‘शरीर गणित’ एक ऐसी तकनीक है जिसके लिए आवश्यक है कि विद्यार्थी उस गणित को भौतिक रूप से अनुभव करे, जिसे वह सीख रहा है। इसे ‘मूर्तरूप बनाना’, या किसी भावात्मक संकल्पना को साकार स्वरूप देना भी कहते हैं। मूर्तमान अनुभूति की संकल्पना में मस्तिष्क की विचारधारा को आकार देने के लिए वस्तु का उपयोग करते है (Dreyfus, 1996; Gibbs, 2006)। गणित को मूर्तरूप बनाने से:
गतिविधि 2 में, आपने अपने विद्यार्थियों के साथ बड़े मापों पर कार्य किया। अगली गतिविधि इसे और आगे ले जाती है: फिर से बाहर जाकर बड़े मापों पर काम करना, लेकिन इसमें विद्यार्थियों को गणित का अंग बनना होगा - गणित को मूर्त रूप में निरूपित करने के लिए। विद्यार्थियों को वृत्त की गोलाई पर एक बिंदु बनकर उसका केंद्र सटीक ढंग से बनाने को कहा जाएगा। परिणामस्वरूप प्रत्येक विद्यार्थी/बिंदु को संतुष्ट होना चाहिए कि वह केंद्र से उतनी ही दूरी पर है जितनी पर अन्य हैं। इस गतिविधि में विदयार्थियों को अपने अधिकारों के लिए खड़ा होना पड़ेगा और जब उन्हें लगे कि उन्हें केंद्र से गोलाई के अन्य बिंदुओं के समान दूरी पर न रखकर उनसे भेदभाव किया जा रहा है, तो उन्हें अपने अधिकार के लिए खड़ा होना व अपना मत सबको बताना होगा। इस प्रकार की गतिविधि का प्रबंधन पहली बार करते समय आसान नहीं है, लेकिन यदि आप प्रयास करते रहेंगे, तो आपके विद्यार्थियों को गणितीय गुणों का अधिक ज्ञान मिलेगा।
इस कार्य के लिए आपको सभी विद्यार्थियों के हाथ पकड़ने व एक वृत्त में खड़े होने के लिए पर्याप्त स्थान चाहिए, जहाँ वृत्त के बाहर और स्थान हो, जिससे उसके केंद्र का निर्माण अभिनीत किया जा सके। यह कार्य कक्षा IX की पाठ्य-पुस्तकों में दिए ‘वृत्त में किसी जीवा का लम्ब समद्विभाजक उसके केन्द्र से होकर जाता है।“ को मूर्त रूप देने का है। यदि आपको लगता है कि इस कार्य में उनके करने के लिए दी गई चर्चा को पूरा करने के लिए समूह बहुत बड़ा है, तो बेहतर होगा कि पूरी कक्षा से साझा करने से पहले उन्हें अपने विचारों पर तीन-तीन के समूह में बात करने को कहा जाए। आपको रस्सी या सुतली, एक गेंद और एक सीटी की आवश्यकता हो सकती है।
उन्हें दो और तीन के समूहों में इस पर चर्चा करने को कहें; फिर कुछ समूहों को अपने विचार पूरी कक्षा के साथ बाँटने को कहें। हर एक समूह के अपना विचार बताने के बाद, कक्षा से पूछें कि क्या वे सहमत हैं कि यह एक अच्छा तरीका है। दो या तीन समूहों द्वारा कक्षा को अपने विचार बताने के बाद सभी समूहों को अपने विचार बताने को कहने की आवश्यकता नहीं है;
बोल लेने के बाद, यह पूछें कि क्या किसी के पास दिए जा चुके सुझावों से बहुत अलग कोई विचार है। यदि कोई भी जीवा व लंब समद्विभाजक का उपयोग करके निर्माण करने की बात नहीं करता, तो उन्हें (बिना पूरी बात बताए) संकेत देना अच्छा होगा। जैसे: ‘समद्विभाजक नामक एक जादुई निर्माण उपकरण भी है…’
उनसे पूछें कि वे उस निर्माण को कैसे करेंगे और उन्हें क्या मान कर काम करना होगा क्योंकि वे इसे अपने शरीर का उपयोग करते हुए, बाहर एक बड़े पैमाने पर कर रहे हैं, जितना वे सामान्यत: नहीं करते।
ओह, उन्हें कार्य का प्रतिस्पर्धी भाग बहुत पसंद आया! उससे वे सोचने और नए विचार लाने के लिए आतुर हो गए। उन्हें लग रहा था कि वृत्त का केंद्र खोजना बहुत आसान व सरल होगा।
यह वास्तविक समस्या हल करना था - हल खोजने के लिए सोचने और निर्माण को अभिनीत करने/मूर्तमान करने के विचार देने, दोनों के लिए समस्याएँ थीं। बहुत बार फँसे भी, और उबरने पर भी बहुत विचार किया गया। कई बार गेंद को केंद्र में रखने का प्रयास करने के बाद जब उन्हें अहसास हुआ कि ऐसा करना मुश्किल था, तो वे एक तरह से सन्न रह गए। उन्हें एकदम सटीक तरीका खोजने में मुश्किल हुई, और फिर मेरी इच्छा हुई कि मैं उन्हें वृत्तों से संबंधित पाठ फिर से पढ़ाऊँ।
लेकिन समद्विभाजक के इशारे ने काम कर दिया - यद्यपि जीवा या लंब के रेखा खंड के रूप में उपयोग का विचार आने में समय लगा। लेकिन उन्होंने सब अपने आप किया, और उपलब्धि, प्रसन्नता व गर्व का भाव, कि उन्होंने स्वयं यह सब सोचा, प्रतीक्षा का मीठा फल था। मुझे लगता है कि स्वयं की खोज और वहाँ तक पहुँचने का ‘संघर्ष’ भी उन्हें बहुत बेहतर याद रखने में मदद करेगा - शायद परीक्षा तक भी।
वास्तव में, कौन सा तरीका काम करेगा यह सोचने की प्रक्रिया में उन्होंने वृत्त से संबंधित लगभग सभी गुणों व प्रमेयों को याद किया। अत: यह साथ में अच्छा पुनरीक्षण भी था, इस बोध के साथ कि ये प्रमेय व गुण उन्हें मैदान में सामने आई वास्तविक समस्या को सुलझाने में मदद करेंगे।
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