स्थानीय बाहरी परिवेश का उपयोग करने से–
विद्यार्थियों के चिंतन कौशल के विकसित होने के लिए बढ़ावा मिलता है।
उपर्युक्त लाभ, आपके विद्यार्थियों की विषय के प्रति उनकी समझ को बढ़ायेगा तथा स्थानीय क्षेत्र/मोहल्ले के साथ उन्हें जोड़ेगा। शिक्षक के तौर पर, आप अपने विद्यार्थियों को कक्षा से बाहर विद्यालय के मैदानों या दूर ले जाकर विभिन्न विषय-वस्तुओं को शामिल कर सकते हैं, जिससे सीखने की क्रिया प्राकृतिक स्थितियों में हो।
यदि आप किसी ग्रामीण विद्यालय में हैं, तो आप अपने विद्यार्थियों को खेतों, फार्मों या तालाबों तक ले जा सकते हैं। यदि आप किसी शहरी विद्यालय में पढ़ाते हैं, तो विद्यार्थियों को उद्यानों, बागीचों, पौधशालाओं या चिड़ियाघर जैसे स्थानों पर ले जा सकते हैं।
अगली केस स्टडी में शिक्षक विद्यालय के मैदान में छोटे-छोटे निवास स्थलों की छानबीन करती हैं।
जब श्रीमती गीता ने विद्यार्थियों से वास स्थलों के सम्बन्ध में वर्णन करने के लिए कहा तो उन्होंने अनुभव किया कि वे अपेक्षाकृत विशाल वासस्थलों के बारे में बता रहे थे। और विद्यार्थी ऐसे छोटे वास स्थलों का उदाहरण नहीं दे सके जो उनके आस–पास मिल सकते हैं। उन्होंने एक कक्षा से बाहर गतिविधि करने की योजना बनाई ताकि उनके विद्यार्थी अपने समीप के परिवेश में वास–स्थलों की पहचान सकें।
गतिविधि करने की योजना बनाने के पहले मैं छोटे-छोटे वास–स्थलों की तलाश में विद्यालय के मैदानों में घूमी। मैंने खड़जे वाले रास्ते के खड़ंजे में मौजूद एक दरार, एक बड़ा सा पत्थर, पेड़ की एक सड़ती हुई शाखा और घास से ढकी भूमि का एक टुकड़ा देखा था। मैंने प्रत्येक समूह के लिए प्रश्नों का एक-एक सेट तैयार किया, जिससे उन्हें अपने वास स्थलों का अवलोकन करने और उसकी जांच-पड़ताल करने में मदद मिल सके। मैंने यह भी ध्यान रखा कि जिस क्षेत्र का उपयोग वे करने वाले थे, वह सुरक्षित हो तथा भी हानिकारक पौधों या वस्तुओं से मुक्त हो, इसके बाद मैंने प्रधानाचार्य को बताया कि मैं क्या करना चाहती थी।
मैंने कक्षा में गतिविधि का परिचय देते हुए विद्यार्थियों से प्रश्न किया कि वासस्थान क्या होता है और वे जिस परिभाषा पर सहमत हुए उसे बोर्ड पर लिख दिया:
‘वास–स्थल वह स्थान होता है जहां पौधों व जंतुओं का संकलन निवास करता है जो उन्हें भोजन एवं आश्रय देता है। ’
मेरी कक्षा में 32 विद्यार्थी हैं, इसलिए मैंने उन्हें चार-चार के समूहों में बाँट दिया और उन्हें बताया कि उन्हें क्या करना है मैंने बोर्ड पर निर्देश लिख दिए थे। वे बाहर उन स्थानों पर गए जिन्हें मैंने अंकित किया था और अपने-अपने वास–स्थलों में उन्होंने जांच-पड़ताल की।
सबसे पहले तो उन्हें यह देखना था कि जिस स्थान पर वे गये हैं, वह वास स्थल है या नहीं। इस पर चर्चा करने के लिए मैंने उन्हें समय दिया। इसके बाद मैं हर समूह के पास गई और विद्यार्थियों से यह समझाने को कहा कि वे अपने निर्णय पर कैसे पहुँचे हैं? यदि वे अनिश्चित थे या जहां समूह के अंदर कोई मतभेद था वहां हमने फिर से परिभाषा की मदद ली जिस पर हम सहमत हुए थे। मेरे विद्यार्थी इस बात पर सहमत हो गये कि पत्थर और खड़ंजा वास–स्थल नहीं थे। और उनके विचार में घास का वह टुकड़ा और पेड़ की शाखा वास–स्थल थे।
मेरे विद्यार्थियों के लिए मैंने यह कार्य निर्धारित किया था:
उसे वास–स्थल सिद्ध करने के लिए आप किन प्रमाणों की तलाश करेंगे और किस प्रकार के आँकड़े एकत्र करेंगे?
उनके क्षेत्र में क्या उग रहा था या निवास कर रहा था, इसके आँकड़े विद्यार्थियों जुटाए वे यह कार्य उनको मिली सजीव वस्तुओं का चित्र बना कर या सूची बना के कर सकते थे और अन्य प्रमाण भी ला सकते थे। परन्तु उस स्थान पौधे या जंतु को कोई हानि नहीं पहुँचाना था।
बाहर विद्यार्थियों के कुछ समूहों ने क्षेत्र में वास स्थलों की पहचान तुरंत कर ली वहीं कुछ समूहों को उनकी खोज में मदद की आवश्यकता पड़ी। कुछ विद्यार्थियों को स्थ्ल मिले छोटे-छोटे जीवों के चित्र बनाए, वहीं दूसरों ने लेबल व नोटस जोड़े।
विद्यार्थियों ने उनके वास–स्थल में मिली मिट्टी और पौधों से संबंधित नमूने एकत्र किए। कुछ विद्यार्थी पत्थर को उठाने पर उसके नीचे छोटी-छोटी मकड़ियां और दीमकें देख कर चकित हुए। विद्यार्थियों ने नोट किया कि पत्थर के नीचे की मिट्टी नम थी तथा उन्होनें सड़ती हुई वनस्पतियों के नमूने लिए।
एक समूह ने खड़ंजे की दरार से बाहर उग रहे छोटे-छोटे पौधों को ध्यान से देखा। उन्होनें आवर्धक लेंस का उपयोग किया और देखा कि चींटियां, पौधों की पत्तियों की निचली सतह से लटक रहे छोटे- छोटे कीड़ों को खा रही थीं।
मैंने सीटी बजाई और अपने विद्यार्थियों से अपने-अपने समूहों में घास पर बैठ जाने के लिए कहा। उसके बाद मैंने उनसे कहा कि वह वास–स्थल है उनके इस दावे के समर्थन में उन्हें जो भी प्रमाण मिला हो, उसे प्रस्तुत करें।
मेरे विद्यार्थी इस बात पर सहमत हुए कि वास–स्थलों की उनकी समझ में परिवर्तन हुआ था। वे जान चुके थे कि पत्थर के नीचे की जगह और ऐसे ही कई क्षेत्र छोटे-छोटे वास–स्थल हो सकते हैं।
मेरे विद्यार्थियों को व्यावहारिक अनुभव मिलने का उनकी सीख पर सीधा प्रभाव पड़ा था। मैंने विद्यालय के मैदानों में जिन वास–स्थलों की पहचान की थी, उनके बारे में मैं उन्हें कक्षा में बता कर भी बात ख़त्म कर सकती थी, परन्तु मुझे लगा कि उन्हें खुद वास–स्थलों की छानबीन करने का अवसर देना उनके लिए कहीं अधिक प्रेरक रहा और जिससे उनकी समझ विकसित हुई।
यह उत्साह आगे के पाठों में भी बना रहा जिनमें हमने मिले जीवों की पहचान की और प्रत्येक वास–स्थल का एक चार्ट बनाया।
![]() वीडियो: समूहकार्य का उपयोग करना |
OpenLearn - समुदाय का उपयोग करनाः- पर्यावरणीय मुद्दे Except for third party materials and otherwise, this content is made available under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-ShareAlike 4.0 Licence, full copyright detail can be found in the acknowledgements section. Please see full copyright statement for details.