जब विद्यार्थी पाठ्यपुस्तक में हल किए गए गणितीय प्रश्नों के उदाहरण देखते हैं, तो वे डरावने लग सकते हैं। विद्यार्थियों को वे अज्ञात चिह्नों की श्रृंखला जैसे लग सकते हैं, जिनका कुछ अर्थ है, जिसे वे समझ नहीं पाते। यह भावना बहुत डरावनी हो सकती है। यह केवल संयोजित ठोस पदार्थों और आकृतियों के क्षेत्र, आयतन और पृष्ठ के परिकलन वाले अध्यायों तक सीमित नहीं है! जब आप गणितीय चिह्नों के लेखन और अर्थ को समझना शुरू करते हैं, तब ये उदाहरण अर्थपूर्ण लगने लगते हैं।
गणित की सांकेतिक भाषा के प्रति किसी भी तरह के डर की भावना से बाहर निकलने में विद्यार्थियों की मदद करने में इससे मदद मिल सकती है, यदि वे पहचान सकें कि कोई उदाहरण किस कारण सरल या कठिन बनता है और फिर वे अपने स्वयं के सरल और कठिन उदाहरण बनाएँ। ऐसा करने से चिह्नों के गणितीय लेखन रहस्य उजागर हो सकता है और वे सरल तरीके से गणितीय चिह्नों का अर्थ समझ सकेंगे। अपने स्वयं के उदाहरण बनाने से विद्यार्थी खुद गणित की रचना कर सकते हैं, जिससे उन्हें उनकी शिक्षा पर कुछ नियंत्रण हासिल हो जाता है। इस कारण उनमें स्वामित्व की भावना का विकास होता है, जिससे उनकी रुचि और सहभागिता बढ़ सकती है। इसका एक और अतिरिक्त लाभ यह है कि, एक शिक्षक के रूप में, आपको हल करने और कक्षा में देने के लिए ढेर सारे उदहारण मिल जाते हैं!
गतिविधियों 3, 4 और 5 में विद्यार्थियों से सरल और कठिन उदाहरणों को पहचानने, उनकी विशेषताएँ बताने और उन पर विचार करने को कहा जाता है। यह पद्धति गणितीय शिक्षा के किसी भी क्षेत्र में कारगर होती है। संयोजित आकृतियों और ठोस पदार्थों के विषय की अपनी एक विशिष्ट चुनौती यह है कि इसके लिए विशिष्ट आकृतियों और ठोस पदार्थों के क्षेत्रफल और आयतन गणना के लिए अपेक्षाकृत जटिल सूत्रों का उपयोग करना पड़ता है।
इसकी विशिष्ट चिह्न लेखन आवश्यकताओं के लिए विद्यार्थियों को तैयार करने और इसमें उनकी सहायता करने के लिए गतिविधि 3 में पहले उनसे उदाहरणों के साथ अपनी स्वयं की सूत्र-पुस्तिका लिखने को कहा जाता है। विद्यार्थी अपनी गणित शिक्षा के दौरान जो अन्य सूत्र पढ़ते हैं, वे उनमें से कोई सूत्र भी इस पुस्तिका में जोड़ सकते हैं, और ऐसी स्थिति में कागज़ की खुली शीट पर काम करना अच्छा रहेगा जिसे उपयुक्तता के अनुसार जोड़ा जा सकता है या क्रम बदला जा सकता है। सूत्र यदि तुरंत उपलब्ध हों, तो इससे विद्यार्थी सूत्रों को याद करने में महसूस होने वाले तनाव से भी बच सकते हैं और अपनी गणनाओं के लिए आवश्यक विचार-प्रक्रिया पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं।
अपने विद्यार्थियों को समझाएँ कि यह गतिविधि भी गतिविधि 1 के समान ही है, लेकिन अब उनसे शब्दों के बजाय गणितीय सूत्रों पर ध्यान देने को कहा गया है। उन्हें प्रत्येक सूत्र को एक अलग पृष्ठ पर लिखना चाहिए क्योंकि वे नए पृष्ठ जोड़ते रहेंगे और समय बीतने पर इन सूत्रों को व्यवस्थित भी करना चाहेंगे ताकि इनका क्रम अर्थपूर्ण हो।
अपने विद्यार्थियों से कहें:
अपनी कक्षा को तीन-तीन विद्यार्थियों के समूहों में व्यवस्थित करें, जिनमें से प्रत्येक विद्यार्थी एक उदाहरण पर काम करता है, लेकिन वे तीनों आपस में इस बात पर चर्चा करते हैं कि वे क्या कर रहे हैं।
अपने विद्यार्थियों से कहें कि वे अपने समूहों में उनकी पाठ्यपुस्तक में संयोजित ठोस पदार्थों के आयतन और पृष्ठ के बारे में हल किए हुए उदाहरणों व प्रश्नों को देखें और निम्नलिखित काम करें:
कक्षा के सभी विद्यार्थियों को अब पुनः एक साथ रखें और अंतिम दो बिंदुओं पर चर्चा करके यह जानें कि विद्यार्थी किस हद तक यह समझ पाने में सक्षम हुए हैं कि कौन-से कारक किसी उदाहरण को सरल या कठिन बनाते हैं। किसी उदाहरण को और भी कठिन बनाने के बारे में उनके पास क्या नए विचार हैं। आप कक्षा के विद्यार्थियों से इस बात पर मतदान करवा सकते हैं कि कौन-सा उदाहरण सबसे कठिन है और फिर उसे गृहकार्य के रूप में दे सकते हैं!
अपने विद्यार्थियों को बताएँ कि गतिविधि के इस भाग में उनसे अपनी अधिगम के बारे में सोचने को कहा जाता है, ताकि वे गणित की शिक्षा में बेहतर बन सकें, और गणित के बारे में, बेहतर महसूस करें।
आपने क्या सीखा कि गणित को आपने कैसे सीखा (सीख सकते हैं)?
अधिक जानकारी के लिए आप संसाधन 2, ‘सभी को शामिल करना’ भी देख सकते हैं।
अपने विद्यार्थियों से यह कल्पना करने को कहें कि वे गणित की परीक्षा के लिए प्रश्न लेखक हैं और उनसे संयोजित ठोस पदार्थों के पृष्ठ, क्षेत्र व आयतन के विषय पर तीन प्रश्न तैयार करने को कहा गया है: एक सरल, एक औसत और एक कठिन प्रश्न। उन्हें निम्नलिखित निर्देश दें:
अपने विद्यार्थियों को बताएँ कि गतिविधि के इस भाग में उनसे अपनी शिक्षा के बारे में सोचने को कहा जाता है, ताकि वे गणित की शिक्षा में बेहतर बन सकें, और गणित के बारे में, बेहतर महसूस करें।
विद्यार्थियों को एक स्वतंत्र अभ्यास के रूप में गतिविधि 3 दी गई थी और मैं कक्षा में घूमकर यह देख रही थी कि वे इसे हल करने में किस प्रकार सक्षम थे। उन्होंने लगभग सभी सूत्रों की अच्छी तरह पहचान कर ली और उनसे संबंधित आकृतियों को भी लिख लिया, लेकिन जब चित्र बनाने और अपनी समझ के अनुसार अपने शब्दों में लिखने की बात आई, तो उन्हें कुछ कठिनाई महसूस हुई। अपनी शिक्षा के बारे में अधिक जागरुक बनने में उनकी मदद करने, और वे किस जगह पर फंस गए हैं, यह समझने में सक्षम होने के लिए, मैंने विद्यार्थियों से कहा कि वे जिस भी चरण में फंस गए हैं, उसकी समस्याओं के बारे में वे अपने विचार नोट करें, ताकि वे चर्चा में योगदान कर सकें। यह पता चला कि त्रि-आयामी ठोस पदार्थों के चित्र बनाना ही प्रमुख समस्या थी। चूँकि मैं चाहती थी कि विद्यार्थी यह जानें कि इसका केवल कोई एक ही सही तरीका नहीं है, मैंने उन छात्रों को बुलाया, जो चित्र बना सके थे और उनसे ब्लैकबोर्ड पर चित्र बनाने को कहा।
जब विद्यार्थी इस बारे में कुछ विचार करने योग्य हो गए कि एक त्रि-आयामी ठोस पदार्थ का चित्र किस तरह बनाया जाए, तो उसके बाद हमने दिए गए अर्थों पर चर्चा की। जिन विद्यार्थियों ने किसी विशिष्ट सूत्र के बारे में अलग अलग व्याख्या की थी, मैंने उनसे कहा कि वे अपनी धारणा और विचार साझा करें, ताकि सभी विद्यार्थी उनके विचारों को सुन सकें और यह सोच सकें कि कोई प्रश्न सरल या कठिन क्यों बनता है।
हमने गतिविधि 4 दो पीरियड तक की, क्योंकि वे इस गतिविधि से बहुत अधिक जुड़ गए थे। वे अकेले-अकेले ही काम कर रहे थे, लेकिन अपने चुनावों के बारे में अपने सहपाठी से बात भी कर रहे थे। उन्होंने स्वयं ही अपने शब्दकोश और सूत्र पुस्तिका का उपयोग किया और मैंने ध्यान दिया कि विद्यार्थी अपनी उँगलियों से संकेत करके इस बात की निगरानी कर रहे थे कि उदाहरण का कौन-सा भाग किस सूत्र से जुड़ता है। मैंने यह भी देखा कि विद्यार्थी चित्रों के कुछ भागों को छिपा भी रहे थे, ताकि जिन हिस्सों पर वे काम नहीं कर रहे थे, वे हिस्से छिप जाएँ और परिकलन (calculations) जिन हिस्सों पर हो रहे थे, उन पर ध्यान केंद्रित किया जा सके।
मोना ने कहा कि काश उन्हें परीक्षा में भी ऐसा शब्दकोश और सूत्र पुस्तिका ले जाने की अनुमति होती! इसके बाद हमने इस बारे में चर्चा की कि तार्किक सोच का उपयोग करके किस तरह इन सूत्रों को याद रखने की कोशिश की जा सकती है। सुशांत ने यह भी सुझाव दिया कि एक बेलनाकार आकृति पर विचार करना सहायक होगा, जिसमें पार्श्व सतह क्षेत्र परिधि (अर्थात एक वृत्त का परिमाप) और ऊँचाई के गुणनफल से प्राप्त होगा और इसका आयतन आधार क्षेत्र और ऊंचाई के गुणनफल से प्राप्त होगा। इसके बाद सुशांत ने कहा कि इस बात पर विचार किया जा सकता है कि हम जिन ठोस पदार्थों पर काम कर रहे हैं, वे एक बेलनाकार आकृति से किस प्रकार अलग हैं और इसके अनुसार सूत्र अपनाया जा सकता है। हमने इस बारे में भी चर्चा की कि यह दो आयामों से तीन आयामों में जाते समय इसका संबंध किस प्रकार जोड़ा जा सकता है और क्यों कुछ प्रश्न कुछ लोगों को कठिन लगते हैं, जबकि दूसरों को सरल लगते हैं। रमोना ने बताया कि उसे सभी प्रश्न सरल लगे, इसलिए मैंने उसे कहा कि वह अंतिम प्रश्न में कुछ बदलाव करके उसे और कठिन बनाने की कोशिश करे।
मैंने गृहकार्य के लिए उन्हें गतिविधि 5 का पहला भाग करने को कहा और उन्हें बताया कि उन्हें अपने सहपाठियों के लिए परीक्षा प्रश्न तैयार करने हैं, हालांकि यह एक रहस्य रहेगा कि कौन-सा विद्यार्थी किसका प्रश्न हल करने वाला है। अगले दिन में उत्साहपूर्वक अपने प्रश्न लेकर आए, और वे इस बात से खुश थे कि वे स्वयं परीक्षा के प्रश्न निर्धारित कर रहे थे - न कि मैं या परीक्षा मंडल। अगले दिन मैंने यादृच्छिक क्रम (randomly) में उनके प्रश्नों का वितरण किया, हालांकि मैंने प्रत्येक विद्यार्थी की क्षमता के साथ प्रश्नों के कठिनता-स्तर का मिलान करने की भी कोशिश की। अंत में मुझे दो प्रश्नपत्र बदलने पड़े, क्योंकि मुझे पता चला कि मैंने मोना को उसका स्वयं का प्रश्न ही वापस दे दिया था, और दो विद्यार्थियों को एक साथ बैठना पड़ा, क्योंकि उस दिन कक्षा में ज्यादा विद्यार्थी आए थे। वे शान्ति से अपने-अपने प्रश्न हल करने लगे। कक्षा को यह बात खास तौर पर अच्छी लगी कि परीक्षा का मूल्यांकन प्रश्न बनाने वाले विद्यार्थी ने ही किया और उन्हें प्रश्नपत्र जाँचने में बहुत मज़ा आया।
इस गतिविधि से उन्हें यह बताने में मदद मिली कि कोई प्रश्न क्यों कठिन हो जाता है। पूरे विषय को ही कठिन कहने के बजाय उन्होंने यह स्वीकार किया कि केवल छिन्नक को शामिल करने वाले प्रश्न ही कठिन थे - और ऐसा उसकी आकृति के कारण नहीं, बल्कि जटिल सूत्र के कारण था, जिसे याद रख पाना लगभग असंभव था! हमने इस बात पर चर्चा की कि हम किस तरह सूत्र को याद करने की आवश्यकता से बच सकते थे, खासतौर पर इसलिए, क्योंकि उन्हें याद करके लिखते समय बहुत गलतियाँ होती हैं। हमने इस बारे में बात की कि किस तरह वह सूत्र अन्य सरल सूत्रों से बना था, और उस तार्किक प्रक्रिया के अनुसार काम करने का अर्थ यह है कि आपको ऐसे सूत्र को रटना नहीं पड़ता, जिसे याद-रखना-असंभव है। मुझे लगता है कि इससे कुछ विद्यार्थियों को मदद मिली, लेकिन अभी भी कुछ ऐसे विद्यार्थी थे, जिन्होंने सूत्र याद करने पर ही ज़ोर दिया।
हालांकि इन सभी गतिविधियों में काफी समय लगा, लेकिन मुझे लगता है कि इसका परिणाम बहुत अच्छा रहा। विद्यार्थियों ने गणित की कई बातें सीख लीं, ऐसा लग रहा था कि वे ज्यादा राहत व अपनी शिक्षा पर नियंत्रण की भावना महसूस कर रहे हैं और इन कामों में सक्रियता से जुड़े हुए हैं। सभी विद्यार्थी, भले ही उनके ज्ञान का स्तर जो भी हो, काम पूरा कर सके और अपनी गति और स्तर के अनुसार सीख सके। उन्हें सोचना पड़ा, रचनात्मक बनना पड़ा और अपने खुद के निर्णय लेने पड़े। उन्हें गणित के इन प्रश्नों को हल करने में बहुत मज़ा आ रहा था और कक्षा में कई मुस्कुराते हुए चेहरे और यहाँ तक कि हंसी-मज़ाक भी हुआ - जो मुझे बेहद अच्छा लगा। मुझे लगता है कि उन्होंने जो गणित सीखा है, वह उन्हें अब ज्यादा अच्छी तरह याद रहेगा, जिससे मुझे दीर्घकालिक लाभ होगा क्योंकि मुझे अब बार-बार एक ही विषय पर वापस नहीं जाना पड़ेगा!
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OpenLearn - गणितीय चिंताओं का समाधान : संयोजन-आकृतियाँ और ठोस Except for third party materials and otherwise, this content is made available under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-ShareAlike 4.0 Licence, full copyright detail can be found in the acknowledgements section. Please see full copyright statement for details.