शिक्षक अक्सर अपने छात्रों से सवाल पूछते रहते हैं; सवाल पूछने का अर्थ होता है कि शिक्षक बेहतर सीखने में अपने छात्रों की मदद कर सकते हैं। एक अध्ययन के अनुसार एक शिक्षक अपने समय का औसतन एक–तिहाई हिस्सा छात्रों से सवाल पूछने में खर्च करता है (हेस्टिंग्स, 2003)। पूछे गए प्रश्नों में से, 60 प्रतिशत में तथ्यों को दोहराया गया था और 20 प्रतिशत प्रक्रिया संबंधी थे (हैती, 2012), जिनमें से ज्यादातर के उत्तर सही या गलत में थे। लेकिन क्या सिर्फ सही या गलत में उत्तर वाले सवाल पूछने से सीखने को प्रोत्साहन मिलता है?
छात्रों से विभिन्न प्रकार के प्रश्न पूछे जा सकते हैं। शिक्षक का प्रश्न पूछना इस बात पर निर्भर करता है कि वे किस तरह के उत्तर और परिणाम पाना चाहते हैं। शिक्षक आमतौर पर छात्रों से सवाल पूछते हैं, ताकि वेः
आमतौर पर प्रश्नों का उपयोग यह देखने के लिए किया जाता है कि छात्र क्या जानते हैं, इसलिए यह उनकी प्रगति का आंकलन करने के लिए महत्वपूर्ण है। प्रश्नों का उपयोग छात्रों को प्रेरणा देने, चिंतन कौशल को बढ़ाने और जिज्ञासु प्रवृत्ति विकसित करने के लिए भी किया जा सकता है। उन्हें दो श्रेणियों में बाँटा जा सकता हैः
खुले सवाल छात्रों को पाठ्यपुस्तक पर आधारित जवाबों से परे सोचने को प्रोत्साहित करते हैं, इसलिए कई प्रकार के उत्तर निकल कर आते हैं। इनसे शिक्षकों को भी विषय वस्तु पर छात्रों की समझ का आंकलन करने में मदद मिलती है।
कई शिक्षक एक सेकंड से भी कम समय में अपने प्रश्न का उत्तर चाहते हैं और इसलिए अक्सर वे खुद ही प्रश्न का उत्तर दे देते हैं या प्रश्न को दूसरी तरह से दोहराते हैं (हेस्टिंग्स, 2003)। छात्रों को केवल प्रतिक्रिया देने का समय मिलता है – उनके पास सोचने का समय ही नहीं होता! अगर आप उत्तर चाहने से पहले कुछ सेकंड इंतजार करते हैं तो छात्र को सोचने के लिए समय मिल जाएगा। इसका छात्रों की उपलब्धि पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। प्रश्न को प्रस्तुत करने के बाद इंतजार करने से निम्नांकित में वृद्धि होती हैः
जितने सकारात्मक ढंग से आप दिए गए उत्तरों को स्वीकार करते हैं, उतना ही ज्यादा छात्र भी सोचना और कोशिश करना जारी रखेंगे। यह सुनिश्चित करने के कई तरीके हैं कि गलत उत्तरों और गलत धारणाओं को सुधार दिया जाए, और यदि एक छात्र के मन में कोई गलत धारणा है, तो आप निश्चित रूप से यह मान सकते हैं कि कई अन्य छात्रों के मन में भी वही गलत धारणा होगी। इस संदर्भ में आप निम्नलिखित प्रयास कर सकते हैं:
सभी उत्तरों को ध्यान से सुनें तथा छात्रों को और समझाने के लिए प्रेरित करें। उत्तर चाहे सही हो या गलत, लेकिन यदि आप छात्रों से अपने उत्तरों को विस्तार में समझाने को कहते हैं, तो अक्सर छात्र अपनी गलतियाँ खुद ही सुधार लेंगे। आप एक चिंतनशील कक्षा का विकास करेंगे और आपको वास्तव में पता चलेगा कि आपके छात्र कितना सीख गए हैं और अब किस तरह आगे बढ़ना चाहिए। यदि गलत उत्तर देने पर अपमान या सज़ा मिलती है, तो दोबारा शर्मिंदगी या डांट के डर से आपके छात्र कोशिश करना ही छोड़ देंगे।
यह महत्वपूर्ण है कि आप ऐसे प्रश्नों को पूछने की कोशिश करें, जो सही उत्तर पर ख़त्म न होता हो। सही उत्तरों के बदले फॉलो–अप प्रश्न पूछने चाहिए, जो छात्रों का ज्ञान बढ़ता है और उन्हें शिक्षक के साथ और निकटता से कार्य करने का मौका देते है। ऐसा आप निम्नवत पूछकर कर सकते हैं:
छात्रों की ज्यादा गहराई में जाकर सोचने में मदद करना और उनके उत्तरों की गुणवत्ता को बेहतर बनाना आपकी भूमिका का बहुत ही महत्वपूर्ण हिस्सा है। अधिक उपलब्धि हासिल करने में निम्नलिखित कौशल छात्रों की मदद करते हैं:
एक शिक्षक के रूप में, आपको ऐसे प्रश्न पूछने चाहिए जो प्रेरित करने वाले और चुनौतीपूर्ण हों, ताकि आप अपने छात्रों से रोचक और आविष्कारक उत्तर पा सकें। आपको उन्हें सोचने का समय देना चाहिए और आप सचमुच यह देखकर चकित रह जाएंगे कि आपके छात्र कितना कुछ जानते हैं और आप सीखने में उनकी प्रगति में कितनी अच्छी तरह मदद कर सकते हैं।
याद रखें कि प्रश्न यह जानने के लिए नहीं पूछे जाते कि शिक्षक क्या जानते हैं, बल्कि यह जानने के लिए पूछे जाते हैं कि छात्र क्या जानते हैं। यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि आपको कभी भी अपने प्रश्नों का जवाब नहीं देना चाहिए! आखिरकार यदि छात्रों को यह पता ही हो कि वे आगे कुछ सेकंड तक चुप रहते हैं, तो आप खुद ही उत्तर दे देंगे, तो फिर उन्हें उत्तर देने का प्रोत्साहन कैसे मिलेगा?
Hastings, S. (2003) ‘Questioning’, TES Newspaper 4 जुलाई। यहाँ से उपलब्ध हैः http://www.tes.co.uk/ article.aspx?storycode=381755 (22 सितंबर 2014 को प्राप्त किया गया)।
Hattie, J. (2012) Visible Learning for Teachers: Maximising the Impact on Learning. Abingdon: Routledge.
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