ब्रह्माण्ड की और जिस दुनिया में हम रहते हैं, उसकी समझ के सम्बन्ध में बदलाव एक मूलभूत अवधारणा है। दैनिक जीवन में हम कई बदलाव देखते हैं। यह यूनिट इस पर ध्यान केन्द्रित करता है कि आप कैसे विद्यार्थियों की समझ हमारे आसपास के वस्तुओं पर बदलाव के कारण होने वाले विभिन्न प्रभावों के सम्बन्ध में विकसित कर सकते हैं। इनमें से कुछ प्रभाव स्थायी होते हैं और कुछ को उलटा जा सकता है। यह परीक्षण करता है कि प्रयोगात्मक खोज द्वारा इसे कैसे प्राप्त किया जा सकता है और उन खोज के लिये योजना कैसे बनानी है? यूनिट इस पर भी ध्यान देता है कि प्रयोगात्मक खोज द्वारा विद्यार्थी क्या सीखते हैं?
प्रारंभिक विज्ञान केवल विज्ञान के सम्बन्ध में ज्ञान लाभ करने के बारे में ही नहीं है, बल्कि यह विचारों के खोज करने, अनुमान लगाने और परीक्षण करने के बारे में भी है। विद्यार्थियों के वैज्ञानिक कौशलों के विकास के लिये प्रायोगिक सीखने का अनुभव सबसे महत्वपूर्ण है यह उन्हें आकर्षित करता है और विज्ञान के सम्बन्ध में कौतहुलता और जोश को जताता है?
केवल स्वयं प्रायोगिक खोज करके ही विद्यार्थी अपने आसपास दुनिया की एक अधिक वैज्ञानिक समझ को विकसित करेंगे और विज्ञान के स्वरूप को समझना प्रारंभ करेंगे। विज्ञान के शिक्षक के रूप में आपकी भूमिका विद्यार्थियों को अवसर प्रदान करने की है, जिससे वे खोज क्रियान्वित करने और स्वयं सरल समस्याओं को सुलझाने के रोमांच का अनुभव कर पाएँ।
प्रायोगिक खोज महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह:
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विज्ञान में खोज स्वरूप और उद्देश्य से विविध होते हैं। कुछ एक ‘सही’ उत्तर होते हैं, जबकि अन्य खुले और खोजपूर्ण होते हैं। कुछ को एक सत्र में समाप्त किया जा सकता है, जबकि दूसरों को एक विस्तृत समय के दौरान संचालित करने की आवश्यकता होती है। उन्हें पूरा करने के लिये आवश्यक कौशलों के परिसर में वे भिन्न होते हैं। कुछ खोज को शिक्षक द्वारा निर्देशित किया जा सकता है और दूसरों को विद्यार्थियों द्वारा स्वयं ही निर्देशित किया जा सकता है।
सभी खोज में यह समानता है कि अन्वेषण एक अवधि से प्रारंभ होते हैं और धीरे–धीरे एक ऐसी समस्या अथवा प्रश्न से सम्बन्ध रखते हैं, जिसे हल करना अथवा जिसका उत्तर देना आवश्यक होता है। खोज में प्रमाण को संकलित करना और उसका विश्लेषण करना भी सम्मिलित होता है जिससे जिस प्रश्न की खोज की जा रही है, उसका उत्तर दिया जा सके।
वेलिंगटन और आयरसन (2012) ने खोज के लिये प्रश्नों के प्रारूप का वर्गीकरण प्रस्तुत किया, जिसका संक्षिप्तीकरण सारणी 1 में किया गया है।
प्रश्न के प्रकार | उदाहरण |
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‘कौनसा । कौनसी’ | कौनसी थैली सबसे मज़बूत है? कौनसा कपड़ा सर्वश्रेष्ठ ऊष्मारोधी है? |
‘क्या’ | यदि उबलते पानी में नमक मिलाया जाता है, तो क्या होता है? समय बीतने के साथ–साथ खाद के ढेर के साथ क्या होता है? |
‘कैसे’ | जलाये जाने पर कागज़ कैसे बदलता है? तापमान द्वारा घुलनशीलता कैसे प्रभावित होती है? मेरे आहार में कितनी वसा है? नदी के पानी की गुणवत्ता कैसे बदलती है? |
टर्नर (2012) द्वारा विभिन्न प्रकार की वैज्ञानिक खोज की व्याख्या की गयी है। सारणी 2 में उनका संक्षिप्तीकरण किया गया है।
खोज के प्रकार | उदाहरण |
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दीर्घकालीन निगरानी/प्रेक्षण | हमारा कम्पोस्ट का ढेर समय के साथ कैसे बदलेगा? |
पहचान और वर्गीकरण करना (सर्वेक्षण सम्मिलित है) | लोगों की ऊँचाई क्यों भिन्न होती है? |
पैटर्न ढूँढना | क्या, अधिक ऊँचे पौधे अधिक बड़े बीजों से उगते हैं? कुछ वस्तुएँ क्यों तैरती हैं? |
अनुसंधान (द्वितीयक स्रोतों के उपयोग द्वारा) | बिना घड़ियों के हम समय कैसे बता सकते हैं? |
निष्पक्ष परीक्षण (चरों को नियंत्रित करना) | कौनसी थैली सबसे मज़बूत है? |
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केस स्टडी 1 इस पर ध्यान केन्द्रित करता है कि छोटी आयु के विद्यार्थी परिवर्तन की खोज कैसे कर सकते हैं।
श्रीमती बीना शर्मा कहती हैं कि उन्होंने कैसे भोजन बनाने के विषय द्वारा अपनी छोटी आयु के विद्यार्थियों को खोज करने के लिये प्रोत्साहित किया
मैं कक्षा III के 65 विद्यार्थियों को पढ़ाती हूँ। मैं भोजन बनाने से सम्बब्धित अध्याय पढ़ा रही थी। उसके भाग के रूप में मैंने अपने विद्यार्थियों से रोटी बनवाई।
हाथ धो लेने के बाद मैंने उन्हें मिश्रण बनाने के लिये थोड़ा–सा आटा, नमक और तेल दिया। मिश्रण को बाँटने के लिये उन्होंने चार के समूहों में काम किया। जब उन सब के पास थोडा–सा गूँथा हुआ आटा था तब मैंने उन्हें उसकी व्याख्या करने के लिये कहा और पूछा कि उसे क्या वे वैसे ही खा लेंगे? उन्हें यह बहुत हास्यास्पद लगा।
मैंने उनसे पूछा कि जिसे वे खा लेंगे, इसे वैसा भोजन बनाने के लिये हमें क्या करना चाहिये? ‘इसे पकाइये!’ वे चिल्लाये। अत:, उस दिन बाद में मैंने उसे पकाया। अगले सत्र में हमने देखा कि आटा कैसे बदल गया था? और हमने उसे चखा
यह केस स्टडी दिखाता है कि कैसे बदलाव विज्ञान के कई विषयों में पाया जाता है। कैसे छोटी आयु के विद्यार्थी सरल अन्वेषी खोज को बड़ी आयु के विद्यार्थियों से जैसी अपेक्षित होगी उससे एक अधिक अनौपचारिक विधि से क्रियान्वित कर सकते हैं।
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यद्यपि छोटी आयु के विद्यार्थियों से ‘उत्क्रमणीय’ और ‘अनुत्क्रमणीय’ शब्दों का प्रयोग अपेक्षित नहीं है, वे ऐसे बदलावों के कई उदाहरणों के सम्मुख आये होंगे, जिनमें तेल को पानी में जलाने, छानने और अलग करना सम्मिलित है।
इन अनुभवों का प्रयोग तब किया जा सकता है, जब विद्यार्थियों को ‘उत्क्रमणीय’ और ‘अनुत्क्रमणीय’ बदलावों से परिचित कराया जाता है। अपने दिमाग में अनुभवों के एक खजाने का निर्माण करके विद्यार्थी अधिक अमूर्त अवधारणाओं के बारे में सीखने की ओर अधिक सरलता से जा सकते हैं।
यह आवश्यक है कि आप विद्यार्थियों को उत्क्रमणीय और अनुत्क्रमणीय बदलाव की अधिक निकटता से खोज करने के अवसर प्रदान करें। खोज के द्वारो विद्यार्थी पहले से ही हो चुके दैनिक अनुभवों के साथ कड़ियाँ जोड़ेंगे और अपने सीखने में अधिक व्यस्त होंगे। यदि आप विद्यार्थियों को इन बदलावों के और नई निर्मित वस्तुओं के बारे में केवल पढ़ने के लिये कहें, तो विचार उतने ठोस नहीं होंगे और सीखना भी उतना अर्थपूर्ण नहीं होगा।
खोज विद्यार्थियों के सीखने में सहायता करने के सम्बन्ध में एक महत्वपूर्ण कार्यनीति है। विज्ञान के प्रति सकारात्मक प्रवृत्तियों को प्रेरणा और प्रोत्साहन देने वाला भी है। कई उद्देश्यों के लिये आप शिक्षण में प्रयोगात्मक खोज का प्रयोग कर सकते हैं जिसमें एक माध्यम के रूप में भी उपयोग सम्मिलित है –
वैज्ञानिक विधि विद्यार्थियों को निम्नलिखित में सम्मिलित करती है–
एक शिक्षक होने के कारण वैज्ञानिक रूप से सोचने और काम करने के सम्बन्ध में आपको विद्यार्थियों की सहायता करनी चाहिये। संसाधन 1 उन तरीकों को प्रदान करता है, जिनसे आप विद्यार्थियों की सहायता कर सकते हैं। विद्यार्थियों के लिये यह आवश्यक नहीं है कि जब भी आप कक्षा में एक खोज का उपक्रम करें, तो वे सभी चरणों का पालन करें। यह संभव है कि वैज्ञानिक विधि का प्रयोग लचीलेपन के साथ किया जाये और खोज करने में विद्यार्थियों के अनुभव और योग्यता पर निर्भर करते हुए खोज को एक समय में एक अथवा दो पहलुओं पर केन्द्रित किया जाये। अत:, उदाहरण के लिए, आप शिक्षण को विद्यार्थियों को परिणामों को प्रस्तुत करने अथवा व्याख्या करना सीखने में सहायता करने पर केन्द्रित कर सकते हैं।
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The next case study looks at setting up an investigation.
श्री शर्मा अपनी कक्षाटप् के विद्यार्थियों को उत्क्रमणीय और अनुत्क्रमणीय बदलावों से परिचय कराते हैं। यहाँ वे व्याख्या करते हैं कि उन्होंने विद्यार्थियों की खोज कैसे व्यवस्थित की।
मैंने विद्यार्थियों को कागज़ के टुकड़ों को मोड़कर, उनसे वस्तुएँ बनाने के लिये कहकर प्रारंभ किया। उन्होंने प्रत्येक प्रकार की वस्तुएँ बनायीं, जैसे फूल, हवाई जहाज़ और नाव। उन्होंने इसका बहुत आनंद उठाया। जब वे समाप्त कर चुके, तब मैंने उन्हें बताया कि स्कूल कागज़ वापस चाहता था और पूछा कि वे क्या कागज़ के पन्ने को वापस दे सकते हैं? वे सहमत थे कि वे इसे वापस दे सकते थे। मैंने उन्हें बताया कि यह एक उत्क्रमणीय बदलाव था, और इसे ब्लैकबोर्ड पर लिख दिया।
फिर, मैंने एक कागज़ के टुकड़े को जलाने का प्रदर्शन किया और उनसे पूछा कि उन्होंने क्या प्रेक्षण किया। मैंने उनके प्रेक्षणों को ब्लैकबोर्ड पर लिखा। मैंने पूछा कि यह क्या एक उत्क्रमणीय बदलाव था और वे बोले ‘नहीं!’। मैंने उन्हें बताया कि यह एक अनुत्क्रमणीय बदलाव था, जिसे मैंने ब्लैकबोर्ड पर लिख दिया।
तत्पश्चात्, मैंने उन्हें बताया कि वे बदलाव के बारे में एक प्रयोगात्मक खोज करने जा रहे थे। मेरे पास कुछ वस्तुएँ थीं, जिन्हें वे मिला सकते थे। इनमें नमक, आटा, प्लास्टर और रेत के साथ पानी मिलाना और सोडा बायकाबोर्नेट अथवा दूध के साथ सिरका मिलाना शामिल था।
उन्होंने छोटे–छोटे समूहों में काम किया, जिससे आवश्यक संसाधन कम हो जायें और रिकॉर्ड किया कि उन्होंने कौनसी वस्तुएँ मिलाईं और उन्होंने क्या प्रेक्षण किया? मैंने कुछ प्रश्नों का प्रयोग करके उन्हें बदलावों को ध्यान से देखने में सहायता की। उदाहरण के लिए, मैंने पूछा कि मिश्रण से तुलना करने पर मूल वस्तुएँ कैसी दिखती थीं? मैंने पूछा कि उन्होंने क्या कुछ बुलबुले देखे थे? अथवा गर्माहट का अनुभव किया था? मैंने उन्हें बनावट देखने पर भी ध्यान दिलाया। प्रत्येक के लिये उन्हें बताना पड़ता था कि उनके विचार से क्या वह एक उत्क्रमणीय अथवा अनुत्क्रमणीय बदलाव था?
विद्यार्थियों ने इस खोज का बहुत आनंद उठाया और बहुत सारी वस्तुओं को मिलाया। बहुत सारे विद्यार्थी उत्क्रमणीय मिश्रणों को पहचान सके, लेकिन कुछ –
जैसे प्लास्टर और पानी, पानी में घुले नमक के बारे में वे निश्चित नहीं थे। मैंने इन मिश्रणों को अगली बार देखने के लिये रख दिया।
आपकी खोज का कोई भी उद्देश्य हो, यदि आप चाहते हैं कि वह सफल हो, तो इसे पहले से योजनाबद्ध करने की आवश्यकता है। आप श्री शर्मा की योजना को संसाधन 3 में देख सकते हैं। आपको अपने छात्रों को एक खोज के लिये तैयार करने की और उनकी योजना बनाने में सहायता करने की भी आवश्यकता होगी।
संसाधन 3 खोज की कुछ ऐसी योजनायें प्रदान करता है, जिन्हें आप बदलाव के सन्दर्भ में क्रियान्वित कर सकते हैं। आप जिस विषय पर पढ़ा रहे हैं, उस पर भी खोज की योजना बना सकते हैं। आपकी योजना आपके छात्रों की आयु और योग्यता के लिये उपयुक्त होनी आवश्यक होगी। निम्नलिखित योजना बनाने के चरण उन चरणों के लिये एक मार्गदर्शक प्रदान करते हैं, जो आपके लिये करने आवश्यक हैं –
वीडियो: पाठों का नियोजन करना |
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यदि इसमें आपने पहले एक भी अनुभव नहीं किया हो, तो विद्यार्थियों द्वारा खोज का संचालन करना थोड़ा चुनौतीपूर्ण लग सकता है। यद्यपि, आपके विद्यार्थियों का उत्साह और व्यस्तता आपकी तैयारी के लिये एक पुरस्कार होगा। यदि आपके पास एक बड़ी कक्षा है, तो आपको इस सम्बन्ध में भिन्नता से सोचना पड़ सकता है कि आप आपने विद्यार्थियों के साथ किस प्रकार से कार्य करें? जिससे वे अनुभव में से सबसे अधिक प्राप्त कर सकें। समूहों का प्रयोग लाभकारी हो सकता है और शायद कक्षा को दो भागों में बाँटना और एक पाठ में आधे के साथ और दूसरे पाठ में अगले आधे के साथ काम करना आपको विद्यार्थियों के साथ पास आकर काम करने का अवसर देगा। यह सबसे अधिक लाभदायक उन विद्यार्थियों के लिये हो सकता है, जिन्हें अपने सीखने के समबन्ध में अधिक सहायता की आवश्यकता है। एक बार आपने इस प्रकार पढ़ा लिया, तो आप पायेंगे कि कम संवादात्मक उपागम एक शिक्षक के रूप में आपके लिये संतोषप्रद नहीं है। अपनी खोज प्रारंभ करने से पहले केस स्टडी 3 पढ़ लें।
श्रीमती बीना शर्मा कहती हैं कि उत्क्रमणीय बदलाव के सम्बन्ध में शिक्षण के भाग के रूप में उन्होंने कैसे एक खोज का प्रयोग किया।
मैं चाहती थी कि विद्यार्थी उत्क्रमणीय बदलावों की खोज करें। वे जिन बदलावों की खोज कर सकते थे उनके सम्बन्ध में मेरे पास बहुत सारी योजनायें थीं, लेकिन उन सभी को क्रियान्वित करने में उनका बहुत सारा समय लग जाता। अत:, मैंने उन्हें चार के छोटे समूहों में काम कराने का निश्चय किया और उन्हें खोज करने के लिये बदलावों की एक सूची दी।
‘क्या आप मेरी सहायता कर सकते हैं?’ मैंने पूछा। ‘क्या आप खोज करेंगे और वापस हम रिपोर्ट करेंगे?’ वे बहुत रोमांचित थे और मेरी सहायता करना चाहते थे। प्रत्येक समूह दो खोज चुन सकता था और मैंने निश्चित किया कि कम से कम एक समूह द्वारा सभी किये जायें। उनकी खोज की योजना बनाने में सहायता करने के लिये मैंने उन्हें विचार करने के लिये कुछ प्रश्न दिये। ये इस प्रकार थे–
मैंने उन्हें बताया कि वे एक विशेषज्ञ वैज्ञानिक जिनका नाम डॉक्टर बहुत जानते हैं उनको सहायता करने के लिये कह सकते हैं। यदि उन्हें इसकी आवश्यकता पड़े। मैंने, डॉक्टर बहुत जानते हैं की भूमिका निभाई और जब उन्होंने बातचीत की और योजना बनाई तब मैंने उन्हें उनकी योजना को लिखने के लिये प्रोत्साहित किया और उन्होंने क्या करने की योजना बनाई है? इसके सम्बन्ध में प्रश्न पूछे।
जब वे तैयार हो गये तब उन्होंने अपनी सामग्रियाँ इकट्ठी कीं और योजनाओं को क्रियान्वित किया। यह निश्चित करने के लिये कि वे सुरक्षित रूप से काम कर रहे हैं और प्रेक्षण कर रहे हैं,
समूहों ने जो विभिन्न उपागम लिये, वह देखना दिलचस्प था। उदाहरण के लिए, एक समूह ने सावधानीपूर्वक तेल को बहा कर तेल और पानी को पृथक किया, जबकि एक अन्य समूह ने पानी को वाष्पित कर देने के लिये उसे गरम किया। एक अन्य समूह ने नमक वाले पानी को एक उथली थाली में धूप में छोड़ दिया, लेकिन एक अन्य समूह ने नमक को छानकर निकालने का प्रयास किया।
अगले सत्र में हमने मिश्रणों को पृथक करने के लिये उन्होंने जिन विधियों का प्रयोग किया था, कौनसे सफलतम थे? और क्यों? कौनसे बदलाव उत्क्रमणीय नहीं थे? और क्यों? पर बात–चीत की। विद्यार्थियों ने मेरे लिये अपने रिपोर्ट्स लिखे। मुझे यह स्पष्ट था कि उन्होंने गतिविधि का आनंद उठाया, क्योंकि उन्होंने अपने कुछ बेहतरीन काम किये थे। मैं बहुत प्रसन्न थी कि मैंने पुस्तक से केवल एक कागज़ और पेंसिल वाला अभ्यास करने के बजाय यह खोज की, क्योंकि इसने वास्तव में उनका ध्यान खींचा था।
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क्या आपने ध्यान किया कि श्रीमती बीना ने खोज को एक समस्या हल के प्रसंग में स्थित किया? उन्होंने विद्यार्थियों से केवल मिश्रणों को पृथक करने के बारे में खोज करने के लिये नहीं कहा – बल्कि उन्होंने इसे एक ऐसी कहानी का अंश बनाया जिसका एक उद्देश्य था। जब आप अपनी खोज की योजना बनाते हैं, उस प्रसंग के बारे में विचार करें जिसमें उसे स्थित कर सकते हैं। यह एक हल करने के लिये समस्या हो सकती है, जैसे कि समुद्र के पानी से नमक प्राप्त करना अथवा कीलों को जंग लगने देने से बचाना। अथवा आप विद्यार्थियों को वैज्ञानिकों की भूमिका दे सकते हैं जिनका कार्य सिफारिशें करना है – उदाहरण के लिये, कौनसा उष्मारोधी सबसे बढ़िया है
अब अपनी कक्षा के साथ आप अपनी खोज सम्बंधित पाठ को पढ़ाने जा रहे हैं।
संसाधन 4, ‘पाठों की योजना बनाना’, आपको इस गतिविधि को करने में सहायता देने के लिये परामर्श देता है, और संसाधन 5 खोज के लिये कुछ योजनायें देता है, जिन्हें आप बदलाव के प्रसंग में क्रियान्वित कर सकते हैं। पहले जिस पर चर्चा हो चुकी है, उससे जोड़ते हुए खोज का परिचय दें। कक्षा को खोज के उद्देश्य की व्याख्या दें।
जैसे–जैसे विद्यार्थी खोज पर काम करते रहें, आप कक्षा में घुमते रहें और जाँचे कि वे क्या कर रहे हैं। उनकी विचारों के बारे में पता लगाने के लिये प्रश्न पूछें और उनका सहायता करें। निश्चित करें कि आप उन विद्यार्थियों की सहायता कर रहे हैं, जिन्हें सीखने में अधिक कठिनाई है। इसे आप कई ढंगों से कर सकते हैं, जैसे उदाहरण के लिये, उनकी बात–चीत को सहायता देने के लिये उन्हें समूह में एकत्रित करना और उनके साथ काम करना, अथवा उन्हें एक आसान काम देना।
एक बार जब खोज से सम्बंधित पाठ समाप्त हो चुका हो, तो निम्नलिखित प्रश्नों के बारे में सोचें और नोट्स बनायें–
आपके पाठ के साथ क्या अच्छा गया?
प्रयोगात्मक खोज प्राथमिक विज्ञान पाठ्यक्रम का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं और विज्ञान के सम्बन्ध में सीखने के लिये आधार हैं। इन्हें सभी आयु और विज्ञान के विषयों के लिये प्रयोग किया जा सकता है। ये विभिन्न उद्देश्यों की पूर्ति करते हैं। वे विद्यार्थियों को सम्मिलित करने के अवसर प्रदान करते हैं। विद्यार्थियों के विज्ञान कौशलों और समझ को बेहतर बनाने के लिये आप अपने शिक्षण में खोज का प्रयोग नियमित रूप से कर सकते हैं।
वीडियो: सभी को शामिल करना |
प्राथमिक विद्यार्थी केवल विज्ञान ‘करके’ ही वैज्ञानिक खोज करने के कौशलों को विकसित करेंगे। एक शिक्षक के रूप में आपको सभी आयु के विद्यार्थियों को खुले खोज को करने देने के अवसर प्रदान करने की आवश्यकता है, जो कि अर्थपूर्ण हों और उनके जीवन से जुड़े अनुभवों से सम्बद्ध हो। केवल प्रयोगात्मक खोज द्वारा ही विद्यार्थी अत्यावश्यक सोच–विचार करने के कौशलों को विकसित करेंगे जो उनको वैज्ञानिक प्रक्रिया को समझने के लिये सक्षम करेगा।
इस यूनिट ने अन्वेषण किया कि कम आयु के विद्यार्थी कैसे शिक्षकों की सहायता से खोज को संचालित कर सकते हैं। शिक्षक की उपयुक्त सहायता के साथ, आपके प्राथमिक स्तर के विद्यार्थी प्रश्न पूछने, प्रेक्षण करने, परिणामों की भविष्य कथन देने, प्रयोगात्मक खोज को क्रियान्वित करने, सूचना को रिकॉर्ड करने, आँकड़ों की व्याख्या करने, निष्कर्ष निकालने और विष्कर्ष परिणामों को रिपोर्ट करने में सक्षम हैं। विद्यार्थियों के सीखने में खोज को समाविष्ट करने से उनके विज्ञान का आनंद उठाने में वृद्धि होगी। विद्यार्थियों कौशल बेहतर होंगे और भविष्य के लिये जटिल समालोचनात्मक चिंतन के विकास में योगदान होगा।
विद्यार्थियों को इस बारे में फीडबैक की आवश्यकता है कि वे कितना अच्छा कर रहे हैं और अपने कौशलों में कहाँ बेहतरी ला सकते हैं? यह इस प्रकार से दिया जाना चाहिये जिन्हें विद्यार्थी लाभ पायें और जो उन्हें प्रगति करने में सहायता करें। अन्यथा वे फीडबैक को अनदेखा कर देंगे। (अधिक विवरण के लिये आप मूल संसाधन ‘निगरानी रखना और फीडबैक देना’ को शायद पढ़ना चाहें).
वैज्ञानिक विधि के आधारभूत चरणों से परिचय कराया जा सकता है और विद्यार्थियों के साथ छोटी आयु से प्रयोग किया जा सकता है। नीचे दी गयी सूची कुछ ऐसे तरीकों की चर्चा करती है, जिनसे वैज्ञानिक विधि का अनुप्रयोग दैनिक के विज्ञान की कक्षा में किया जा सकता है।
प्रश्न वैज्ञानिक विधि को संचालित करते हैं। जैसे–जैसे विद्यार्थी एक नयी अवधारणा अथवा विषय का अन्वेषण करना प्रारंभ करते हैं। वे प्रश्न पूछेंगे। इनमें से कुछ प्रश्नों को खोज के आधार के रूप में प्रयोग किया जा सकता है? जैसे कि ‘जब नमक घुलता है, तो वह कहाँ जाता है?’ अथवा ‘जब एक मोमबत्ती जलती है तो क्या होता है?’ विद्यार्थी ऐसे प्रश्न बुद्धि उत्तेजक प्रश्न उत्पन्न कर सकते हैं अथवा ‘मैं जानने के लिये उत्सुक हूँ। जैसे एक कथन को पूरा करके उन्हें प्रश्नों को उत्पन्न करने के लिये प्रोत्साहित किया जा सकता है।
विद्यालय के वातावरण में प्रेक्षण करने के कौशलों को बढ़ावा देने के अवसर लगभग असीमित होते हैं। उदाहरण के लिये, गमलों में विभिन्न प्रकारों के बीज बोकर विद्यार्थी स्वयं ही सीधे वनस्पति के जीवन चक्र का प्रेक्षण कर सकते हैं। बाहर खड़े होकर विद्यार्थी प्रेक्षण कर सकते हैं कि छाया कैसे बनाई जाती हैं। विद्यार्थी अपने और दूसरे विद्यार्थियों के मुखों के भीतर देखकर लोगों के दाँतों के बीच समानताओं और अंतरों का प्रेक्षण कर सकते हैं।
अपने विद्यार्थियों को भविष्य कथन करने के बारे में प्रोत्साहित करने के लिये आपको खुले प्रश्नों का प्रयोग करना चाहिये। उदाहरणों में ‘आपके विचार से नमक को क्या हुआ है?’ सम्मिलित हो सकता है। अथवा ‘यदि हम एक मोमबत्ती जलायें तो उसे क्या होगा?’ इस प्रकार की पूछताछ विद्यार्थियों को उत्तर ढूँढने के लिये प्रेरित करेगी।
विद्यार्थियों द्वारा संचालित खोज, जो उनके द्वारा स्वयं उत्पन्न किये गए प्रश्नों पर आधारित होती हैं, उनके लिये अधिक प्रेरणादायक और अर्थपूर्ण होंगी। आप विद्यार्थियों को सामान्य उपकरण प्रदान कर सकते हैं, जिससे वे स्वयं की खोजें बना सकें। आपके विद्यार्थियों ने जो ध्यान किया है उसके बारे में मौखिक फीडबैक दे सकते हैं अथवा जो उन्होंने प्रेक्षण किया है, वे उसका चित्र बना सकते हैं और लेबल कर सकते हैं।
आँकड़ों को रिकॉर्ड करना और इकट्ठा करना वैज्ञानिक विधि के लिये आधार है, आँकड़ों के बिना विद्यार्थी यह निष्कर्ष निकालने में समर्थ नहीं होंगे कि उनके आसपास की दुनिया किस ढंग से काम करती है। आँकड़ों को विभिन्न ढंगों से इकट्ठा और निरुपित किया जा सकता है, जैसे कि आलेख, सारणियाँ, रूपरेखाएँ, चित्र, चलचित्र और पत्रिकाएँ।
यह बेहतर है कि विद्यार्थी अपने निष्कर्ष स्वयं निकालें बजाये इसके कि उन्हें उनके शिक्षक द्वारा उत्तर प्रदान किये जायें। सावधानीपूर्वक शब्दों से वर्णित किये हुए खुले प्रश्नों को पूछकर आप विद्यार्थियों को अपना अर्थ स्वयं निर्माण करने में सहायता कर सकते हैं। उदाहरणों में ‘आपके विचार से सिक्का क्यों डूबता है? और तिनका तैरता है?’ सम्मिलित हो सकता है अथवा ‘जब आप एक मिनट के लिये कूदते हैं, तो आपका दिल क्यों तेज़ धड़कता है?’ विद्यार्थियों को अपने विचार विकसित करने की अनुमति देने से और अधिक प्रश्न और खोज प्रेरित हो सकते है!
विद्यार्थियों को अवसर दिये जाने चाहिये कि वे शिक्षकों और साथियों के साथ बात–चीत करें कि उन्होंने किस पर ध्यान दिया है। यह उन्हें कारण और प्रभाव के बीच संबंधों को बनाने में सहायता करेगा, तथा उनके चिंतन को सुनियोजित करने में सहायता करेगा।
बातचीत मानव विकास का हिस्सा है, जो सोचने–विचारने, सीखने और विश्व का बोध प्राप्त करने में हमारी मदद करती है। लोग भाषा का इस्तेमाल तार्किक क्षमता, ज्ञान और बोध को विकसित करने के लिए औज़ार के रूप में करते हैं। अत:, विद्यार्थियों को उनके शिक्षण अनुभवों के भाग के रूप में बात करने के लिए प्रोत्साहित करने का अर्थ होगा उनकी शैक्षणिक प्रगति का बढ़ना तथा सीखे गए विचारों के बारे में बात करने का अर्थ होता है–
किसी कक्षा में रटा–रटाया दोहराने से लेकर उच्च श्रेणी की बात–चीत तक विद्यार्थी वार्तालाप के विभिन्न तरीके होते हैं।
पारंपरिक तौर पर, शिक्षक की बातचीत का दबदबा होता था और वह विद्यार्थियों की बातचीत या विद्यार्थियों के ज्ञान के मुकाबले अधिक मूल्यवान समझी जाती थी। यद्यपि, पढ़ाई के लिए बातचीत में पाठों का नियोजन शामिल होता है ताकि विद्यार्थी इस ढंग से अधिक बात करें और अधिक सीखें कि शिक्षक विद्यार्थियों के पहले के अनुभव के साथ संबंध कायम करें। यह किसी शिक्षक और उसके विद्यार्थियों के बीच प्रश्न और उत्तर सत्र से कहीं अधिक होता है क्योंकि इसमें विद्यार्थी की अपनी भाषा, विचारों और रुचियों को ज्यादा समय दिया जाता है। हम में से अधिकांश कठिन मुद्दे के बारे में या किसी बात का पता करने के लिए किसी से बात करना चाहते हैं। अध्यापक बेहद सुनियोजित गतिविधियों से इस सहज–प्रवृत्ति को बढ़ा सकते हैं।
शिक्षण की गतिविधियों के लिए बातचीत की योजना बनाना महज साक्षरता और शब्दावली के लिए नहीं है, यह गणित एवं विज्ञान के काम तथा अन्य विषयों के नियोजन का हिस्सा भी है। इसे पूरी कक्षा में, जोड़ी कार्य या सामूहिक कार्य में, कक्षा के बाहर गतिविधियों में, भूमिका पर आधारित गतिविधियों में, लेखन, वाचन, प्रायोगिक खोज और रचनात्मक कार्य में योजनाबद्ध किया जा सकता है।
यहां तक कि साक्षरता और गणना के सीमित कौशलों वाले नन्हें विद्यार्थी भी उच्चतर श्रेणी के चिंतन कौशलों का प्रदर्शन कर सकते हैं, बशर्ते कि उन्हें दिया जाने वाला कार्य उनके पहले के अनुभव पर आधारित और आनंदप्रद हो। उदाहरण के लिए, विद्यार्थी तस्वीरों, आरेखणों या वास्तविक वस्तुओं से किसी कहानी, पशु या आकृति के बारे में पूर्वानुमान लगा सकते हैं। विद्यार्थी भूमिका निभाते समय कठपुतली या पात्र की समस्याओं के बारे में सुझावों और संभावित समाधानों को सूचीबद्ध कर सकते हैं।
जो कुछ आप विद्यार्थियों को सिखाना चाहते हैं, उसके इर्दगिर्द पाठ की योजना बनायें और इस बारे में सोचें, और साथ ही इस बारे में भी कि आप किस प्रकार की बातचीत को विद्यार्थियों में विकसित होते देखना चाहते हैं। कुछ प्रकार की बातचीत खोजी होती है, उदाहरण के लिए–3 ‘इसके बाद क्या होगा?’, ‘क्या हमने इसे पहले देखा है?’, ‘यह क्या हो सकता है?’ या ‘आप ऐसा क्यों सोचते हैं कि वह यह है?’ कुछ अन्य प्रकार की बात–चीत ज्यादा विश्लेषणात्मक होती हैं, उदाहरण के लिए विचारों, साक्ष्य या सुझावों का आकलन करना।
इसे रोचक, मज़ेदार और सभी विद्यार्थियों के लिए संवाद में भाग लेना संभव बनाने की कोशिश करें। विद्यार्थियों को उपहास का पात्र बनने या गलत होने के भय के बिना दृष्टिकोणों को व्यक्त करने और विचारों का पता लगाने में सहज होने और सुरक्षित महसूस करने की जरूरत होती है।
शिक्षण के लिए बात–चीत अध्यापकों को निम्नलिखित अवसर प्रदान करती है–
सभी उत्तरों को लिखना या उनका औपचारिक आकलन नहीं करना होता है, क्योंकि बात–चीत के जरिये विचारों को विकसित करना शिक्षण का महत्वपूर्ण हिस्सा है। आपको उनके शिक्षण को प्रासंगिक बनाने के लिए उनके अनुभवों और विचारों का यथासंभव प्रयोग करना चाहिए। सर्वश्रेष्ठ विद्यार्थी बात–चीत अन्वेषी होती है, जिसका अर्थ होता है कि विद्यार्थी एक दूसरे के विचारों की जांच करते हैं और चुनौती पेश करते हैं ताकि वे अपने प्रत्युत्तरों को लेकर विश्वस्त हो सकें। एक साथ बातचीत करने वाले समूहों को किसी के भी द्वारा दिए गए उत्तर को स्वीकार करने के लिए प्रोत्साहित नहीं किया जाना चाहिए। आप पूरी कक्षा की सेटिंग में ‘क्यों?’, ‘आपने उसका निर्णय क्यों किया?’ या ‘क्या आपको उस हल में कोई समस्या नजर आती है?’ जैसे जांच वाले प्रश्नों के अपने प्रयोग के माध्यम से चुनौतीपूर्ण विचारशीलता को तैयार कर सकते हैं। आप विद्यार्थी समूहों को सुनते हुए कक्षा में घूम सकते हैं और ऐसे प्रश्न पूछकर उनकी विचारशीलता को बढ़ा सकते हैं।
अगर विद्यार्थियों की बात–चीत, विचारों और अनुभवों की कद्र और सराहना की जाती है तो वे प्रोत्साहित होंगे। बातचीत करने के दौरान अपने व्यवहार, सावधानी से सुनने, एक दूसरे से प्रश्न पूछने, और बाधा न डालना सीखने के लिए विद्यार्थियों की प्रशंसा करें। कक्षा में कमजोर विद्यार्थियों के बारे में सावधान रहें और उन्हें भी शामिल किया जाना सुनिश्चित करने के तरीकों पर विचार करें। कामकाज के ऐसे तरीकों को स्थापित करने में थोड़ा समय लग सकता है, जो सभी विद्यार्थियों को पूरी तरह से भाग लेने की सुविधा प्रदान करते हों।
अपनी कक्षा में ऐसा वातावरण तैयार करें जहां अच्छे चुनौतीपूर्ण प्रश्न पूछे जाते हैं और जहां विद्यार्थियों के विचारों को सम्मान दिया जाता है और उऩकी प्रशंसा की जाती है। विद्यार्थी प्रश्न नहीं पूछेंगे अगर उन्हें उनके साथ किए जाने वाले व्यवहार को लेकर भय होगा या अगर उन्हें लगेगा कि उनके विचारों का मान नहीं किया जाएगा। विद्यार्थियों को प्रश्न पूछने के लिए आमंत्रित करना उनको जिज्ञासा दर्शाने के लिए प्रोत्साहित करता है। उनसे शिक्षण के विषय में अलग ढंग से विचार करने के लिए कहता है और उनके नजरिए को समझने में आपकी सहायता करता है।
आप कुछ नियमित समूह या जोड़े में कार्य करने, या शायद ‘विद्यार्थियों के प्रश्न पूछने का समय’ जैसी कोई योजना बना सकते हैं ताकि विद्यार्थी प्रश्न पूछ सकें या स्पष्टीकरण मांग सकें। आप–
किसी विद्यार्थी को हॉट–सीट पर बैठा सकते हैं और दूसरे विद्यार्थियों को उस विद्यार्थी से प्रश्न पूछने के लिए प्रोत्साहित कर सकते हैं जैसे कि वे पात्र हों, उदाहरणत: पाइथागोरस या मीराबाई
जब विद्यार्थी प्रश्न पूछने और उन्हें मिलने वाले प्रश्नों के उत्तर देने के लिए मुक्त होते हैं तो उस समय आपको रुचि और विचारशीलता के स्तर को देखकर हैरानी होगी। जब विद्यार्थी अधिक स्पष्टता और सटीक से संवाद करना सीख जाते हैं, तो वे न केवल अपनी मौखिक और लिखित शब्दावलियां बढ़ाते हैं, अपितु उनमें नया ज्ञान और कौशल भी विकसित होता है।
खोज का उद्देश्य | खोज के कौशलों को विकसित करना और बदलाव के सम्बन्ध में विद्यार्थियों की समझ को सुदृढ़ करने में सहायता देना। |
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अधिगम उद्देश्य | खोज के अंत तक विद्यार्थी इनमें सक्षम होंगे–
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आवश्यक संसाधन | कागज़ के टुकड़े, पानी, नमक, आटा, प्लास्टर, रेत, सिरका, सोडा बायकाबोर्नेट, दूध, मिलाने के लिये पात्र |
सुरक्षा | निश्चित करें कि वस्तुएँ विद्यार्थियों की आँखों में न जायें। |
प्रयोग प्रदर्शन की योजना | |
परिचय | कागज़ को मोड़कर विद्यार्थी वस्तुएँ बनाते हैं। कागज़ कैसे बदल गया है? विद्यार्थियों को बताइये कि कागज़ वापस चाहिये – क्या वे बदलाव को उलट सकते हैं? जलता हुआ कागज़ दिखायें। ब्लैक बोर्ड पर विद्यार्थियों के प्रेक्षण लिखें। क्या इसे उलटा किया जा सकता है? ब्लैक बोर्ड पर ‘उत्क्रमणीय’और ‘अनुत्क्रमणीय’लिखें। |
खोज स्थापित करना | विद्यार्थियों को बतायें कि वस्तुओं को मिलाने पर बदलावों की वे खोज करने जा रहे हैं और तय करने जा रहे हैं कि क्या वे उत्क्रमणीय अथवा अनुत्क्रमणीय हैं? खोज के प्रश्न: ‘क्या होता है जब वस्तुओं को मिलाया जाता है?’ ‘कौनसे बदलाव उत्क्रमणीय हैं?’ विद्यार्थियों को समूहों में काम करने को कहें। उनके पास एक छोटा पात्र है और वस्तुओं को इकट्ठा करें और मिलायें और प्रेक्षण करें। बाल्टी में कूड़ा। परिणाम सारणी को बोर्ड पर चित्रित करें। जैसे वे खोज करते जायें उसे पूरा करने के लिये विद्यार्थी पुस्तकों में उतारें। |
वस्तुएँ प्रेक्षण उत्क्रमणीय अथवा नहीं? पानी और नमक पानी और प्लास्टर पानी और आटा पानी और रेत दूध और सिरका सिरका और सोडा बायकाबोर्नेट रेत और आटा
खोज के दौरान | चक्कर लगायें और प्रश्नों का प्रयोग करके विद्यार्थियों को प्रेक्षण करने में सहायता करें। निश्चित करें कि वे प्रत्येक वस्तु का अत्यधिक प्रयोग नहीं कर रहे हैं। |
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खोज के पश्चात् | पूरी कक्षा से पूछें कि उन्होंने क्या प्रेक्षण किया? बोर्ड पर सारणी को पूरी करें। उनके विचार से कौनसे मिश्रण उत्क्रमणीय हैं? क्यों? उन्हें वे कैसे उलटा करेंगे? |
अच्छे अध्यायों की योजना बनानी होती है। नियोजन आपके अध्यायों को स्पष्ट और व्यवस्थित बनाने में मदद करता है, जिसका अर्थ यह है कि आपके विद्यार्थी सक्रिय और आकृष्ट बने रह सकते हैं। प्रभावी नियोजन में कुछ अंतर्निहित लचीलापन भी शामिल होता है ताकि अध्यापक पढ़ाते समय विद्यार्थियों की शिक्षण–प्रक्रिया के बारे में कुछ पता चलने पर उसके प्रति अनुक्रिया कर सकें। अध्यायों की श्रृंखला के लिए योजना पर काम करने में विद्यार्थियों और उनके पूर्व–शिक्षण को जानना, पाठ्यक्रम में से आगे बढ़ने के क्या अर्थ है, और विद्यार्थियों के पढ़ने में मदद करने के लिए सर्वोत्तम संसाधनों और गतिविधियों की खोज करना शामिल होता है।
नियोजन एक सतत प्रक्रिया है जो आपको अलग–अलग अध्यायों और साथ ही, एक के बाद एक विकसित होते सत्रों की श्रृंखला, दोनों की तैयारी करने में मदद करती है। अध्याय के नियोजन के चरण ये हैं–
जब आप किसी पाठ्यक्रम का अनुसरण करते हैं, तो नियोजन का पहला भाग यह निश्चित करना होता है कि पाठ्यक्रम के विषयों और प्रसंगों को खंडों या टुकड़ों में किस सर्वोत्तम ढंग से विभाजित किया जाय। आपको विद्यार्थियों के प्रगति करने तथा कौशलों और ज्ञान का क्रमिक रूप से विकास करने के लिए उपलब्ध समय और तरीकों पर विचार करना होगा। आपके अनुभव या सहकर्मियों के साथ बात–चीत से आपको पता चल सकता है कि किसी विषय–वस्तु के लिए चार सत्र लगेंगे, लेकिन किसी अन्य विषय के लिए केवल दो। आपको इस बात से अवगत रहना चाहिए कि आप भविष्य में उस सीख पर अलग तरीकों से और अलग अलग समयों पर तब लौट सकते हैं, जब अन्य विषय पढ़ाए जाएंगे या विषय को विस्तारित किया जाएगा।
सभी पाठों की योजनाओं में आपको निम्नलिखित बातों के बारे में स्पष्ट रहना होगा:
विद्यार्थियों को आप क्या पढ़ाना चाहते हैं?
आप शिक्षण को सक्रिय और रोचक बनाना चाहेंगे ताकि विद्यार्थी सहज और उत्सुक महसूस करें। इस बात पर विचार करें कि पाठों की श्रृंखला में विद्यार्थियों से क्या करने को कहा जाएगा? ताकि आप न केवल विविधता और रुचि के साथ लचीलापन भी बनाए रखें। योजना बनाएं कि जब आपके विद्यार्थी पाठों की शृंखला में से प्रगति करेंगे तब आप उनकी समझ की जाँच कैसे करेंगे? यदि कुछ भागों को अधिक समय लगता है या वे जल्दी समझ में आ जाते हैं तो समायोजन करने के लिए तैयार रहें।
पाठों की श्रृंखला को नियोजित कर लेने के बाद, प्रत्येक पाठ को उस प्रगति के आधार पर अलग से नियोजित करना होगा जो विद्यार्थियों ने उस बिंदु तक की है। आप जानते हैं या पाठों की श्रृंखला के अंत में यह आप जान सकेंगे कि विद्यार्थियों ने क्या सीख लिया होगा? लेकिन आपको किसी अप्रत्याशित चीज को फिर से दोहराने या अधिक शीघ्रता से आगे बढ़ने की जरूरत हो सकती है। इसलिए हर पाठ को अलग से नियोजित करना चाहिए ताकि सभी विद्यार्थी प्रगति करें और सफल तथा शामिल महसूस करें।
पाठ की योजना के भीतर आपको सुनिश्चित करना चाहिए कि प्रत्येक गतिविधि के लिए पर्याप्त समय है और उसके लिए सभी संसाधन तैयार हैं, जैसे क्रियात्मक कार्य या सक्रिय समूहकार्य के लिए। बड़ी कक्षाओं के लिए सामग्रियों के नियोजन के हिस्से के रूप में आपको अलग अलग समूहों के लिए अलग अलग प्रश्नों और गतिविधियों की योजना बनानी पड़ सकती है।
जब आप नए विषय पढ़ाते हैं, आपको आत्मविश्वासी होने के लिए अभ्यास करने और अन्य अध्यापकों के साथ विचारों पर बातचीत करने के लिए समय की जरूरत पड़ सकती है।
तीन भागों में अपने पाठों को तैयार करने के बारे में सोचें। इन भागों पर नीचे बात–चीत की गई है।
पाठ के शुरू में, विद्यार्थियों को समझाएं कि वे क्या सीखेंगे? और करेंगे? ताकि प्रत्येक एक को पता रहे कि उनसे क्या अपेक्षित है। विद्यार्थी जो पहले से ही जो जानते हैं उन्हें उसे साझा करने की अनुमति देकर वे जो करने वाले हों उसमें उनकी दिलचस्पी पैदा करें।
विद्यार्थी जो कुछ पहले से जानते हैं उसके आधार पर सामग्री की रूपरेखा बनाएं। आप स्थानीय संसाधनों, नई जानकारी या सक्रिय पद्धतियों के उपयोग का निर्णय ले सकते हैं जिनमें समूहकार्य या समस्याओं का समाधान करना शामिल है। उपयोग करने के लिए संसाधनों और उस तरीके की पहचान करें जिससे आप अपनी कक्षा में उपलब्ध स्थान का उपयोग करेंगे। विविध प्रकार की गतिविधियों, संसाधनों, और समयों का उपयोग पाठ के नियोजन का महत्वपूर्ण हिस्सा है। यदि आप विभिन्न तरीक़ों और गतिविधियों का उपयोग करते हैं, तो आप अधिक विद्यार्थियों तक पहुँच सकते हैं, क्योंकि वे भिन्न तरीक़ों से सीखेंगे।
हमेशा यह पता लगाने के लिए समय (पाठ के दौरान या उसकी समाप्ति पर) रखें कि कितनी प्रगति की गई है। जाँच करने का अर्थ हमेशा परीक्षा ही नहीं होता है। आम तौर पर उसे शीघ्र और उसी जगह पर होना चाहिए जैसे– नियोजित प्रश्न या विद्यार्थियों को जो कुछ उन्होंने सीखा है उसे प्रस्तुत करते देखना – लेकिन आपको लचीला होने के लिए और विद्यार्थियों के उत्तरों से आपको जो पता चलता है उसके अनुसार परिवर्तन करने की योजना बनानी चाहिए।
पाठ को समाप्त करने का एक अच्छा तरीका हो सकता है शुरू के लक्ष्यों पर वापस लौटना और विद्यार्थियों को इस बात के लिए समय देना कि वे एक दूसरे को और आपको उस शिक्षण से हुई उनकी प्रगति के बारे में बता सकें। विद्यार्थियों की बात को सुनकर आप सुनिश्चित कर सकेंगे कि आपको अगले पाठ के लिए क्या योजना बनानी है?
प्रत्येक पाठ का पुनरावलोकन करें और इस बात दर्ज करें कि क्या किया? आपके विद्यार्थियों ने क्या सीखा? किन संसाधनों का उपयोग किया गया? और सब कुछ कितनी अच्छी तरह से संपन्न हुआ ताकि आप अगले पाठों के लिए अपनी योजनाओं में सुधार या उनका समायोजन कर सकें। उदाहरण के लिए, आप निम्नलिखित का निर्णय कर सकते हैं–
सोचें कि आप विद्यार्थियों के सीखने में मदद के लिए क्या योजना बना सकते थे? या अधिक बेहतर कर सकते थे।
जब आप प्रत्येक पाठ में से गुजरेंगे आपकी पाठ संबंधी योजनाएं अपरिहार्य रूप से बदल जाएंगी, क्योंकि आप प्रत्येक होने वाली चीज का पूर्वानुमान नहीं कर सकते। अच्छे नियोजन का अर्थ है कि आप जानते हैं कि आप शिक्षण को किस तरह से करना चाहते हैं और इसलिए जब आपको विद्यार्थियों के वास्तविक शिक्षण के बारे में पता चलेगा तब आप लचीले ढंग से उसके प्रति अनुक्रिया करने को तैयार रहेंगे।
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वीडियो (वीडियो स्टिल्स सहित): भारत भर के उन अध्यापक शिक्षकों, मुख्याध्यापकों, अध्यापकों और विद्यार्थियों के प्रति आभार प्रकट किया जाता है जिन्होंने उत्पादनों में दि ओपन यूनिवर्सिटी के साथ काम किया है।