प्रत्येक चित्र को शक्लन घटक (scaling factor) के आधार पर बढ़ाया या कम किया जा सकता है। यह हम वास्तविक जीवन में लगातार करते रहते हैं। मूल चित्र व छोटे या बड़े किये गये चित्र एक दूसरे के ‘समान’ होते हैं। कक्षा X में पढ़ाई गई ‘त्रिभुजों की समानता’ अक्सर विदयार्थियों को परेशान करती है, यदि उन्होंने कभी चित्रों का शल्कन (scaling) न किया हो या शल्कित (scalid) व मूल चित्र के बीच संबंध पर ध्यान न दिया हो।
अगली गतिविधि में, एक त्रिभुज का शल्कन (scaling) करके आप विद्यार्थियों की उनकी अपनी तकनीक का पता लगाने में मदद करेंगे। फिर वे बढ़ाए गए त्रिभुज के आकार को परिभाषित करके बढ़ाने या घटाने के शल्कन (scaling factor) घटक को निर्धारित करेंगे। यदि विद्यार्थी गणित की कक्षा के बाहर काम करें और कागज़ पर काम करते समय उन्हें जिस स्केल पर काम करने की आदत है, उससे बड़े आकार पर काम करें, तो इसका लाभ अधिक होता है। ‘वास्तविक-आकार’ के मापों पर काम करने में आने वाली समस्याएँ और उन्हें मिलने वाली गणितीय समझ इस कार्य के बाद की केस स्टडी में बताए गए हैं और गतिविधि 3 में इनका अन्वेषण किया जाएगा।
यह गतिविधि तब बेहतर लाभ देती है, जब विद्यार्थी तीन या चार के समूहों में सहयोग करते हैं। योजना बनाएँ कि कौन किस समूह में रहेगा और क्यों - आप अधिक आत्मविश्वास वाले विद्यार्थियों को कम आत्मविश्वासी विद्यार्थियों के साथ मिला सकते हैं। यह महत्वपूर्ण है कि यह गतिविधि बाहर की जाए, उदाहरण के लिए किसी मैदान में, जहाँ विद्यार्थी ज़मीन पर चॉक से लिख सकें या मिट्टी पर आकृतियाँ बना सकें। पुस्तिका के कागज़ के स्थान पर अख़बार बेहतर विकल्प होगा, क्योंकि वह बड़ा होता है। विद्यार्थियों को समूहों में काम करने को कहते समय, यह महत्वपूर्ण है कि संसाधन, जैसे लिखने का कागज़ पर्याप्त बड़े हों, जिससे सभी उन्हें एक साथ देखे सकें। इसका अर्थ है बड़े कागज़ और बड़े अक्षरों में लिखना।
अपने विद्यार्थियों को निम्न बताएँ:
आपको कागज़ का टुकड़ा दिया गया है। इसे मोड़कर एक त्रिभुज बनाएँ। त्रिभुज का आकार महत्वपूर्ण नहीं है।
अब सोचें कि इन तीन त्रिभुजों में क्या समान है और क्या भिन्न है।
और जानने के लिए संसाधन 2, ‘समूह में काम करना’ देखें।
समूहों ने [गतिविधि पर] चर्चा आरंभ की लेकिन ऐसे कई विद्यार्थी थे, जो बिल्कुल योगदान नहीं कर रहे थे। मैंने समझ लिया कि उन्हें यह आसान नहीं लग रहा लेकिन मुझे यह ठीक से नहीं पता था कि वे कहाँ अटके थे। प्रश्न के पहले भाग में उन्हें कागज़ का एक त्रिभुज बनाना था - मेरी समझ से तो निश्चित ही यह इतना मुश्किल नहीं था। मैं सोचने लगा कि शायद वे भूल गए थे कि उन्हें त्रिभुजों के बारे में पहले से क्या पता होना चाहिए था और शायद मुझे उन्हें पाठ्य-पुस्तक में देखकर अपनी याददाश्त को ताज़ा करने के लिए कहना चाहिए।
लेकिन, हम मैदान में थे और पुस्तकें कक्षा में, इसलिए इसमें तो बहुत समय लग जाता। अत: मैंने सोचा, ‘मुझे नहीं पता वे कहाँ फँसे हैं, तो मुझे सीधे पूछ ही लेना चाहिए!’ उसी समय मैंने सोचा, ‘मुझे अच्छा नहीं लगता जब वे फँस जाते हैं।’ लगता है जैसे वे हमेशा इस बात की प्रतीक्षा करते हैं कि मैं उन्हें यह बताकर उबरने में मदद करूँ कि उन्हें क्या करना चाहिए। वे मुझसे प्रश्नों को और छोटे चरणों में तोड़ने की अपेक्षा रखते हैं। मुझे लगता है यह उन्हें स्वतंत्र प्रशिक्षु या अच्छे समस्या सुलझाने वाला बनाता है, जो हम चाहते हैं कि उन्हें विद्यालय के बाहर के जीवन में होना चाहिए। अत: मैंने वह कहा जो मैं सोच रहा था:
आप सब फँस गए लगते हैं। कहीं फँस जाना जीवन का ही भाग है। महत्वपूर्ण यह है कि आप उबरें और आप जानें कि कैसे उबरते हैं। तो आप लोग पहले अपने समूहों में इस पर चर्चा करें कि आप किस जगह फँसे हैं और कैसे उबर सकते हैं। फिर हम आपके कुछ विचारों पर पूरी कक्षा के साथ चर्चा करेंगे।
हमें पाँच मिनट से भी कम समय लगा व उनके पास उबरने के कुछ अच्छे आइडिया आ गए। इस चर्चा ने वास्तव में हमें पूरे समूह के साथ होने का भाव दिया - एक दूसरे को सीखने और उबरने में मदद करने के सामूहिक उत्तरदायित्व का अहसास, और यह अनुभव कि हम सब यह कर सकते हैं। बाकी के पाठ में सभी प्रसन्न रहे। परिणामस्वरूप, बाद में हम समानता और सर्वांगसमता, शल्कन घटक (scaling factor) व सभी त्रिभुजों के गुणों पर चर्चा कर पाए। अत: गणित का केवल एक पहलू सीखने के बजाय, वे विभिन्न पहलुओं को जोड़ने लगे थे।
दस गुना परिमाप वाला समान त्रिभुज बनाने के प्रश्न पर उन्हें थोड़ा सोचना पड़ा - लेकिन कोई कुंठा देखने में नहीं आई। मैंने विद्यार्थियों को ‘हम फँस गए हैं’ और ‘अब हमें उबरना है’ कहते सुना। एक समूह ने उबरने के लिए एक रस्सी की माँग की। मैंने यह नहीं सोचा था, अत: मैं वह नहीं लाया था। किस्मत से मेरी कक्षा में सिलाई के मजबूत धागे का एक बॉबिन था, जिसे उन्होंने खुशी-खुशी उपयोग किया।
यह प्रश्न कि क्या समान था व क्या बदल गया था, रोचक था। मैंने विद्यार्थियों को अपने त्रिभुजों के आसपास घूमते, उन्हें विभिन्न कोणों से देखते हुए देखा। उन्होंने सभी प्रकार के अनुमान लगाए, दुबारा सोचा और फिर अपने अनुमानों के शब्दों में फेरबदल किया। इससे स्वचालित रूप से एक विधि परिभाषित हुई। मैंने सोचा कि यह अच्छा था कि उन्होंने अपने विचार तुरन्त ही नहीं लिख लिए, क्योंकि वे भिन्न विवरण देने के लिए उत्सुक थे और तेज़ गति से काम कर सकते थे - लिखना हमेशा चीज़ों को धीमा कर देता है। उन्हें गणितीय भाषा के उपयोग में भी अधिक सटीक होना चाहिए। क्योंकि किसी विद्यार्थी के ‘वह कोण’ कहने पर दूसरे किसी और स्थान पर खड़े होकर त्रिभुजों को देखते हुए हैरान रहेंगे।
पहले उन्होंने एक बड़े कागज़ पर आरेख खींचा और फिर अपनी अभ्यास-पुस्तिकाओं में विधि लिखी। सब होने के बाद मुझे यह समझ नहीं आया कि उन बड़े कागज़ों का क्या करना चाहिए! अंत में, हमने उन्हें कक्षा की दीवारों पर चिपका दिया। वे बहुत अच्छे तो नहीं दिख रहे थे; लेकिन दृश्य रोमांचक था और वह उनके गणितीकरण का उदाहरण था। हमने उसे ‘सोचने के काम की दीवार’ नाम दिया। मैंने देखा कि अगले कुछ दिन और सप्ताहों तक विद्यार्थी और शिक्षक उसे देखते और उस पर चर्चा करते रहे। मुझे वाकई अच्छा लगा कि अब तक किसी पाठ के बारे में बातें हो रही थीं और वह शिक्षण भी, जो पाठ के पूरा होने के बहुत बाद तक जारी था! यही मैदान में चॉक के आरेखों के साथ हुआ: लोग अचरज में थे और उसके बारे में बातें करते थे। दीवार पर प्रदर्शन तब तक रहा जब कुछ सप्ताह बाद हमने उसे विद्यार्थियों के एक और ‘सोचने के काम’ से बदला।
इस गतिविधि ने मुझे उस प्रभाव के बारे में सोचने पर मजबूर कर दिया, जो गणितीय रचना के कक्षा से बाहर होने से पड़ा था। बाहर, वे अपनी अभ्यास-पुस्तिकाओं से बड़े पैमाने पर काम करते हैं, लेकिन मैं अपने विद्यार्थियों के साथ यह करने की चिन्ता क्यों करूँ? मैं अब भी पूरी तरह समझ नहीं पाया हूँ कि
यह इतना उपयोगी क्यों लगता है, और मुझे लगता है मैं समझ भी नहीं पाऊँगा, लेकिन मेरे विचार निम्नलिखित है :
उनकी गणित की दुनिया वाकई बड़ी हो गई। विद्यार्थी कक्षा में पाठ्य-पुस्तक लेकर बैठने की जगह मैदान की अपनी ‘बाहरी’, ‘वास्तविक’ उस दुनिया में गए, जहाँ वे अपने विद्यालय के मित्रों के साथ घूमते हैं।
जिस बात ने मुझे आंदोलित किया वह यह थी कि यह पाठ कितना खुशियों भरा व रोमांचक रहा, गहरी सोच व गणितीय विचार-विमर्श के साथ: मुस्कुराहटें और चमकती आँखें जब उन्होंने कोई अंदाज लगाया और फिर यह पता लगना कि वास्तव में उनका अनुमान सही निकला (चाहे कुछ समय के लिए ही सही!)। वे गर्व और उपलब्धि के भाव से चमक रही थीं, जैसे कि मैं!
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