यह इकाई ऐसी कुछ विधियों और सिद्धांतों की छानबीन करती है जिनसे आपको अपने विद्यालय में परिवर्तनों को सफलतापूर्वक लागू करने में मदद मिलेगी। परिवर्तन के संबंध में बहुत से सिद्धांत मौजूद हैं और इस विषय पर काफी शैक्षणिक शोध किया गया है। ये सिद्धांत सहायक हो सकते हैं क्योंकि ये आपको परिवर्तन के निहितार्थों के बारे में और उसे सफल कैसे बनाएं इस बारे में सोचने का एक तरीका प्रदान करते हैं। दुख की बात है कि शिक्षा के क्षेत्र में और अन्य क्षेत्रों में, परिवर्तन लाने के अधिकतर प्रयासों को विरोध झेलना पड़ता है और वे वांछित परिणाम लाने में विफल हो जाते हैं।
कई विद्यालय नेतृत्व इकाइयां परिवर्तन की चुनौतियों से निपटती हैं। आपने शायद इकाई नेतृत्व का दृष्टिकोण: अपने विद्यालय में परिवर्तन का नियोजन और नेतृत्व करना का अध्ययन पहले ही कर लिया होगा, जो परिवर्तन के प्रबंधन की महत्ता से परिचय कराती है जो कि परिवर्तन को प्रभावी बनाने के लिए जरूरी है। यह इकाई अगले चरण – परिवर्तन को लागू करना – पर केंद्रित है, इसलिए यदि आपने साझी परिकल्पना बनाने, स्व-समीक्षा और विकास नियोजन की इकाइयों का अध्ययन कर लिया है तो यह इकाई उपयोगी होगी। इस इकाई में आपका परिचय परिवर्तन के बारे में सोचने के कुछ तरीकों से कराया जाएगा जो अपने विद्यालय में सुधार की कोशिश करते समय आपकी मदद करेंगे। वृत्त अध्ययन दिखाते हैं कि अन्य लोग परिवर्तन लाने में किस प्रकार सफल हुए। यह कार्य उन्होंने अकसर रचनाशील चिंतन और थोड़ी सी चतुराई के बलबूते पर किया है।
मैरिस (1986) के अनुसार, परिवर्तन का विरोध सामान्य है और समझा जा सकने वाला व्यवहार है, क्योंकि भले ही हमारी मौजूदा हकीकत कितनी भी असंतोषजनक क्यों न हो, हम उससे जुड़े होते हैं। इसलिए विद्यालय नेताओं के सामने मौजूद सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है अपने विद्यालय में कार्य करने वाले लोगों को उनके कार्य करने के तरीकों में परिवर्तन लाने के लिए राज़ी करना। इस इकाई से आपको ऐसे विरोध से पार पाने के कुछ विचार विकसित करने में मदद मिलेगी।
इस इकाई में काम करते समय आपसे अपनी सीखने की डायरी में नोट्स बनाने को कहा जाएगा। यह डायरी एक किताब या फोल्डर है जहाँ आप अपने विचारों और योजनाओं को एकत्र करके रखते हैं। संभवतः आपने अपनी डायरी शुरू कर भी ली है।
इस इकाई में आप अकेले काम कर सकते हैं, लेकिन यदि आप अपने सीखने की चर्चा किसी अन्य विद्यालय नेता के साथ कर सकें तो आप और भी अधिक सीखेंगे। यह कोई सहकर्मी हो सकता है जिसके साथ आप पहले से सहयोग करते आ रहे हैं, या कोई व्यक्ति जिसके साथ आप नए संबध का निर्माण करना चाहते हैं। इसे नियोजति ढंग से या अधिक अनौपचारिक आधार पर किया जा सकता है। आपकी सीखने की डायरी में बनाए गए आपके नोट्स इस प्रकार की बैठकों के लिए उपयोगी होंगे, और साथ ही आपकी दीर्घावधि की शिक्षण-प्रक्रिया और विकास का प्रतिचित्रण भी करेंगे।
आदर्श रूप से, आपके पास अपने विद्यालय के लिए एक परिकल्पना होगी और आपने विद्यालय की समीक्षा संचालित कर ली होगी जिसमें आपने नए लक्ष्यों और कार्यों की पहचान की होगी। यदि ये लक्ष्य स्वभाव और व्यवहार के बारे में हैं, तो संभव है कि आप शिक्षण और सीखने में सुधार का नेतृत्व करने की इकाइयों को सहायक पाएं, क्योंकि वे अपने विद्यालय में अध्यापन एवं कार्याभ्यास के परिवर्तनों पर केंद्रित हैं। हो सकता है कि आपने कुछ अन्य परिवर्तन भी पहचाने हों, जैसे समयबद्धता, उपस्थिति, समय पर अपना गृहकार्य पूरा करने वाले विद्यार्थियों की संख्या, या अभिभावक बैठकों में उपस्थिति को सुधारना। संभव है कि आप यह पाएं कि आप ऐसे कई छोटे-छोटे परिवर्तन कर सकते हैं जो बड़ा असर दिखाएं या यह कि किसी एक क्षेत्र में किया गया परिवर्तन, किसी दूसरे क्षेत्र पर लाभकारी असर रखता है।
एक ऐसे परिवर्तन के बारे में सोचें जो आप अपने विद्यालय में लाना चाहेंगे। हो सकता है कि यह अध्यापन और सीखने के किसी पहलू को सुधारने के बारे में हो, या फिर यह विद्यालय दिवस के संगठन, गृहकार्य नीति में परिवर्तन करने या उपस्थिति सुधारने के बारे में हो सकता है।
निम्नांकित प्रश्नों पर विचार करें और अपने विचारों को अपनी सीखने की डायरी में लिखते जाएं:
चर्चा
इससे पहले कि आप अपने विद्यालय में कुछ बदलने की कोशिश शुरू करें, परिवर्तन के निहितार्थों के बारे में सोच लेना महत्वपूर्ण है। अगर आप यह पूर्वानुमान लगा सकते हैं कि कौन विरोध करेगा और क्यों, तो आप उन लोगों को शीघ्रतम संभव मौके पर संलग्न करने की कार्यनीतियों के बारे में सोचना शुरू कर सकते हैं।
विद्यालय दबाव में हैं। सरकार ने एनसीएफ 2005 तथा ‘सभी के लिए शिक्षा का अधिकार’ अधिनियम 2009 में एक महत्वाकांक्षी परिकल्पना निर्दष्टि की है। इस परिकल्पना को साकार करने के लिए विद्यालयों को बदलना होगा। मैरिस (1986) सुझाते हैं कि सही स्थितियों में किसी व्यक्ति की ‘परिवर्तन को हानि’ मानने की धारणा को ‘परिवर्तन को वृद्धि’ मानने की धारणा में बदलना संभव है। इसलिए जब आप विद्यालय नेता होने के नाते विद्यालय की अंतस्थ आदतों और कार्याभ्यासों को चुनौती देने के बारे में सोचें, तो आपको यह पहचानने की ज़रूरत पड़ेगी कि परिवर्तन की प्रक्रिया का नेतृत्व करने में सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि आप परिवर्तन को वृद्धि के रूप में देखने में दूसरों की मदद कैसे करेंगे।
अपने विद्यालय में आपको जो परिवर्तन करने होंगे उनमें से कुछ बाहर से थोपे गए (निश्चयात्मक) होंगे; और कुछ अन्य ऐसे विचार होंगे जो विद्यालय समुदाय में से आएंगे (स्वैच्छिकतावादी)। नेता को विद्यालयों के लिए जो कुछ आवश्यक किया गया है उसके कानूनी सन्दर्भ में काम करना चाहिए और कानूनों पर ध्यान देना चाहिए, पर यह कैसे किया जाता है यह बात अभी भी व्याख्या के लिए खुली है। आधुनिक विद्यालयों के सफल प्रधानाध्यापक विद्यालयों में सुधार की जिम्मेदारी लेते हैं। इसका अर्थ स्वतः ही यही निकलता है कि परिवर्तन लाने पर र्काय करना, क्योंकि आप विद्यार्थियों को लगातार जटिल होती दुनिया में सफल नागरिक बनने के लिए तैयार कर रहे हैं। स्वभाव का अर्थ है कि हो सकता है कि पहले स्टाफ़ और समाज के लोग विद्यालय नेता की कही बातों को कार्य के आधार के तौर पर आसानी से स्वीकार कर लेते हों, और भले ही वे उन कार्यों को अनिच्छा से या बिना समझे कार्यान्वित कर देते हों। पर अगर अब नेताओं को परिवर्तनों को प्रभावी रूप से कार्यान्वित करना है तो उन्हें दलगत पद्धतियां विकसित करनी होंगी।
विद्यालय नेताओं को आवश्यक परिवर्तनों को बढ़ावा देना और किसी भी प्रतिरोध का प्रबंधन करना होगा, और साथ ही अधिकतम प्रभाव वाले परिवर्तनों को अधिक महत्व देना होगा। यह इकाई कुछ ऐसे परिवर्तन सिद्धांतों की संक्षिप्त जांच-पड़ताल से शुरु होती है जिनसे आपको सफल परिवर्तन के पीछे के मुद्दों और सिद्धांतों को समझने में मदद मिलेगी।
परिवर्तन के ऐसे तीन सिद्धांत हैं जो विद्यालय नेताओं के कार्य के साथ प्रासंगिक हैं। ये सिद्धांत परिवर्तन की विधियां नहीं हैं, बल्कि ये परिवर्तन के बारे में सोचने का एक तरीका प्रदान करते हैं। अतीत में जो कुछ हुआ उसमें नेता परिवर्तन नहीं कर सकता है, पर उसके पास भविष्य में लोगों द्वारा परिवर्तनों पर प्रतिक्रिया देने के तरीके और परिवर्तनों के प्रति उन लोगों की प्रतिबद्धता को प्रभावित करने की अच्छी-खासी गुंजाइश है।
नोस्टर और अन्य (2000) ने परिवर्तन की पाँच विमाएं देखी थीं (चित्र 2)।
नोस्टर और अन्य के कार्य ने दिखाया कि अगर इनमें से कोई एक विमा अनुपस्थित हो तो परिवर्तन के सफल होने की संभावना कम ही होती है। इन्हें तालिका 1 में दिया गया है। सही का निशान (✓) दिखाता है कि विमा मौजूद है; गलत का निशान (✓) दिखाता है कि विमा अनुपस्थित है। उदाहरण के लिए, जहां कोई परिकल्पना नहीं होती (जैसे पहली पंक्ति में) वहां ग़लतफहमी उत्पन्न होती है क्योंकि परिवर्तन का कारण तथा अभीष्ट परिणाम अस्पष्ट होते हैं।
परिकल्पना | संसाधन | कौशल | प्रोत्साहन | कार्य नियोजन | परिणाम |
---|---|---|---|---|---|
✗ | ![]() | ![]() | ![]() | ![]() | ग़लतफहमी |
![]() | ✗ | ![]() | ![]() | ![]() | निराशा |
![]() | ![]() | ✗ | ![]() | ![]() | बेचैनी |
![]() | ![]() | ![]() | ✗ | ![]() | ढिलाई या लापरवाही |
![]() | ![]() | ![]() | ![]() | ✗ | क्रमिक परिवर्तन |
![]() | ![]() | ![]() | ![]() | ![]() | प्रभावी परिवर्तन |
सतर्कता का एक शब्द संसाधनों की रक्षा करता है। संसाधनों में मानव संसाधन तथा सामग्री संसाधन शामिल होते हैं। विद्यालय में कई परिवर्तनों को मौजूदा पदार्थ संसाधनों से या अपेक्षाकृत मामूली वृद्धियों से पूरा किया जा सकता है। सबसे अधिक शैक्षिक परिवर्तन में सबसे महत्वपूर्ण संसाधन है मानव संसाधन। खराब अध्यापक, अत्याधुनिक कक्षा में भी खराब ही रहेगा। अच्छा अध्यापक, कम संसाधनों के साथ भी अच्छा ही रहेगा।
श्रीमती गुप्ता शहरी इलाके के एक मिश्रित माध्यमिक विद्यालय की नेता हैं जहां बेहद अलग-अलग किस्म के विद्यार्थी हैं।
मैं पास के एक विद्यालय गई जिसके परिणाम अच्छे आ रहे थे और देखा कि अध्यापक अध्यापन की ऐसी विविध विधियां इस्तेमाल कर रहे थे जिनमें विद्यार्थियों को पाठों में सक्रिय रूप से संलग्न किया जाता था। वहां समूहकार्य और स्वतंत्र रूप से कार्य कराया जाता था, और अध्यापक प्रश्न करने की विभिन्न तकनीकों का इस्तेमाल करके विद्यार्थियों से जो वे सीख रहे हैं उस बारे में परिकल्पना-विचार करवाते थे। अधिक योग्य विद्यार्थी प्रायः उन विद्यार्थियों की सहायता करते थे जिन्हें खुद कार्य रिकॉर्ड करने में कठिनाई होती थी, और अध्यापकों ने अपने पाठों को अधिक रोचक बनाने के लिए विविध प्रकार की सामग्रियां, जैसे फ्लैशकार्ड और चित्र बनए थे। इनमें से काफी कुछ चीजें और विद्यार्थियों के कार्यों को दीवारों पर प्रदर्शित किया गया था।
अपने विद्यालय लौट कर मैंने फैसला किया कि हमें अपने विद्यालय के अध्यापन में परिवर्तन लाने की जरूरत है। मैंने स्टाफ बैठक बुलवाई और अपने स्टाफ को बताया कि मैंने क्या-क्या देखा और विद्यालय कितना अच्छा था। मैंने समझाया कि मैं चाहती हूँ कि विद्यार्थी अपने सीखने में और अधिक सक्रियता से संलग्न हों और मैं चाहती हूँ कि सभी अध्यापक समूहकार्य का उपयोग करते हुए अगले हफ्ते एक पाठ की योजना बनाएं। वे कैसी प्रगति कर रहे हैं यह देखने के लिए मैं कक्षा में उनसे मिलूंगी।
तालिका 1 देखें और फिर इन प्रश्नों के उत्तर अपनी सीखने की डायरी में लिखें:
परिवर्तन लाने का उनका प्रयास कितना सफल हो पाएगा?
चर्चा
श्रीमती गुप्ता के पास एक परिकल्पना थी जिसे उन्होंने अपने विद्यालय के अध्यापकों को समझाया था। पर यह साफ नहीं है कि उन्होंने उनकी परिकल्पना को समझा या नहीं अथवा वे उससे सहमत थे या नहीं। उन्होंने एक योजना बनाई और फिर एक प्रोत्साहन प्रस्तुत किया – कि वे कक्षा में आएंगी। अध्यापकों के लिए यह एक धमकी की तरह अधिक था। अध्यापकों को प्रेरित करने की आवश्यकता होती है और यह नेतृत्व की एक मुख्य जिम्मेदारी है। (धमकियों की बजाए) प्रभावी प्रोत्साहन सम्मान करने, प्रशंसा पाने और सफल दल का हिस्सा होने से संबंध रखते हैं।
उन्होंने अध्यापकों की मदद के लिए कोई संसाधन नहीं दिया, और न ही यह जांचा कि उनके पास आवश्यक कौशल हैं या नहीं। अगर उन्होंने दूसरे विद्यालय के नेता से बात कर ली होती, तो शायद उन्हें अपनी परिकल्पना को अपने स्टाफ के समक्ष स्पष्ट करने के बारे में सलाह और प्रमाण मिल गए होते। साथ ही संभव है कि उन्हें विकसित किए गए संसाधनों और कौशलों के बारे में कुछ सुझाव मिले होते।
परियोजना पर कार्य आरंभ करने के लिए संसाधनों की आवश्यकता नहीं थी, हालांकि उनसे कई तरह से मदद मिलती। उदाहरण के लिए, श्रीमती गुप्ता कुछ कक्षाएं लेने का प्रस्ताव रख सकती थीं, ताकि अध्यापक पास वाले विद्यालय जाकर उन चीजों को खुद देख सकें जो श्रीमती गुप्ता उनसे चाहती थीं।
श्रीमती गुप्ता ने योजना बनाई थी पर वह यथार्थवादी नहीं थी क्योंकि वे नियोजित पद्धति की बजाए तत्काल परिवर्तन की अपेक्षा रखती थीं, जबकि स्टाफ नियोजित पद्धति में विकासपरक ढंग से विचारों को जांच-परख सकता था।
प्राथमिक प्रधानाध्यापक श्री चड्ढा ने अपने विद्यालय में सतत व व्यापक मूल्यांकन (सीसीई) को अंतस्थ बनाने पर एक पाठ्यक्रम में भाग लिया था।
पाठ्यक्रम में सीसीई के सभी कारणों को समझाया गया था और सीसीई ज्ञानार्जन को कैसे सुधार सकता है इसके कुछ बेहद ठोस उदाहरण दिए गए थे। मैं प्रेरणाओं से ओत प्रोत होकर विद्यालय लौटा था। अगली स्टाफ बैठक में मैंने मेरे स्टाफ को सीसीई के बारे में समझाया (मेरे विद्यालय में छः अध्यापक हैं) और कहा कि अगले कुछ हफ्तों में उन सभी को डायट [जिला शिक्षा प्रशिक्षण संस्थान] में एक पाठ्यक्रम में भाग लेने का मौका मिलेगा। वे देख पा रहे थे कि मैं कितना उत्साही था और उन्होंने अधिक सीखने के इस अवसर का स्वागत किया। मैंने यह भी समझाया कि मैं एसएमसी [विद्यालय प्रबंधन समिति] से पूछूंगा कि सीसीई में सहयोग के लिए उनकी कक्षाओं हेतु कुछ संसाधन खरीदने के लिए क्या मैं बजट को पुनर्गठित कर सकता हूँ।
वे ढेर सारे विचारों और एक विस्तृत प्रशिक्षण नियमावली के साथ उस पाठ्यक्रम से लौटे। पहले दो हफ्तों तक, काफी कुछ हुआ। जब मैं विद्यालय का भ्रमण करता था तो मैं अध्यापकों को और अधिक प्रश्न पूछते हुए, प्रोत्साहित करने वाला फीडबैक देते हुए और समझ की जांच करते हुए सुन पाता था। पर उसके
बाद एक हफ्ते की छुट्टियां हुईं और जब हम वापस लौटे तो मानो सब कुछ भुला दिया गया था। प्रशिक्षण नियमावलियां शेल्फ पर धूल खाती रहीं और अध्यापक उसी तरीके से पढ़ा रहे थे जैसे वे हमेशा से पढ़ाते आए थे। मुझे पता नहीं था कि मैं क्या करूं।
मैंने तहकीकात करने का फ़ैसला लिया। मैंने उन दो अध्यापकों से बात की जो पाठ्यक्रम को लेकर सबसे अधिक उत्साही थे। उन्होंने माना कि सैद्धांतिक तौर पर तो सीसीई अच्छा लगा, पर करने में यह कठिन था – पाठों की योजना बनाने में अधिक समय लग रहा था और वे पाठ्यक्रम पूरा कराने को लेकर चिंतित थे। एक को यह इसलिए कठिन लग रहा था क्योंकि उसकी कक्षा में 60 विद्यार्थी थे।
मैंने महसूस किया कि यह तो बहुत कम समय में बहुत अधिक परिवर्तन था। अध्यापक बहुत जल्द ही पाठ्यक्रम को भूल गए थे और आवश्यक कौशल विकसित करने के लिए वह एक पाठ्यक्रम उनके लिए काफी नहीं था। मुझे एक नई योजना चाहिए थी।
मैंने प्रशिक्षक को आमंत्रित किया कि वे स्टाफ बैठक में आकर हम सभी से बात करें और सीसीई के कुछ व्यावहारिक उदाहरण दिखाएं। फिर मैंने अध्यापकों के तीन-तीन के समूह बनाए। इसके पीछे विचार यह था कि वे एक-दूसरे को परामर्श और प्रशिक्षण देंगे। मैंने हर अध्यापक से कहा कि वह एक हफ्ते के लिए सीसीई पर फोकस करे और बाकी दो उसके परामर्शदाता का कार्य करेंगे। तीन हफ्ते खत्म होते-होते, हर किसी को नई तकनीकें आजमाने का मौका मिल चुका था। रोज़ाना, तीन अध्यापकों का एक समूह प्रार्थना सभा छोड़ देता और इस समय का उपयोग सीसीई की योजनाओं पर चर्चा करने और फीडबैक पाने में करता। मैंने उन्हें एक-दूसरे के पाठों को देखने जाने के लिए भी प्रोत्साहित किया और कहा कि अगर वे ऐसा करते हैं तो उनकी कक्षाओं को मैं पढ़ाऊंगा।
इसने काफी बेहतर कार्य किया। तीन हफ्ते बाद, हर किसी को दो सहकर्मियों के सहयोग के साथ सीसीई पर फोकस करने का मौका मिल चुका था। परामर्शी प्रक्रिया भी सहायक रही। हर किसी ने और तीन हफ्तों तक कार्य जारी रखने का फैसला किया, जिसमें हर शिक्षक को एक हफ्ते तक सीसीई पर ध्यान केंद्रित करना था और दो हफ्तों तक बाकी दो की सहायता करनी थी।
वृत्त अध्ययन 2 में दर्शाया गया है कि यदि परिवर्तन के सभी घटक (परिकल्पना, संसाधन, कौशल, प्रोत्साहन एवं कार्य नियोजन) मौजूद हों, तो भी हो सकता है कि परिवर्तन सफल न हो। इस मामले में, आवश्यक कौशलों को विकसित करना श्री चड्ढा की अपेक्षाओं से अधिक कठिन था – अध्यापकों को एक प्रशिक्षण पाठ्यक्रम की बजाए सतत सहयोग और प्रोत्साहन चाहिए था।
परिवर्तन का कोई भी सिद्धांत इस बात का आदर्श विवरण नहीं है कि परिवर्तन कैसे होता है, पर वह नेता को अपनी परिस्थितियों में परिवर्तन के बारे में सोचने में मदद तो दे ही सकता है। ग्लाइकर का परिवर्तन का सूत्र (बेकहार्ड, 1975 में उद्धृत) एक और ऐसा सिद्धांत है जो परिवर्तन की प्रक्रिया आरंभ करते समय मददगार हो सकता है। यह सूत्र वे आवश्यक गुण बताता है जो परिवर्तन के अंदर यदि हुए तो वह आपके विद्यालय में अंतस्थ हो जाएगा।
सूत्र इस प्रकार है :
D × V × F > R
और इसकी व्याख्या इस प्रकार है:
विद्यालय प्रमुख के लिए चुनौती यह है कि शिक्षक/शिक्षिकाओं को उस बदलाव के के लिए राजी कर सकें, जिससे वे असंतुष्ट हैं। संभव है कि आपके अध्यापक कई चीजों से ‘असंतुष्ट’ हों जैसे संसाधनों की कमी, उनकी कक्षा का आकार, उनसे जिस मात्रा में कार्य करने की अपेक्षा की जाती है या समय पर गृहकार्य पूरा करने वाले विद्यार्थियों की संख्या आदि। पर उनके इन चीजों से ‘असंतुष्ट’ होने की संभावना कम है – उनकी कक्षा में हो रहे भागीदारीपूर्ण ज्ञानार्जन की मात्रा, वे जो सीसीई कर रहे हैं उसकी मात्रा आदि।
अपने अध्यापकों को प्रेरित करने के लिए और आप जो चाह रहे हैं उस प्रकार के परिवर्तन लाने हेतु राज़ी करने के लिए आप कई चीजें कर सकते हैं। यहां भारत के कुछ विद्यालय प्रमुखों के दो उदाहरण दिए जा रहे हैं:
श्रीमती कपूर निराश थीं क्योंकि उनके अध्यापक परीक्षणों और परीक्षाओं के अंक-पत्र पूरे नहीं करते थे, इसलिए वे इस बात का उचित विश्लेषण नहीं कर पा रहीं थीं कि प्रत्येक वर्ष समूह कैसी प्रगति कर रहा था। उन्होंने परीक्षणों में अंक दिए और उन्हें वापस सौंपा, पर फिर वे कहने लगे कि उनके पास अभिलेख रखने का समय नहीं है। श्रीमती कपूर ने कहा कि उन्हें अभिभावक बैठकों के लिए अभिलेख पत्र चाहिए होंगे, पर कुछ अध्यापकों ने कहा कि इन बैठकों में तो कोई आता ही नहीं है। श्रीमती कपूर स्थानीय गावँ गईं और कुछ अभिभावकों से बात की। अभिभावकों ने उन्हें अपने खेत वगैरह के बारे में बताया और बताया कि वे कितने व्यस्त हैं। उन्हें अभिभावक बैठकों में क्यों आना चाहिए यह समझाने के लिए श्रीमती कपूर ने समानता का उदाहरण इस्तेमाल किया। उन्होंने कहा कि जब वे बीज बोते हैं तो वे उन्हें यूं ही खेत में छोड़ नहीं देते हैं। वे उन्हें नियमित रूप से जांच कर यह पक्का करते हैं कि उन्हें पानी की कमी न हो, कीट या पीडक न लगें तथा पौधे फलें-फूलें। उन्हें अपने बच्चों के लिए भी यही करना होगा। श्रीमती कपूर ने समझाया कि बच्चे बीज की तरह होते हैं और उन्हें अभिभावक बैठकों में आकर यह जांचना चाहिए कि बच्चे विद्यालय में सीख रहे हैं और फल-फूल रहे हैं। अगली अभिभावक बैठक में उपस्थिति काफी बेहतर थी। कुछ अध्यापक शर्मिंदा थे क्योंकि वे अभिभावकों को उनके बच्चे की प्रगति के विस्तृत अभिलेख नहीं दिखा पाए थे। विद्यालय में अभिलेख रखने के कार्य में सुधार आने लगा और श्रीमती कपूर प्रगति का अधिक प्रभावी विश्लेषण करने में समर्थ हो गईं।
पहले उदाहरण में श्री अपराजिता एक ऐसे मुद्दे से निपटे जिससे उनके अध्यापक पहले से असंतुष्ट थे। दूसरे उदाहरण में श्रीमती कपूर को थोड़ी चतुराई का इस्तेमाल करके ऐसी परिस्थितियां बनानी पड़ीं जिनमें अध्यापकों को खुद यह महसूस हुआ कि उन्हें विद्यार्थियों की प्रगति के अभिलेख रखने की आवश्यकता है। आप कुछ अन्य रणनीतियों का भी इस्तेमाल कर सकते हैं, जैसे:
![]() विचार करें
|
परिवर्तन का एक अन्य सिद्धांत है ‘बल क्षेत्र विश्लेषण’। परिवर्तन की यह पद्धति आपको उन स्थितियों पर फोकस करने के लिए प्रोत्साहित करती है जो पहले से मौजूद हैं और जो पहले तो परिवर्तन में सहयोग करेंगी और दूसरे, वे विरोध के संभावित स्रोतों की पहचान करेंगी।
बल क्षेत्र विश्लेषण कैसे करें:
अगले केस स्टडी में, श्री अग्रवाल ने अपने माध्यमिक विद्यालय में गृहकार्य के प्रति दृष्टिकोण में परिवर्तन लाने के लिए बल क्षेत्र विश्लेषण का उपयोग किया है (हालांकि इसका उपयोग प्राथमिक विद्यालय में भी किया जा सकता है)।
पिछले सत्र के मेरे अधिगम भ्रमणों और स्टाफ-कक्ष में अध्यापकों के हुए वार्तालापों के दौरान, मैंने पाया कि विद्यार्थियों द्वारा किए जा रहे गृहकार्य को लेकर काफी असंतुष्टि थी। वह अकसर हड़बड़ी में किया हुआ, अव्यवस्थित या अधूरा होता था या फिर किया ही नहीं गया होता था। अध्यापक निराशा महसूस कर रहे थे क्योंकि विद्यार्थी कार्य को ठोस रूप देने का मौका गवां रहे थे और उन्हें लग रहा था कि वे अपने विद्यार्थियों के साथ सकारात्मक संबंध बनाने की बजाए लगातार उनके पीछे पड़े हुए थे।
मैंने सत्र के शुरूआत में एक स्टाफ बैठक बुलवाई और समझाया कि मैं इस मुद्दे से साथ मिलकर निपटना चाहता हूँ। मैंने ऐसी चीजों को उद्धृत किया जो मैंने देखीं थीं और लोगों ने कही थीं और जल्द ही गृहकार्य के खराब स्तर के बारे में जीवंत चर्चा होने लगी थी। मैंने बैठक एक कक्षा में आयोजित की थी ताकि हम बल क्षेत्र विश्लेषण करने के लिए ब्लैकबोर्ड का इस्तेमाल कर सकें।
हम जो परिवर्तन लाना चाहते थे वह था विद्यार्थियों द्वारा किए जा रहे गृहकार्य की गुणवत्ता सुधारना। हमने उन सभी चीजों के बारे में सोचने की कोशिश की जिनसे हमें इसमें मदद मिल सकती थी और जो इसे कठिन बना सकती थीं।
हमने प्रेरक बलों के रूप में इनकी पहचान की:
और हमने अवरोधक बलों के रूप में इनकी पहचान की:
कुछ विद्यार्थियों को शाम में घरेलू कार्यों में हाथ बँटाना पड़ता है और उनके पास गृहकार्य करने का समय नहीं होता।
केस स्टडी 3 में श्री अग्रवाल और उनके अध्यापकों द्वारा सूचीबद्ध प्रेरक बलों और अवरोधक बलों पर नजर डालें। अब इन्हें चित्र 4 के समान रूप देने की कोशिश करें, सबसे शक्तिशाली मुद्दों (जैसे एसएमसी द्वारा गृहकार्य की अनुश्रवण) के लिए सबसे लंबे तीर और सबसे महत्वपूर्ण मुद्दों (जैसे अध्यापकों द्वारा उपयुक्त गृहकार्य तय करना) के लिए सबसे मोटे तीर। सबसे महत्वपूर्ण कारकों को अपने चित्र में सबसे ऊपर रखें। श्री अग्रवाल की सूची का उपयोग करने से आपको इस विधि का अभ्यास करने का मौका मिलेगा।
अपनी सीखने की डायरी में चित्र बनाते समय, विचार करें कि क्या कुछ ऐसा है जिसे आप अपनी खुद की परिस्थितियों से उस सूची में जोड़ेंगे और प्रेरक बलों का उपयोग करने तथा निरोधक बलों को घटाने के लिए आप क्या कुछ कर सकते हैं।
चर्चा
सबसे पहले मुद्दों को सूचीबद्ध एवं श्रेणीबद्ध करके तथा उसके बाद उन्हें भार (महत्व) देकर आप अवरोधक बलों से निपटने और प्रेरक बलों से अधिकतम लाभ उठाने के अपने प्रयासों को वरीयता के क्रम में व्यवस्थित कर सकते हैं। क्या चीजें महत्वपूर्ण हैं और क्या चीजें परिवर्तन प्रेरित करती हैं उनका नज़र से बाहर हो जाना आसान है। इस प्रकार की चित्रात्मक प्रस्तुतियों से आपको अपने निष्कर्षों को संगठित रूप देने तथा अन्य के साथ साझा करने में मदद मिल सकती है। परिवर्तन लाने के लिए श्री अग्रवाल ने क्या किया यह जानने के लिए वृत्त अध्ययन 4 पढ़ें।
अपनी सूचियां बनाने के बाद हमने तय किया कि सबसे बड़ा प्रेरक बल यह है कि गृहकार्य से पाठ्यक्रम पूरा करने का मौका मिलता है। हम पाठ्यपुस्तक के कुछ हिस्से को पढ़ने का कार्य तय कर सकते हैं, पर कई अध्यापकों ने यह माना कि उन्होंने यह कभी नहीं जांचा कि कार्य को समझा गया है या नहीं। सबसे छोटे प्रेरक बलों में से एक था अभिभावकों से मिलने वाला सहयोग/समर्थन। ऐसा इसलिए था क्योंकि हम जिस इलाके में रहते हैं वहां बहुत से अभिभावक खुद ही शिक्षित नहीं हैं और इसलिए वे इसकी महत्ता नहीं देख सकते। (मैंने निजी तौर पर भी यह पाया कि सबसे बड़े प्रेरक बलों में से एक थीं सुश्री नागराजू, एक शिक्षिका जो संपूर्ण अभ्यास को लेकर बहुत उत्साही थीं और अपनी कक्षा में गृहकार्य को सुधारने को लेकर दृढ़निश्चयी थीं।)
सबसे बड़ा अवरोधक बल था विद्यार्थियों का शाम को घरेलू कार्य या सवैतनिक कार्य करने की अपेक्षा रखना। (हालांकि, निजी तौर पर, मैंने पाया कि सीखने में सहयोग करने वाले अच्छी गुणवत्ता के गृहकार्य अभ्यास तय करने में लगने वाला अतिरिक्त नियोजन स्पष्ट रूप से एक समस्या था, और 20 वर्षों के अध्यापन अनुभव वाले श्री मेघनाथन इस बारे में बहुत नकारात्मक थे।)
वर्णित किए गए परिवर्तन सिद्धांतों में से प्रत्येक एक मामूली भिन्न दृष्टिकोण उपलब्ध कराता है और मामूली भिन्न चीजों पर जोर देता है। तथापि, वे बहुत सी विशेषताएं साझा करते हैं। परिवर्तन इनसे प्रभावित होता है:
एक शिक्षण और विद्यालय प्रमुख के तौर पर आप अपनी भूमिका में बहुत से परिवर्तन अनुभव करेंगे। एक परिवर्तन या पहल के बारे में सोचें जो सफल से कम रहा हो। शायद यह लोगों को उत्साहित करने में असफल रहा, या उसका समय खराब था या बहुत अधिक महत्वाकांक्षी था। यह एक ऐसा परिवर्तन हो सकता है जो आपने आयोजित किया था, या शायद किसी अन्य व्यक्ति द्वारा आयोजित किया गया था। यह क्यों असफल हुआ इसकी पहचान करने के लिए ऊपर वर्णित सिद्धांतों का उपयोग करें।
अगर आप परिवर्तन में दोबारा सम्मिलित थे, क्या भिन्न किया जा सकता था? सिद्धांतों में से प्रत्येक कुछ ऐसा पहचान करने का प्रयास करें जो एक अंतर पैदा करे। आप किसी अन्य विद्यालय नेता के साथ अपने विचारों को साझा करने को उपयोगी पा सकते हैं, क्योंकि चर्चा से अन्य व्याख्याएं और दृष्टिकोण बाहर आ सकते हैं।
चर्चा
परिवर्तन असफल हो सकता है क्योंकि सिद्धांत 1 में दिए गए कदमों में से एक पूरा नहीं किया गया, या कम अनुमान लगाया गया। ऐसा हो सकता है कि वर्तमान (सिद्धांत 2) के साथ अपर्याप्त असंतोष हो, परिकल्पना पर्याप्त स्पष्ट न हो या पहले कदम बहुत अधिक महत्वाकांक्षी हों। यह संभव है कि परिवर्तन की अगुवाई करने वाले लोगों ने उन कारणों पर ध्यान न दिया हो जो उनकी सहायता कर सकते थे या उन्हें रोकते (सिद्धांत 3)।
वैकल्पिक रूप से, सारे सावधानीपूर्वक किए गए नियोजन के बावजूद, यह संभव है कि परिवर्तन बहुत अधिक महत्वाकांक्षी था या केवल एक व्यक्ति कार्य कर रहा था। परिवर्तन अक्सर उस समय अधिक प्रभावी होता है जब कोई दल इसकी अगुवाई करता है।
परिवर्तन का मालिकाना हक बहुत महत्वपूर्ण है। प्रमुख स्वयं परिवर्तन नहीं कर सकते। उन्हें अन्य लोगों के जरिये कार्य करना चाहिए और उन पर सहयोग करने के लिए प्रभाव डालना चाहिए। यह तब सर्वश्रेष्ठ प्राप्त होता है जब सकारात्मक सामूहिक कार्य करने का वातावरण और एक साथ सीखने और सुधार करने की प्रतिबद्धता होती है।
एक तकनीक जो बहुत उपयोगी प्रमाणित हुई है वह एक परिवर्तन दल स्थापित करने की है। यह महत्वपूर्ण है कि परिवर्तन प्रमुख पर पूरी तरह निर्भर न हों और उन लोगों से विस्तृत मालिकाना हक हो जो इसे लागू करने के लिए जिम्मेदार होंगे।
परिवर्तन दल को बनाना और इसका कार्य तय करना आपके संदर्भ पर निर्भर करेगा। हालांकि, विचार करने के लिए कुछ महत्वपूर्ण कारण है:
घटनाओं से संबंधित समय (टाइमस्केल): आपको घटनाओं से संबंधित समय के बारे में स्पष्ट होना चाहिए लेकिन इनकी नियमित समीक्षा के लिए तैयार रहें। अधिकांश परिवर्तन मूल रूप से सोचे गए से अधिक समय लेते हैं और यह बेहतर (कारण के अंदर) होगा कि समझ और विस्तृत योजना को सुनिश्चित किया जाए न कि पर्याप्त तैयारी के बिना जल्द आरंभ कर दिया जाए।
मैंने पांच लोगों का ‘होमवर्क दल’ बनाने का निर्णय लिया। मैंने अपने सहयोगी से दल की अगुवाई करने को कहा और मैंने सुनिश्चित किया कि इसमें सुश्री नागराजू और श्री मेगानाथन, एसएमसी से एक अभिभावक प्रतिनिधि, और श्रीमती चक्राकोडी, एक अन्य शिक्षक जो लगभग सुश्री नागराजू की तरह की उत्साही हैं, सम्मिलित हों। मैंने अपनी सहयोगी के साथ यह सुनिश्चित करने के लिए बैठक की कि वे समझ गई हैं कि मैं उनसे क्या करवाना चाहता हूं और हम सहमत हुए कि वे प्रत्येक सप्ताह प्रगति पर रिपोर्ट देंगी।
उन्होंने छात्रों की होमवर्क की आदतों के बारे में अधिक जानने के लिए एक सर्वे किया और उन्होंने अभिभावकों के लिए विद्यालय में एक बैठक आयोजित की। वे कुछ परिवारों के घरों में भी गए। उन्होंने पाठ्यपुस्तक में प्रत्येक अध्याय को भी पढ़ा और सावधानी से एक होमवर्क अभ्यास की योजना बनाई जिसने वास्तव में समझ का परीक्षण किया और उससे पढ़ाई मजबूत हुई, जिससे शिक्षकों को स्वयं प्रत्येक चीज की योजना न बनानी पड़े। उन्होंने, TESS-India इकाइयों के उपयोग से, हमारी नियमित कर्मचारी बैठकों में से एक का उपयोग ‘समकक्ष समीक्षा’ और ‘आत्म- समीक्षा’ के बारे में बात करने के लिए भी किया, जिससे शिक्षक यह समझ सकें कि छात्रों को एक-दूसरे के साथ ही उनसे भी फीडबैक मिल सकता है। छात्र सर्वेक्षण से पता चला कि अगर उनके पास अपने कार्य को कैसे प्रस्तुत किया जाए इसे लेकर अधिक विकल्प, या स्वतंत्र शोध करने का अवसर हो, तो वे अधिक प्रेरित अनुभव करेंगे।
श्री अग्रवाल के दल की संरचना के फायदों पर विचार करें और फिर अपने विद्यालय के बारे में सोचें। अगर आपको श्री अग्रवाल के समान परिवर्तन को लागू करना हो, तो अपनी सीखने की डायरी में यह निर्णय लें कि आपके दल में कौन होगा और यह संकेत दें कि प्रत्येक व्यक्ति को क्यों चुना जाएगा (उनकी विशेषज्ञता, निराशावाद, शक्ति, परख, आदि )। निर्णय करें कि क्या आप परिवर्तन दल की अध्यक्षता करेंगे या यह जिम्मेदारी किसी और को देंगे। अगर आप किसी और को जिम्मेदारी देते हैं, तो आप प्रगति की निगरानी कैसे करेंगे?
चर्चा
श्री अग्रवाल ने एक छोटा परिवर्तन दल चुना था। उन्होंने अधिक उत्साही और कम उत्साही शिक्षकों को सम्मिलित किया, यह उम्मीद करते हुए कि सुश्री नागराजू और श्रीमती चक्राकोडी श्री मेगानाथन को इस बात के लिए आश्वस्त करेंगी कि यह एक अच्छा विचार है – वैसे यह श्री अग्रवाल की ओर से लिया गया एक जोखिम था। यह महत्वपूर्ण था कि उनका सहयोगी एक साथी था, नहीं तो परिवर्तन आसानी से राह भटक सकता था।
अपने परिवर्तन दल के साथ, आपको न केवल विभिन्न योगदानों के बारे में, बल्कि विभिन्न व्यक्तित्वों से सर्वश्रेष्ठ कैसे काम कैसे करवाया जाए, इस बारे में सोचने की आवश्यकता होगी। स्पष्ट केंद्र बिंदु और परिणाम आवश्यक हैं,इस कारण अध्यक्ष को मजबूत होने की आवश्यकता है।
यह महत्वपूर्ण है कि परिवर्तनों की निगरानी यह देखने के लिए की जाए कि वे सफल हो रहे हैं। अनुश्रवण का आरंभ एक शुरुआती चरण में होना चाहिए जिससे अगर आवश्यक हो तो योजना को बदला जा सके, और जिससे शुरुआती सफलताओं पर नजर पड़े और जश्न मनाया जाए। परिवर्तन का प्रबंधन करने वाले दल को संभावित संकेतकों और जिस प्रदर्शन स्तर की अपेक्षा है उसके बारे में सोचने की आवश्यकता होगी।
‘संकेतकों’ में कोई भी ऐसी चीज सम्मिलित हो सकती है जो यह प्रमाण उपलब्ध कराए कि परिवर्तन हो रहा है। ये स्पष्ट चीजें हो सकती हैं, जैसे अभ्यास पुस्तिकाओं में कार्य या अपना होमवर्क पूरा करने वाले छात्रों की संख्या। वैकल्पिक तौर पर, इसमें छात्रों के बीच सुनी गई बातचीत, अभिभावकों से फीडबैक या विशेष छात्रों या शिक्षकों के रवैये में परिवर्तन जैसी चीजें हो सकती हैं।
‘प्रदर्शन स्तर’ कुछ अधिक मजबूत चीज होगी जैसे:
एक ऐसे परिवर्तन के बारे में सोचें जो आप अपने विद्यालय में लाना चाहेंगे। आपको कैसे पता चलेगा कि परिवर्तन हो रहा है? अपनी सीखने की डायरी में तीन संकेतकों को लिखें जिनका उपयोग आप परिवर्तन की अनुश्रवण के लिए कर सकते हैं।
आप किस प्रदर्शन स्तर की तलाश करेंगे? ऐसे तीन उपाय बताएं जिनका उपयोग आप परिवर्तन की प्रगति की अनुश्रवण के लिए कर सकते हैं।
चर्चा
यह महत्वपूर्ण होगा कि प्रदर्शन उपाय वास्तविक हों। परिवर्तन दल को प्रेरित बने रहने के लिए कुछ शुरुआती सफलताओं का अनुभव करने की आवश्यकता होगी! कार्य के आगे बढ़ने पर आप अपेक्षाओं में वृद्धि कर सकते हैं, लेकिन शुरुआती प्रदर्शन उपाय एक वास्तविक स्तर पर तय किए जाने चाहिए, वर्तमान स्थिति से कुछ ऊपर।
परिवर्तन एक रेखीय तरीके से नहीं होता। जिन्होंने परिवर्तन का अध्ययन किया है वे दिखाते हैं कि चित्र 6 में परिवर्तन वक्र हमारी प्रतिक्रिया का एक सूचक है। कठिनाई यह है कि किसी भी विद्यालय में बहुत से अलग अलग व्यक्ति होते हैं जो विभिन्न दरों पर प्रक्रिया से गुज़रेंगे: कुछ प्रक्रिया के अंत में उस समय हो सकते हैं जब अन्य अभी आरंभ में ही हों। प्रमुख के लिए महत्वपूर्ण संदेश यह है कि आप इस बात का सावधानी से अवलोकन करें कि व्यक्ति और समूह परिवर्तन को कैसी प्रतिक्रिया दे रहे हैं और उन लोगों की सहायता (या कई बार चुनौती दें) के लिए उपयुक्त कार्रवाई करें जिन्हें विशेष तौर पर परिवर्तन के साथ समायोजन में कठिनाई हो रही है।
परिवर्तन प्रक्रिया के आरंभ में अक्सर उत्साह, रूचि और आशावाद होता है, जिससे बहुत से व्यक्तियों के प्रदर्शन में सुधार आता है। परिवर्तन को समझने और प्रदर्शन में सभी जटिलताओं की पहचान बढ़ने पर, विश्वास गिर सकता है और प्रदर्शन स्तरों में कमी आती है जिसे ‘गिरावट’ के तौर पर जाना जाता है। यह सामान्य है, लेकिन प्रमुख यह सुनिश्चित करने के लिए काफी कुछ कर सकता है कि यह गिरावट बहुत अधिक न हो और न ही बहुत लंबे समय तक हो।
एक प्रमुख द्वारा गिरावट को न्यूनतम करने के कुछ उपाय इस प्रकार हैं:
वर्ष 2004 में भारत सरकार ने ‘गतिविधि-आधारित सीखना’ (एबीएल) प्रस्तुत किया था। वर्ष 2004/5 में राज्यों ने सभी अध्यापकों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम प्रदान कर दिए और इस पहल को लेकर अध्यापकों में उत्साह था। वर्ष 2007/8 आते-आते लोगों को यह महसूस होने लगा कि एबीएल का क्रियान्वयन उनकी परिकल्पना से अधिक कठिन था। वर्ष 2008 तक, कई क्षेत्र के अध्यापकों ने हार मान ली और अधिक पारंपरिक विधियों की ओर लौट गए। ‘उच्च अपेक्षाएं’ और उत्साह, ‘निराशा’ के गर्त में जा गिरे।
सभी विद्यालयों के सभी अध्यापकों को बदलने की आवश्यकता रखने वाले कार्यक्रम का क्रियान्वयन अत्यधिक महत्वाकांक्षी कार्य है। टिकाऊ परिवर्तन धीरे-धीरे ही होता है और उसमें उसके क्रियान्वयन हेतु जिम्मेदार लोगों का शामिल होना आवश्यक होता है।
TESS-India की सामग्रियां – जो मुक्त रूप से ऑनलाइन उपलब्ध हैं – अध्यापकों को वे छोटे-छोटे परिवर्तन करने में मदद करेंगी जिनसे उनकी कक्षाओं में सुधार आएंगे। ये वीडियो भारत की कक्षाओं में भागीदारीपूर्ण अध्यापन पद्धतियों को सक्रिय रूप में दिखाते हैं। इन संसाधनों से आपको और आपके अध्यापकों को अध्यापन एवं ज्ञानार्जन में वास्तविक सुधार लाने के लिए ‘डुबकी’ से आगे जाने में मदद मिलेगी।
इस इकाई में पीछे दिए गए बल क्षेत्र विश्लेषण पर ज़रा फिर से नज़र डालें। आप देखेंगे कि उसमें परिवर्तन के बल और विरोधी बल यानी परिवर्तन के रास्ते की बाधाएं मौजूद हैं। किसी परिवर्तन को सफल रूप से क्रियान्वित करने के लिए या तो सकारात्मक परिवर्तन के बलों को बढ़ाना या शक्तिशाली बनाना होगा, या फिर परिवर्तन की बाधाओं को घटाना या समाप्त करना होगा – या फिर दोनों कार्य करने होंगे।
केस स्टडी 5 में श्री अग्रवाल द्वारा अपनाई गई पद्धति पर फिर से नज़र डालें। अपनी सीखने की डायरी में सूची बना कर लिखें कि कौन से कार्य सकारात्मक बलों को शक्तिशाली बनाने के लिए थे और कौन से बाधाओं को घटाने के लिए।
चर्चा
प्रेरक बलों को शक्तिशाली बनाने के लिए, श्री अग्रवाल के दल ने अभिभावकों को संलग्न किया और अध्यापकों को उनके नियोजन कार्य में मदद देने के लिए सहयोगी कार्य को बढ़ावा दिया। बाधाएं घटाने के लिए श्री अग्रवाल ने परिवर्तन दल में एक सर्वाधिक प्रतिरोधी अध्यापक को शामिल किया। उन्होंने विद्यार्थियों के दृष्टिकोण के बारे में और जानकारी जुटाई और समकक्ष समीक्षा एवं स्व-समीक्षा के क्रियान्वयन में अध्यापकों की मदद की।
श्री थापा एक कर्तव्यनिष्ठ अध्यापन विद्यालय प्रमुख थे जिन्होंने राज्य के शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 (RTE) के कार्यान्वयन के विवरणों की पुष्टि करने वाली एक बैठक में भाग लिया था। इस विवरण में अगले वर्ष समूह में प्रोन्नति को रोकने पर लगाया गया प्रतिबंध भी शामिल था। जब वे विद्यालय लौटे तो उन्हें पता था कि स्टाफ़ की प्रतिक्रिया क्या होगी, और वे चाह रहे थे कि हाथ उठाएं और कहें ‘क्या करें’ – ‘यह मेरा दोष नहीं; हमें खराब कार्यों से भी अधिकतम लाभ निकालना ही होता है!’
उनका मानना था कि इस प्रतिबंध को शामिल करना सही था, और उन्होंने सप्ताहांत में इस बारे में काफी परिकल्पना की कि पहली स्टाफ बैठक में क्या करना है। सप्ताहांत के दौरान मीडिया को RTE के प्रस्तुत होने की जानकारी हो चुकी थी और हर कोई इसे लेकर बेचैन था कि इसका क्या अर्थ होगा। जब सोमवार को उनकी बैठक शुरू हुई तो जबर्दस्त शोर-शराबे ने उनका अभिवादन किया। स्टाफ उनके कार्य को और कठिन बना देने वाले के बारे में अपनी भड़ास निकाल देना चाहता था। श्री थापा ने एक बड़ा ही साधारण सा कदम उठाया। उन्होंने स्टाफ को RTE के बारे में बताया, उसके कुछ लाभ बताए कि इससे विद्यार्थियों को क्या लाभ होंगे, आने वाली पीढ़ी की आकांक्षाओं को क्या लाभ होंगे और दीर्घकाल में अध्यापकों को छोटी आकार की कक्षाओं के रूप में क्या-क्या लाभ होंगे। उन्होंने किसी पर भी दोषारोपण नहीं किया। बैठक के अंत में उन्होंने जो कहा उससे स्टाफ रुक कर सुनने और सोचने पर मजबूर हो गया।
[श्री थापा ने स्टाफ से कहा], मैं जानता हूँ कि मैं आप सब जितने पाठ नहीं पढ़ाता, पर मैं रोज़ाना पढ़ाता तो हूँ, और इसलिए मैं समझ सकता हूँ कि आप क्यों खिन्न हैं। पर यदि हम सच्चाई से सोचें, तो हममें से कितने ऐसे हैं जो विद्यार्थियों को रोके रखने के लिए दिन के आखिर तक रुकते हैं? और प्रोन्नत नहीं किए जाने की धमकी ने कब किसी विद्यार्थी को आलसी या शरारती होने से रोका है? आपकी बात सुनकर, मुझे लगता है कि आपकी चिंताएं इसे लेकर भी हैं कि हम कैसे हमारे विद्यार्थियों को सफल होने में मदद दे सकते हैं – और हाँ, निश्चित रूप से, हम यह पक्का करने के लिए क्या कर सकते हैं कि शरारती विद्यार्थी और ज्यादा कठिन न बन जाएं। आज जब मैं अपने नियमित दैनिक भ्रमण पर गया, तो मैंने देखा कि कुछ ऐसे पाठ हैं जिनमें विद्यार्थी हमेशा रुचि लेते हैं, उनमें व्यवहार शायद ही कभी कोई समस्या बनता है और जिनमें विद्यार्थी चीजों को सीख रहे हैं। सरकार जो भी कहे पर वह जारी रहेगा।
आज के दिन ने मुझे याद दिलाया कि मेरा मुख्य कार्य अपने कार्यालय में बैठ कर फॉर्म भरना नहीं है। आज मैं चाहता हूँ कि हम सब अपने बीच इस बात पर एक चर्चा शुरू करें कि कैसे हम अपनी कक्षाओं को अधिक रोचक बनाएं, विद्यालय के उन शिक्षकों से कैसे सीखें जो मुझे और विद्यार्थियों, दोनों को प्रेरित करते हैं, भले ही उनमें कितने भी विद्यार्थी हों, और हम हमारे और यह पता करें कि उनके गुणों को बाकी सभी से कैसे साझा किया जाए। और – सबसे महत्वपूर्ण बात – स्वयं विद्यार्थियों को यह पता करने में कैसे संलग्न किया जाए कि ज्ञानार्जन को अधिक आनंददायक तथा अध्यापन को अधिक उत्पादक बनाने में उनकी जिम्मेदारियां क्या-क्या हैं।
अपनी सीखने की डायरी में, वे कौशल एवं व्यवहार सूचीबद्ध करें जिनका उपयोग श्री थापा ने अपने स्टाफ को उनकी मदद के लिए प्रोत्साहित करने में किया। इस बारे में सोचें कि कैसे उन्होंने नेतृत्व प्रदर्शित किया, पर साथ ही यह भी सोचें कि दूसरों को अपने अनुसरण हेतु प्रेरित करने के लिए उन्होंने किन कौशलों और व्यवहारों का उपयोग किया। इस बारे में सोचें कि आप भी किस हद तक इन कौशलों का उपयोग करते हैं, और किन कौशलों को आप और विकसित करने के बारे में परिकल्पना कर सकते हैं।
चर्चा
श्री थापा सकारात्मक और आशावादी थे और उन्होंने आगे का रास्ता देखने में स्टाफ की मदद की। वे व्यावहारिक मुद्दों पर अटकने की बजाए RTE की परिकल्पना को और उसके अभीष्ट परिणामों को देखने में स्टाफ की मदद कर सके। उनके विद्यालय में जो हो रहा था उसकी जिम्मेदारी उन्होंने अपने सिर पर ली और किसी अन्य पर दोषारोपण करने की कोशिश नहीं की। उन्होंने दिखाया कि वे अध्यापकों के सामने मौजूद व्यावहारिक मुद्दों को समझते हैं, पर उन्होंने विद्यालय के मौजूदा अच्छे कार्याभ्यासों को आगे बढ़ाते हुए अध्यापकों को आगे बढ़ने का रास्ता दिखाया। उन्होंने स्टाफ की चिंताएं समझीं और मुद्दों को ‘मैं एक स्टाफ विरोधी नेता’ के रूप में व्यक्तिगत नहीं बनने दिया। उन्होंने विश्लेषण और शोध करने की तथा उनके स्टाफ के लिए आगे बढ़ने का जो सबसे अच्छा रास्ता है उस पर गंभीरता से चिंतन करने की योग्यता दिखाई।
इस इकाई में आपने परिवर्तन के कुछ सिद्धांतों का और, परिवर्तनों की प्रस्तुति एवं कार्यान्वयन प्रभावी रूप से हो यह सुनिश्चित करने में आने वाली कुछ प्रमुख चुनौतियों का परिचय पाया है। कुछ भी करने से पहले परिवर्तन के बारे में ध्यानपूर्वक चिंतन करना महत्वपूर्ण है ताकि आप लोगों को अपने साथ ले आएं। परिवर्तन के तीन सिद्धांत और ‘परिवर्तन वक्र’ परिवर्तन के बारे में सोचने का एक ऐसा तरीका प्रदान करते हैं जो प्रक्रिया में सहयोगी अंदरूनी जानकारियां लेकर आता है।
आपको ऐसी कई तकनीकों से अवगत करा दिया गया है जो परिवर्तन की प्रक्रिया का नेतृत्व करने में आपकी मदद करेंगीं। आपने वृत्त अध्ययनों से उन नेतृत्व कौशलों को देख लिया है जो परिवर्तन का प्रभावी नेतृत्व एवं कार्यान्वयन करने के लिए आवश्यक हैं। आप चाहें तो अतिरिक्त अध्ययन कर सकते हैं और अपने विद्यालय में एवं आसपास आपके साथ कार्य करने वाले लोगों के साथ परिवर्तन के कुछ सिद्धांतों को साझा कर सकते हैं।
यह इकाई उन इकाइयों के समूह/सेट का हिस्सा है जो नेतृत्व पर दृश्य के महत्वपूर्ण क्षेत्र से संबंधित हैं (नेशनल कॉलेज ऑफ लीडरशिप के साथ संरेखित)। आप अपने ज्ञान और कौशलों को विकसित करने के लिए इस समूह में आगे आने वाली अन्य इकाइयों पर नज़र डालकर लाभान्वित हो सकते हैं:
अपने विद्यालय में परिवर्तन का नियोजन और उसका नेतृत्व करना।
.अभिस्वीकृतियाँ
तृतीय पक्षों की सामग्रियों और नीचे अन्यथा कथित को छोड़कर, यह सामग्री क्रिएटिव कॉमन्स एट्रिब्यूशन-शेयरएलाइक लाइसेंस के अंतर्गत उपलब्ध कराई गई है: (http://creativecommons.org/ licenses/ by-sa/ 3.0/)। नीचे दी गई सामग्री मालिकाना हक की है तथा इस परियोजना के लिए लाइसेंस के अंतर्गत ही उपयोग की गई है, तथा इसका Creative Commons लाइसेंस से कोई वास्ता नहीं है। इसका अर्थ यह है कि इस सामग्री का उपयोग अननुकूलित रूप से केवल TESS-India परियोजना के भीतर किया जा सकता है और किसी भी बाद के OER संस्करणों में नहीं। इसमें TESS-India, OU और UKAID लोगो का उपयोग भी शामिल है।
इस यूनिट में सामग्री को पुनः प्रस्तुत करने की अनुमति के लिए निम्न स्रोतों का कृतज्ञतापूर्ण आभार:
चित्र 2: नोस्टर, टी. विला, आर. एवं थाउज़ेंड, जे. (2000) ‘अ फ्रेमवर्क फॉर थिंकिंग अबाउट सिस्टम्स चेंज’, इन विला, आर. एंड थाउज़ेंड, जे. (ईडीएस) रीस्ट्रक्चरिंग फॉर केरिंग एंड इफेक्टिव एजुकेशन: [Figure 2: adapted from Knoster, T., Villa, R. and Thousand, J. (2000) ‘A framework for thinking about systems change’, in Villa, R. and Thousand, J. (eds) Restructuring for Caring and Effective Education:] पीसिंग द पजल टुगेदर, पृ.सं. [Piecing the Puzzle Together, pp.] 93–128। [93–128.] बाल्टीमोर, एमडी: [Baltimore, MD:] पॉल एच. ब्रुक्स पब्लिशिंग। [Paul H. Brookes Publishing.]
चित्र 6: डेवीज़ आर. (2012) ‘सीआरएम इंप्लीमेंटेशन – द इफेक्ट ऑन यूजर्स (पार्ट 1)’, http://www.contactedgecrm.com/ 2012/ 03/ 09/ crmimplementation-theeffectonusers-pt1/ से अनुकूलित। [Figure 6: adapted from Davies, R. (2012) ‘CRM implementation – the effect on users (part 1)’, http://www.contactedgecrm.com/ 2012/ 03/ 09/ crmimplementation-theeffectonusers-pt1/
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वीडियो (वीडियो स्टिल्स सहित): भारत भर के उन अध्यापक शिक्षकों, मुख्याध्यापकों, अध्यापकों और छात्रों के प्रति आभार प्रकट किया जाता है जिन्होंने उत्पादनों में दि ओपन यूनिवर्सिटी के साथ काम किया है।