इस विषय में कई दृष्टिकोण प्रस्तुत किए गए हैं कि हमारे विद्यालयों और शैक्षणिक परिवेशों में परिवर्तन कैसे होता है। आन्तरिक बनाम वाह्य रूप से शुरू किये गये परिवर्तन की धारणा एक ऐसा ही तर्क है। आंतरिक रूप से आरंभ किए गए परिवर्तन में हम सभी छात्रों, शिक्षकों और प्रशासनिक स्टाफ को संभावित परिवर्तन कारक मानते हैं जो, अपने काम के माध्यम से परिवर्तन को आरंभ और क्रियान्वित करने में सक्षम होते हैं (मुख्यतः गुणवत्ता और मानकों में सुधार करने की जरूरत के कारण)। इसका वर्णन प्रायः स्वैच्छिक दृष्टिकोण के रूप में किया जाता है क्योंकि इसमें इस बात पर जोर दिया जाता है कि नेताओं और अन्य परिवर्तन कारकों की स्वैच्छिक (स्वयं प्रारंभित) कार्यवाहियाँ विद्यालय के भीतर परिवर्तन कैसे लाती हैं।
एक और दृष्टिकोण यह है कि अधिकांश शैक्षणिक परिवर्तन बाह्य रूप से प्रारंभ होता है। इसमें नई नीतियों के लागू किए जाने पर शैक्षणिक प्राधिकारियों के दबाव दिखाई देते हैं। इसे अकसर निर्धारक दृष्टिकोण का नाम दिया जाता है, क्योंकि यह नेताओं और उनके स्टाफ को उस परिवर्तन के लक्ष्यों के रूप में देखता है जो बाह्य ताकतों द्वारा निर्धारित किया जाता है (अर्थशास्त्र, प्रौद्योगिकी, वैश्वीकरण, स्थिति में सांस्कृतिक परिवर्तन, आदि)। कई शिक्षक और विद्यालय प्रमुख कहते हैं कि वे इस प्रकार के परिवर्तन का अनुभव तब करते हैं जब परिवर्तन की आवश्यकता की मांग की जाती है या उसे जबरन लागू किया जाता है।
विद्यालय के संदर्भ में परिवर्तन का मतलब विद्यालय में होने वाले किसी भी तरह के परिवर्तन से है, चाहे वह स्टाफ या छात्रों द्वारा परिवर्तन स्थिति को बदलने के लिए कोई जानबूझ कर की गई कार्यवाही हो, या कोई प्रादेशिक या राष्ट्रीय पहल हो। परिवर्तन को अग्रसक्रिय (जानबूझ कर, स्वयं शुरू की गई कार्यवाही) या प्रतिक्रियात्मक (किसी उद्दीपन की अनुक्रिया में) होना चाहिए।
विद्यालय में होने वाले आन्तरिक अथवा वाह्य रूप से प्रेरित परिवर्तनों को वास्तव में कैसे शुरू किया जाता है। यह देखने के दो तरीके हैं। (चित्र 2)।
चित्र 2 ऊपर से नीचे और नीचे से ऊपर का परिवर्तन।
ऊपर से नीचे की ओर परिवर्तन को सारे विद्यालय में लागू करना अपेक्षाकृत आसान और सीधा-सादा होता है, बशर्ते कि इस पर स्टाफ और एसएमसी सदस्यों के बीच विचार-विमर्श और सहमति हो गई हो – जैसा कि प्रायः नहीं होता है। इसके लिए विद्यालय आधारित–व्यापक दृष्टिकोण की जरूरत होती है, और इसलिए इससे किए जा रहे परिवर्तन के प्रति एक संगत, व्यवस्थित दृष्टिकोण को प्रोत्साहन करने का लाभ मिलता है। ऊपर से नीचे की ओर के परिवर्तन में आम तौर पर परिवर्तन को लागू करने वालों के साथ थोड़ा-बहुत परामर्श शामिल होता है; तथापि, संकट की स्थिति में, ऊपर से नीचे की ओर के परिवर्तन को स्टाफ से परामर्श के बिना जबरदस्ती थोपा जा सकता है? इसके प्रेरणा और मनोबल पर गंभीर परिणाम हो सकते हैं, लेकिन यदि संगठनात्मक स्वरूप को खतरा हो, तो विद्यालय का स्टाफ बिना परामर्श प्रक्रिया के त्वरित और अकस्मात कार्यवाही की जरूरत को स्वीकार कर सकता है।
दूसरी ओर, नीचे से ऊपर की ओर परिवर्तन में स्वयं विद्यालय के समुदाय द्वारा परिकल्पित किए जाने का फायदा मिलता है। RtE के आदेशानुसार, एसएमसी को योजनाओं का विकास, कार्यान्वयन और निगरानी करने और फिर उसे विद्यालय भर में प्रोत्साहित करने का काम सौंपा गया है। नीचे से ऊपर के परिवर्तन को भी विद्यालय में किसी के भी द्वारा सुझाया जा सकता है, लेकिन फिर उसे वरिष्ठ स्टाफ द्वारा क्रियान्वित किया जाता है जिनके पास उसे प्रभावित करने और लागू करने का प्राधिकार होता है। तथापि, इसके लिए प्रायः ऊँचे दर्जे के विचार-विमर्श की जरूरत पड़ती है, और हो सकता है विद्यालय का समुदाय परिवर्तन के लिए आसानी से तैयार न हो; इसलिए इसके कारण अन्य चुनौतीपूर्ण मुद्दे उठ खड़े होते हैं। इस वजह से, नीचे से ऊपर की ओर का परिवर्तन कभी-कभी अनुमान से परे माना जाता है और संस्था में इसे अपनाए जाने में समय लगता है।
चित्र 3छात्रों की अवधारणाओं को सुनना।
परिवर्तन के किसी भी पहलू में समस्याओं को न्यूनतम करने के लिए, कुछ विद्यालय प्रमुख अपने परिवर्तन को विद्यालय के एक क्षेत्र में प्रयोग के रूप में क्रियान्वित करते हैं और काम करने के नए तरीके आजमाते हैं, उठने वाली समस्याओं और मुद्दों का आकलन करते हैं, और उसे सारे विद्यालय में लागू करने से पहले कोई भी आवश्यक समायोजन करते हैं। इसका मतलब है कि परिवर्तन को अधिक बड़े पैमाने पर लागू करने से पहले प्रमुख कमज़ोरियों से निपटा जा सके।
उन तीन उल्लेखनीय परिवर्तनों के बारे में सोचते हुए कुछ समय बिताएं जो आपके विद्यालय में पिछले एक या दो सालों में हुए हैं। वे बड़े या छोटे परिवर्तन हो सकते हैं, लेकिन उनके कारण लोगों को अपनी प्राथमिकताएं, बर्ताव या प्रक्रियाएं बदलनी पड़ी हों। अपनी सीखने की डायरी में, निम्नलिखित प्रश्नों से संबंधित नोट्स बनाएं:
शैक्षणिक परिवर्तन की पहलें, मुद्दों की व्यापक श्रृंखला को समाविष्ट कर सकती हैं: कक्षा की शिक्षण पद्धतियाँ, विद्यालय के स्तर पर परिवर्तन या प्रदेश या राष्ट्रीय स्तर पर बड़े पैमाने का रूपांतरण। आपकी अपनी अनुक्रिया अन्य विद्यालय प्रमुख से भिन्न होगी, क्योंकि परिवर्तन का असर हर व्यक्ति पर अलग होता है। कुछ सहकर्मियों के पास परिवर्तन का ढेर सारा अनुभव होगा; अन्य लोग शायद उसे पहली बार देख रहे होंगे। जबकि कुछ लोग परिवर्तन और उसमें अपनी भूमिका के बारे में चिंतित होंगे, अन्य लोग आगे बढ़ने और प्रभाव कायम करने के अवसर का लाभ उठाएंगे।
केस स्टडी 1 और 2 के उदाहरण नीचे से ऊपर की ओर के परिवर्तन को दर्शाते हैं। हालांकि न्यू शिशु पब्लिक विद्यालय में रिपोर्ट की गई सफलता की कहानी में विद्यालय के वाह्य भागीदारी शामिल थे, परिवर्तन की शुरुआत विद्यालय प्रमुख ने की थी जिन्होंने एक स्थानीय समस्या को पहचाना और हल किया।
किसी भी परिवर्तन की पहल के लिए सभी भागीदारों की सहमति या अनुमति लेना बेहतर है। तथापि, आप स्वयं को ऐसी स्थिति में पा सकते हैं जहाँ हर व्यक्ति भविष्य के बारे में आपके दृष्टिकोण से सहमत नहीं होता है। इस कारण से, किसी भी परिवर्तन के प्रति आपका दृष्टिकोण महत्वपूर्ण होता है। इनमें से कुछ मुद्दों पर आप खंड 6 में विचार करेंगे।
इसलिए परिवर्तन का नेतृत्व या प्रबंधन करते समय तीन महत्वपूर्ण चीजों को ध्यान में रखना चाहिए:
लेकिन क्या परिवर्तन हमेशा ही अच्छा होता है? कुछ लोग तर्क देते हैं कि निरन्तरता के लिए न्यूनतम परिवर्तन आवश्यक होता है, और इसलिए वे स्थिरता और परिवर्तन को एक दूसरे का विलोम मानते हैं। यह तर्क भी पेश किया जा सकता है कि स्थिरता और परिवर्तन एक दूसरे पर निर्भर होते हैं, क्योंकि तेज रफ्तार से बदलती दुनिया में वे दोनों आवश्यक हैं। बिना परिवर्तन के, संगठन बेकार हो सकता है। विद्यालयों को पता चल सकता है कि बाहरी परिवर्तनों के प्रति अनुक्रिया करने के लिए परिवर्तन आवश्यक है। इन परिवर्तनों में शामिल हैं प्रवास, नई प्रौद्योगिकियाँ, गरीबी, लिंग असंतुलन, रोजगार के कौशलों की कमी आदि।
बदलते बाहरी पर्यावरण में, संगठन को वैसा ही बना रहने और उसके समुदाय और वृहत्सन्दर्भ में स्थिरता बनाए रखने के लिए आंतरिक परिवर्तन की जरूरत होती है। उदाहरण के लिए, बढ़ती प्रवासी आबादी वाले विद्यालय को अपनी कुछ प्रथाओं और प्रक्रियाओं को बदलना पड़ सकता है ताकि छात्र आबादी का निर्माण करने वाली विभिन्न संस्कृतियों को समायोजित किया जा सके। यदि वह नहीं बदलता है तो, पृथक्कीकरण, डराना-धमकाना और छात्रों तथा स्टाफ के बीच तनाव उत्पन्न हो सकता है।
आने वाले खंडों में, आप विद्यालय-स्तर का परिवर्तन देखेंगे और यह विचार करने लगेंगे कि आप, विद्यालय प्रमुख होने के नाते, बदलाव लाने के लिए अपने स्टाफ के साथ कैसे काम कर सकते हैं। आप ऐसे तरीकों पर भी विचार करेंगे जिनसे आप परिवर्तन के रास्ते में आने वाली बाधाओं पर काबू पा सकते हैं और ऐसे पर्यावरण को बढ़ावा दे सकते हैं जो अन्य लोगों को नए दृष्टिकोण आजमाने का अवसर देता है।
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