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स्कूल के गणित को विद्यार्थियों के लिए उपयोगी और सार्थक बनाने में शब्द समस्याएं महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं। कक्षा के सन्दर्भ के साथ प्रतिदिन के कारणों को जोड़ने के अलावा वे स्कूल गणित को रोज़ाना की स्थितियों और समस्याओं के साथ जोड़ सकते हैं, और इसका विपरीत भी सही है। इसलिए यह बहुत महत्वपूर्ण है कि विद्यार्थियों को न केवल शब्द समस्याओं को सुलझाने का मौका दिया जाए बल्कि उन्हें खुद रचने का भी मौका दिया जाए।
शब्द समस्याओं के साथ कार्य करते समय कठिनाइयां तब पैदा हो सकती हैं जब विद्यार्थी उस सन्दर्भ को समझने का प्रयास करते हैं और उनके सामने ऐसे शब्द और अभिव्यक्तियां आती हैं जिनसे वे परिचित नहीं हैं– या जब वे शब्द समस्या के सन्दर्भ की कल्पना नहीं कर सकते।
विद्यार्थियों को मदद करने का एक प्रभावी तरीका है शब्द समस्याओं को कहानियों के रूप में देखना। विद्यार्थियों को कहानियां अच्छी लगती हैं और वे उनसे परिचित होते हैं। कहानियां अक्सर विद्यार्थियों की रूचि और उनका ध्यान खींच लेती हैं– जो शायद खुद भी कहानियां बनाने में निपुण हो सकते हैं। वे जानते हैं कि कहानियां पूरी तरह से काल्पनिक हो सकती हैं– लेकिन साथ ही वे उस संदर्भ में भी घट सकती हैं जिनसे विद्यार्थी परिचित हैं।
शोध बताता है कि विद्यार्थियों को उनके सीखने की गतिविधि के एक हिस्से के रूप में एक कहानी या वर्णन विकसित करने के लिए कहना समझ बढ़ाने में सहायक हो सकता है। एक प्रभावशाली शिक्षाविद् ब्रूनर (1986) का कहना है कि ऐसा इसलिए है क्योंकि ‘मानव बुनियादी रूप से वर्णन, कहानी सुनने–सुनाने वाला प्राणी है और इसी से वह दुनिया को समझता है’ (मैसन एंड जॉनसन–वाइल्डर, 2004 पृ. 68)।
कहानी या शब्द समस्या का वर्णन करने के लिए चित्र बनाने या प्रायोगिक शिक्षण सहायक सामग्री (मैनिपुलेटिव्ज़ या प्रॉप) का उपयोग करने से भी विद्यार्थियों को समस्या को समझने में और अलग अलग चरों के बीच संबंध को भौतिक रूप से देखने में मदद मिलती है।
पहले केस स्टडी में बताया गया है कि किस तरह श्रीमती चड्डा ने अपने विद्यार्थियों को जोड़ने की गणितीय धारणा समझाने के लिए कहानियों का उपयोग किया।
मैं कक्षा 1 की शिक्षिका श्रीमती चड्डा हूं।
मैंने अपने विद्यार्थियों को जोड़ना सिखाने की योजना बनाई। मेरा मानना है कि गणित बच्चों की समझ में आए, इसके लिए उन्हें गणितीय अवधारणाओं को एक सन्दर्भ में रख कर देखना आवश्यक है, इसलिए जब भी मैं गणित का नया विषय आरंभ करती हूं तो बहुत से ठोस अनुभव देने की कोशिश करती हूं। तो जोड़ने पर अपने सबक आरंभ करते समय, मैंने अदिति नाम की एक लड़की की एक छोटी सी कहानी सुनाई जिसे कंचे इकट्ठा करना पसंद था। मेरे पास टेबल पर कंचों का एक बॉक्स था।
एक दिन अदिति बागीचे में खेल रही थी और उसने ज़मीन पर कुछ कंचे पड़े देखे। वह बेहद खुश हुई और उसने उन्हें इकट्ठा करने का फ़ैसला किया। पहले उसे तीन कंचे मिले। (अब मैं एक विद्यार्थी वरुण से कहती हूं कि जोर से बोल कर तीन कंचे गिने और उन्हें कंचों के डिब्बे में से बाहर निकाल ले।)
मैंने कहानी जारी रखी: अदिति इसी तरह घूमती रही और उसने कंचे ढूंढना शुरू किया, और उसे चार और कंचे मिले। (अब वरुण चार और कंचे बाहर निकाल लेता है।)
अब मैं विद्यार्थियों से पूछती हूं: अदिति को कुल कितने कंचे मिले?
वरुण ने उत्तर देने के लिए अपना हाथ उठाया। मैंने वरुण से सारी कक्षा को बताने को कहा कि उसे उत्तर कैसे मिला। वरुण ने बताया कि कंचों की कुल संख्या जानने के लिए उसने कैसे गिनती की
कहानी को जारी रखते हुए, मैंने कहा कि अदिति घूमती रही क्योंकि उसे लगा कि उसे सारे बगीचे में खोज कर लेनी चाहिए। जैसे ही वह एक बेंच के पास आई तो उसने देखा कि उसके नीचे कुछ और कंचे पड़े हैं। उसे दो और कंचे मिले। फिर मैंने विद्यार्थियों से कहा कि वे गिन कर मुझे बताएं कि अब अदिति के पास कितने कंचे होंगे। मैंने ऐसे ही दो चरण और जोड़े
फिर मैंने इससे मिलती जुलती कुछ लघु कहानियां अपने विद्यार्थियों को सुनाई और उनसे चीज़ों की कुल संख्या बताने को कहा, जैसे बटन, पेंसिल, पत्थर आदि।
इसके बाद मैंने पूछना आरंभ किया कि यदि एक विद्यार्थी के पास तीन बिस्किट हैं और दूसरे के पास दो बिस्किट हैं, तो कुल बिस्किट कितने होंगे। हर समस्या के लिए मैंने पहले चीज़ों के चित्र बनाए [चित्र 1 देखें]।
फिर मैंने कहते हुए ब्लैकबोर्ड पर आंकिक प्रस्तुति लिखी:
इस बिंदु पर आकर मैंने जोड़ने के लिए ‘+’ के निशान के बारे में उन्हें बताया और फिर मैंने बराबर के लिए ‘=’ के निशान के बारे में बताया [चित्र 2]
फिर मैंने लिखा ‘3 + 2 = 5’.
फिर मैंने विद्यार्थियों को अदिति और कंचों की कहानी सुनाई, और उनसे पूछा कि मुझे इसे कैसे बनाना चाहिए। उनके निर्देशों पर मैंने ब्लैकबोर्ड पर कंचे बनाए और गणितीय व्यंजक लिखे। मिल कर हमने ‘+’ और ‘=’ चिह्नों का उपयोग करके ब्लैकबोर्ड पर कई और ‘जोड़ने’ से संबंधित कहानियां लिखीं।
![]() वीडियो: कहानी सुनाना, गीत, रोल–प्ले और नाटक |
केस स्टडी 1 में श्रीमती चड्ढा जोड़ने की गणितीय अवधारणा और विद्यार्थियों को परिचित एक वास्तविक जीवन के सन्दर्भ के बीच संबंध बना रही है। साथ ही वह विद्यार्थियों को कहानी के वर्णन में सक्रिय सहभागी बनने देती हैं
एक प्रभावशाली शिक्षाविद ब्रूनर (1966) ने सुझाव दिया था कि समझने के लिए शिक्षा प्रतिनिधित्व के तीन मोड या चरणों से होकर गुज़रने पर होता है: इनेक्टिव (गतिविधि-आधारित), चिह्नात्मक (छवि-आधारित) और प्रतीकात्मक (प्रतीक-या भाषा-आधारित)। उनका कहना है कि प्रतिनिधित्व के ये मोड वो तरीके हैं जिनमें जानकारी या ज्ञान को स्मृति में संग्रहीत और एनकोड किया जाता है (मैकलॉयड, 2008)
श्रीमती चड्ढा पहले वास्तविक कंचे देती हैं ताकि विद्यार्थी उत्तर पाने के लिए आसानी से उन्हें गिन कर जोड़ सकते हैं। बाद में, वे उसी बात को चीज़ों (बिस्किट) की छवियों की मदद से ब्लैकबोर्ड पर चित्रित करती हैं, और फिर वह जो कहता है उसे पहले शब्दों में और फिर चिह्नों में लिखती है।
साथ ही, श्रीमती चड्ढा इन तीन प्रस्तुतियों के बारे में लगातार बातें करके उन्हें आपस में जोड़ती हैं। उदाहरण के लिए, वह एक एक करके ‘जोड़ना’, ‘साथ में’ और ‘धन’ शब्द का अर्थ बताती हैं और इन तीनों को जोड़ने की क्रिया के साथ संबद्ध करती हैं। इससे विद्यार्थियों को अलग अलग संदर्भों में कई बार शब्दावली का सामना करने का अवसर मिलता है
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