शिक्षण में प्रोजेक्ट कार्य एक सक्रिय पद्धति है। आपसी सहयोग से विद्यार्थियों को विज्ञान के किसी भी पहलू को, अधिक गहराई से सीखने का अवसर मिलता है। प्रोजेक्ट–आधारित शिक्षा में विद्यार्थी शिक्षण प्रक्रिया के केंद्र में होते हैं। विद्यार्थी कोई भी काम कर के सीखते हैं और जब वे प्रोजेक्ट का काम करते हैं तब वे ज्ञान रचते हैं जो एनसीएफ (2005) के उद्देश्यों में से एक यह भी है। विज्ञान में प्रोजेक्ट कार्य करने से विद्यार्थियों को वास्तविक वैज्ञानिकों जैसा काम करने का मौका मिलता है।
अनुसंधान से पता चला है कि प्रोजेक्ट–आधारित शिक्षा का उपयोग करने वाले विद्यार्थी ज्ञान को अधिक समय तक बनाए रख सकते हैं (थॉमस, 2000)। इससे विद्यार्थियों में जानकारी एकत्रित करने और उसे प्रसंस्करित करने के कौशल, प्रस्तुतिकरण कौशल, आत्मविश्वास और स्वावलंबन विकसित होते हैं। एक प्रतिस्पर्धी वैश्विक दुनिया में, ये कौशल बहुत महत्वपूर्ण हैं।
इस इकाई में कुछ ऐसी शिक्षण रणनीतियों से आपका परिचय कराया जाएगा जिनके द्वारा आप विद्यार्थियों के साथ प्रोजेक्ट कार्य करने में आत्मविश्वास महसूस करेंगे। प्रोजेक्ट कार्य का प्रबंधन ठीक प्रकार से करने के लिये शिक्षकों को एक सहायक की भूमिका निभानी होती है। इन रणनीतियों से आपको प्रभावी सहायक बनने के लिये क्रियात्मक मदद मिलेगी।
कक्षा X के विषय ’ऊर्जा के स्त्रोत’ से उदाहरण ले कर इन नीतियों को समझाया गया है, लेकिन ये विचार विज्ञान पाठ्यचर्या के अन्य भागों में भी उपयोग में लाए जा सकते हैं।
यह पद्धति महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे विद्यार्थियों को खुद काम करने का मौका मिलता है। उन्हें जानकारी को इकट्ठा करके, उस पर काम करके, उन्हें क्रमवार प्रसंस्कारित करते हुए व्यवस्थित करना होता है। उन्हें निर्णय लेने होंगे कि क्या शामिल करना है? क्या शामिल नहीं करना है? और जानकारी को कैसे प्रस्तुत करना है? ये वे कौशल हैं जिनकी आवश्यकता उन्हें स्कूल छोड़ने के बाद भी होती है।
प्रोजेक्ट्स, विद्यार्थियों को उनके चुने हुए विषय के ’विशेषज्ञ’ बनने का भी अवसर देते हैं। होशियार विद्यार्थियों को प्रोजेक्ट देकर उनसे बेहतर कार्य या सुदृढ़ीकरण गतिविधियाँ कराई जा सकती हैं। इससे उन्हें आत्मविश्वास मिलेगा जिससे उन्हें विज्ञान सीखने में लाभ होगा। प्रोजेक्ट को विज्ञान की पाठ्यचर्या के किसी विषय पर आधारित होना चाहिये, लेकिन इसमें विज्ञान के ही अन्य विषयों के पहलू भी हो सकते हैं। प्रोजेक्ट एक से अधिक पाठों पर आधारित भी हो सकता है जिसमें गणित या भूगोल, यहां तक कि अंग्रेज़ी भी शामिल हो सकते हैं। इस प्रकार, प्रोजेक्ट कार्य से आपके विद्यार्थियों को विभिन्न विषयों के आपसी संबंध जोड़ने में मदद मिलेगी जिससे उनकी विज्ञान में और विज्ञान की उनके जीवन में प्रासंगिकता की समझ बढ़ेगी।
विचार के लिए रुकें प्रोजेक्ट कार्य के लाभ प्राप्त करने के लिये, आपको सावधानी से योजना बनानी होगी। प्रोजेक्ट कार्य को सफल बनाने के लिये आपके विचार से आप क्या कर सकते हैं? |
यह बहुत महत्वपूर्ण है कि हम प्रोजेक्ट कार्य की तैयारी कैसे करते हैं? और उसका परिचय कैसे कराते हैं? विद्यार्थियों को प्रेरित करने और उन्हें जोड़े रखने के लिये उनकी विषय में दिलचस्पी होनी चाहिये? इसलिये हमें उनको प्रोजेक्ट में अनुसंधान करने के लिये उन्हें कुछ प्रश्न देना चाहिए। स्कूली पाठ्यक्रम के अनुसार उन्हें एक ही विषय पर प्रोजेक्ट कार्य को केन्द्रित करना चाहिए, लेकिन इसमें लचीला रूख अपनाते हुए इसे एक से अधिक शीर्षकों या विषयों पर आधारित कर सकते हैं। प्रोजेक्ट कार्य के मुख्य लाभ हैं कि विद्यार्थियों का कौशल और आत्मविश्वास बढ़ जाता है।
आपको यह भी सुनिश्चित करना होता है कि उनके पास जो जानकारी है और उनसे की जा रही अपेक्षाएं स्पष्ट हैं, जैसे कि प्रोजेक्ट की अवधि क्या होगी? और उसका मूल्यांकन कैसे होगा? इस इकाई के शेष भाग से आपको अपने प्रोजेक्ट कार्य को सफलतापूर्वक चलाने में मदद मिलेगी।
प्रोजेक्ट की शुरूआत अच्छी तरह करना महत्वपूर्ण है। इस भाग में दो गतिविधियाँ हैं जिनसे आप ऐसा कर सकेंगे। पहला– जिसमें दिलचस्पी बनाने के लिये एक समारोह आयोजित करना शामिल है। दूसरा– जिसमें अपनी कक्षा के साथ उन संभावित प्रश्नों पर चर्चा करना शामिल है जिन पर वे अनुसंधान करेंगे।
प्रायः प्रोजेक्ट का आरंभ किसी सामान्य पाठ की तरह ही होता हैः शिक्षक कुछ कागज या किताबें देते हैं और वे विद्यार्थियों से कहते हैं कि वे एक प्रोजेक्ट करने वाले हैं। अपने विद्यार्थियों के साथ प्रोजेक्ट शुरू करने के अन्य दिलचस्प और आकर्षक तरीके भी हैं। किसी प्रोजेक्ट की अच्छी शुरूआत एक अच्छा ख़्याल है। इससे आपके विद्यार्थियों की दिलचस्पी बनती है और वे महत्वपूर्ण और रचनात्मक तरीके से सोचना शुरू कर देते हैं।
प्रोजेक्ट का आरंभ बहुत जटिल होना या उसके लिये बहुत सी योजना बनाना आवश्यक नहीं है। यह कक्षा में चर्चा करने, या अपने विद्यार्थियों को कोई विचार करने योग्य चित्र दिखाने जैसा आसान भी हो सकता है। आप उन्हें किसी रेडियो कार्यक्रम को या आपके द्वारा डाउनलोड की हुई किसी ऑडियो फाइल को सुनने के लिये कह सकते हैं। (यहाँ आप अपने मोबाइल फोन का इस्तेमाल कर सकते हैं यदि उसे इंटरनेट से जोड़ा जा सके।)
जिन प्रारंभिक वृतांतो को लिये अधिक योजना बनाने की आवश्यकता होगी, वे हो सकती हैं:
स्थानीय कारखाने, इमारत, कॉलेज, बस्ती आदि की यात्रा
इस प्रकार की प्रारंभिक घटनाओं के लिये ज्यादा तैयारी और योजना बनानी होती है। इसका विद्यार्थियों पर अधिक गहरा असर हो सकता है। इससे सभी के लिये बेहतर प्रोजेक्ट अनुभव और अधिक सीखा जा सकता है।
इस गतिविधि से आपको अपनी कक्षा के साथ एक प्रोजेक्ट की तैयारी करने और उसे करने में मदद मिलेगी। कैसे निर्णय करें कि, सुझाए गए में से आपको पसंद है, या किसी अन्य के बारे में सोचें जो इतनी ही प्रभावी हो। अपनी कक्षा के साथ ऊर्जा के स्त्रोतों पर एक प्रोजेक्ट शुरू करने के लिये प्रारंभिक घटना का उपयोग आप अनोखे और रोमांचक तरीके से कैसे करेंगे, इसकी योजना बनाएं। आप कोई भी प्रारंभिक आयोजन चुनें, याद रखें कि आप वह करने जा रहे हैं जो आप आमतौर पर कक्षा के साथ नहीं करते। विद्यार्थियों के लिये यह अनोखा और यादगार होना चाहिये। याद रखें, प्रारंभिक आयोजन के अन्त में आपको अपने विद्यार्थियों में प्रोजेक्ट के लिये जोश भरना है। |
विचार के लिए रुकें
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ऐसे प्रोजेक्ट जो प्रश्नों के इर्द–गिर्द घूमते हैं, उनसे आपके विद्यार्थियों की उत्सुकता बढ़ेगी। एक अच्छा प्रश्न प्रोजेक्ट को एक स्पष्ट, छोटे और दमदार कथन के रूप में संक्षिप्त करता है। इसका संबंध अधिगम प्राप्ति से होना चाहिये। उदाहरण के लिये कुछ प्रश्न हैं–
’आपके जूतों के तलों पर धारियाँ क्यों होती हैं?’
या ये किसी अमूर्त अवधारणा के बारे में हो सकते हैं–
गतिविधि 2 से आपको अपनी कक्षा के साथ प्रोजेक्ट के लिये प्रश्न विकसित करने में मदद मिलेगी। आप गतिविधि प्रोजेक्ट को शुरू करने के लिये कर सकते हैं, या आप इसे शुरूआत के बाद कर सकते हैं।
यह गतिविधि आपके लिए अपनी कक्षा के साथ करने के लिए है। यदि आपने अपनी कक्षा के साथ पहले कभी विचार मंथन नहीं किया है, तो विचार मंथन की इकाई को पढ़ लेना मददगार होगा।
अपनी कक्षा से कहें कि वे पाठ्यपुस्तक के अध्याय ऊर्जा के स्रोत से संबंधित एक प्रोजेक्ट शुरू करने जा रहे हैं।
अपने विद्यार्थियों को अध्याय को सावधानी से पढ़ने के लिये 15 मिनट दें। उनसे कहें कि यह उन्हें स्वयं ही करना है।
विद्यार्थियों को दस मिश्रित क्षमता और लिंग वाले समूहों मे व्यवस्थित करें। ये समूह पहले ही बना लें। प्रत्येक समूह के विद्यार्थियों के नाम पढ़कर सुनाएं और कक्षा में प्रत्येक समूह को बैठने की जगह बताएं। विद्यार्थियों को अपने समूह में जाने के लिये समय दें।
प्रत्येक समूह को एक बड़ा कोरा कागज दें। समूह को एक लेखक नामित करने के लिये कहें।
लेखक को कागज पर बीच में बड़े अक्षरों में ’ऊर्जा के स्रोत’ लिखने को कहें।
सभी समूहों से कहें कि उनके पास दस मिनट हैं जिसमें उन्हें ऊर्जा के स्रोत पर वे सारे प्रश्न लिखने हैं जो वे सोच सकें। वे पाठ्यपुस्तक का और इस विषय पर अपने पूर्व ज्ञान का उपयोग कर सकते हैं।
जब आपके पास प्रश्नों का एक सेट बन जाए , तब आप क्या करेंगे ? यह इस पर निर्भर करेगा कि आपको प्रोजेक्ट विद्यार्थियों से समूह में करवाना है या प्रत्येक से अलग – अलग। उन्हें एक प्रश्न को जाँचने के लिये चुनने का या किसी दूसरे प्रश्न पर सोचने का मौका दिया जा सकता है। उन्हें आप जाँच करने के करने के लिये प्रश्न को वोट देने के लिये कह सकते हैं।
अपने प्रोजेक्ट को ठीक तरह से करने के लिये आपके विद्यार्थियों को कुछ संसाधनों की आवश्यकता होगी। विद्यार्थियों के प्रोजेक्ट के कक्षा की पाठ्यपुस्तकें, स्कूल पुस्तकालय से संदर्भ पुस्तकें और समाचार पत्र व पत्रिकाएं विशिष्ट संसाधन होते हैं। हो सकता है कि सबसे ज्यादा मददगार संसाधन इंटरनेट पर या सीडी–रोम से मिलें। ये आपको, आपके स्कूल में शायद उपलब्ध न हों, इसलिए आपको अपने विद्यार्थियों के लिये इन्हें पास के शहर में खोजना होगा। इसके बजाय, आप अपने विद्यार्थियों के लिये कुछ मूलभूत महत्वपूर्ण तथ्यों की शीट्स बना सकते हैं। Google Earth जैसे कुछ Apps अलग–अलग प्रोजेक्ट्स में काफी मदद कर सकते हैं।
एक अच्छे प्रोजेक्ट के लिये आपको पहले से योजना बनानी होती है। प्रोजेक्ट शुरू करने से कई सप्ताह पहले से इंटरनेट, समाचार पत्र और पत्रिकाओं से जानकारी एकत्रित करना शुरू कर दें। एक फोल्डर बना लें जिसमें आप कुछ सप्ताह तक जानकारी जोड़ते रहें। इसमें आप अपने विद्यार्थियों की मदद भी ले सकते हैं। अपनी कक्षा में लेबल लगा हुआ प्रोजेक्ट के बॉक्स रखें और अपने विद्यार्थियों को संबंधित सामग्री उसमें डालते रहने के लिए प्रोत्साहित करें। अपने स्कूल के अन्य शिक्षकों के साथ सहयोग, साझेदारी और अदला–बदली करें। पता करें कि क्या आप अधिक साधन–संपन्न स्कूलों के साथ सहयोग कर सकते हैं? कभी–कभी वे आपको पाठ्यपुस्तकें उधार देने पर सहमत हो सकते हैं।
यदि, आपका कोई मित्र या सहकर्मी आपके चुने हुए विषय का विशेषज्ञ है, तो आप उनसे कुछ प्रश्न पूछ सकते हैं और उनकी बातचीत को अपने मोबाइल पर रिकॉर्ड कर सकते हैं। आपके विद्यार्थी इसे सुनेंगे और हो सकता है अपने प्रोजेक्ट में इसमें से कुछ जानकारी का उपयोग करें।
प्रत्येक वर्ष के विद्यार्थियों के प्रोजेक्ट्स संभाल कर रखें। ये बाद के वर्षों के विद्यार्थियों के लिये वैज्ञानिक जानकारी प्रदान करने वाले बहुमूल्य संसाधन बन सकते हैं। पिछले वर्षों के प्रोजेक्ट्स से दीवारों की सजावट शानदार तरीके से की जा सकती है। जो आपके विद्यार्थियों के लिये प्रेरणादायी हो सकते हैं। (मूल्यांकन के मापदंडों पर चर्चा इकाई में बाद में होगी।) अधिक जानकारी के लिये संसाधन 1 ’स्थानीय संसाधनों का उपयोग करना’ पढ़ें।
विद्यार्थियों के सामाजिक और सहयोगी कौशलों को विकसित करने के लिये, विद्यार्थियों के छोटे समूहों से प्रोजेक्ट्स कराना सही होता है (चित्र 1), यद्यपि इन्हें जोड़ियों में या अकेले भी किया जा सकता है। किसी प्रोजेक्ट टीम के लिये चार विद्यार्थी सामान्यतः सबसे अच्छे होते हैं। इससे बड़े समूहों में प्रत्येक विद्यार्थी का योगदान बहुत कम होता है और उनके लिये यह सहायक नहीं होता है। इससे छोटे समूहों में प्रत्येक विद्यार्थी को करने के लिये बहुत अधिक काम होता है। लेकिन अंत में अपनी कक्षा के आकार, उपलब्ध संसाधनों और प्रोजेक्ट की प्रकृति के आधार पर आपको निर्णय लेना होता है।
यदि, आपके विद्यार्थियों के लिये नया नहीं हो मिश्रितलिंगी समूह समलिंगी समूहों की तुलना में बेहतर होते हैं। मिश्रित क्षमता के समूहों के लिये भी यह सच है। सहयोग नहीं करने वाले विद्यार्थियों को एक ही समूह में न रहें। आप इस पर भी विचार कर सकते हैं कि विद्यार्थी रहते कहाँ हैं। यदि आप अपने विद्यार्थियों से अपेक्षा कर रहे हों कि वे स्कूल के बाहर भी प्रोजेक्ट पर काम करेंगे, तो पास–पास रहने वाले विद्यार्थियों को एक समूह में रखना मददगार होगा। आपको सुनिश्चित करना होगा कि जिन विद्यार्थियों को पढ़ने या लिखने में कठिनाई आती है उन्हें इन कौशलों में निपुण विद्यार्थियों के समूह में रखें। सर्वोत्तम समूह वह होगा जिसमें विद्यार्थियों के कौशल आपस में पूरक हों और जहाँ पर विद्यार्थी एक दूसरे की सहायता करते हों। पाठ से पहले ही आप समूह बना लें और फिर समूह के नामों को पढ़कर सुनाएं या कक्षा की दीवार, नोटिस बोर्ड पर समूहों की सूची लगा दें।
समूह तभी सही काम करते हैं जब प्रत्येक विद्यार्थी को एक निश्चित भूमिका दी गई हो। उस प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिये वास्तविक संसार में जिन भूमिकाओं की आवश्यकता हो वही भूमिकाएं दी जानी चाहिएं। नेता, अनुसंधानकर्ता या रिकॉर्डर जैसी भूमिकाओं के लिये आपको विद्यार्थियों को सुझाव देने होंगे। प्रत्येक विद्यार्थी उस विषय के एक पहलू पर जानकारी जुटाए और फिर सारे साथ मिल कर उसका विश्लेषण करें और प्रस्तुतिकरण करें।
शिक्षिका सीमा अपने विद्यार्थियों को प्रोजेक्ट समूहों में बाँटती हैं।
मैंने निर्णय लिया कि कक्षा X को ऊर्जा के स्त्रोत के अध्याय पर एक प्रोजेक्ट पर काम करना होगा। इससे काफी अपेक्षाएं थी, क्योंकि यदि सभी उपस्थित हों, तो कक्षा में 80 विद्यार्थी हैं। पाठ्यपुस्तक में अच्छा अध्याय है, लेकिन हम एक बड़े शहर के बाहरी हिस्से में रहते हैं, इसलिये यदि इंटरनेट चाहिये तो किसी इंटरनेट कैफे में जाना होगा। मैंने कक्षा में बॉक्सों में जानकारी इकट्ठा करनी शुरू की और अपने विद्यार्थियों से भी जानकारी जमा करने के लिए कहा। एक सप्ताहांत में मैंने इंटरनेट से कुछ जानकारी प्रिंट कर ली और उसे बॉक्सों में रखा।
मैंने अपने विद्यार्थियों को चार के समूहों में बाँटा। मैंने लड़कों और लड़कियों को एक साथ रखा, और यह भी ध्यान रखा कि वे और उनके मित्र कहाँ रहते हैं। मैंने पढ़ाई में अच्छे और कमजोर दोनों को साथ रखा और पक्का किया कि कमजोर विद्यार्थियों के साथ समूह में उनके मित्र रहें जो उनकी मदद कर सकें। इसमें मुझे बहुत समय लगा और काम शुरू होने पर मुझे कुछ विद्यार्थियों की अदला–बदली करनी पड़ी । लेकिन मैंने ये चुपचाप किया क्योंकि मैं नहीं चाहती थी कि उन्हें पता चले कि समूह बदले जा सकते हैं! लड़के और लड़कियों की संख्या समान नहीं थी, तो दो लड़कियां ऐसे समूहों में पहुँचीं जहां तीन लड़के थे। वे खुश नहीं थीं, सो मैंने एक समूह लड़कों का ही बना दिया और दो लड़कियों को एक साथ रख दिया। मुझे लगता है ऐसा लचीलापन महत्वपूर्ण रहा। मुझे समझ में आया कि प्रोजेक्ट कार्य के लिये समूह बनाना मुश्किल होता है। जब वे काम कर रहे हों तब मैं उन पर सावधानीपूर्वक नजर रखूंगी और पता करूंगी कि कौन विद्यार्थी साथ में अच्छे से काम करते हैं।
प्रोजेक्ट के काम में विद्यार्थियों को लंबे समय तक स्वतंत्र रूप से काम करना होता है। जब तक उन्हें इसकी आदत न हो, तो आपके विद्यार्थियों को अपने समय या काम का प्रबंधन करने में कठिनाई आ सकती है। हो सकता है कि प्रोजेक्ट के अंत में लगे कि कक्षा के कुछ समूहों का प्रोजेक्ट पूरा नहीं हुआ है या कुछ भागों में जल्दबाज़ी की गई है। विद्यार्थियों को समय का प्रबंधन करने में मदद करने के लिये ये कुछ विचार हैं जिससे उनका प्रोजेक्ट समय पर पूरा हो सकता है और काम का स्तर भी बेहतर होगा।
आपको निर्णय करना है कि आप अपने विद्यार्थियों को प्रोजेक्ट पूरा करने के लिये कितना समय देंगे। प्रोजेक्ट के शुरू में ही विद्यार्थियों को यह बता देना चाहिये। अपने विद्यार्थियों के समूहों को आप पहले प्रोजेक्ट की योजना बनाने के लिये कहें। इस योजना में यह दर्शाना होगा कि वे किस प्रकार, सबक दर सबक, प्रोजेक्ट कार्य को बाँटने वाले हैं। इसमें यह भी दर्शाना होगा कि समूह के किस सदस्य को प्रोजेक्ट के किस भाग की जिम्मेदारी दी गई है?
इस योजना को प्रोजेक्ट की प्रगति का रिकॉर्ड करने के जीवंत दस्तावेज़ की तरह उपयोग करें। अपनी कक्षा में एक योजना की दीवार पर लगा दें। जिस पर सारे समूहों की योजनाएं दिखाई जाएं। प्रत्येक कक्षा में समूह अपने किये गए काम पर निशान लगा सकते हैं। प्रत्येक को दिखाई देने वाली जगह पर योजनाएं रखना विद्यार्थियों को बहुत प्रेरणा दे सकता है।
प्रत्येक पाठ में जाँचें कि प्रत्येक समूह कैसी प्रगति कर रहा है? यह जाँच छोटी सी हो सकती है जिसमें उनकी योजना के अनुरूप उनकी प्रगति देखी जाए तथा समस्याओं या मुद्दों पर चर्चा हो।
शिक्षिका सीमा ने अपना प्रोजेक्ट जारी रखा और इस पर विचार किया कि उनकी बड़ी कक्षा के शिक्षण में प्रोजेक्ट दीवार कितनी उपयोगी सिद्ध हुई।
मुझे अपने पिछले अनुभव से पता था जब मैंने प्रोजेक्ट करने की कोशिश की थी, सारा माहौल गड़बड़ और शोर भरा हो जाता है, तथा मेरा बहुत समय इधर–उधर दौड़ कर विद्यार्थियों को बताने में लग जाता है कि आगे क्या करें? और जल्दी करें? प्रोजेक्ट की कक्षा के बाद मुझे सरदर्द हो जाता था। मुझे लगता था कि मैं अपने कई विद्यार्थियों से ज्यादा मेहनत कर रही हूं!
इस बार मैंने ऊर्जा के स्रोत के प्रोजेक्ट के प्रबंधन के लिये प्रोजेक्ट दीवार का उपयोग किया। कक्षा में प्रोजेक्ट करवाना अब भी मेहनत का काम था, लेकिन इस बार मुझे लगा कि स्थिति पर मेरा पूरा है। मैंने निर्णय लिया कि इस प्रोजेक्ट को दो सप्ताह दूंगी, क्योंकि इतना ही समय हम एक अध्याय में लगाते हैं। हमने कक्षा और गृह कार्य के समय का उपयोग किया।
अपने विद्यार्थियों को चार के समूहों में बाँटने के बाद, मैंने प्रत्येक समूह को एक ’मैनेजर’ नियुक्त करने के लिए कहा। प्रत्येक कक्षा की शुरूआत में, समूह प्रोजेक्ट दीवार के पास जाते और अपनी योजना देखते। फिर वे योजना में आज की कक्षा के लिये पूर्व निर्धारित काम वही करने लगते। प्रत्येक कक्षा की शुरूआत में मैं सारे मैनेजरों के साथ एक छोटी–सी पाँच मिनट की बैठक करती और पता लगाती कि प्रत्येक समूह उस कक्षा में क्या करने वाला है? इससे मुझे एक संक्षिप्त विवरण मिला। इसके आधार पर मैं निर्णय करती कि उस कक्षा में किन समूहों पर विस्तार से नजऱ रखनी है? प्रोजेक्ट के दौरान अधिक व्यवस्थित समूहों के साथ मुझे कम बैठकें ही करनी पड़ीं । कम व्यवस्थित समूहों को अधिक बैठकें मिलीं, जिससे मैं उन्हें बेहतर तरीके से दिशा दे सकी।
मैंने महसूस किया कि इस प्रकार की दिशा देने वाली परिस्थिति अधिक नियत्रं ण में रही। मुझे अन्त में अपने विद्यार्थियों को अतिरिक्त समय देना पड़ा, परन्तु प्रोजेक्ट की गुणवत्ता पहले की तुलना में बेहतर रहा। प्रत्येक समूह ने प्रोजेक्ट कार्य अच्छी तरह से किया, इसलिए मैं इसका उपयोग आगे जरूर करूंगी।
प्रोजेक्ट में सिर्फ लिखने का ही काम नहीं होता है। प्रोजेक्ट को पोस्टर, मॉडल, नाटक या कहानी के रूप में भी प्रस्तुत किया जा सकता है। यदि आपके पास कम्प्यूटर हो, तो यह प्रेज़ेंटेशन के रूप में भी हो सकता है। यदि आप विद्यार्थियों ने पोस्टर बनाया हो, तो अपने मोबाइल फोन से उनकी फोटो लेना न भूलें! जिन विद्यार्थियों को पढ़ना और लिखना कठिन लगता है, उनके लिये अन्य प्रारूपों का उपयोग अच्छा है। इससे सभी विद्यार्थियों को खुद को अलग–अलग तरह से व्यक्त करने का मौका मिलता है। इससे उनकी रचनात्मकता बढ़ती है। उपयोग करने के प्रारूप को लेकर विद्यार्थियों को कुछ विकल्प देना विद्यार्थियों के लिये प्रेरक होता है।
श्री सिंह ने अपना कक्षा X को बताया कि उनका ’ऊर्जा के स्रोत’ के प्रोजेक्ट एक प्रेज़ेंटेशन होगा।
पहले जब मैं अपने विद्यार्थियों को प्रोजेक्ट लिखने के लिये कहता था, तो दो बातें होती थीं। लड़कियाँ अपने काम को सुंदर बनाने के लिये ज्यादा समय खर्च कर देती हैं और लड़के जल्दी खत्म करने के अवसर में रहते हैं। इसके अतिरिक्त मैं चाहता था कि वे मुख्य बातों पर ध्यान दें। इस बार मैंने उनसे एक दस मिनट का प्रेज़ेंटेशन बनाने के लिये कहा। मुझे लगा, यदि सभी को एक ही प्रेज़ेंटेशन बनाना होगा, तो सभी के लिये समान अवसर होंगे और उनका दिमाग केंद्रित होगा!
मैं सही था! नियमित प्रगति बैठकों में, मैं प्रत्येक समूह के प्रेज़ेंटेशन पर बनाते समय निगरानी रख पाया। हमने आत्मविश्वास वाले विद्यार्थियों के साथ मैं उनके बोलने की भूमिकाओं का अभ्यास भी किया। मैं समूहों को सलाह भी दे पाया कि क्या शामिल किया जाए? और क्या नहीं? मैंने उन्हें बताया कि मैं उनका समीक्षक मित्र हूं, और मेरा काम है उन्हें इस पर चुनौती देकर उनसे सर्वोत्तम काम करवा लेना।
अलग–अलग प्रेज़ेंटेशन दिलचस्प और जानकारी से भरपरू थे? कोई भी प्रेजेंटेशन ऊबाऊ या दोहराव वाले नहीं थे। एक समूह ने एक रैप गाना शामिल किया और एक अन्य ने एक कविता बनाई। मैंने एक समूह को अपना प्रेज़ेंटेशन किसी बॉलीवुड फिल्म की तरह देने से रोका; इसके बदले उन्होंने एक छोटी नाटिका की। प्रेज़ेंटेशन के दौरान, एक समय तो सारी कक्षा हँस रही थी, दूसरे ही पल हम गहरे विचार में थे। मैं देख सकता था कि प्रत्येक समूह ने अपनी अभिव्यक्ति अलग–अलग तरह से दिया, जबकि वे सभी प्रेज़ेंटेशन के प्रारूप से ही जुड़े थे।
यह नीति अपनाकर मुझे खुशी हुई। शायद अगली बार मैं उन प्रेज़ेंटेशनों का उन्हीं के साथियों द्वारा फिर से आकलन कराऊंगा। अब चूंकि मुझे पता है कि मेरे विद्यार्थी कल्पनात्मक प्रेज़ेंटेशन बना सकते हैं, तो हो सकता है कि मैं उन्हें अपने काम का प्रदर्शन किन्हीं निमंत्रित वास्तविक दर्शकों के सामने करने को कहूं। मुझे नहीं लगता कि अभिभावकों, स्थानीय समुदाय के व्यक्तियों या अन्य शिक्षकों को आमंत्रित करना कठिन होगा।
प्रोजेक्ट के अंत में, समूहों के कार्य का आकलन करना होता है। इसका आकलन खुद करने के बजाय, आप साथियों द्वारा भी आकलन करवा सकते हैं। आप जिस भी विधि को चुनें, यह महत्वपूर्ण है कि सफलता के मानदंड पूर्वनिर्धारित हों और विद्यार्थियों को पहले से पता हो। आप विद्यार्थियों के साथ मिल कर शुरू में ही सफलता के मानदंड निर्धारित कर सकते हैं। इसे इस प्रकार करना बहुत लोकतांत्रिक होगा। यहाँ पर पिछले प्रोजेक्ट्स के उदाहरण उपयोगी हो सकते हैं।
सफलता के मानदंडों को एक पोस्टर पर लिख कर उसे प्रोजेक्ट दीवार पर लगाने से उसे सभी विद्यार्थी काम करते समय देख सकेंगे। इससे उनका ध्यान काम के उस भाग पर केंद्रित होगा जिसका उन्हें श्रेय मिलने वाला है।
यह गतिविधि आपके द्वारा स्वयं या किसी अन्य शिक्षक के साथ किए जाने के लिए है।
जब आपका आत्मविश्वास इस प्रकार काम करने में बनने लगे , तब आप अपनी कक्षा से भी मानदंडों पर निर्णय लेने को कह सकते हैं। उदाहरण के लिये , शिक्षिका सीमा अपने समूह के मैनेजरों से पूछ सकती थीं कि उचित मानदंड क्या होंगे ? या वे अपने मानदंड बता सकती थीं और फिर उनसे इसमें बदलाव के सुझाव मांग सकती थीं। अधिक विवरण के लिये , संसाधन 2 ’ प्रगति और प्रदर्शन का आकलन करना ’ देखें।
प्रभावी प्रोजेक्ट–आधारित शिक्षा के पीछे मुख्य विचार यह है कि वास्तविक जीवन के मुद्दों और समस्याओं का विस्तृत और स्वतंत्र अध्ययन करने में विद्यार्थियों की दिलचस्पी पैदा हो सकती है और मन लग सकता है जो शिक्षण की पारंपरिक पद्धतियों में नहीं होता। जब विद्यार्थी ऐसे किसी अर्थपूर्ण प्रोजेक्ट के साथ जुड़ जाते हैं जो वास्तविक जीवन की किसी चुनौती पर आधारित हो, तब वे अप्रत्यक्ष रूप से, ज्यादा गहराई से सीखते हैं तथा अनेक महत्वपूर्ण सामाजिक जीवन के कौशल विकसित करते हैं।
एक शिक्षक के तौर पर, आपको प्रोजेक्ट–आधारित शिक्षा देने के लिये अपनी सामान्य पद्धतियों में बड़ा बदलाव करना होता है। आपको व्याख्यान देने के बजाय सहायता करनी होती है, और इस सामग्री पर पहले से कोई जानकारी नहीं देनी चाहिये जिससे आपके विद्यार्थी पूरी तरह खुद से करके सीखें। आपकी प्रोजेक्ट–आधारित कक्षाएं देखने–सुनने में बहुत लगेंगी। आपको स्वीकार करना होगा कि आप अपने प्रोजेक्ट के बारे में प्रत्येक बात नहीं जानते हैं। आपके लिये लाभ यह है कि आप भी प्रोजेक्ट के विषय के बारे में कुछ नया सीख सकते है!
अध्यापन के लिए केवल पाठ्यपुस्तकों का ही नहीं बल्कि अनेक शिक्षण संसाधनों का उपयोग किया जा सकता है। इसके लिये यदि आप विभिन्न ज्ञानेंद्रियों (दृष्टि, श्रवण, स्पर्श, गंध, स्वाद) का उपयोग करते हैं, तो विद्यार्थियों के सीखने के अलग–अलग और ज्यादा तरीके मिलेंगे। आपके इर्दगिर्द ऐसे संसाधन उपलब्ध हैं जिनका उपयोग आप कक्षा में कर सकते हैं, और जिनसे आपके विद्यार्थियों में सीखने को बढ़ावा मिलेगा। कोई भी स्कूल शून्य या जरा सी लागत स्वयं के शिक्षण संसाधनों को उत्पन्न कर सकता है। इन सामग्रियों को स्थानीय ढंग से प्राप्त करके, पाठ्यक्रम और आपके विद्यार्थियों के जीवन के बीच संबंध बनाए जाते हैं।
आपको अपने नजदीक ऐसे लोग मिलेंगे जो अलग–अलग विषयों में पारंगत हैं। आपको कई प्रकार के प्राकृतिक संसाधन भी मिलेंगे। इससे आपको स्थानीय समुदाय के साथ संबंध जोड़ने और उसके महत्व को प्रदर्शित करने में मदद मिलेगी। विद्यार्थियों को उनके पर्यावरण की प्रचुरता और विविधता को देखने के लिए प्रोत्साहित करने, तथा सबसे महत्वपूर्ण रूप से, विद्यार्थियों के शिक्षण में समग्र दृष्टिकोण विकसित करने में भी सहायता मिलेगी। इसी प्रकार स्कूल के भीतर और बाहर शिक्षा को अपनाने की ओर काम करने में सहायता मिल सकती है।
लोग अपने घरों को यथासंभव आकर्षक बनाने के लिए बहुत मेहनत करते हैं। वह पर्यावरण, जिसमें हमारे विद्यार्थियों से सीखने की अपेक्षा रखते हैं, उसके बारे में सोचना भी बहुत महत्वपूर्ण है। आपकी कक्षा और स्कूल को पढ़ाई की एक आकर्षक जगह बनाने के लिए आप जो कुछ भी कर सकते हैं उसका विद्यार्थियों पर सकारात्मक प्रभाव होगा। अपनी कक्षा को रोचक और आकर्षक बनाने के लिए आप बहुत कुछ कर सकते हैं – उदाहरण के लिए–
वर्तमान विषय से संबंधित वस्तुएं और शिल्पकृतियाँ ला सकते हैं
यदि, आप गणित में पैसे या परिमाणों पर काम कर रहे हैं, तो आप बाज़ार के व्यापारियों या दर्जियों को कक्षा में बुला सकते हैं और उन्हें यह समझाने को कह सकते हैं कि वे अपने काम में गणित का उपयोग कैसे करते हैं? इसके अतिरिक्त यदि आप कला के प्रकारों और आकृतियों का अध्ययन कर रहे हैं, तो आप विभिन्न आकृतियों, डिजाइनों, परंपराओं और तकनीकों के बारे में बताने के लिए मेहंदी [वैवाहिक मेहंदी] डिजायनरों को स्कूल में आमंत्रित कर सकते हैं। अतिथियों को आमंत्रित करना तब सबसे उपयोगी होता है जब शैक्षणिक लक्ष्य सबके लिये स्पष्ट हों और उस समय सबके लिये एक से हों।
आपके स्कूल के समुदाय के भीतर भी ऐसे विशेषज्ञ हो सकते हैं (जैसे रसोइया या केयर टेकर) जिनसे विद्यार्थी सीखते समय विद्यार्थी लाभान्वित हो सकते हैं। उदाहरण के लिए, भोजन पकाने में प्रयुक्त परिमाणों का पता लगाना, या जानना कि मौसम की अवस्थाएं स्कूल के मैदानों और इमारतों को कैसे प्रभावित करती हैं।
आपकी कक्षा के बाहर बहुत से ऐसे संसाधन हैं जिनका उपयोग आप अपने पाठों में कर सकते हैं। आप पत्तों, मकड़ियों, पौधों, कीटों, पत्थरों या लकड़ी जैसी वस्तुओं को एकत्रित कर सकते हैं (या अपनी कक्षा से एकत्रित करने को कह सकते हैं)। इन संसाधनों से कक्षा में प्रदर्शन योग्य रोचक वस्तुएं बनाई जा सकती हैं जिनका संदर्भ पाठों में किया जा सकता है। इनसे चर्चा या वर्गीकरण, जैव या अजैव वस्तुओं पर गतिविधि के लिए वस्तुएं उपलब्ध हो सकती हैं। बस की समय सारिणी या विज्ञापन भी आसानी से उपलब्ध हो सकते हैं जो स्थानीय समुदाय के लिए प्रासंगिक होते हैं। इन्हें शब्दों को पहचानने, गुणों की तुलना करने या यात्रा के समय की गणना के शैक्षिक संसाधनों में बदला जा सकता है।
बाहर की वस्तुओं को कक्षा में लाया जा सकता है लेकिन बाहर का पर्यावरण आपकी कक्षा का विस्तार–क्षेत्र भी हो सकता है। सामान्यतः सभी विद्यार्थियों के लिए चलने–फिरने और अधिक आसानी से देखने के लिए बाहर अधिक जगह होती है। जब आप अपनी कक्षा को शिक्षण के लिए बाहर ले जाते हैं, तब वे कई प्रकार की गतिविधियाँ कर सकते हैं–
कक्षा के बाहर की उनकी शिक्षा वास्तविकताओं और अनुभवों पर आधारित होती है, और अन्य संदर्भों में अधिक स्थानांतरणीय होती है।
शिक्षण के लिये बाहर जाने से पहले आपको स्कूल के मुख्याध्यापक की अनुमति ले लेनी चाहिए, समय सारणी बनानी चाहिए, सुरक्षा की जाँच करनी चाहिए और विद्यार्थियों को नियम स्पष्ट करने चाहिए। आपको जाने से पहले आप और आपके विद्यार्थियों को अपने शैक्षिक लक्ष्य की स्पष्ट जानकारी होनी चाहिए।
आप चाहें तो मौजूदा संसाधनों को ज्यादा उपयुक्त बनाने के लिए अनुकूलित कर सकते हैं। ये परिवर्तन छोटे हो सकते हैं लेकिन, ये बड़ा अंतर ला सकते हैं, विशेष तौर पर यदि आप शिक्षण को कक्षा के सभी विद्यार्थियों के लिए प्रासंगिक बनाने का प्रयास कर रहे हैं। उदाहरण के लिए, आप जगह और दूसरे प्रदेश से सम्बन्धित लोगों के नाम बदल सकते हैं, गीत में किसी व्यक्ति का लिंग बदल सकते हैं, या किसी विकलांग बच्चे को कहानी में शामिल कर सकते हैं। इस तरह से आप संसाधनों को अधिक समावेशी शिक्षण–प्रक्रिया के उपयुक्त बना सकते हैं।
संसाधनयुक्त होने के लिए अपने सहकर्मियों के साथ काम करें। संसाधनों की प्राप्ति और अनुकूलन के लिए आपके सहयोगी बहुत सहायक सिद्ध होंगे। एक सहकर्मी के पास संगीत, जबकि दूसरे के पास कठपुतलियाँ बनाने या कक्षा के बाहर के विज्ञान को नियोजित करने के कौशल हो सकते हैं। आप अपनी कक्षा में जिन संसाधनों को उपयोग करते हैं उन्हें अपने सहकर्मियों के साथ विचार–विमर्ष कर सकते हैं जिससे अपने स्कूल में सीखने–सिखाने का बेहतर वातावरण बन सके।
विद्यार्थियों के शिक्षण का आकलन करने के पीछे दो उद्देश्य हैं :
योगात्मक आकलन पूर्व ज्ञान को ध्यान में रखकर, उन्हें परखकर उन पर निर्णय लेता है। इसे अक्सर श्रेणी निर्धारण की परीक्षाओं में किया जाता है, जिससे विद्यार्थियों को अपनी दक्षता का पता चलता है। इससे परिणामों की सूचना देने में भी मदद मिलती है।
निर्माणात्मक आकलन (या सीखने के लिए आकलन) स्वभाव से अधिक अनौपचारिक और निदान सूचक होने के चलते बहुत अलग होता है। अध्यापक इसका इस्तेमाल सीखने की प्रक्रिया के रूप में करते हैं, जैसे, यह जाँचने के लिए प्रश्न पूछना कि विद्यार्थी कुछ समझे हैं या नहीं। उसके बाद इस आकलन के परिणामों का इस्तेमाल अगले सीखने के अनुभव को बेहतर बनाने के लिए किया जाता है। निगरानी और प्रतिक्रिया निर्माणात्मक आकलन का भाग हैं।
निर्माणात्मक आकलन बेहतर सीखने में मदद करता है क्योंकि सीखने के लिए अधिकांश विद्यार्थियों को–
एक अध्यापक के रूप में, यदि आप प्रत्येक पाठ में उपरोक्त चारों बातों पर अमल करते हैं तो आपको विद्यार्थियों से सर्वश्रेष्ठ परिणाम प्राप्त होंगे। इस प्रकार आकलन निर्देश से पहले, निर्देश के दौरान और उसके बाद किया जा सकता है–
के दौरान: कक्षा अध्यापन के दौरान आकलन करते समय इस बात की जाँच की जाती है कि क्या विद्यार्थी सीख रहे हैं? और बेहतर कर रहे हैं। इससे आपको अपने पढ़ाने के तरीके, संसाधनों और क्रिया कलापों में बेहतर सहसम्बन्ध बनाने में मदद मिलेगी। इससे आपको यह समझने में मदद मिलेगी कि विद्यार्थी वांछित उद्देश्य की दिशा में कैसे आगे बढ़ रहे हैं? और आपका अध्यापन कितना सफल है?
के बाद में: अध्यापन के बाद होने वाले आकलन से विद्यार्थियों द्वारा सीखी गई बातों की पुष्टि होती है और इससे आपको यह भी पता चलता है कि किसने सीख लिया है? और किसे अभी भी सहायता की जरूरत है? इससे आपको अपने अध्यापन लक्ष्य की प्रभाव का आकलन करने का मौका मिलेगा।
जब आप यह तय करते हैं कि विद्यार्थियों को एक पाठ में या पाठों की श्रृंखला में क्या सीखना चाहिए? तो आपको उन्हें इसके बारे में बताने की जरूरत होती है। विद्यार्थियों से क्या सीखने की उम्मीद की जाती है? और आप उन्हें क्या करने के लिए कह रहे हैं? इन दोनों के बीच के अंतर को ध्यान से समझाएँ। एक ऐसा खुला सवाल पूछें जिससे आप उनकी समझ के बारे में अनुमान लगा सकें। उदाहरण के लिए–
विद्यार्थियों को अपना जवाब देने से पहले कुछ सेकंड सोचने का मौका दें, या विद्यार्थियों को पहले जोड़ियों में या छोटे–छोटे समूहों में अपने जवाबों पर चर्चा करने के लिए भी कहा जा सकता है। जब वे आपको अपना जवाब बताएंगे तब आपको पता चल जाएगा कि वे समझते हैं या नहीं कि उन्हें क्या सीखना है?
अपने विद्यार्थियों को आगे बढ़ने में मदद करने के लिए, आपको और उनको दोनों को उनके ज्ञान और समझ की मौजूदा स्थिति के बारे में जानने की जरूरत है। सीखने के अपेक्षित परिणामों या लक्ष्यों के बारे में बताने के बाद, आप निम्नलिखित कार्य कर सकते हैं–
कहाँ से शुरू करना है, इसकी जानकारी होने से आप अपने विद्यार्थियों के लिए प्रासंगिक और रचनात्मक पाठों की योजना बना सकेंगे। यह भी महत्वपूर्ण है कि आपके विद्यार्थी इस बात का आकलन कर सकें कि वे कितने अच्छे तरीके से सीख रहे हैं जिससे आपको और उनको पता रहे कि उन्हें आगे क्या और कितना सीखने की जरूरत है? अपने विद्यार्थियों को स्वयं अपने सीखने की कमान संभालने के अवसर प्रदान करने से उन्हें जीवन भर सीखने के लिए तत्पर रहने वाला इंसान बनाने में मदद मिलेगी।
विद्यार्थियों से उनकी वर्तमान प्रगति के बारे में बात करते समय यह सुनिश्चित करें कि उन्हें आपकी प्रतिक्रिया काम की और रचनात्मक दोनों लगे। इसे ऐसे करें–
विद्यार्थियों को उनकी विशेषताओं और उन्हें और बेहतर करने के बारे में जानकारी देकर।
आगे के विकास के लिए जरूरी बातों के विषय में स्पष्ट बताकर।
आपको विद्यार्थियों के लिए सीखने के बेहतर अवसर देने की भी जरूरत होगी। इसका अर्थ यह हुआ कि अपनी पढ़ाई में विद्यार्थी इस समय जहां पर हैं और जहां पर आप उन्हें देखना चाहते हैं, इसके बीच के अंतराल को भरने के लिए आपको अपनी पाठ योजनाओं को बदलना भी पड़ सकता है। इसे करने के लिए आपको निम्नलिखित काम करने पड़ सकते हैं–
विद्यार्थियों को स्वयं यह तय करने के लिए प्रोत्साहित करना पड़ सकता है? कि उन्हें किन–किन संसाधनों की जरूरत है जिससे वे खुद सीख सकें
हमें निम्नतम स्तर से शुरू कर उच्चतम स्तर तक जाना पड़ेगा जिससे सभी विद्यार्थी प्रगति कर सकें। इन्हें इस तरह बनाया गया है कि सभी विद्यार्थी काम को शुरू कर सकें लेकिन ज्यादा सक्षम विद्यार्थी यहीं तक सीमित न रहें और अपनी पढ़ाई को आगे बढ़ा सकें।
पढ़ाने की गति को धीमा करके प्रायः आप असल में सीखने की गति को बढ़ा सकते हैं क्योंकि ऐसा करने से विद्यार्थियों को यह सोचने–समझने का समय और आत्मविश्वास मिलता है कि आगे सुधार के लिए उन्हें क्या करना चाहिए? विद्यार्थियों को आपस में अपने काम के बारे में बात करने, अपनी खामियों को पहचानने और उन्हें दूर करने के बारे में विचार करने का मौका देकर, आप उन्हें उनका आकलन करने के रास्ते बता रहे हैं।
पढ़ाने के दौरान सीखने का काम भी चलता रहता है और एक कक्षा कार्य या गृह कार्य देकर, निम्नलिखित जरूरी है–
सीखने के आकलन की चार प्रमुख अवस्थाओं के बारे में नीचे बताया गया है।
जानकारी या सबूत इकट्ठा करना
प्रत्येक विद्यार्थी , स्कूल के अन्दर और बाहर अपनी स्वयं की रफ़्तार और शैली में अलग ढंग से सीखता है। इसलिए, आपको विद्यार्थियों का आकलन करते समय दो बातों पर ध्यान रखना होगा
तरह–तरह के स्रोतों (अपने खुद के अनुभव, विद्यार्थी, अन्य विद्यार्थी, अन्य अध्यापक, माता–पिता और सामुदायिक सदस्यों से) से जानकारी इकट्ठा करना।
जोड़ों में और समूहों में, विद्यार्थियों का अलग–अलग आकलन करना, और स्व–आकलन को बढ़ावा देना। अलग–अलग तरीकों का इस्तेमाल से सारी आवश्यक जानकारी मिल सकेगी। विद्यार्थियों की पढ़ाई और प्रगति के बारे में जानकारी इकट्ठा करने के तरीकों को अवलोकन करना, सुनना, विषयों और विषय–वस्तुओं पर चर्चा करना, और लिखित कक्षा और गृहकार्य की समीक्षा शामिल होना चाहिए।
रिकॉर्ड करना
भारत में सभी स्कूलों में रिकॉर्डिंग का सबसे आम तरीका रिपोर्ट कार्ड का इस्तेमाल करना है, लेकिन इससे आपको एक विद्यार्थी की पढ़ाई या व्यवहारों के सभी पहलुओं को दर्ज करने का मौका नहीं मिल सकता है। इसे करने के कुछ आसान तरीके हैं जिन पर आप विचार कर सकते हैं, जैसे–
पढ़ने–पढ़ाने के दौरान दिखाई देने वाली बातों को एक डायरी/नोटबुक/रजिस्टर में रिकार्ड करना
किसी असामान्य घटना, परिवर्तन, समस्या, विद्यार्थियों की खूबियों और पढ़ने के सबूतों को रिकार्ड करना।
सबूत की व्याख्या करना
जानकारी, सबूत और रिकॉर्ड के एकत्र हो जाने के बाद, उनकी व्याख्या करना, उनको समझना जरूरी है जिससे यह पता रहे कि प्रत्येक विद्यार्थी कैसे पढ़ाई और प्रगति कर रहा है? इसके लिए ध्यानपूर्वक चिंतन और विश्लेषण करने की जरूरत पड़ती है। उसके बाद आपको पढ़ाई में सुधार लाने के लिए अपने निष्कर्षों पर काम करने की जरूरत पड़ती है, जिसे आप संभवतः विद्यार्थियों को प्रतिक्रिया देकर या नए संसाधन ढूँढकर, समूहों को फिर से व्यवस्थित करके, एक पठन विषय को दोहराकर कर सकते हैं।
सुधार के लिए योजना तैयार करना
आकलन के माध्यम से आपको आवश्यकतानुसार क्रियाकलापों की स्थापना करके, जिन विद्यार्थियों को ज्यादा मदद की जरूरत है उन पर ध्यान देकर, और जो विद्यार्थी ज्यादा आगे हैं उन्हें चुनौती देकर, प्रत्येक विद्यार्थी के लिए अर्थपूर्ण ढंग से सीखने के अवसर प्रदान करने में मदद मिल सकती है।
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