यह आवश्यक नहीं कि विद्यार्थी की कक्षा की सीमाओं के अन्दर ही सीखें। विद्यार्थी बाहर होने पर और अपने साथियों के साथ कम औपचारिक परिस्थितियों में घुलने-मिलने पर, कम-से-कम उतना तो सीख ही सकते हैं जितना कक्षा के अंदर। बाहर खुले स्थान का पाठ सुसंगठित मानते हैं। इस प्रकार से पाठ सीखने की क्रिया को एक रोमांचक, सक्रिय, सामाजिक एवं रुचिकर प्रक्रिया बना सकता है, जिसमें आपके विद्यार्थी व्यावहारिक विज्ञान का अनुभव कर सकते हैं।
कक्षा के परिवेश में प्रायः पाठ्यपुस्तकें, पोस्टर एवं अन्य शिक्षण सामग्रियां आवश्यक होती हैं। इस के विपरीत, प्रकृति लगभग हमेशा, सीखने के वे सभी संसाधन देती है जिनकी आवश्यकता आपको होगी। इस प्रकार बाहर खुले में सीखना, सीमित संसाधनों वाली कक्षाओं के लिए पूरक और वर्धक हो सकता है। पास के वाह्य परिवेश का उपयोग करना, बड़ी कक्षाओं के लिए विशेष रूप से मूल्यवान है क्योंकि इससे विद्यार्थियों को बैठने, चित्र बनाने, लिखने, आपस में बातचीत करने तथा इधर-उधर घूमने के लिए अधिक स्थान मिलता है।
कक्षा से बाहर सीखना लगभग कभी भी और कहीं भी हो सकता है – विद्यालय के मैदान में, किसी पास के उद्यान, किसी बगीचे या पौधशाला, खेत पर, तालाबों, झीलों और नदियों के किनारे या संग्रहालयों में। सीखने के एक अत्यावश्यक तरीके के रूप में, इसे गर्मियों तक सीमित नहीं करना चाहिए अथवा इसे परीक्षाओं के बाद के ‘योज्य’ का रूप नहीं देना चाहिए। बल्कि इसे नियमित शिक्षण गतिविधि का हिस्सा होना चाहिए। यह एक शक्तिशाली साधन है जो संप्राप्ति में वर्धन करता है। सामाजिक, भावनात्मक और व्यक्तिगत विकास को आधार देता है, तथा विद्यार्थियों के स्वास्थ्य एवं कुशलक्षेम में भी योगदान देता है।
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