पूरी कक्षा से प्रश्न पूछना सभी शिक्षकों के लिए एक महत्वपूर्ण तकनीक है। यहां पूरी कक्षा से प्रश्न पूछने का एक तरीका दिया गया है, जो प्रत्येक विद्यार्थी को भाग लेने का अवसर देता है – सक्रिय रूप से सीखने की तकनीक ।
ऐसे प्रश्न को बोर्ड पर लिखें– ’बैक्टीरिया और वायरस में क्या–क्या अंतर हैं?’ (कृपया ध्यान रखें कि यदि आप यह विषय पहले पढ़ा चुके हों, तो आप किसी और प्रश्न का उपयोग कर सकते हैं?)
अपने विद्यार्थियों को चार से छहः के समूहों में विभाजित करें। प्रत्येक समूह को इस प्रश्न के उत्तर में अपने कुछ विचार लिखने के लिए पांच मिनट का समय दें। आप उन्हें जानकारी निकालने का प्रयास करने के लिए पाठ्यपुस्तक का उपयोग करने दे सकते हैं। जब वे काम कर रहे हों तो आप कक्षा में घूमें और प्रत्येक समूह में से किसी एक को उस समूह की ओर से उत्तर देने के लिए नामित करें।
समूह को ध्यान में रखते हुए आप उनकी प्रगति में मदद कर सकने वाले कुछ त्वरित प्रश्न भी पूछ सकते हैं, जैसेः बैक्टीरिया से कौन–कौन सी बीमारियाँ होती हैं? वायरस शरीर में कहां रहते हैं?
पांच मिनट बाद, अपने विद्यार्थियों से पूछें कि क्या उन्हें कुछ और समय की आवश्यकता है? यदि, वार्तालाप अभी चल रहे हों, तो उन्हें दो मिनट और दें।
इस प्रश्न का उत्तर देने के लिए, विद्यार्थियों को यह समझना आवश्यक है कि वायरस और बैक्टीरिया दो अलग–अलग प्रजातियों के हैं और अलग–अलग तरीकों से काम करते हैं। वे अलग–अलग बीमारियाँ पैदा करते हैं।
अब प्रत्येक समूह से उनके विचार पूछें। सीधे उत्तर देने के लिए कहने की बजाय, उनसे श्रृंखलाबद्ध प्रश्न पूछने चाहिए जिससे उनकी समझ की परख होगी।
प्रत्येक समूह से एक प्रश्न पूछें। यदि नामित विद्यार्थी उत्तर नहीं दे सके, तो उन्हें अपने सहपाठियों से मदद लेने का अवसर दें। यहां कुछ प्रश्न सुझाए गए हैं–
यदि एक समूह द्वारा दिया गया उत्तर पूर्णतः सही या पर्याप्त स्पष्ट न हो, तो वह प्रश्न दूसरे समूह की ओर बढ़ा दें। क्या, आप इससे सहमत हैं? क्या आप इसमें कुछ जोड़ सकते हैं?
उत्तरों को ब्लैकबोर्ड पर लिखें, या किसी विद्यार्थी से कक्षा के लेखक का काम करने के लिए कहें। जानकारी को व्यवस्थित करने की चिंता न करें। बस समूहों द्वारा बताई गई मुख्य बातों को लिखते जाएं।
प्रत्येक समूह को जब उत्तर देने का अवसर मिल गया हो, तब जांच करें कि बोर्ड पर लिखी सारी जानकारी स्वीकृत वैज्ञानिक चिंतन हैं या नहीं।
फिर अपने विद्यार्थियों को जोड़ी बनाकर कार्य करते हुए अपनी–अपनी अभ्यास पुस्तिकाओं में बैक्टीरिया और वायरस के बीच के अंतरों की सूची बनाने के लिए कहें। वे बोर्ड पर लिखी जानकारी का उपयोग कर सकते हैं, लेकिन इसे उन्हें स्वयं ही क्रमबद्ध करना होगा।
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श्रीमती गांधी लड़कियों को और अधिक शामिल होने के लिए प्रोत्साहित करने हेतु पूरी कक्षा के साथ संवाद करते हुए शिक्षण की पद्धति का उपयोग करती हैं।
मैं अपनी कक्षा से यथासंभव अधिक से अधिक प्रश्न पूछने की कोशिश करती हूँ, जिससे मैं पता कर सकूँ कि वे क्या जानते हैं? और उसी के अनुरूप अपना शिक्षण कर सकूँ। मैं उन्हें सामान्यतः पर स्वेच्छा से उत्तर देने के लिए कहती हूं क्योंकि मैं नहीं चाहती कि यदि उन्हें उत्तर नहीं आता हो तो वे असहज महसूस करें या शर्मिंदा हों। इस वर्ष मेरी कक्षा IX में लड़कों से ज्यादा लड़कियाँ हैं, लेकिन मैंने ध्यान दिया कि उत्तर देने के लिए अपने हाथ उठाने वालों में ज्यादातर लड़के हैं। इसलिए एक दिन, जब वे एक प्रयोग कर रहे थे, तो मैंने कुछ लड़कियों से पूछा, ‘’तुम अपना हाथ ऊपर क्यों नहीं उठातीं?’’ कुछ लड़कियों ने कहा कि उन्हें हमेशा पक्के तौर पर पता नहीं होता कि वे सही उत्तर जानती हैं तथा अन्य विद्यार्थियों के सामने नासमझ दिखना नहीं चाहतीं। एक अन्य लड़की ने कहा कि उसे प्रायः उत्तर पता होता है, लेकिन वह पर्याप्त तेजी से उसके बारे में सोच नहीं पाती।
अगले दिन हम बीमारी की रोकथाम के बारे में पढ़ रहे थे। बीमारी के कारणों और उपचार से संबंधित पिछले सत्र में हमने जो कार्य किया था, उसके बारे में उनकी समझ को जांचने–परखने के लिए मैंने कुछ प्रश्न पूछने का इरादा किया। मैंने कुछ त्वरित बंद प्रश्नों से प्रारंभ करने और फिर कुछ और जानने के लिए खुले प्रश्न पूछने की योजना बनाई, जिससे यह पता कर सकूँ कि बीमारी की रोकथाम के बारे में वे पहले से क्या जानते एवं समझते हैं?
मैंने तीन छोटे–छोटे प्रश्न पूछे–
मैंने अपने विद्यार्थियों से कहा कि वे प्रश्नों के बारे में स्वतः ही सोचें और फिर अपने उत्तरों को अपनी बगल में बैठे विद्यार्थी के उत्तरों से मिलाएँ। मैंने उन्हें इस कार्य के लिए कुछ मिनटों का समय दिया और चारों तरफ घूमते हुए उनकी बातचीत को सुना।
फिर मैंने प्रश्नों का उत्तर देने के लिए लोगों को नामित किया। मैंने जिन लोगों को चुना वे सभी लड़कियाँ थीं। मैंने जानबूझकर उन्हीं लड़कियों को चुना, जिनके बारे में मुझे पता था कि वे सही उत्तर जानती हैं। मैं उन्हें उनके सहभागियों के साथ बात करते हुए सुन चुकी थी। जब उन्होंने सही उत्तर दिया, तो मैंने सावधानीपूर्वक उनकी प्रशंसा की और एक फॉलो–अप प्रश्न पूछा। मुझे उम्मीद थी कि इससे कक्षा के सामने बोलने में उनका आत्मविश्वास सुदृढ़ होगा।
फिर मैंने एक और सामान्य प्रश्न पूछा, ’तुम क्या सोचती हो हम बीमारियों को कैसे रोक सकते हैं?’ मैंने जानबूझकर पूछा, ’‘तुम क्या सोचती हो...?’’ यह स्पष्ट करने के लिए कि मेरी दिलचस्पी उनके विचारों में थी और मैं उनसे पाठ्यपुस्तक में लिखा उत्तर जानने की अपेक्षा नहीं कर रही थी। जब उन्होंने जोड़ियों में चर्चा पूरी कर ली, तो मैंने एक लड़के से बीमारी रोकने का एक तरीका बताने के लिए कहा और फिर तीन अलग–अलग लड़कियों से पूछा। मुझे अहसास हुआ कि वे टीकाकरण के बारे में बहुत कुछ जानते थे। उनमें से कुछ संक्रमण को रोकने में स्वच्छता के महत्व समझते थे, लेकिन बहुत कम ही लोग अच्छे आहार और स्वस्थ्य रहने के बीच संबंध जोड़ सके।
मैं इस तकनीक का उपयोग कुछ हफ्तों से करती आ रही हूँ, और कल ही स्वेच्छा से उत्तर देने के लिए कहने की अपनी पुरानी रणनीति पर लौट आई। मैं प्रसन्न थी कि अधिक लड़कियाँ स्वेच्छा से उत्तर देने लगी थीं, लेकिन वे उतनी अधिक भी नहीं थीं, जितनी मैं उम्मीद कर रही थी। मुझे उनका आत्मविश्वास बढ़ाने के और भी तरीके खोजने की आवश्यकता होगी!
श्रीमती गांधी प्रश्नों में अपने सभी विद्यार्थियों को शामिल करने के लिए एक तकनीक का उपयोग कर रही हैं। अन्य तकनीकें भी हैं जिन्हें आप आजमाना सकते हैं। एक तकनीक यह है कि सभी विद्यार्थियों को प्रश्न का अपना–अपना उत्तर लिखने के लिए दो मिनट का समय दिया जाए। फिर किन्हीं निश्चित विद्यार्थियों से या उनमें से किसी को भी स्वेच्छा से उत्तर देने के लिए कहें। एक और तकनीक यह है कि प्रश्न पूछने के बाद कुछ सेकंड के लिए प्रतीक्षा की जाए। ये दोनों ही तकनीकें विद्यार्थियों को सोचने और अनुमान लगाने का समय देती हैं। ऐसे में आपके विद्यार्थियों के उत्तर अपेक्षाकृत ज्यादा लंबे और ज्यादा विचारपूर्ण होने की संभावना है। इसका अर्थ यह भी है कि केवल कुछ विद्यार्थी जो हमेशा हाथ उठाते हैं, के बजाय सभी विद्यार्थिंयों को उत्तर के विषय में सोचने का अवसर मिलेगा।
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