नौवीं और दसवीं कक्षा में विद्यार्थी ‘मानव जीवविज्ञान’ के बारे में थोड़ा अध्ययन करते हैं। अधिकांश कार्य सीधे तौर पर उनके शरीर से जुड़ा रहता है। उदाहरण के लिए, जब वे कोहनी से अपनी बाजुओं को मोड़ते हैं तब वे इस बात को महसूस कर सकते हैं कि उनकी मांसपेशियां सिकुड़ती और फैलती हैं। स्वभाविक रूप से विद्यार्थियों को अपने शरीर में रूचि होती है। विद्यार्थी विज्ञान जो आप सिखाना चाहते हैं इसलिए उन्हें उन चीजों से जोड़ें जिन्हें वे स्वयं ही देख सकें जो उनके लिए बहुत प्रेरणात्मक होता है। स्वयं के साथ विज्ञान को जोड़ने से उन्हें यह सीखने में भी मदद मिल सकती है कि स्वस्थ जीवन किस प्रकार से व्यतीत करें। उदाहरण के लिए, ‘हम बीमार क्यों होते हैं?’ वे स्वयं अपने जीवन पर विचार कर सकते हैं जिससे वे व्यक्तिगत स्वच्छता और स्वस्थ बने रहने में जुड़ाव को समझ सकें। केस स्टडी 4 में, उदिता ने पाचन तंत्र के बारे में पढ़ाने का तरीका खोजा है।
श्री सिंह | उदिता, आज जब मैं आपकी कक्षा के पास से गुजरा, तो मैंने देखा कि आप कुछ बहुत रूचिकर काम कर रही थीं। यदि आप मुझे इसके बारे में बताएँ तो मैं आपका बहुत आभारी रहूंगा। आपके विद्यार्थी बहुत तन्मयता से पढ़ रहे थे! |
अध्यापिका उदिता | निश्चित रूप से, श्रीमान सिंह। मैं मानव पाचन तंत्र के बारे में पाठ पढ़ा रही थी। मैंने अपने विद्यार्थियों से अपनी पाठ्यपुस्तकों को बन्द करने के लिए कहा, क्योंकि मैं यह देखना चाहती थी कि उन्हें क्या याद है? मैंने ब्लैकबोर्ड पर उन अंगों के नाम लिखे जो कि पाचन तंत्र का हिस्सा होते हैं। मैंने अपने विद्यार्थियों को पांच–पांच के समूहों में विभाजित किया। प्रत्येक समूह के पास कैंची, कुछ कागज, एक टेप तथा एक पेन था। उन्हें प्रत्येक अंग को दर्शाने के लिए एक आकृति तैयार करनी थी और फिर किसी मानीटर पर उसे चिपकाना था जिससे यह दिखाया जा सके कि यह अंग शरीर में कहां पर है? |
श्री सिंह | आपने समूहों में विभाजन कैसे किया था? |
अध्यापिका उदिता | मैंने यह सुनिश्चित किया था कि प्रत्येक समूह में उच्च और निम्न क्रिया कलाप करने वाले विद्यार्थी हैं। मुझे आशा थी कि उच्च निष्पादन करने वाले विद्यार्थी, दूसरे विद्यार्थियों की सहायता करेंगे। मैंने अभ्यास को पूरा करने के लिए उन्हें लगभग दस मिनट का समय दिया। इसके बाद स्वयंसेवक आगे बढ़कर एक लाइन में खड़े हो गए जिनके कपड़ों पर कागज की आकृतियां लगी हुई थीं जिससे यह दर्शाया जा सके कि अंग कहां पर होते हैं? यह देखकर आश्चर्य हुआ कि वे कितने अलग नजर आ रहे थे, प्रत्येक खुश था। |
श्री सिंह | इसके बाद आपने क्या किया? |
अध्यापिका उदिता | मैने उन्हें यह भी समझाया कि उन्हें सही सापेक्षिक आकार तथा अंगों की समीपवर्ती स्थितियों को बताने पर श्रेय भी दिया जाएगा। प्रत्येक समूह ने स्वयंसेवकों पर चिन्हित करने के लिए अपनी पाठ्यपुस्तक में पाचन तंत्र के रेखाचित्र का प्रयोग किया। इसके बाद मैंने प्रत्येक समूह से यह बताने के लिए कहा कि उन्होंने किस स्वयंसेवक को अधिकतम अंक दिए हैं, और यह स्पष्ट करने के लिए कहा कि उन्होंने ऐसा क्यों किया? |
श्री सिंह | ऐसा लगता था कि वे इस गतिविधि का आनन्द ले रहे थे। क्या आपके विचार से उन्होंने पाचन तंत्र के बारे में कुछ सीखा? |
अध्यापिका उदिता | जी हां, उन्होंने सीखा। सबसे पहले तो, उनमें से कुछ विद्यार्थियों को इससे आवश्यक अंगों के नाम याद रखने में सहायता प्राप्त हुई। आकार बनाकर उन अंगों के आकार और उनकी स्थिति के बारे में विचार करते हुए उन्हें उस अंग के कार्य और पाचन की प्रक्रिया के समय क्या होता है? इस पर भी विचार करना पड़ा था। मैने उनकी बातचीत को सुना था तथा यह सुन सकती थी कि कुछ उच्च विद्यार्थी जल्दी पूर्ण करके अपने समूह के दूसरे सदस्यों को पाचन के बारे में समझा रहे थे। बहुत अधिक शोर हो रहा था, लेकिन सभी विज्ञान की चर्चा कर रहे थे। मैंने मोबाइल फोन से प्रत्येक स्वयंसेवक की तस्वीर खींची तथा इन तस्वीरों का प्रयोग इस बात को याद रखने के लिए करुंगी कि वे कहां गलत थे जिससे मैं कल की पाठ योजना और अच्छी बना सकूं। |
![]() विचार के लिए रुकें उन दो तरीकों की पहचान करें जिन्हें आपने इस इकाई के दौरान सीखा है तथा जिनका आप अपनी कक्षा में इस्तेमाल कर सकते हैं और वे दो विचार जिन पर आप और आगे काम करना चाहते हैं। |
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