समझ के विकास के लिए संरचित-संसाधनों का उपयोग करनाः स्थानीयमान

1 दशमलव संख्या प्रणाली में

भारत के राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद के अनुसार (2008, पृ. 35):

  • स्थानीय मान की धारणा को समझना, संख्या प्रतिनिधित्व का एक महत्वपूर्ण पहलू तथा गणित की प्रमुख आवश्यकता है।

संख्या की दशमलव प्रणाली, किसी भी संख्या को, छोटी या बड़ी, केवल 0 से 9 तक के दस अंकों का उपयोग करके लिखने में सक्षम करती है। यह निम्न सिद्धांतों पर आधारित है:

  • यह प्रणाली केवल निम्न दस अंकों का उपयोग करती है: 0, 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8 और 9।
  • किसी संख्या में अंक का स्थान, उसके मान को निर्धारित करता है।
  • यह प्रणाली 10 का ‘आधार’ के रूप में उपयोग करती है – किसी अंक के एक स्थान बाईं ओर मौजूद अन्य अंक का मान उससे दस गुना अधिक होता है।
  • उसका प्रतिनिधित्व करने के लिए एक प्लेसहोल्डर (स्थान पूरक) के रूप में शून्य का उपयोग किया जाता है, उदाहरण के लिए, संख्या 205 में दसवें स्थान पर कोई दहाई नहीं है।

विद्यार्थियों को इन सिद्धांतों को स्पष्ट रूप से जानने की आवश्यकता नहीं है। हालाँकि, यह महत्वपूर्ण है कि इन सिद्धांतों का उपयोग करने के तरीकों के बारे में उन्हें अच्छी समझ हो, क्योंकि वे उनके गणितीय शिक्षण में आने वाली अधिकतर चीज़ों का आधार होंगी। विशेष रूप से, स्थानीय मान उन विधियों का आधार बनाते हैं, जिन्हें अधिक बड़ी संख्याओं से गणना करने हेतु उपयोग करने के लिए विद्यार्थियों को पढ़ाया जाता है, लेकिन संख्याओं को क्रमित करने, मापन करने और पैसों के प्रबंधन के लिए भी स्थानीय मान की अच्छी समझ होना महत्वपूर्ण है।

हालाँकि, स्थानीय मान की अवधारणा बहुत अमूर्त है। विद्यार्थियों को ऐसे सक्रिय साधनो से अपनी समझ विकसित करने के लिए बहुत सारे अवसर चाहिए, जिनमें दशमलव संख्या प्रणाली के ठोस और दृश्य उदाहरणों का उपयोग होता है। यह इकाई कई भिन्न निरूपणों और उनकी सीमाओं की संभावनाओं का अन्वेषण करती है।

विचार के लिए रुकें

जब आप स्कूल जाया करते थे या संभवतः उससे भी पहले के उस समय में वापस जाकर सोचें। क्या आपको संख्याओं की गणना करना सीखना या उन्हें लिखने का तरीका याद है? हो सकता है कि यह आसान न हो क्योंकि जो चीज़ें आपने बचपन में करनी सीखी थीं, वे अब ऐसी लगती हैं जैसे आप उन्हें ‘हमेशा से करते आए हैं’। परिणामस्वरूप, जब विद्यार्थी संख्या के बारे में सीख रहे होते हैं, तब उनकी सहायता करना जरूरी तौर पर आसान नहीं होता। विशेषकर उन विद्यार्थियों की, जिन्हें ऐसा करने में कठिनाई होती है।

अब जब आप एक शिक्षक हैं, क्या आपका ध्यान कभी अपनी कक्षा के किसी ऐसे विद्यार्थी पर गया है, जिसे संख्याओं को उलटा करने पर उन्हें पढ़ने में उलझन हो (उदा. 64 और 46) या जब संख्याओं में शून्य शामिल कर दिया जाए? आपके विचार से इसका कारण क्या हो सकता है?