यह इकाई अच्छे प्रश्न पूछने, विद्यार्थियों के उत्तरों पर प्रतिक्रिया देने तथा विद्यार्थियों को प्रश्न पूछने के लिए प्रोत्साहित करने के बारे में है।
शिक्षक अपना 35 से 50 प्रतिशत समय कक्षा में प्रश्न पूछने में बिताते हैं। प्रभावी प्रश्न पूछने से विद्यार्थी की सीखने की क्षमता बढ़ती है। अच्छे प्रश्न पूछकर अपने विद्यार्थियों का ध्यान मुख्य अवधारणाओं की ओर आकर्षित किया जा सकता है और उनकी समझ को बेहतर बनाने में मदद की जा सकती है। इससे आपको यह पता लगाने में भी मदद मिलेगी कि विषय के बारे में आपके विद्यार्थी क्या जानते और समझते हैं? जिससे यदि आवश्यक हो तो आप अपने तरीके में सुधार ला सकते हैं। यद्यपि, प्रभावी ढंग से प्रश्न पूछना शिक्षकों के लिए कठिन होता है। विचारात्मक प्रश्न अलग–अलग प्रकार के होते हैं, और कई प्रकार के प्रश्नों को अलग–अलग तरीकों से पूछे जा सकते हैं। यह सुनिश्चित करने के लिए कि आप उसी प्रकार के प्रश्न पूछें, जो विद्यार्थियों के सोचने और सीखने को बढ़ाने में सहायक हों। इसके लिए ध्यानपूर्वक नियोजन की आवश्यकता होती है। विद्यार्थियों के उत्तरों पर आप जिस तरह प्रतिक्रिया करेंगे, उससे यह भी तय होगा कि आपका प्रश्न पूछने का तरीका, सीखने को बढ़ावा देने के लिहाज से, कितना प्रभावकारी है। जैसा कि आप पाएंगे कि पूछने के लिए अच्छे प्रश्नों के बारे में सोचने से स्वयं आपको विषय को समझने में मदद मिलेगी और यह आपके विद्यार्थियों पर भी लागू होता है। इसलिए ऐसे वातावरण का निर्माण करना जिसमें विद्यार्थी स्वयं आगे बढ़कर प्रश्न पूछने का आत्मविश्वास महसूस करें जो आपको एक प्रभावकारी शिक्षक बनने में मदद करेगा।
इस विषय के विचारों को कक्षा IX के विषय ’हम सब क्यों बीमार पड़ते हैं?’ के माध्यम से उदाहरणों के साथ समझाया जाएगा, लेकिन ये उन सभी विषयों पर भी लागू होते हैं, जो आपको विज्ञान में पढ़ाने पड़ेंगे।
प्रश्न पूछना, यह पता लगाने का महत्वपूर्ण तरीका है कि आपके विद्यार्थी क्या जानते हैं? और क्या समझते हैं? लेकिन शिक्षक अन्य कारणों से भी प्रश्न पूछते हैं–
प्रश्न पूछने का उपयोग कक्षा प्रबंधन के साधन के रूप में भी किया जा सकता है। इनका उपयोग ऊब रहे विद्यार्थियों का ध्यान लगाने या विषय से भटके हुए विद्यार्थियों को फिर विषय से जोड़ने के लिए किया जा सकता है। इनका उपयोग विद्यार्थी के आत्मविश्वास और आत्मबल को बढ़ाने के लिए भी किया जा सकता है।
प्रमाण दर्शाते हैं कि फीडबैक देना और पूरी कक्षा के साथ संवाद करते हुए पढ़ाना शिक्षण की दो सबसे प्रभावकारी विधियां हैं। प्रश्न पूछना आपके लिए फीडबैक देने का और विद्यार्थियों के लिए भी एक दूसरे को फीडबैक देने का अवसर प्रदान करता है। महत्व की बात यह है कि पूरी कक्षा के शिक्षण को बातचीत पर आधारित बनाने के लिए प्रश्नों का उपयोग किया जा सकता है।
पूरी कक्षा के शिक्षण को संवादमूलक बनाने के लिए (पैटी, 2009) शिक्षकों को चाहिए कि वे–
यह सोचना कि, आप अपने प्रश्नों से क्या हासिल करने का प्रयत्न कर रहे हैं? अपने प्रश्नों के लिए योजना बनाना तथा अपने विद्यार्थियों के उत्तरों को ध्यानपूर्वक सुनना, प्रभावी प्रश्न पूछने की कुंजी है। संसाधन 1 में प्रभावी ढंग से प्रश्न पूछने के उपयोग के बारे में काफी–कुछ विवरण समाहित है।
विभिन्न प्रकार के प्रश्नों का वर्गीकरण करने के कई तरीके होते हैं। इनमें से सबसे सरल वर्गीकरण की प्रणाली प्रश्नों को या तो खुले या बंद प्रश्न के रूप में व्यक्त है। चित्र 1 खुले और बंद प्रश्नों के बीच अंतर को दर्शाता है।
शिक्षकों में बहुत अधिक बंद प्रश्न पूछने की प्रवृत्ति होती है, जिसके लिए विद्यार्थियों को सोचने की आवश्यकता नहीं पड़ती।
’खुले’ प्रश्न विद्यार्थियों को याद्दाश्त को दोहराने से आगे जाने के लिए प्रेरित करते हैं और उनमें सारांश बनाना, तुलना, अंतर स्पष्ट करना, व्याख्या, विश्लेषण तथा मूल्यांकन करने जैसे विचार के अधिक जटिल कौशलों के विकास में मदद करते हैं।
प्रायः एक बंद प्रश्न के बाद सहयोगात्मक रूप में एक अधिक चुनौतीपूर्ण खुला प्रश्न पूछा जा सकता है। उदाहरण के लिए, ’हाइड्रोक्लोरिक एसिड का पीएच (pH) क्या है?’ के बाद यह पूछा जा सकता है कि ’हमें यह कैसे पता?’ या ’यह हमें हाइड्रोक्लोरिक एसिड के बारे में क्या बोध कराता है?’
यह गतिविधि आपके लिए अपनी योजना के अंग के रूप में करने के लिए है। यह गतिविधि अपने एक साथी के साथ करना लाभदायक होगा।
निपुण शिक्षक अच्छे प्रश्न पूछते हैं। निपुण बनने के लिए आपको अभ्यास करने की आवश्यकता होती है। आप ’हम क्यों बीमार पड़ते हैं?’ विषय पढ़ाना प्रारंभ करने से पहले प्रश्नों का एक सेट तैयार कीजिए, जो आप अपने विद्यार्थियों से पूछ सकें और पता लगा सकें कि वे पहले से क्या जानते हैं? आपको कुछ सरल बंद प्रश्नों की आवश्यकता होगी जिससे सिद्ध होगा कि वे ’वायरस’ या ’संक्रमण’ जैसे मुख्य शब्दों को समझते हैं या नहीं। आपको अधिक खुले प्रश्नों की भी आवश्यकता होगी जो अपेक्षाकृत लंबे उत्तरों की मांग करते हैं। इनसे आपको यह स्थापित करने में मदद मिलेगी कि वे इस बारे में पहले से कितना जानते हैं कि बीमारियां कैसे फैलती हैं और इनका उपचार किस तरह किया जाता है?
जब आपने कुछ प्रश्न तैयार कर लिए हों, तो अपने प्रश्नों को किस प्रकार से पूछें? इसकी योजना बनाने के लिए संसाधन 2 का उपयोग कीजिए।
पूरी कक्षा से प्रश्न पूछना सभी शिक्षकों के लिए एक महत्वपूर्ण तकनीक है। यहां पूरी कक्षा से प्रश्न पूछने का एक तरीका दिया गया है, जो प्रत्येक विद्यार्थी को भाग लेने का अवसर देता है – सक्रिय रूप से सीखने की तकनीक ।
ऐसे प्रश्न को बोर्ड पर लिखें– ’बैक्टीरिया और वायरस में क्या–क्या अंतर हैं?’ (कृपया ध्यान रखें कि यदि आप यह विषय पहले पढ़ा चुके हों, तो आप किसी और प्रश्न का उपयोग कर सकते हैं?)
अपने विद्यार्थियों को चार से छहः के समूहों में विभाजित करें। प्रत्येक समूह को इस प्रश्न के उत्तर में अपने कुछ विचार लिखने के लिए पांच मिनट का समय दें। आप उन्हें जानकारी निकालने का प्रयास करने के लिए पाठ्यपुस्तक का उपयोग करने दे सकते हैं। जब वे काम कर रहे हों तो आप कक्षा में घूमें और प्रत्येक समूह में से किसी एक को उस समूह की ओर से उत्तर देने के लिए नामित करें।
समूह को ध्यान में रखते हुए आप उनकी प्रगति में मदद कर सकने वाले कुछ त्वरित प्रश्न भी पूछ सकते हैं, जैसेः बैक्टीरिया से कौन–कौन सी बीमारियाँ होती हैं? वायरस शरीर में कहां रहते हैं?
पांच मिनट बाद, अपने विद्यार्थियों से पूछें कि क्या उन्हें कुछ और समय की आवश्यकता है? यदि, वार्तालाप अभी चल रहे हों, तो उन्हें दो मिनट और दें।
इस प्रश्न का उत्तर देने के लिए, विद्यार्थियों को यह समझना आवश्यक है कि वायरस और बैक्टीरिया दो अलग–अलग प्रजातियों के हैं और अलग–अलग तरीकों से काम करते हैं। वे अलग–अलग बीमारियाँ पैदा करते हैं।
अब प्रत्येक समूह से उनके विचार पूछें। सीधे उत्तर देने के लिए कहने की बजाय, उनसे श्रृंखलाबद्ध प्रश्न पूछने चाहिए जिससे उनकी समझ की परख होगी।
प्रत्येक समूह से एक प्रश्न पूछें। यदि नामित विद्यार्थी उत्तर नहीं दे सके, तो उन्हें अपने सहपाठियों से मदद लेने का अवसर दें। यहां कुछ प्रश्न सुझाए गए हैं–
यदि एक समूह द्वारा दिया गया उत्तर पूर्णतः सही या पर्याप्त स्पष्ट न हो, तो वह प्रश्न दूसरे समूह की ओर बढ़ा दें। क्या, आप इससे सहमत हैं? क्या आप इसमें कुछ जोड़ सकते हैं?
उत्तरों को ब्लैकबोर्ड पर लिखें, या किसी विद्यार्थी से कक्षा के लेखक का काम करने के लिए कहें। जानकारी को व्यवस्थित करने की चिंता न करें। बस समूहों द्वारा बताई गई मुख्य बातों को लिखते जाएं।
प्रत्येक समूह को जब उत्तर देने का अवसर मिल गया हो, तब जांच करें कि बोर्ड पर लिखी सारी जानकारी स्वीकृत वैज्ञानिक चिंतन हैं या नहीं।
फिर अपने विद्यार्थियों को जोड़ी बनाकर कार्य करते हुए अपनी–अपनी अभ्यास पुस्तिकाओं में बैक्टीरिया और वायरस के बीच के अंतरों की सूची बनाने के लिए कहें। वे बोर्ड पर लिखी जानकारी का उपयोग कर सकते हैं, लेकिन इसे उन्हें स्वयं ही क्रमबद्ध करना होगा।
विचार के लिए रुकें
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श्रीमती गांधी लड़कियों को और अधिक शामिल होने के लिए प्रोत्साहित करने हेतु पूरी कक्षा के साथ संवाद करते हुए शिक्षण की पद्धति का उपयोग करती हैं।
मैं अपनी कक्षा से यथासंभव अधिक से अधिक प्रश्न पूछने की कोशिश करती हूँ, जिससे मैं पता कर सकूँ कि वे क्या जानते हैं? और उसी के अनुरूप अपना शिक्षण कर सकूँ। मैं उन्हें सामान्यतः पर स्वेच्छा से उत्तर देने के लिए कहती हूं क्योंकि मैं नहीं चाहती कि यदि उन्हें उत्तर नहीं आता हो तो वे असहज महसूस करें या शर्मिंदा हों। इस वर्ष मेरी कक्षा IX में लड़कों से ज्यादा लड़कियाँ हैं, लेकिन मैंने ध्यान दिया कि उत्तर देने के लिए अपने हाथ उठाने वालों में ज्यादातर लड़के हैं। इसलिए एक दिन, जब वे एक प्रयोग कर रहे थे, तो मैंने कुछ लड़कियों से पूछा, ‘’तुम अपना हाथ ऊपर क्यों नहीं उठातीं?’’ कुछ लड़कियों ने कहा कि उन्हें हमेशा पक्के तौर पर पता नहीं होता कि वे सही उत्तर जानती हैं तथा अन्य विद्यार्थियों के सामने नासमझ दिखना नहीं चाहतीं। एक अन्य लड़की ने कहा कि उसे प्रायः उत्तर पता होता है, लेकिन वह पर्याप्त तेजी से उसके बारे में सोच नहीं पाती।
अगले दिन हम बीमारी की रोकथाम के बारे में पढ़ रहे थे। बीमारी के कारणों और उपचार से संबंधित पिछले सत्र में हमने जो कार्य किया था, उसके बारे में उनकी समझ को जांचने–परखने के लिए मैंने कुछ प्रश्न पूछने का इरादा किया। मैंने कुछ त्वरित बंद प्रश्नों से प्रारंभ करने और फिर कुछ और जानने के लिए खुले प्रश्न पूछने की योजना बनाई, जिससे यह पता कर सकूँ कि बीमारी की रोकथाम के बारे में वे पहले से क्या जानते एवं समझते हैं?
मैंने तीन छोटे–छोटे प्रश्न पूछे–
मैंने अपने विद्यार्थियों से कहा कि वे प्रश्नों के बारे में स्वतः ही सोचें और फिर अपने उत्तरों को अपनी बगल में बैठे विद्यार्थी के उत्तरों से मिलाएँ। मैंने उन्हें इस कार्य के लिए कुछ मिनटों का समय दिया और चारों तरफ घूमते हुए उनकी बातचीत को सुना।
फिर मैंने प्रश्नों का उत्तर देने के लिए लोगों को नामित किया। मैंने जिन लोगों को चुना वे सभी लड़कियाँ थीं। मैंने जानबूझकर उन्हीं लड़कियों को चुना, जिनके बारे में मुझे पता था कि वे सही उत्तर जानती हैं। मैं उन्हें उनके सहभागियों के साथ बात करते हुए सुन चुकी थी। जब उन्होंने सही उत्तर दिया, तो मैंने सावधानीपूर्वक उनकी प्रशंसा की और एक फॉलो–अप प्रश्न पूछा। मुझे उम्मीद थी कि इससे कक्षा के सामने बोलने में उनका आत्मविश्वास सुदृढ़ होगा।
फिर मैंने एक और सामान्य प्रश्न पूछा, ’तुम क्या सोचती हो हम बीमारियों को कैसे रोक सकते हैं?’ मैंने जानबूझकर पूछा, ’‘तुम क्या सोचती हो...?’’ यह स्पष्ट करने के लिए कि मेरी दिलचस्पी उनके विचारों में थी और मैं उनसे पाठ्यपुस्तक में लिखा उत्तर जानने की अपेक्षा नहीं कर रही थी। जब उन्होंने जोड़ियों में चर्चा पूरी कर ली, तो मैंने एक लड़के से बीमारी रोकने का एक तरीका बताने के लिए कहा और फिर तीन अलग–अलग लड़कियों से पूछा। मुझे अहसास हुआ कि वे टीकाकरण के बारे में बहुत कुछ जानते थे। उनमें से कुछ संक्रमण को रोकने में स्वच्छता के महत्व समझते थे, लेकिन बहुत कम ही लोग अच्छे आहार और स्वस्थ्य रहने के बीच संबंध जोड़ सके।
मैं इस तकनीक का उपयोग कुछ हफ्तों से करती आ रही हूँ, और कल ही स्वेच्छा से उत्तर देने के लिए कहने की अपनी पुरानी रणनीति पर लौट आई। मैं प्रसन्न थी कि अधिक लड़कियाँ स्वेच्छा से उत्तर देने लगी थीं, लेकिन वे उतनी अधिक भी नहीं थीं, जितनी मैं उम्मीद कर रही थी। मुझे उनका आत्मविश्वास बढ़ाने के और भी तरीके खोजने की आवश्यकता होगी!
श्रीमती गांधी प्रश्नों में अपने सभी विद्यार्थियों को शामिल करने के लिए एक तकनीक का उपयोग कर रही हैं। अन्य तकनीकें भी हैं जिन्हें आप आजमाना सकते हैं। एक तकनीक यह है कि सभी विद्यार्थियों को प्रश्न का अपना–अपना उत्तर लिखने के लिए दो मिनट का समय दिया जाए। फिर किन्हीं निश्चित विद्यार्थियों से या उनमें से किसी को भी स्वेच्छा से उत्तर देने के लिए कहें। एक और तकनीक यह है कि प्रश्न पूछने के बाद कुछ सेकंड के लिए प्रतीक्षा की जाए। ये दोनों ही तकनीकें विद्यार्थियों को सोचने और अनुमान लगाने का समय देती हैं। ऐसे में आपके विद्यार्थियों के उत्तर अपेक्षाकृत ज्यादा लंबे और ज्यादा विचारपूर्ण होने की संभावना है। इसका अर्थ यह भी है कि केवल कुछ विद्यार्थी जो हमेशा हाथ उठाते हैं, के बजाय सभी विद्यार्थिंयों को उत्तर के विषय में सोचने का अवसर मिलेगा।
दो मुख्य कारणों से विद्यार्थियों को प्रश्न पूछना सीखने की आवश्यकता होती है। पहला, यदि वे कार्य को नहीं समझते हैं और उन्हें मदद की आवश्यकता होती है, तो यह महत्वपूर्ण है कि उनमें आपसे या अपने किसी सहपाठी से पूछने का आत्मविश्वास हो। यह महसूस करना कि पूछना ठीक ही है और प्रश्न सूत्रबद्ध कर पाना समान रूप से महत्वपूर्ण है।
दूसरा, एक लोकतांत्रिक समाज का सक्रिय सदस्य बनने के लिए उन्हें तथ्यों की व्याख्या करने, उनकी वैधता पर संदेह करने और लोगों के द्वारा किए गए दावों को चुनौती दे पाने की आवश्यकता होती है।
श्री सिंह अपने विद्यार्थियों को कुछ प्रश्न बनाने के लिए कहते हैं।.
जब मैं विषय के आखिर में पहुंचता हूं, तो मैं सामान्यतः पर अपने विद्यार्थियों से पूछता हूं कि क्या वे सब कुछ समझ रहे हैं या नहीं? और क्या किसी को कोई प्रश्न पूछना है? मुझे हमेशा यही उत्तर मिलता, ’हां, हम समझ गए हैं’। बहुत कम ही विद्यार्थियों ने कभी मुझसे प्रश्न पूछा। हालांकि जब परीक्षा की बारी आती है, तो वे कभी उतना अच्छा नहीं करते, जितनी मुझे उम्मीद होती है। इससे यह स्पष्ट है कि विद्यार्थियों की बड़ी संख्या है जो कुछ अवधारणाओं को नहीं समझती। मैंने तय किया कि मुझे इसके बारे में कुछ करना पड़ेगा।
जब ’हम क्यों बीमार पडत़े हैं?’ विषय समाप्त किया, तब मैंने एक अलग तरीका अपनाने का निर्णय लिया। गृहकार्य के लिए, अध्याय के अंत में प्रश्नों को हल करने की बजाय मैंने उनसे अपने सहपाठियों के लिए एक प्रश्न–पत्र तैयार करने कहा। प्रत्येक को पांच प्रश्न तैयार करने थे। मैंने उनसे यह भी कहा कि वे ऐसे किसी भी प्रश्न का अलग से रिकार्ड बना लें जो वे विषय के बारे में पूछना चाहते हों।
अगले दिन मैंने उन्हें चार–चार के समूहों में व्यवस्थित किया। मैंने समूहों को इस तरह व्यवस्थित किया जिससे योग्यता के समान स्तर पर पहुंच चुके विद्यार्थी एक साथ हों। प्रत्येक समूह के प्रत्येक व्यक्ति के प्रश्नों (जोड़कर कुल 20 प्रश्न) पर अच्छी तरह काम करना था। मैंने अपेक्षाकृत कमजोर विद्यार्थियों के समूहों की सहायता करने के लिए ध्यान केंद्रित किया, लेकिन मैंने पाया कि उन्होंने एक उपयुक्त स्तर पर कुछ अच्छे प्रश्न तैयार किए थे। यदि किसी समूह ने जल्दी काम समाप्त कर लिया, तो मैंने उनसे कहा कि ऐसे किन्हीं भी क्षेत्रों के अतिरिक्त प्रश्नों के बारे में सोचें जिसमें उन्हें मदद की जरूरत हो।
अभ्यास के अंतिम दस मिनटों में, मैंने उन्हें अध्याय के अंत में दिए गए प्रश्नों के उत्तर देने के काम में लगाया। जब वे यह कर रहे थे, मैं चारों तरफ गया और ऐसे किसी भी प्रश्न का उत्तर दिया जिसके बारे में विद्यार्थियों को अब भी संदेह था।
विचार के लिए रुकें आप कौन–कौन से कदम उठा सकते हैं जिनसे आपके विद्यार्थी प्रश्न पूछने में सक्षम महसूस करें? |
यह महत्वपूर्ण है कि विद्यार्थी प्रश्न पूछने का आत्मविश्वास महसूस करें। आपको उनके लिए समय और अवसर दें जिससे वे प्रश्न पूछ सकें और साथ ही ध्यानपूर्वक प्रतिक्रिया दे सकें। उन्हें बताएं कि यह अच्छा प्रश्न है और आपको प्रसन्नता हुई कि उन्होंने पूछा। उत्तर को आप जितना अधिक से अधिक स्पष्ट रूप से समझा सकें समझाएं। एक फोलो–अप प्रश्न के साथ बात समाप्त की जा सकती है, जो दर्शाएगा कि वे वास्तव में समझ सके हैं या नहीं। यदि आप सहयोगपूर्ण और मित्रतापूर्ण वातावरण बना सकें, तो विद्यार्थियों के लिए प्रश्न पूछना आसान लगेगा।
यह गतिविधि आपके विद्यार्थियों को किन्हीं आंकड़ों के बारे में पूछने के लिए प्रश्नों पर विचार करने का अवसर देगी। इसी तरह का चिंतन और प्रश्न करना लोकतांत्रिक समाज का अच्छा नागरिक बनने में उनकी मदद करेगा। इसके फॉलो–अप के रूप में वे कोई प्रोजेक्ट कार्य कर सकते हैं।
कुछ प्रश्न आपको उम्मीद के अनुरूप ही मिलेंगे, जैसे, ’किस राज्य में टीकाकरण की दर सबसे अधिक है?’ और कुछ अधिक रोचक प्रश्न होंगे, जैसे, ’मां का दूध पिया हुआ शिशु होने और सामान्य से कम वजन वाला बच्चा होने में क्या आपस में कोई संबंध है?’ या ’पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश में टीकाकृत बच्चों की प्रतिशतता में इतना भारी अंतर क्यों है?’
अब और विस्तार से खोज करने के लिए अपने विद्यार्थियों को उनके प्रश्नों में से एक प्रश्न चुनने के लिए कहें। वे इसे गृहकार्य के के रूप में कर सकते हैं। उन्हें ऐसा प्रश्न चुनने के लिए प्रोत्साहित करें जिसका उत्तर देना उनकी स्थितियों के अनुरूप हो। उदाहरण के लिए, यदि इंटरनेट तक उनकी पहुंच है, तो किसी भिन्न प्रश्न चुनेंगे और यदि वे लाइब्रेरी, टीवी, रेडियो या परिवार के सदस्यों पर निर्भर हैं तो उसके अनुरूप भिन्न–भिन्न प्रश्न चुनेंगे।
प्रश्न पूछने का अत्यधिक महत्व है। अधिकांश शिक्षक बड़ी मात्रा में पूर्ण कक्षा शिक्षण करते हैं। ध्यानपूर्वक और विचारपूर्वक प्रश्न पूछना पूरी कक्षा के सत्रों को संवादमूलक और लाभदायक बना सकता है। यथासंभव अधिकतम विद्यार्थियों को शामिल करना, अपने विद्यार्थियों को सोचने के लिए प्रेरित करने वाले सवाल पूछना और उनके उत्तरों को ध्यानपूर्वक सुनना ही सर्वाधिक महत्वपूर्ण है।
इस इकाई में आपने जो तकनीकें सीखी हैं, वे सभी विषयों में काम आएँगी।
शिक्षक अपने विद्यार्थियों से हर समय प्रश्न पूछते है। प्रश्नों का तात्पर्य होता है कि शिक्षक सीखने, और अधिक सीखने में अपने विद्यार्थियों की मदद कर सकें। एक अध्ययन (हैस्टिंग्ज, 2003) के अनुसार, शिक्षक औसत रूप से अपना एक तिहाई समय विद्यार्थियों से प्रश्न पूछने में बिताते हैं। पूछे गए प्रश्नों में से, 60 प्रतिशत ने तथ्यों का स्मरण दिलवाया और 20 प्रतिशत प्रक्रियागत थे (हैटी, 2012)। इन प्रश्नों के अधिकांश उत्तर या तो सही थे या गलत। लेकिन क्या ऐसे प्रश्न पूछने भर से, जो या तो सही हैं या गलत, सीखने को बढ़ावा मिलता है?
प्रश्न कई अलग–अलग प्रकार के होते हैं जो विद्यार्थियों से पूछे जा सकते हैं। शिक्षक जो उत्तर और परिणाम चाहता है, उसी के अनुसार तय होता है कि शिक्षक को किस प्रकार के प्रश्नों का उपयोग करना चाहिए। शिक्षक विद्यार्थियों से सामान्यतः पर इसलिए प्रश्न पूछते हैं जिससे–
प्रश्न पूछने का उपयोग सामान्यतः पर यह पता लगाने के लिए किया जाता है कि विद्यार्थी क्या जानते हैं? इसलिए उनकी प्रगति के आकलन के लिए यह महत्वपूर्ण है कि प्रश्नों का उपयोग प्रेरित करने, विद्यार्थियों के विचार–कौशल को बढ़ाने और जिज्ञासु मस्तिष्क विकसित करने के लिए भी किया जा सकता है। इन्हें दो वृहद श्रेणियों में बांटा जा सकता हैः
खुले प्रश्न विद्यार्थियों को पाठ्यपुस्तक–आधारित, शाब्दिक उत्तरों से आगे जाकर सोचने के लिए प्रोत्साहित करते हैं, इस तरह उत्तरों की एक श्रृंखला सामने लाते हैं। ये विषयवस्तु के बारे में विद्यार्थियों की समझ का आकलन करने में भी शिक्षक की मदद करते हैं।
अनेक शिक्षक प्रश्न के उत्तर जानने के लिए विद्यार्थियों को एक सेकंड से भी कम समय देते हैं और प्रायः स्वयं ही प्रश्न का उत्तर दे देते हैं या प्रश्न को दूसरे शब्दों में रख देते हैं (हैस्टिंग्ज, 2003)। विद्यार्थियों के पास केवल प्रतिक्रिया करने का समय होता है – सोचने का समय नहीं होता! यदि आप उत्तर की अपेक्षा करने से पहले चंद सेकंड प्रतीक्षा कर लें, तो विद्यार्थियों को सोचने का समय मिल जाएगा। इसका विद्यार्थियों की उपलब्धि पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। प्रश्न पूछने के बाद प्रतीक्षा करने से बढ़ती है–
आप दिए जाने वाले उत्तरों को जितने अधिक सकारात्मक ढंग से ग्रहण करेंगे, विद्यार्थी उतना ही अधिक सोचने का प्रयास जारी रखेंगे। गलत उत्तरों और गलत धारणाओं में सुधार सुनिश्चित करने के कई तरीके हैं, और यदि एक विद्यार्थी के मन में गलत विचार है, तो आप यकीन कर सकते हैं कि कई और विद्यार्थियों के मन में भी होगा। आप नीचे लिखे प्रयास कर सकते हैं–
सभी उत्तरों को ध्यानपूर्वक सुनकर और विद्यार्थियों को और अधिक समझाने के लिए कहकर सम्मान दें। यदि आप सभी उत्तरों को, चाहे वे सहीं हों या गलत, और अधिक समझाने के लिए कहेंगे, तो कोई गलती होने पर विद्यार्थी स्वयं ही उसे सुधार लेंगे। इस तरह आप एक सोचने वाली कक्षा का विकास करेंगे और आप वास्तव में जान सकेंगे कि आपके विद्यार्थियों ने क्या सीखा है? और इससे आगे कैसे बढ़ना है? यदि गलत उत्तरों के परिणामस्वरूप अपमान और दंड मिलता है, तो आपके विद्यार्थी और भी शर्मिंदगी तथा उपहास का पात्र बनने के भय से कोशिश करना बंद कर देंगे।
यह महत्वपूर्ण है कि आप प्रश्न पूछने के ऐसे क्रम का पालन करने का प्रयत्न करें, जो सही उत्तरों के साथ समाप्त न होता हो। सही उत्तरों का पुरस्कार ऐसे फॉलो–अप प्रश्नों के रूप में देना चाहिए जो ज्ञान को बढ़ाएं और विद्यार्थियों के लिए शिक्षक के साथ जुड़ने का अवसर प्रदान करें। आप ऐसा, यह पूछकर कर सकते हैं–
अपने उत्तर के बारे में और अधिक गहराई तक जाकर सोचने में विद्यार्थियों की मदद करना (और इस तरह उत्तरों की गुणवत्ता को बेहतर बनाना) आपकी भूमिका का महत्वपूर्ण हिस्सा है। नीचे लिखे कौशल विद्यार्थियों की और अधिक उपलब्धि प्राप्त करने में मदद करेंगे।
शिक्षक होने के नाते, यदि आपको अपने विद्यार्थियों से रोचक और खोजी उत्तर निकलवाने हैं, तो आपको प्रेरक और चुनौतीपूर्ण प्रश्न पूछने होंगे। आपको उन्हें सोचने के लिए समय देना होगा और आप आश्चर्य में पड़ जाएंगे कि आपके विद्यार्थी कितना अधिक जानते हैं और उनके सीखने को आगे बढ़ाने में आप कितनी भलीभाँति मदद कर सकते हैं।
याद रखिए, प्रश्न पूछने का संबंध उससे नहीं है जो शिक्षक जानता है, बल्कि उससे है जो विद्यार्थी जानते हैं। यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि आपको कभी भी स्वयं अपने प्रश्नों का उत्तर नहीं देना चाहिए! आखिरकार, यदि विद्यार्थी जानते हैं कि कुछ सेकंड की खामोशी के बाद प्रश्नों का उत्तर आप उन्हें दे ही देंगे, तो उत्तर देने के लिए उनका प्रोत्साहन भला कैसे होगा?
यहां कुछ रणनीतियाँ बताई गई हैं जिन्हें आप अपनी कक्षा में प्रश्न पूछने के लिए और विद्यार्थियों के उत्तरों पर प्रतिक्रिया देने के लिए उपयोग में ला सकते हैं।
विद्यार्थियों से अपने हाथ उठाने के लिए कहा जाता है ताकि पता चले सके कि कौन–कौन स्वेच्छा से उत्तर देना चाहेगा। इसमें सोचने का समय सामान्यतः बहुत कम होता है और यदि विद्यार्थी हाथ ऊपर उठाने की बजाय जोर से बोलकर उत्तर बता देते हैं, तो दूसरे विद्यार्थियों के लिए सोचने का समय और भी कम हो जाता है। इस पद्धति में भागीदारी कम होती है। तथा वही विद्यार्थी स्वेच्छा से उत्तर देना नहीं चाहते हैं। विद्यार्थी जान लेते हैं कि यदि वे अपना हाथ नहीं उठाएँगे तो उनसे नहीं पूछा जाएगा। शिक्षकों के इस पद्धति को पसंद करने का एक कारण यह है कि इससे विद्यार्थियों के ऊपर कोई दबाव नहीं आता। केवल उन्हीं विद्यार्थियों को उत्तर देना पड़ता है जो देना चाहते हैं।
यदि बंद प्रश्नों के साथ इस पद्धति का उपयोग किया जाए, तो संवाद और फीडबैक के अवसर सीमित हो जाते हैं, क्योंकि जो लोग स्वेच्छा से हाथ उठाते हैं। वे संभावित रूप से वही होते हैं जो सही उत्तर जानते हैं।
विद्यार्थियों को प्रश्न का उत्तर देने के लिए शिक्षक द्वारा नामित किया जाता है। इसमें फायदा यह है कि सोचने का समय बढ़ जाता है। शिक्षक प्रश्न पूछता है और ठहर जाता है, इस तरह विद्यार्थियों को सोचने के लिए मौका मिलता है। फिर शिक्षक प्रश्न का उत्तर देने के लिए किसी एक विद्यार्थी का नाम पुकारता है। इससे भी सहभागिता बढ़ती है क्योंकि शिक्षक प्रायः उन लोगों को चुनेगा जो स्वेच्छा से उत्तर देने के लिए अनिच्छुक हैं। यद्यपि, इससे विद्यार्थी असहज महसूस कर सकते हैं और शिक्षक भी इस तकनीक से असहज महसूस करने वाले विद्यार्थियों की मदद करने के उद्देश्य से प्रश्नों की चुनौती को सीमित रखने के लोभ में पड़ सकते हैं।
प्रश्न उछालना
जब कोई विद्यार्थी किसी प्रश्न का उत्तर दे देता है, तब यह बताने की बजाय कि वह उत्तर सही है या गलत, शिक्षक किसी और को उत्तर देने के लिए कहता है। उदाहरण के लिए, ’संजय, तुम क्या सोचते हो? दित्ता, क्या तुम इसमें कुछ जोड़ सकते हो?’
यह भागीदारी के स्तर को बढ़ा देता है और विद्यार्थियों को संभव उत्तरों के बारे में कुछ और सोचने का मौका देता है। यह कक्षा में संवाद को भी बढ़ा देता है और शिक्षक को और अधिक अपेक्षा करने वाले या अधिक लंबे उत्तर की मांग करने वाले प्रश्न पूछने का मौका दे देता है। जिस व्यक्ति की तरफ प्रश्न ’उछाला’ जाता है, वह एक स्वैच्छिक या एक नामित उत्तरदाता हो सकता है।
प्रश्नों का उत्तर देने के लिए विद्यार्थी छोटे समूहों या जोड़ियों में काम करते हैं। विद्यार्थी किसी विचारोत्तेजक प्रश्न का उत्तर देने के लिए या किसी लघु कार्य को पूरा करने के लिए छोटे समूहों में या जोड़ियों में काम करते हैं। शिक्षक फिर समूह के भीतर एक स्वैच्छिक व्यक्ति को उत्तर देने की अनुमति देते हुए बारी–बारी से प्रत्येक समूह को उत्तर का अंश बताने के लिए कहता है। उदाहरण के लिए, ’किस प्रकार की चीजों के कारण बीमारियाँ पैदा होती हैं? क्या तुम मुझे बीमारी होने का एक कारण बता सकते हो?’ फिर शिक्षक एक और कारण पूछने के लिए दूसरे समूह के पास चला जाएगा।
विकल्प के रूप में, शिक्षक चर्चा से पहले ही एक व्यक्ति को नामित भी कर सकता है। नामित विद्यार्थी अपने समूह की ओर से उत्तर देता है, लेकिन उनके पास बाकी समूह के साथ बातचीत करने का मौका भी होता है ताकि वे अपने उत्तर के बारे में आश्वस्त हो सकें।
इस पद्धति से अत्यधिक भागीदारी को बढ़ावा मिलता है। इससे शिक्षक चुनौतीपूर्ण प्रश्न पूछ पाता है और सोचने के लिए काफी समय देता है। चूंकि प्रश्नों के अधिक चुनौतीपूर्ण होने की संभावना होती है, इसलिए यह बेहतर संवाद और फीडबैक के अवसर भी खोल देता है।
विचारोत्तेजक प्रश्न पर चर्चा के लिए, और एक दूसरे के उत्तरों का मूल्याँकन करने के लिए विद्यार्थी समूहों में काम करते हैं। उदाहरण के लिए, शिक्षक एक ऐसा प्रश्न पूछ सकता है जिसकी अलग–अलग व्याख्याएँ संभव हैं, या जिसके कई संभावित उत्तर हैं (हम बीमारी को किस प्रकार से रोक सकते हैं?)। शिक्षक चर्चा का निरीक्षण करेगा (क्या सभी के कोई न कोई उत्तर हैं? क्या आपको और समय चाहिए?) और फिर वे अपने समूह का उत्तर देने के लिए एक व्यक्ति को नामित करेंगे। शिक्षक उत्तर को, उसका मूल्याँकन किए बगैर, दर्ज करेगा और फिर दूसरे समूह से उनका उत्तर पूछेगा। जब शिक्षक के पास प्रश्न के अनेक उत्तर हो जाएंगे, तब वह एक समूह से उन उत्तरों पर टिप्पणी करने के लिए कहेगा (क्या आप इन सभी उत्तरों से सहमत हैं? अगर नहीं, तो क्यों नहीं?), या वे एक फॉलो–अप प्रश्न पूछेंगे (इनमें से कौन सी विधि सबसे प्रभावी या क्रियान्वयन में सबसे आसान हो सकती है?)।
इस पद्धति में अत्यधिक भागीदारी निहित है और यह आपके विद्यार्थियों को अपने उत्तरों के बारे में सोचने के लिए बहुत समय देती है। यह संवाद को भी बढ़ावा देती है, और यदि प्रश्न पर्याप्त चुनौतीपूर्ण हों तो अपेक्षाकृत ’सुरक्षित’ वातावरण में ज्यादा ऊंचे दर्जे के चिंतन को बढ़ावा देती है। जिन विद्यार्थियों को कार्य कठिन जान पड़ता है, वे बेनकाब नहीं होते, बल्कि विचारों के बारे में चिंतन करने के लिए प्रोत्साहित होते हैं।
शिक्षक एक प्रश्न पूछता है और विद्यार्थियों को उत्तर के बारे में स्वतः सोचने के लिए समय दे दिया जाता है। फिर वे जोड़ियों मे उत्तरों की तुलना करते हैं और एक दूसरे के उत्तरों पर फीडबैक देते हैं। वे उत्तर के बारे में कुछ ऐसा कहते हैं जो अच्छा है और कुछ ऐसा भी कहते हैं जिसमें सुधार किया जा सकता है। शिक्षक फिर सही उत्तर देता है या उत्तर देने के लिए एक जोड़ी को नामित करता है। प्रश्नों के बारे में सोचने में प्रत्येक को भागीदारी करनी होती है। इसमें सोचने और चर्चा करने के लिए काफी अवसर होते हैं। एक बार फिर, अत्यधिक अपेक्षा करने वाले या चुनौतीपूर्ण प्रश्नों के लिए इस्तेमाल करने के लिए यह अच्छी पद्धति है।
(स्रोतः पैटी, 2009 पर आधारित)
यह जानकारी इंटरनेट पर उपलब्ध है।
राज्य | पांच महीनों तक पूरी तरह मां के दूध पर पलने वाले बच्चों का प्रतिशत | पांच वर्ष से कम उम्र के टीकाकृत बच्चों का प्रतिशत | तीन वर्ष से कम उम्र के कम वजन वाले बच्चों का प्रतिशत |
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उत्तर प्रदेश | 51 | 23 | 47 |
बिहार | 28 | 33 | 58 |
मध्य प्रदेश | 22 | 40 | 60 |
पश्चिम बंगाल | 59 | 64 | 44 |
ओडिशा | 50 | 52 | 44 |
असम | 63 | 31 | 40 |
कर्नाटक | 58 | 55 | 41 |
यदि आपको इंटरनेट सुलभ है, तो अन्य विषयों से संबंधित आंकड़ों की खोज करें, जिसका उपयोग विद्यार्थियों के प्रश्नों को उकसाने के लिए किया जा सके।
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वीडियो (वीडियो स्टिल्स सहित): भारत भर के उन अध्यापक शिक्षकों, मुख्याध्यापकों, अध्यापकों और विद्यार्थियों के प्रति आभार प्रकट किया जाता है जिन्होंने उत्पादनों में दि ओपन यूनिवर्सिटी के साथ काम किया है।