यह मान लेना बहुत आसान है कि विद्यार्थी जानते हैं कि एक-दूसरे से बातचीत कैसे करनी है? परन्तु ऐसा हमेशा सच नहीं होता है, और कई मामलों में तो अधिक आयु वाले विद्यार्थियों को भी इस बारे में मार्गदर्शन की आवश्यकता पड़ेगी कि साथ मिलकर अच्छी तरह कार्य कैसे किया जाता है? उन्हें पूरा करने के लिए एक कार्य दिया जाना होगा और उनसे क्या अपेक्षित है, इस पर मार्गदर्शन दिया जाना होगा।
किसी साथी के साथ कार्य करना आपके लिए तभी एक उपयोगी तकनीक हो सकती है, जब आप ऐसे विषयओं पर पाठों की योजना बना रहे हों, जिन्हें पढ़ाना आपको कठिन मालूम देता है। हर किसी के कुछ पसंदीदा क्षेत्र होते हैं, जिन्हें पढ़ना उन्हें अन्य से अधिक पसंद होता है। किसी विषय – विशेष के रूप में आपके कम पसंदीदा विषय को कैसे पढ़ाएं इस पर विचार और सुझाव साझा करने से आपमें सोचने की क्रिया प्रेरित होगी तथा आपको विषय के प्रति अपनी समझ को स्पष्ट करने में मदद मिलेगी। आपको विषय पढ़ाने का एक स्पष्ट मार्ग भी दिखेगा।
श्रीमती रितेश भोपाल के पास के एक बड़े विद्यालय में प्राथमिक विज्ञान की शिक्षिका हैं। उन्होंने अन्य कक्षाओं में समान विषय पढ़ाने वाली एक सहकर्मी शिक्षिका से कहा कि वे योजना उनके साथ मिल कर बनाएं। श्रीमती रितेश ने एक स्थानीय डायट (DIET) कार्यशाला में भाग लिया था , जो विज्ञान के शिक्षण को बेहतर बनाने की विभिन्न शिक्षण तकनीकों की छानबीन पर केंद्रित था। इस कार्यशाला में भाग लेने के बाद वे चाहती थीं कि उन्होंने जो तकनीकें और विचार सीखे थे उनमें से कुछ को साझा किया जाए। एक विचार यह था कि सहकर्मियों के साथ योजना बनाएं , और इस दौरान , प्रयुक्त होने वाली ऐसी पद्धतियों जो विद्यार्थियों की सीखने में मदद करें के बारे में विचार साझा करें तथा समस्याओं को साथ मिलकर सुलझाएं। वे नीचे बताती हैं कि किस प्रकार उन्होंने जीवन प्रक्रमों से सम्बन्धित सत्रों की योजना बनाई।
मैंने मीना से पूछा कि क्या वह अगले तीन विज्ञान सत्रों की योजना साथ मिल कर बनाएगी, इस पर वह राजी हो गई। वह शिक्षण के क्षेत्र में अभी नई हैं, फिर भी उन्होंने साथ मिल कर कार्य करने के प्रस्ताव का स्वागत किया। हम जीवन प्रक्रमों पर थोड़ा कार्य करने वाले थे, हमने उन कुछ मुख्य चीजों की पहचान की जो विद्यार्थियों को सिखाना चाहते थे। हम, विद्यार्थियों के अनुभव को अधिक संवादात्मक (इटंरेक्टिव) बनाना चाहते थे। जीवन प्रक्रमों में जीवित प्राणियों के समस्त अभिलक्षण शामिल होते हैं और यह बात शामिल होती है कि विभिन्न जंतु ये सात प्रक्रम किस प्रकार संचालित करते हैं। प्रयोगात्मक कार्य की मात्रा के बारे में सोचना कठिन हो सकता है। तो मैंने सोचा कि साथ मिल कर योजना बनाने हेतु विद्यार्थियों को प्रेरित करने वाली कुछ उपयोगी और रोचक गतिविधियां तैयार करने में मदद मिलेगी। हम इस पर सहमत थे चूंकि हमें जोड़ी के रूप में कार्य करते हुए आनन्द मिल रहा था, विद्यार्थियों के लिए भी जोड़ी में कार्य करना अच्छा रहेगा।
चूंकि हमारी कक्षाएँ काफ़ी बड़ी थीं। हमने तय किया कि हम कुछ बेहद सरल गतिविधियों का उपयोग करेंगे। जैसे अपनी बाँह मोड़ना, खड़े होना बैठ जाना, या लेट जाना। हम इन सरल क्रियाओं को ब्लैकबोर्ड पर एक सूची के रूप में लिखने पर सहमत हुए। प्रत्येक क्रियाकलाप के लिए प्रश्न कुछ इस प्रकार थे–
विद्यार्थियों को ये क्रियाएं करके देखनी थीं और (यदि उनके साथी खुशी-खुशी करने को तैयार हों तो) वे यह महसूस कर सकते थे कि उनके साथी द्वारा अपनी भुजा मोड़ने पर क्या होता है? इसके बाद उन्हें साथ मिलकर इस बारे में बात करनी थी कि क्या हो रहा था? इस पर अपने विचार लिखने थे।
मैंने विद्यार्थियों से कहा कि वे अपने विचारों का बाकी कक्षा के साथ साझा करें और उन्हें जो एक जैसे विचार मिलें उनकी सूची बना लें। मैंने देखा कि कुछ विद्यार्थियों को यह समझ नहीं आया था कि पेशियां और हड्डियां साथ मिल कर कैसे कार्य करती हैं, तो मैंने कहा कि हम इस तरह के विचारों की अगले पाठ में और अधिक छानबीन करेंगे।
मैंने अपना अनुभव मीना को बताया और उसे भी अपनी कक्षा में इसी प्रकार की समस्या मिली। हमने तय किया कि हड्डियों के जोड़ कैसे कार्य करते हैं, इसके कुछ सरल मॉडल बनाएंगे [देखें संसाधन 1], जिनसे हम अगले पाठ में पेशियों को जोड़ियों में कार्य करते हुए दिखाएंगे। जब हम कक्षा से निकल रहे थे तब भी विद्यार्थी अपने शरीर तथा वह गति कैसे करता है, इस बारे में काफ़ी रुचि दिखा रहे थे तथा बातचीत कर रहे थे। यह देख कर हमें बहुत खुशी हुई। हमने तय किया कि हम साथ मिलकर योजना बनाना जारी रखेंगे, क्योंकि इससे हमें विद्यार्थियों की रुचि जागृत करने तथा उन्हें उत्साहित करने के तरीकों के बारे में विचार साझा करने के द्वारा अधिक रचनाशील ढंग से सोचने में मदद मिली थी।
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जहां दोनों साथी एक-दूसरे के विचार साझा करते हों, उनका सम्मान करते हों और आगे बढ़ते हुए थोड़ी गुंजाइश रखने के लिए सहमत हों। ऐसे मामलों में जोड़ी में कार्य करना बेहद उपयोगी और सहयोगी तरीका है। श्रीमती रितेश और मीना ने शिक्षण की अपनी कार्यनीतियों को विस्तार देने के दौरान विचार साझा करने और एक दूसरे को सहयोग देने के द्वारा लाभ उठाया। यह विशेष रूप से तब महत्वपूर्ण हो गया था जब वैसा नहीं हुआ जैसी उन्होंने योजना बनाई थी। वे एक-दूसरे पर दोषारोपण किए बिना यह खोज करने में समर्थ रहीं कि हुआ क्या था? इस भरोसे को कायम होने में वक्त लगा परन्तु उन दोनों को अपने कार्य के बारे में बात करना पसंद था, इससे भरोसा बढ़ता गया।
यदि आपका कोई ऐसा सहकर्मी है जो वही विषय पढ़ाता है, जो कि आप तो उनसे पूछें कि क्या आपके साथ मिल कर किसी ऐसे पाठ की योजना बना सकते हैं, जिसमें आप अपनी कक्षा में जोड़ी में कार्य का उपयोग करते हैं। आप दोनों को ही शुरुआत करने से पहले संसाधन 2, ‘पाठों की योजना बनाना’ पढ़ना चाहिए, क्योंकि इससे आपको अपने कार्य में मदद मिलेगी। यदि यह करने के लिए आपके पास ऐसा कोई सहकर्मी नहीं हो, तो आप चाहें तो स्कूल के किसी अन्य शिक्षक से अपने विचारों के बारे में बातचीत कर सकते हैं। आप यह बातचीत अपनी योजना बनाने से पहले कर सकते हैं या योजना बनाने के दौरान कोई समस्या सामने आ जाने पर कर सकते हैं।
किसी अन्य व्यक्ति से बातचीत करने से आपमें इस बारे में स्वयं की सोचने की क्रिया प्रेरित होगी कि क्या किया जाए? कि जिस पाठ की योजना आप बना रहे हैं, उसके बारे में अधिक गहराई से सोचने में आपको मदद मिलेगी।
![]() विचार के लिए रुकें योजना बना लेने के बाद, सोचें कि आपकी योजना बनाने की क्रिया की गहराई और विस्तार के लिए साझा करने की क्रिया का कैसा असर हुआ है?
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इस प्रकार का भरोसा बनाने तथा अधिक व्यापक संभावनाओं की खोज करने में सक्षम होने से आप विद्यार्थियों के लिए एक अधिक परस्पर संवादात्मक और रोचक शिक्षक बनने की ओर अग्रसर हो जाएंगे। इसी पद्धति को अपनी कक्षा में इस्तेमाल करने से आपके विद्यार्थियों को अधिक सीखने करने में मदद मिलेगी।
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