेंगी? विद्यार्थियों के अवलोकन कौशल के बारे में जानकारी इकट्ठा करने में आपको समय लग सकता है।
आपके विचार से विद्यार्थी क्या सीखेंगे इसके बारे में नोट बनाएं और सोचें कि आप इनका प्रयोग अपने विद्यार्थियों के साथ कैसे कर सकते हैं?
अब आप अपने विद्यार्थियों के लिए एक अवलोकन आधारित पड़ताल शुरू करने जा रहे हैं। जिस तरह श्रीमती लतिका ने किया था आप वैसी ही गतिविधि कर सकते हैं, या नीचे दी गई गतिविधि के आधार पर सरल अवलोकन की योजना बना सकते हैं। यदि आपका देश भूमध्य रेखा के पास है तो धूप–घड़ी से तुरंत नजर आने वाले अंतर नहीं मिलेंगे। ऐसे मामले में आप अपने विद्यार्थियों को प्रकाश के स्रोत (जैसे कोई लैंप या टॉर्च) से विभिन्न दूरियों पर होने पर मापी जानी वाली वस्तु की छाया में आने वाले परिवर्तन की जाँच करने के लिए कह सकते हैं।
नीचे दी गई गतिविधि के विवरण को पढ़ें और संसाधन 1 (पाठों का नियोजन करना) पढ़ें। इससे आपको यह गतिविधि करने में मदद मिलेगी और आप यहाँ जान सकेंगे कि आप अपने विद्यार्थियों को क्या और कैसे सिखाना चाहते हैं? पाठ की ऐसी योजना बनाएं जो आपकी कक्षा के विद्यार्थियों की आयु और क्षमताओं के अनुकूल हो।
धूप–घड़ी बनाना
गतिविधि का विस्तार करना
जैसे–जैसे पाठ आगे बढ़ता है, विद्यार्थियों को काम करते हुए ध्यान से देखें और सुनें कि वे क्या बातें कर रहे हैं? बाद में, निम्नलिखित के बारे में सोचें–
आपने अपने ज्यादा होशियार विद्यार्थियों के सामने किस तरह चुनौती रखी?
वीडियोः अध्याय नियोजन |
सावधानीपूर्वक अवलोकन करने पर आमतौर पर आपके विद्यार्थी प्रश्न पूछेंगे। यह वैज्ञानिक अनुसंधान की शुरुआत है! साथ ही, वैज्ञानिकों को दूसरे वैज्ञानिकों द्वारा किए गए प्रयोगों को निष्कर्षों और प्राप्त परिणामों की ठीक–ठीक जांच करने के लिए दोहराना चाहिए। इसका मतलब हुआ व्यवस्थित ढंग से अवलोकन करना और उन्हें सावधानीपूर्वक रिकार्ड करना। इसकी शुरूआत से पहले ही, क्या देखना? सुनना या अनुभव करना है, यह निर्धारित कर लेना चाहिये, ताकि सभी लोग एक ही तरह से अवलोकन करें। इससे इकट्ठा किए गए डेटा की विभिन्न समूहों के बीच तुलना की जा सकती है। यह गतिविधि आपके विद्यार्थियों को जरूरी कौशल विकसित करने और वैज्ञानिक अनुसंधान की कठोर प्रकृति के महत्व के बारे में जाने पाने का एक तरीका है।
इस विषय के साथ जुड़े बहुत से विचार, उनकी अमूर्त प्रकृति के कारण विद्यार्थियों के लिए कठिन हैं। पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती है इसे वास्तव में देखना संभव नहीं है – इसके लिए कल्पना की जरूरत होती है। साथ ही, हम आम बोलचाल की भाषा में कहते हैं कि सूरज आसमान में चक्कर लगा रहा है, जबकि तथ्य यह है कि पृथ्वी घूम रही है। यद्यपि, हम पृथ्वी के घूमने के प्रभाव को देख पाते हैं, लेकिन इसकी गति को महसूस नहीं कर सकते। यह कैसे होता है? केवल इसकी व्याख्या करना विद्यार्थियों के लिए कठिन काम हो सकता है, या हो सकता है वे इसकी असली व्याख्या और स्वयं के विचारों को व्यक्त नहीं करेंगे और इससे उनके विचारों के दो समानांतर सेट हो जाएंगे जिनका एक दूसरे से कोई संबंध नहीं होगा। इसलिए इनमें से बहुत से विचारों के स्पष्टीकरण के लिए, आपको मॉडलों का प्रयोग करना पड़ेगा। इसलिए, यह महत्वपूर्ण है कि विद्यार्थियों को मॉडलों से परिचित कराने से पहले उन्हें इन बदलावों का अवलोकन करने, रिकार्ड करने और खोज करने का मौका दिया जाए ताकि वे इसके बारे में स्वीकृत विचारों को समझ सकें कि छाया कैसे बनती है, या बदलाव कैसे होता है?
विचार के लिए रुकें
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चन्द्रमा की कलाओं से विद्यार्थी खूब परिचित होंगे। इस गतिविधि में, श्रीमती चड्ढा बताती हैं कि कैसे उन्होनें अपने विद्यार्थियों को, चद्रंमा की कलाओं का सुव्यवस्थित अवलोकन करने और उन्हें रिकार्ड करने में सहायता की। कक्षा से बाहर काम करने संबंधी विषयों के बारे में जानने के लिए अब आपको संसाधन 2 में ‘स्थानीय संसाधनों का उपयोग करना’ पढ़ना चाहिए।
मैंने विद्यार्थियों से कहा कि वे एक महीने तक चंद्रमा का बारीकी से अवलोकन करने जा रहे हैं। मैंने गतिविधि को पूर्णिमा की रात से शुरू करने का निर्णय लिया ताकि वे होने वाले सभी बदलावों को आसानी से रिकार्ड कर सकें। उन्हें प्रत्येक रात चंद्रमा का एक चित्र बनाना था। मैंने उनसे यह कार्य एक समूह के रूप में करवाने का निर्णय लिया ताकि समूह का प्रत्येक सदस्य, सप्ताह में दो अवलोकन करे। प्रत्येक समूह प्रत्येक रात चंद्रमा के दो चित्र बनाता, इसलिए कि कहीं एक विद्यार्थी बनाना भूल जाए तो दूसरा काम आ जाए।
प्रत्येक दिन मैं विद्यार्थियों को याद दिलाती कि वे सोने से पहले चंद्रमा को देखें और इसके आकार का चित्र नोटबुक में बनाएं तथा तारीख लिखें। मैं इस बात की जांच करती थी कि अपने समूह के लिए चंद्रमा का चित्र कौन बनाने वाला है।
चूंकि ज्यादातर भारतीय पर्व, चंद्र कैलेंडर पर आधारित होते हैं, इसलिए मैंने विद्यार्थियों से अपने घर के बड़ों से उनके द्वारा मनाए जाने वाले पर्वों और रीति–रिवाजों के बारे में साक्षात्कार लेने के लिए कहा और चंद्रमा की कलाओं का अवलोकन करने के समय उन्होंने जो चित्र बनाए थे उन पर, उनके बारे में रिकार्ड कर लें। उनमें से कुछ ने अपनी बातचीत को अपने फोन पर रिकॉर्ड कर लिया था और कक्षा में हमने उनमें से कुछ को समूह में सुना।
चित्रों में आ रहे बदलावों को स्पष्ट रूप से देखने के लिये, विद्यार्थियों ने उन्हें दीवार पर लगा दिया। वे सचमुच अपने चित्र देखकर और काम की प्रगति से खुश थे।
चंद्रमा की गति का एक चक्र पूरा होने के बाद (28 दिन), हमने चित्रों को देखा और मैंने विद्यार्थियों से पूछा कि क्या वे इनमें कोई पैटर्न देख पा रहे हैं? उन्होंने आसमान में चंद्रमा के बदलते आकार पर ध्यान दिया था और इस पर भी कि किस तरह एक महीने में उसके आकार में नियमित बदलाव आता रहता है जब तक कि वे फिर से पूरा गोल चाँद नहीं बन जाते। विद्यार्थियों को सचमुच इस गतिविधि में मजा आया और उन्होंने चंद्रमा के बारे में ढेर सारे प्रश्न पूछे। मैं भी दीवार पर लगे चित्रों को देखकर खुश थी जिनकी संख्या क्रमशः बढ़ती गई थी। यह देखकर बहुत ही संतोष मिला कि विद्यार्थी सीखने में रुचि ले रहे हैं। मैंने सोचा कि अगले पाठ में मैं म़ॉडल का प्रयोग करके चंद्रमा की कलाओं के बारे में समझाऊंगी और उसे विद्यार्थियों के बनाए चित्रों के साथ जोड़कर दिखाऊंगी।
अगले महीने के मेरे कई विद्यार्थियों ने पिछली रात देखी गयी चंद्रमा की आकृति पर टिप्पणी की और मैंने देखा कि उनमें से कई, फिर से अपने चार्ट को देखकर आकृतियों की श्रृंखला की तुलना कर रहे थे।
विचार के लिए रुकें श्रीमती चड्ढा ने ध्यान दिया कि इस कार्य ने किस तरह उनके विद्यार्थियों को प्रेरित कर दिया। आपके अनुसार यह क्या था? इससे उनकी शिक्षा पर क्या प्रभाव पड़ेगा? आप इनमें से कुछ विचारों का किस तरह इस्तेमाल कर सकते हैं? |
चंद्रमा की कलाओं के विद्यार्थियों द्वारा अवलोकनों को अलग–अलग क्षेत्रों में मनाए जाने वाले धार्मिक त्योहारों के साथ जोड़ना, उनकी रुचि को जगाने के लिए एक अच्छी शुरुआत हो सकती है। सन्दर्भों के सार्थक और विद्यार्थी–संबंधित करने से उनके प्रति विद्यार्थियों की दिलचस्पी और जागरूकता बढ़ती है, जिससे वे बेहतर और सटीक अवलोकन कर सकेंगे। बारीकी से अवलोकन करने के अवसर प्रदान करने से विद्यार्थी दुनिया के बारे में ज्यादा सजग होगें और उनमें अधिक जानने के प्रति रुचि और प्रेरणा जगेगी।
आप अपने विद्यार्थियों से जो कुछ करने की अपेक्षा रखते हैं वह उनकी आयु पर निर्भर करेगा। बड़े विद्यार्थियों से ज्यादा अवलोकन करने और नोट बनाने की अपेक्षा रखी जा सकती है। आप छोटे विद्यार्थियों के साथ अवलोकन की सरल गतिविधि कर सकते हैं, या एक बार विद्यार्थियों के पृथ्वी के चक्कर लगाने, दिन और रात, तथा चंद्रमा के पृथ्वी का एक उपग्रह होने के बारे में परिचित हो जाने के बाद, इसी समझ के आधार पर, चंद्रमा बदलता हुआ क्यों प्रतीत होता है? समझ सकते हैं। संसाधन 5 में एक नमूना दिया गया है जिसका उपयोग आप विद्यार्थियों को अवलोकन रिकार्ड करने में मदद देने के लिए कर सकते हैं; संसाधनों का उपयोग कैसे करें? इसके लिए संसाधन 4 भी देखें।
विद्यार्थी छाया, रात और दिन, मौसमों और रात के आकाश के बारे में अपने जो विचार लेकर आते हैं उनके कारण भी उन्हें वैज्ञानिक सोच विकसित करने में कठिनाई हो सकती है। दुनिया की बहुत सारी संस्कृतियों में चंद्रमा के बदलते रूप के रहस्य से सम्बन्धित आकर्षक किस्से और गलत फहमियाँ हैं। इनमें से बहुत सारी कहानियां हमारी संस्कृति का हिस्सा हैं और आज भी ये सुनीं जाती हैं। लेकिन 1969 में जब पहली बार मानव ने चंद्रमा पर पैर रखा, उसके बाद से इसके बारे में हमारी समझ पूरी तरह बदल गई है।
हम अपनी दैनिक की भाषा में चंद्रमा को लेकर जिस तरह बात करते हैं वह भी दिग्–भ्रमित करने वाली हो सकती है। हम ’चन्द्रमा की रोशनी’ और ’रोशन चांद’ के बारे में बात करते हैं। ऐसे में कोई आश्चर्य की बात नहीं कि विद्यार्थियों को यह समझने में कठिनाई होती है कि चंद्रमा स्वयं प्रकाश का स्रोत नहीं है, बल्कि सिर्फ सूरज के प्रकाश को परावर्तित करता है। ज्यादातर विद्यार्थी विभिन्न कलाओं से गुजरते हुए चंद्रमा को देख चुके होंगे, और वे ’अमावस्या’, ’दूज का चांद’, ’पूर्णिमा’ जैसे शब्दों से परिचित भी होंगे। लेकिन वे सोच सकते हैं कि चंद्रमा के ये विभिन्न चरण या कलाएं पृथ्वी की छाया चंद्रमा पर पड़ने के कारण होते हैं, न कि चंद्रमा से पृथ्वी पर विभिन्न कोणों से प्रकाश के परावर्तित होने के कारण (ड्राइवर और अन्य, 1992)।
इन अवधारणाओं पर शिक्षा देना चुनौतीपूर्ण हो सकता है विशेषकर कक्षा के संसाधन सीमित होने की दशा में। नीचे दी गई सरल गतिविधि आपके विद्यार्थियों को यह समझाने में मदद कर सकती है कि क्यों, चंद्रमा प्रकाश का विकिरण करता हुआ दिखाई देता है? और कैसे इसके आकार और आकृति बदलती हुई दिखाई देती हैं।
यह गतिविधि प्राथमिक के बड़े विद्यार्थियों के लिए उपयुक्त है, लेकिन मॉडलों का उपयोग करते हुए ऐसी ही गतिविधियां छोटे विद्यार्थियों के साथ भी की जा सकती हैं। कक्षा की इस गतिविधि के लिए आपको एक टॉर्च और एक बड़ी सफेद गेंद की जरूरत होगी। (यदि गेंद नहीं हो तो आप एक तरबूज या किसी अन्य बड़े गोल फल का इस्तेमाल कर सकते हैं।) आप चंद्रमा की कलाओं को दर्शाते मॉडल को दिखाने जा रहे हैं (देखें संसाधन 4)। विद्यार्थियों के बीच इस प्रयोग प्रदर्शन को करने से पहले इसका अभ्यास कर ले। आत्मविश्वास के साथ इसे करें। पूछे जाने वाले प्रश्न और आने वाले संभावित उत्तरों के बारे में आपको पता होना चाहिये।
कुर्सियों और डेस्क को किनारे कर कमरे में काफी जगह बना लें।
यह प्रयोग प्रदर्शन पूरा करने के बाद, अपने विद्यार्थियों से सूरज, चंद्रमा और पृथ्वी का एक आरेख बनाने के लिए कहें, जिसमें किरणें कैसे सूरज से परावर्तित होती हैं, यह दिखाने के लिए तीर के निशान का प्रयोग करने के लिए कहें।
प्रकाश का स्रोत (जैसे टॉर्च, लैंप या मोमबत्ती) और एक गेंद का प्रयोग करके यह प्रदर्शित किया जा सकता है कि कैसे हमारे यहां दिन होता है जब पृथ्वी का हमारा वाला हिस्सा सूरज की ओर मुंह किए होता है, और जो हिस्सा सूरज की ओर नहीं है, वहां रात होती है।
गतिविधि को पूरा करने के बाद, निम्नलिखित प्रश्नों के लिए अपने उत्तर को रिकार्ड करें–
इस गतिविधि को ज्यादा प्रभावी बनाने के लिए अगली बार आप कौन सी चीज अलग तरीके से करेंगे?
विद्यार्थियों को चंद्रमा की कलाओं को समझाने के लिए गतिविधि 3 में मॉडलिंग और अवलोकन दोनों का मिलाजुला रूप प्रयोग किया गया। विद्यार्थियों को दिन और रात के बारे में समझाने में मदद के लिए आप इस तकनीक का प्रयोग कर सकते हैं। विद्यार्थी कमरे के चारों ओर बैठते हैं। एक विद्यार्थी बीच में टॉर्च लेकर खड़ा होता है, वह सूरज बन जाता है, और एक दूसरा विद्यार्थी पृथ्वी बन जाता है। धीरे– धीरे घूमने पर, वे देख पाएंगे कि किसी तरह पृथ्वी का आधा हिस्सा अंधेरे में रहता है और आधे हिस्से में प्रकाश रहता है। आप इसी तकनीक का प्रयोग कर उन्हें यह समझने में मदद कर सकते हैं कि कैसे पृथ्वी सूरज का चक्कर लगाती है और एक वर्ष एक पूरा चक्कर ही है।
छोटी आयु के विद्यार्थियों के मामले में, आसमान की वस्तुओं के बारे में शिक्षा पूरी तरह अवलोकनात्मक और गुणात्मक प्रकृति की होनी चाहिए। ऐसा करने से उनमें अवलोकन का कौशल विकसित करने और आंकड़े इकट्ठा करने में वे ज्यादा सटीक और सक्षम बन सकेंगे। सूरज, चंद्रमा, तारे, बादल, चिड़िया और हवाईजहाज – इन सबमें ऐसे गुण, उनकी स्थिति और गति होती हैं जिनका समय बीतने के साथ अवलोकन और वर्णन किया जा सकता है। अवलोकन और पैटर्न पहचानना पर्यावरण में जीवित वस्तुओं के बारे में जानना एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। उदाहरण के लिए, यह देखना कि पौधे कहां? और कैसे उगते हैं
आपने इस इकाई में जो शैक्षिक गतिविधियां की हैं वे लंबी अवधि तक प्रभावी रहेंगी। ये कई विषयों की समझ पर आधारित और विद्यार्थी केंद्रित हैं। एक शिक्षक के तौर पर आप ऐसे अन्वेषणात्मक प्रयोगों की योजना बना सकते हैं जिनसे विज्ञान की महत्वपूर्ण अवधारणाओं की गहरी समझ पैदा हो। जब आपके विद्यार्थियों को अपने ज्ञान पर पर्याप्त समझ विकसित हो जाएगी, तब वे अपनी प्राप्त समझ के बल पर आगे बढ़ पाएंगे और ऐसे प्रोजेक्ट बना पाएंगे जिनमें उनकी रुचियों, मातृभाषा, सांस्कृतिक पृष्ठभूमि और योग्यता का ध्यान रखा गया हो।
पृथ्वी, सूरज और चद्रंमा के बीच संबंधों के बारे में विद्यार्थियों की जो समझ है, उसके साथ कोई गलत धारणाएं जुड़ी हो सकती हैं। घटनाएँ या चीजें क्यों आरै कैसे होती हैं? इसकी गहरी समझ विकसित करने के लिये, उन्हें बार–बार नाटक या किसी आरै तरीके से देखना जरूरी होता है। इस इकाई में कक्षा और कक्षा के बाहर की गतिविधियों के माध्यम से पृथ्वी, सूरज और चंद्रमा की गति की खोज की गयी है।
चंद्रमा की कलाएं ऐसी जानी–पहचानी प्राकृतिक घटना है जिसे सूरज की रोशनी से छाया बनने की प्रकृति और उसके गुणों के बारे में समझा जा सकता है। छायाओं का अवलोकन और वर्णन, और कक्षा में मॉडलों के उपयोग के बाद आसानी से चंद्रमा की कलाओं के वर्णन और उन्हें पहचानने तक ले जा जा सकते है।
सभी विद्यार्थियों और खास तौर से विशेष शैक्षणिक आवश्यकता वाले विद्यार्थियों को, प्राकृतिक घटनाओं को ध्यानपूर्वक अवलोकन और उन्हें रिकार्ड करने के अवसर देने से, वे स्वाभाविक रूप से पृथ्वी, सूर्य और चन्द्रमा के बीच के संबंध को समझ और बता सकेंगे।
अच्छे पाठों की योजना बनाना ज़रूरी होता है। योजना बनाने से आपके पाठों को अधिक स्पष्ट और सुनियोजित करने में मदद मिलती है। इससे विद्यार्थी सक्रिय होते हैं और इसमें रुचि लेते हैं। प्रभावी नियोजन में कुछ लचीलापन भी होना चाहिए, ताकि अध्यापक पढ़ाते समय अपने विद्यार्थियों की सीखने प्रक्रिया के बारे में पता चलने पर, उसके प्रति अनुक्रिया कर सकें। पाठों की योजना बनाने में, विद्यार्थियों, उनके पूर्व ज्ञान, पाठ के माध्यम से क्या सिखाया जाना है और सिखाने में काम आ सकने वाले सबसे उपयुक्त संसाधन और गतिविधियाँ शामिल होते हैं।
नियोजन एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है जो आपको अलग–अलग पाठों और साथ ही, एक के बाद एक विकसित होते सत्रों की श्रृंखला, दोनों की तैयारी करने में मदद करती है। पाठ योजना के चरण ये हैं–
जब आप किसी पाठ्यचर्या का पालन करते हैं, तो नियोजन का पहला भाग यह निश्चित करना होता है कि पाठ्यक्रम के विषयों और प्रसंगों को खंडों या टुकड़ों में किस सर्वोत्तम ढंग से बाँटा जाय। आपको विद्यार्थियों के सीखने, कौशलों और ज्ञान के क्रमिक विकास के लिए उपलब्ध समय और तरीकों पर विचार करना होगा। आपके अनुभव या सहकर्मियों के साथ बात–चीत से आपको पता चल सकता है कि किसी विषय के लिए चार सत्र लगेंगे, लेकिन किसी अन्य विषय के लिए केवल दो। आपको इस बात का पता होना चाहिए कि आप भविष्य में उस सीख पर अलग तरीकों से और अलग अलग समयों पर तब लौट सकते हैं, जब अन्य विषय पढ़ाए जाएंगे या विषय का विस्तार किया जाएगा।
सभी पाठ योजनाओं में आपको निम्नलिखित बातों के बारे में स्पष्ट रहना होगाः
आप शिक्षण को सक्रिय और रोचक बनाना चाहेंगे ताकि विद्यार्थी सहज और उत्सुक हो सकें। इस बात पर विचार करें कि सत्रों की श्रृंखला में विद्यार्थियों को क्या करना होगा? ताकि आप न केवल विविधता और रुचि बल्कि लचीलापन भी बनाए रखें। योजना बनाएं कि जब आपके विद्यार्थी पाठों की पाठ सीखेंगे, उस समय आप उनकी समझ को कैसे परखेंगे? यदि कुछ भागों को अधिक समय लगता है या वे जल्दी समझ में आ जाते हैं तो समायोजन करने के लिए तैयार रहें।
पाठों की श्रृंखला को नियोजित कर लेने के बाद, प्रत्येक पाठ को उस प्रगति के आधार पर अलग से नियोजित करना होगा जो विद्यार्थियों ने उस बिंदु तक की है। आप जानते हैं या पाठों की श्रृंखला के अंत में यह आप जान सकेंगे कि विद्यार्थियों ने क्या सीख लिया। साथ ही आपको किसी अप्रत्याशित चीज को फिर से दोहराने या अधिक तेजी से पढ़ाने–सिखाने की जरूरत हो सकती है। इसलिए प्रत्येक पाठ को अलग से नियोजित करना चाहिए ताकि आपके सभी विद्यार्थी प्रगति करें और सफल तथा सम्मिलित महसूस करें।
पाठ की योजना के भीतर आपको सुनिश्चित करना चाहिए कि प्रत्येक गतिविधि के लिए पर्याप्त समय है और सभी संसाधन जैसे कोई प्रयोगात्मक या समूह कार्य तैयार हैं। बड़ी कक्षाओं के लिए सामग्रियों के नियोजन के हिस्से के रूप में आपको अलग अलग समूहों के लिए अलग अलग प्रश्नों और गतिविधियों की योजना बनानी पड़ सकती है।
जब आप नए विषय पढ़ाते हैं, आपको अपना आत्म विश्वास बढ़ाने के लिये अभ्यास करने और अन्य अध्यापकों के साथ विचारों के आदान–प्रदान के लिए समय की जरूरत पड़ सकती है।
तीन भागों में अपने पाठ तैयार करने के बारे में सोचें। इन भागों पर नीचे बात–चीत की गई है।
पाठ के शुरू में, विद्यार्थियों को समझाएं कि वे क्या सीखेंगे? और करेंगे? ताकि प्रत्येक एक को पता रहे कि उनसे क्या अपेक्षित है? विद्यार्थी के पूर्वज्ञान को साझा करने की अनुमति देकर वे जो करने वाले हों उसमें दिलचस्पी पैदा करें।
विद्यार्थी जो कुछ पहले से जानते हैं उसके आधार पर सामग्री की रूपरेखा बनाएं। आप स्थानीय संसाधनों, नई जानकारी या सक्रिय पद्धतियों का उपयोग कर सकते हैं जिनमें समूहकार्य या समस्याओं का समाधान करना शामिल है। अपनी कक्षा में आप जिन संसाधनों और तरीकों का उपयोग करेंगे, उनकी पहचान करें। अलग–अलग गतिविधियों, संसाधनों, और समय का उपयोग पाठ के नियोजन का महत्वपूर्ण हिस्सा है। यदि आप विभिन्न तरीकों और गतिविधियों का उपयोग करते हैं, तो आप अधिक विद्यार्थियों तक पहुँचेंगे, क्योंकि वे भिन्न तरीकों से सीखेंगे।
प्रगति को जाँचने के लिये, हमेशा अलग से समय निर्धारित करें। जाँच करने का अर्थ हमेशा परीक्षा ही नहीं होता है। आम तौर पर उसे शीघ्र और उसी जगह पर होना चाहिए जैसे– नियोजित प्रश्न या विद्यार्थियों द्वारा सीखे/अर्जित ज्ञान का प्रस्तुतीकरण लेकिन आपको लचीला होने और विद्यार्थियों के उत्तरों से आपको जो पता चलता है उसके अनुसार परिवर्तन करने की योजना बनानी चाहिए।
पाठ को समाप्त करने का एक अच्छा तरीका हो सकता है शुरू के लक्ष्यों पर वापस लौटना और विद्यार्थियों को इस बात के लिए समय देना कि वे एक दूसरे को और आपको उस शिक्षण से हुई प्रगति के बारे में बता सकें। विद्यार्थियों की बात सुनकर आप अगले पाठ की योजना बना सकेंगे।
प्रत्येक पाठ का पुनरावलोकन करें और यह नोट करें कि आपने क्या किया, आपके विद्यार्थियों ने क्या सीखा, किन संसाधनों का उपयोग किया गया और सब कुछ कितनी अच्छी तरह से संपन्न हुआ ताकि उसी के अनुसार आप अगले पाठों के लिए अपनी योजनाओं में सुधार या उनका समायोजन कर सकें। उदाहरण के लिए, आप निम्न का निर्णय कर सकते हैं:
सोचें कि आप विद्यार्थियों के सीखने में मदद के लिए क्या योजना बना सकते थे? या अधिक बेहतर कर सकते थे।
जब आप प्रत्येक पाठ में से गुजरेंगे आपकी पाठ संबंधी योजनाएं अपरिहार्य रूप से बदल जाएंगी, क्योंकि आप प्रत्येक होने वाली चीज का पूर्वानुमान नहीं कर सकते। अच्छे नियोजन का अर्थ है कि आप जानते हैं कि आप शिक्षण को किस तरह से करना चाहते हैं और इसलिए जब आपको अपने विद्यार्थियों के वास्तविक शिक्षण के बारे में पता चलेगा तब आप लचीले ढंग से उसके प्रति अनुक्रिया करने को तैयार रहेंगे।
अध्यापन के लिए पाठ्यपुस्तकों के साथ अनेक शिक्षण संसाधनों का उपयोग किया जा सकता है। आपके इर्दगिर्द ऐसे संसाधन उपलब्ध हैं जिनका उपयोग आप कक्षा में कर सकते हैं, और जिनसे आपके विद्यार्थियों की शिक्षण–प्रक्रिया बेहतर हो सकती है। आपके आसपास संसाधन भरे पड़े हैं जिनका संभवतः आप अपनी कक्षा में प्रयोग कर सकते हैं, तथा जिनसे विद्यार्थियों के शिक्षण में सहायता मिल सकती है। कोई भी स्कूल शून्य या जरा सी लागत से अपने स्वयं के शिक्षण संसाधनों को बना सकते हैं। इन सामग्रियों को स्थानीय ढंग से प्राप्त करके, पाठ्यक्रम और आपके विद्यार्थियों के जीवन के बीच संबंध बनाए जाते हैं।
आपको अपने नजदीकी पर्यावरण में ऐसे लोग मिलेंगे जो अलग–अलग विषयों में पारंगत हैं। आपको कई प्रकार के प्राकृतिक संसाधन भी मिलेंगे। इससे आपको स्थानीय समुदाय के साथ संबंध जोड़ने, उसके महत्व को प्रदर्शित करने, विद्यार्थियों को उनके पर्यावरण की प्रचुरता और विविधता को देखने के लिए प्रोत्साहित करने, तथा सबसे महत्वपूर्ण रूप से, विद्यार्थियों के शिक्षण में समग्र दृष्टिकोण – यानी, स्कूल के भीतर और बाहर शिक्षण में सहायता मिल सकती है।
लोग अपने घरों को यथासंभव आकर्षक बनाने के लिए कठिन मेहनत करते हैं। उस पर्यावरण के बारे में सोचना भी महत्वपूर्ण है जहाँ आप अपने विद्यार्थियों को शिक्षित करना चाहते हैं। आपकी कक्षा और स्कूल को पढ़ाई की आकर्षक जगह बनाने के लिए आप जो कुछ भी करते उसका आपके विद्यार्थियों पर सकारात्मक प्रभाव होता है। अपनी कक्षा को रोचक और आकर्षक बनाने के लिए आप बहुत कुछ कर सकते हैं – उदाहरण के लिए, आप–
यदि आप गणित में पैसे या परिमाणों पर काम कर रहे हैं, तो आप बाज़ार से व्यापारियों या दर्जियों को कक्षा में आमंत्रित कर सकते हैं और उन्हें यह समझाने को कह सकते हैं कि वे अपने काम में गणित का उपयोग कैसे करते हैं? इसके अतिरिक्त यदि आप कला विषय के अंतर्गत परिपाटियों और आकारों जैसे विषय पर काम कर रहे हैं, तो आप मेहंदी डिजाइनरों को स्कूल में बुला सकते हैं ताकि वे भिन्न–भिन्न आकारों, डिजाइनों, परम्पराओं और तकनीकों को समझा सकें। अतिथियों को आमंत्रित करना तब सबसे उपयोगी होता है जब शैक्षणिक लक्ष्यों के साथ संबंध सबको स्पष्ट होता है और और सम–सामयिक, एक जैसी अपेक्षाएँ हैं।
आपके पास स्कूल समुदाय में विशेषज्ञ उपलब्ध हो सकते हैं जैसे (रसोइया या देखभालकर्ता) जिन्हें विद्यार्थियों द्वारा अपने शिक्षण के संबंध में प्रतिबिंबित किया जा सकता है अथवा वे उनके साथ साक्षात्कार कर सकते हैं; उदाहरण के लिए, पकाने में इस्तेमाल की जाने वाली मात्राओं का पता लगाने के लिए, या स्कूल के मैदान या भवनों पर मौसम संबंधी स्थितियों का कैसे प्रभाव पड़ता है
आपकी कक्षा के बाहर ऐसे अनेक संसाधन उपलब्ध हैं, जिनका प्रयोग आप अपने पाठों में कर सकते हैं। आप पत्तों, मकड़ियों, पौधों, कीटों, पत्थरों या लकड़ी जैसी वस्तुओं को एकत्रित कर सकते हैं (या अपनी कक्षा से एकत्रित करने को कह सकते हैं)। इन संसाधनों से कक्षा में रूचिकर प्रदर्शन किए जा सकते हैं जिनका संदर्भ पाठों में किया जा सकता है। इनसे बात–चीत या प्रयोग करने के लिए वस्तुएं मिल सकती हैं जैसे वर्गीकरण से संबंधित गतिविधि, तथा सजीव या निर्जीव वस्तुएं। बस की समय सारणी या विज्ञापनों जैसे संसाधन भी आसानी से उपलब्ध हो सकते हैं जो आपके स्थानीय समुदाय के लिए प्रासंगिक हो सकते हैं – इन्हें शब्दों को पहचानने, गुणों की तुलना करने या यात्रा के समय की गणना करने के लिये शिक्षा के संसाधनों में बदला जा सकता है।
कक्षा में बाहर से वस्तुएं लाई जा सकती हैं लेकिन बाहर आपकी कक्षाएँ लग सकती हैं। बाहर सभी विद्यार्थियों के लिए चलने–फिरने और आसानी से देखने के लिए अधिक जगह होती है। जब आप सीखने के लिए अपनी कक्षा को बाहर ले जाते हैं, तो वे निम्नलिखित गतिविधियो को कर सकते हैं:
बाहर, वास्तविकताओं तथा उनके स्वयं के अनुभवों के आधार पर सीखते हैं, तथा शायद अन्य संदर्भों में अधिक लागू हो सकता है।
यदि आपके काम में स्कूल के परिसर को छोड़ना पड़े तो, जाने से पहले आपको स्कूल के मुख्याध्यापक की अनुमति लेनी चाहिए, समय सारणी बनानी चाहिए, सुरक्षा की जाँच करनी चाहिए और विद्यार्थियों को नियम स्पष्ट करने चाहिए। इससे पहले कि आप बाहर जाएं, आपको और आपके विद्यार्थियों को यह बात स्पष्ट रूप से पता होनी चाहिए कि किस संबंध में जानकारी प्राप्त की जाएगी।
चाहें तो आप मौजूदा संसाधनों को अपने विद्यार्थियों के लिए अधिक उपयुक्त बनाने के लिये उन्हें अनुकूलित कर सकते हैं। ये परिवर्तन छोटे हो सकते हैं लेकिन ये बड़ा अंतर ला सकते हैं, विशेष तौर पर यदि आप शिक्षण को कक्षा के सभी विद्यार्थियों के लिए प्रासंगिक बनाने का प्रयास कर रहे हैं। उदाहरण के लिए, आप स्थान और लोगों के नाम बदल सकते हैं, यदि वे दूसरे राज्य से संबंधित है, या गाने में व्यक्ति के लिंग को बदल सकते हैं, या कहानी में शारीरिक रूप से अक्षम विद्यार्थी को शामिल कर सकते हैं। इस तरह से आप संसाधनों को अपने परिवेश के अधिक अनुकूल और अपनी कक्षा और उनकी शिक्षण–प्रक्रिया के अधिक उपयुक्त बना सकते हैं।
अपने संसाधन बढ़ाने के लिए सहकर्मियों के साथ काम करें; संसाधनों को विकसित करने और उन्हे अनुकूलित करने के लिए आपके बीच ही आपको कई कुशल व्यक्ति मिल जाएंगे। एक सहकर्मी के पास संगीत, जबकि दूसरे के पास कठपुतलियाँ बनाने या कक्षा के बाहर के विज्ञान को नियोजित करने के कौशल हो सकते हैं। आप अपनी कक्षा में जिन संसाधनों का प्रयोग करते हैं उन्हें अपने सहकर्मियों के साथ साझा कर सकते हैं ताकि अपने स्कूल के सभी क्षेत्रों में एक प्रचुर शिक्षण पर्यावरण बनाने में आप सबकी सहायता हो सके।
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चंद्रमा एक गोलाकार पिंड है जो सूरज के कारण चमकता है और इसके कुछ प्रकाश को परावर्तित करता है। लेकिन सूरज और पृथ्वी के संदर्भ में चंद्रमा का स्थान क्या है? और यह किस तरह घूमता है?
हम जानते हैं कि–
चित्र 4.1 से आपको यह समझने में मदद मिलेगी कि चंद्रमा किस तरह पृथ्वी के चक्कर लगाता है। यह दर्शाता है कि हम चंद्रमा के केवल विभिन्न आकार के हिस्सों को ही देखते हैं जब वह अपनी कक्षा के विभिन्न चरणों में होता है। यह दिखाता है कि कैसे चद्रंमा के चरणों की उत्पत्ति इसके पृथ्वी के चारों ओर चक्कर लगाने के कारण होती है। चरणों के एक चक्र के पूरा होने में औसतन, 29.5 दिन का समय लगता है।
आप देखेंगे कि चंद्रमा का हमेशा एक ही हिस्सा पृथ्वी की ओर मुंह किए होता है। चंद्रमा एक ही समय अपनी धुरी पर भी घूमता है और साथ ही साथ एक ही दिशा में घुमते हुए पृथ्वी के चारों ओर भी चक्कर लगाता है। इसके अलावा, आप जब भी पूर्ण चद्रं देखते हैं, तो पृथ्वी के एक तरफ रहने वाले बाकी लोग भी पूर्ण चंद्र देखेंगे। यही बात अमावस्या और चंद्रमा के बाकी सभी चरणों पर भी लागू होती है।
कृपया ध्यान दें: आपको दक्षिणी गोलार्द्ध के लिए आरेखों की श्रृंखला को उलटना पड़ेगा।
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वीडियो (वीडियो स्टिल्स सहित): भारत भर के उन अध्यापक शिक्षकों, मुख्याध्यापकों, अध्यापकों और विद्यार्थियों के प्रति आभार प्रकट किया जाता है जिन्होंने उत्पादनों में दि ओपन यूनिवर्सिटी के साथ काम किया है।