उपर्युक्त में से किसी भी काम को करने में समर्थ होने के लिए आपको विद्यार्थी जो कह रहे हैं, उसे ध्यानपूर्वक सुनने की ज़रूरत होती है और उन्हें अपनी बात कहने के लिए समय प्रदान करें। अगर आप विद्यार्थियों के बोलते समय प्रत्येक के प्रति संवेदनशील होते हैं, तभी उनमें उत्तर देने के लिए पर्याप्त आत्मविश्वास होगा।
आत्मविश्वास के इस निर्माण के साथ गलत या उत्तरों के संवेदनशील प्रबंधन की आवश्यकता जुड़ी हुई है। गलत उत्तरों को जिस तरह से लिया जाता है, वह इस बात को तय करेगा कि क्या विद्यार्थी शिक्षक के प्रश्नों का उत्तर देना जारी रखेंगे या नहीं। ‘यह गलत है’, ‘तुम मूर्ख हो’ या ‘नहीं’ अथवा दूसरी तरह से अपमान या दंड अक्सर विद्यार्थियों को आगे और परेशानी में पड़ने या मज़ाक उड़ाये जाने के भय से अपनी ओर से कोई और उत्तर देना बंद कर देते हैं। इसकी वजाय, अगर आप उत्तरों के उन हिस्सों को चुन सकें, जो कि सही हैं और सहायक ढंग से विद्यार्थी से अपने उत्तर के बारे में थोड़ा और सोचने के लिए कहें, तो आप अधिक सक्रिय भागीदारी को प्रोत्साहित कर सकते हैं (आकृति 3)। इससे आपके छात्रों को अपनी गलतियों से सीखने में मदद मिलता है, जो कि नकारात्मक व्यवहार से नहीं मिलती है।
ध्यानपूर्वक सुनने से आप न केवल उस उत्तर पर गौर करने में समर्थ होते हैं, जिसकी आप अपेक्षा कर रहे होते हैं, बल्कि इससे आप असाधारण या नवाचार उत्तरों के प्रति सतर्क भी होते हैं, जिसकी हो सकता है कि आपको अपेक्षा न रही हो। इस तरह के उत्तर गलतफहमियों को चिह्नांकित कर सकते हैं, जिन्हें ठीक करने की जरूरत होती है अथवा वे एक नयी स्थिति को प्रदर्शित कर सकते हैं, जिन पर आपने विचार नहीं किया हो। उदाहरण के लिए, इनके प्रति आपकी प्रतिक्रिया ‘मैंने तो यह सोचा ही नहीं था। आप इस तरह से क्यों सोचते हैं? इसके बारे में मुझे और बतायें’ ये सब क्रिया प्रेरणा को बनाये रखने में बहुत महत्वपूर्ण हो सकते हैं।
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