सीखने-सिखाने की प्रक्रिया में परिवर्तन: प्राथमिक विद्यालय में सीखने-सिखाने की प्रक्रिया में सुधारों का नेतृत्व करना

3 आपको किस प्रकार के बदलाव की अगुआई करनी चाहिए?

अब आप अपने विद्यालय में शिक्षण और सीखने की क्रिया में सुधार लाने के लिए अपने ऑडिट में से किसी एक मुद्दे पर ध्यान देना आरंभ करेंगे। यह महत्वपूर्ण है कि एक बार में बहुत अधिक सुधार की कोशिश न की जाए। एक बार में एक मुद्दे पर फोकस करने से आपके सफल होने की संभावना अधिक हो जाती है।

गतिविधि 3: सुधार हेतु अपने फोकस की पहचान करना

संसाधन 1 के अपने उत्तरों और टीईएसएस-इंडिया मुख्य संसाधनों (संसाधन 3) की ‘कार्याभ्यास के भागीदारीपूर्ण सिद्धांतों’ की सूची का उपयोग करते हुए, बदलाव हेतु कोई एक फोकस पहचानें। (उदाहरण के लिए, यह ‘जोड़ी में कार्य’ या ‘प्रश्न करना’ हो सकता है।)

आप संसाधन 3 की तालिका से यह देख सकते हैं कि कार्याभ्यास के प्रत्येक सिद्धांत के साथ, कौन से टीईएसएस-इंडिया ओईआर एवं वीडियो लिंक किए गए हैं, ताकि आप सभी संबंधति टीईएसएस-इंडिया संसाधनों के साथ जुड़ सकें। (भाषा व साहित्य, प्राथमिक गणित, प्राथमिक अंग्रेजी एवं प्राथमिक विज्ञान के) उन टीईएसएस-इंडिया ओईआर की एक सूची बनाएं जिनका उपयोग आप, अपने विद्यालय में इस पद्धति विकसित करने में मदद के लिए कर सकते हैं।

चित्र 3 आपको अपने विद्यालय में क्या सुधार करना है?

उदाहरण के लिए, हो सकता है कि आप जानते हों कि आपके शिक्षक कक्षाओं से पहले अपने पाठों के बारे में पर्याप्त रूप से नहीं सोचते हैं। तो इसके लिए आप पाठों की योजना बनाने पर ध्यान देने चुन सकते हैं। इससे न केवल पाठों के प्रस्तुतिकरण के तरीके में, बल्कि प्रयुक्त शिक्षण विधियों और संसाधनों की विविधता में भी सुधार संभव हो सकते हैं। वैकल्पिक तौर पर, हो सकता है कि आप चाहते हों कि विद्यार्थी थोड़ा अधिक बोलें (‘सीखने के लिए बोलना’ मुख्य संसाधन देखें), या हो सकता है कि आपके विद्यालय में बड़ी कक्षाएं हों और आप यह तय करें कि शिक्षकों के लिए बड़ी कक्षाओं को प्रभावी ढंग से पढ़ाना आसान बनाने के लिए विद्यार्थियों से जोड़ियों में कार्य करवाया जाए (‘जोड़ी में कार्य का उपयोग करना’)।

आप बदलाव की अगुआई करने के बारे में, अपने विद्यालय में बदलाव की योजना बनाना और उसकी अगुआई करना तथा अपने विद्यालय में बदलाव लागू करना नामक ओईआर में अधिक जानकारी पा सकते हैं।

इस सत्र में केवल एक फोकस चुनना महत्वपूर्ण है। अगर आप एक बार में बहुत कुछ बदलने की कोशिश करेंगे तो बदलाव कम असरदार होंगे। नीचे दिए गए वृत्त अध्ययन को पढ़ कर जानें कि कैसे एक विद्यालय नेता ने अपना एक फोकस चुना।

केस स्टडी 1: श्रीमती चड्ढा बता रही हैं अपने निष्कर्षों के बारे में

यह एक सीखने की डायरी प्रविष्टि है जिसे एक प्राथमिक विद्यालय नेता, श्रीमती चड्ढा ने लिखा है। उन्होंने अपने विद्यालय में गतिविधि 1 व 3 आज़माई थीं।

मैंने [ संसाधन 1 में दी गई] तालिका भरनी शुरू की जिससे मैं यह छानबीन करने को उद्यत हुई कि मैं यह कैसे पता करूं कि विद्यालय में वास्तव में क्या शिक्षण चल रहा है। मैंने पाया कि यह जानकारी प्रायः या तो मध्यावकाश के दौरान में शिक्षकों द्वारा मुझे बताई गई बातों से आती है या फिर अनौपचारिक चर्चाओं से। इससे मैं धारणाओं के बारे में सोचने लगी: क्या शिक्षकों की अवधारणाएं वैसे ही हैं जैसी मेरी, या फिर क्या मेरे और विद्यार्थियों की धारणाएं समान हैं या?

मैंने पाया कि मुख्य संसाधनों से मुझे इस सत्र हेतु एक फोकस खोजने के लिए प्रोत्साहन मिला, क्योंकि ऐसा बहुत कुछ था जो मुझे पता नहीं था और करने के लिए बहुत कुछ था। मेरा मानना है कि विद्यार्थियों द्वारा प्रश्न पूछे जाने से सीखने में मदद मिलती है। पाठों में क्या प्रश्न पूछे जा रहे हैं यह जानने के लिए मैंने विद्यालय में चक्कर लगाने का निश्चय किया। पाठों के दौरान बरामदों में घूमने से यह आसानी से सुनाई पड़ जाता है कि क्या चल रहा है, क्योंकि तब गर्मी की वजह से दरवाजे बंद नहीं होते। मैंने तय किया कि मैं कक्षाओं में नहीं जाऊंगी, क्योंकि मुझे चिंता थी कि विद्यार्थी और शिक्षक मुझे कक्षाओं में देखने के (अभी) अभ्यस्त नहीं हुए हैं – विद्यालय प्रमुख के प्रवेश करने से कक्षाओं में सामान्यतः जो कुछ होता वह बदल सकता था। इसलिए मैंने कक्षाओं के बाहर से सुना।

मैंने देखा कि अधिकतर कक्षाओं में शिक्षक बोल रहे थे और विद्यार्थी चुपचाप सुन रहे थे। कभी-कभार शिक्षक कोई प्रश्न पूछ लेता था और विद्यार्थी समवेत स्वर में उत्तर दे देते थे। पर न तो कोई खुले प्रश्न पूछे जा रहे थे और न ही ऐसे प्रश्न जिसमें विद्यार्थी जो कहा गया उससे असहमत हो सकते हों। विद्यार्थी बोर्ड की ओर मुंह किए कतारों में बैठे थे जहां शिक्षक बोल रहे थे।

केवल श्री मेघनाथन की कक्षा अलग थी – मैंने उन्हें विद्यार्थियों से ऐसे प्रश्न पूछते सुना जिन पर विद्यार्थियों को उनसे असहमत होना पड़ा और अपने तर्कों की व्याख्या करनी पड़ी। उन्होंने विद्यार्थियों को उत्तर देने से पहले ‘सोचने का समय’ भी दिया। मैं विद्यार्थियों को प्रश्नों के बारे में एक दूसरे से बात करते सुन पा रही थी, और खिड़की से देखने पर मैंने पाया कि वे एक-दूसरे की ओर मुड़ गए थे और जोड़ियों में कार्य कर रहे थे।

यह साफ था कि श्री मेघनाथन की कक्षा में एक अच्छा कार्याभ्यास चल रहा था, पर मुझे पता था कि मुझे सावधान रहना है क्योंकि अगर मैंने सार्वजनिक रूप से केवल उन्हीं की प्रशंसा की तो बाकी शिक्षकों में रोष उत्पन्न हो सकता था। मैंने तय किया कि मैं ‘प्रश्न करने’ को इस सत्र का फोकस बनाऊंगी ताकि मैं श्री मेघनाथन की सहभागिता पूर्व शिक्षण पद्धति और टीईएसएस-इंडिया के संसाधनों के उदाहरणों का लाभ उठा सकूं।