परिवर्तन के ऐसे तीन सिद्धांत हैं जो विद्यालय नेताओं के कार्य के साथ प्रासंगिक हैं। ये सिद्धांत परिवर्तन की विधियां नहीं हैं, बल्कि ये परिवर्तन के बारे में सोचने का एक तरीका प्रदान करते हैं। अतीत में जो कुछ हुआ उसमें नेता परिवर्तन नहीं कर सकता है, पर उसके पास भविष्य में लोगों द्वारा परिवर्तनों पर प्रतिक्रिया देने के तरीके और परिवर्तनों के प्रति उन लोगों की प्रतिबद्धता को प्रभावित करने की अच्छी-खासी गुंजाइश है।
नोस्टर और अन्य (2000) ने परिवर्तन की पाँच विमाएं देखी थीं (चित्र 2)।
नोस्टर और अन्य के कार्य ने दिखाया कि अगर इनमें से कोई एक विमा अनुपस्थित हो तो परिवर्तन के सफल होने की संभावना कम ही होती है। इन्हें तालिका 1 में दिया गया है। सही का निशान (✓) दिखाता है कि विमा मौजूद है; गलत का निशान (✓) दिखाता है कि विमा अनुपस्थित है। उदाहरण के लिए, जहां कोई परिकल्पना नहीं होती (जैसे पहली पंक्ति में) वहां ग़लतफहमी उत्पन्न होती है क्योंकि परिवर्तन का कारण तथा अभीष्ट परिणाम अस्पष्ट होते हैं।
परिकल्पना | संसाधन | कौशल | प्रोत्साहन | कार्य नियोजन | परिणाम |
---|---|---|---|---|---|
✗ |
![]() |
![]() |
![]() |
![]() |
ग़लतफहमी |
![]() |
✗ |
![]() |
![]() |
![]() |
निराशा |
![]() |
![]() |
✗ |
![]() |
![]() |
बेचैनी |
![]() |
![]() |
![]() |
✗ |
![]() |
ढिलाई या लापरवाही |
![]() |
![]() |
![]() |
![]() |
✗ | क्रमिक परिवर्तन |
![]() |
![]() |
![]() |
![]() |
![]() |
प्रभावी परिवर्तन |
सतर्कता का एक शब्द संसाधनों की रक्षा करता है। संसाधनों में मानव संसाधन तथा सामग्री संसाधन शामिल होते हैं। विद्यालय में कई परिवर्तनों को मौजूदा पदार्थ संसाधनों से या अपेक्षाकृत मामूली वृद्धियों से पूरा किया जा सकता है। सबसे अधिक शैक्षिक परिवर्तन में सबसे महत्वपूर्ण संसाधन है मानव संसाधन। खराब अध्यापक, अत्याधुनिक कक्षा में भी खराब ही रहेगा। अच्छा अध्यापक, कम संसाधनों के साथ भी अच्छा ही रहेगा।
श्रीमती गुप्ता शहरी इलाके के एक मिश्रित माध्यमिक विद्यालय की नेता हैं जहां बेहद अलग - अलग किस्म के विद्यार्थी हैं।
मैं पास के एक विद्यालय गई जिसके परिणाम अच्छे आ रहे थे और देखा कि अध्यापक अध्यापन की ऐसी विविध विधियां इस्तेमाल कर रहे थे जिनमें विद्यार्थियों को पाठों में सक्रिय रूप से संलग्न किया जाता था। वहां समूहकार्य और स्वतंत्र रूप से कार्य कराया जाता था, और अध्यापक प्रश्न करने की विभिन्न तकनीकों का इस्तेमाल करके विद्यार्थियों से जो वे सीख रहे हैं उस बारे में परिकल्पना-विचार करवाते थे। अधिक योग्य विद्यार्थी प्रायः उन विद्यार्थियों की सहायता करते थे जिन्हें खुद कार्य रिकॉर्ड करने में कठिनाई होती थी, और अध्यापकों ने अपने पाठों को अधिक रोचक बनाने के लिए विविध प्रकार की सामग्रियां, जैसे फ्लैशकार्ड और चित्र बनए थे। इनमें से काफी कुछ चीजें और विद्यार्थियों के कार्यों को दीवारों पर प्रदर्शित किया गया था।
अपने विद्यालय लौट कर मैंने फैसला किया कि हमें अपने विद्यालय के अध्यापन में परिवर्तन लाने की जरूरत है। मैंने स्टाफ बैठक बुलवाई और अपने स्टाफ को बताया कि मैंने क्या-क्या देखा और विद्यालय कितना अच्छा था। मैंने समझाया कि मैं चाहती हूँ कि विद्यार्थी अपने सीखने में और अधिक सक्रियता से संलग्न हों और मैं चाहती हूँ कि सभी अध्यापक समूहकार्य का उपयोग करते हुए अगले हफ्ते एक पाठ की योजना बनाएं। वे कैसी प्रगति कर रहे हैं यह देखने के लिए मैं कक्षा में उनसे मिलूंगी।
तालिका 1 देखें और फिर इन प्रश्नों के उत्तर अपनी सीखने की डायरी में लिखें:
परिवर्तन लाने का उनका प्रयास कितना सफल हो पाएगा?
चर्चा
श्रीमती गुप्ता के पास एक परिकल्पना थी जिसे उन्होंने अपने विद्यालय के अध्यापकों को समझाया था। पर यह साफ नहीं है कि उन्होंने उनकी परिकल्पना को समझा या नहीं अथवा वे उससे सहमत थे या नहीं। उन्होंने एक योजना बनाई और फिर एक प्रोत्साहन प्रस्तुत किया – कि वे कक्षा में आएंगी। अध्यापकों के लिए यह एक धमकी की तरह अधिक था। अध्यापकों को प्रेरित करने की आवश्यकता होती है और यह नेतृत्व की एक मुख्य जिम्मेदारी है। (धमकियों की बजाए) प्रभावी प्रोत्साहन सम्मान करने, प्रशंसा पाने और सफल दल का हिस्सा होने से संबंध रखते हैं।
उन्होंने अध्यापकों की मदद के लिए कोई संसाधन नहीं दिया, और न ही यह जांचा कि उनके पास आवश्यक कौशल हैं या नहीं। अगर उन्होंने दूसरे विद्यालय के नेता से बात कर ली होती, तो शायद उन्हें अपनी परिकल्पना को अपने स्टाफ के समक्ष स्पष्ट करने के बारे में सलाह और प्रमाण मिल गए होते। साथ ही संभव है कि उन्हें विकसित किए गए संसाधनों और कौशलों के बारे में कुछ सुझाव मिले होते।
परियोजना पर कार्य आरंभ करने के लिए संसाधनों की आवश्यकता नहीं थी, हालांकि उनसे कई तरह से मदद मिलती। उदाहरण के लिए, श्रीमती गुप्ता कुछ कक्षाएं लेने का प्रस्ताव रख सकती थीं, ताकि अध्यापक पास वाले विद्यालय जाकर उन चीजों को खुद देख सकें जो श्रीमती गुप्ता उनसे चाहती थीं।
श्रीमती गुप्ता ने योजना बनाई थी पर वह यथार्थवादी नहीं थी क्योंकि वे नियोजित पद्धति की बजाए तत्काल परिवर्तन की अपेक्षा रखती थीं, जबकि स्टाफ नियोजित पद्धति में विकासपरक ढंग से विचारों को जांच-परख सकता था।
प्राथमिक प्रधानाध्यापक श्री चड्ढा ने अपने विद्यालय में सतत व व्यापक मूल्यांकन ( सीसीई ) को अंतस्थ बनाने पर एक पाठ्यक्रम में भाग लिया था।
पाठ्यक्रम में सीसीई के सभी कारणों को समझाया गया था और सीसीई ज्ञानार्जन को कैसे सुधार सकता है इसके कुछ बेहद ठोस उदाहरण दिए गए थे। मैं प्रेरणाओं से ओत प्रोत होकर विद्यालय लौटा था। अगली स्टाफ बैठक में मैंने मेरे स्टाफ को सीसीई के बारे में समझाया (मेरे विद्यालय में छः अध्यापक हैं) और कहा कि अगले कुछ हफ्तों में उन सभी को डायट [जिला शिक्षा प्रशिक्षण संस्थान] में एक पाठ्यक्रम में भाग लेने का मौका मिलेगा। वे देख पा रहे थे कि मैं कितना उत्साही था और उन्होंने अधिक सीखने के इस अवसर का स्वागत किया। मैंने यह भी समझाया कि मैं एसएमसी [विद्यालय प्रबंधन समिति] से पूछूंगा कि सीसीई में सहयोग के लिए उनकी कक्षाओं हेतु कुछ संसाधन खरीदने के लिए क्या मैं बजट को पुनर्गठित कर सकता हूँ।
वे ढेर सारे विचारों और एक विस्तृत प्रशिक्षण नियमावली के साथ उस पाठ्यक्रम से लौटे। पहले दो हफ्तों तक, काफी कुछ हुआ। जब मैं विद्यालय का भ्रमण करता था तो मैं अध्यापकों को और अधिक प्रश्न पूछते हुए, प्रोत्साहित करने वाला फीडबैक देते हुए और समझ की जांच करते हुए सुन पाता था। पर उसके
बाद एक हफ्ते की छुट्टियां हुईं और जब हम वापस लौटे तो मानो सब कुछ भुला दिया गया था। प्रशिक्षण नियमावलियां शेल्फ पर धूल खाती रहीं और अध्यापक उसी तरीके से पढ़ा रहे थे जैसे वे हमेशा से पढ़ाते आए थे। मुझे पता नहीं था कि मैं क्या करूं।
मैंने तहकीकात करने का फ़ैसला लिया। मैंने उन दो अध्यापकों से बात की जो पाठ्यक्रम को लेकर सबसे अधिक उत्साही थे। उन्होंने माना कि सैद्धांतिक तौर पर तो सीसीई अच्छा लगा, पर करने में यह कठिन था – पाठों की योजना बनाने में अधिक समय लग रहा था और वे पाठ्यक्रम पूरा कराने को लेकर चिंतित थे। एक को यह इसलिए कठिन लग रहा था क्योंकि उसकी कक्षा में 60 विद्यार्थी थे।
मैंने महसूस किया कि यह तो बहुत कम समय में बहुत अधिक परिवर्तन था। अध्यापक बहुत जल्द ही पाठ्यक्रम को भूल गए थे और आवश्यक कौशल विकसित करने के लिए वह एक पाठ्यक्रम उनके लिए काफी नहीं था। मुझे एक नई योजना चाहिए थी।
मैंने प्रशिक्षक को आमंत्रित किया कि वे स्टाफ बैठक में आकर हम सभी से बात करें और सीसीई के कुछ व्यावहारिक उदाहरण दिखाएं। फिर मैंने अध्यापकों के तीन-तीन के समूह बनाए। इसके पीछे विचार यह था कि वे एक-दूसरे को परामर्श और प्रशिक्षण देंगे। मैंने हर अध्यापक से कहा कि वह एक हफ्ते के लिए सीसीई पर फोकस करे और बाकी दो उसके परामर्शदाता का कार्य करेंगे। तीन हफ्ते खत्म होते-होते, हर किसी को नई तकनीकें आजमाने का मौका मिल चुका था। रोज़ाना, तीन अध्यापकों का एक समूह प्रार्थना सभा छोड़ देता और इस समय का उपयोग सीसीई की योजनाओं पर चर्चा करने और फीडबैक पाने में करता। मैंने उन्हें एक-दूसरे के पाठों को देखने जाने के लिए भी प्रोत्साहित किया और कहा कि अगर वे ऐसा करते हैं तो उनकी कक्षाओं को मैं पढ़ाऊंगा।
इसने काफी बेहतर कार्य किया। तीन हफ्ते बाद, हर किसी को दो सहकर्मियों के सहयोग के साथ सीसीई पर फोकस करने का मौका मिल चुका था। परामर्शी प्रक्रिया भी सहायक रही। हर किसी ने और तीन हफ्तों तक कार्य जारी रखने का फैसला किया, जिसमें हर शिक्षक को एक हफ्ते तक सीसीई पर ध्यान केंद्रित करना था और दो हफ्तों तक बाकी दो की सहायता करनी थी।
वृत्त अध्ययन 2 में दर्शाया गया है कि यदि परिवर्तन के सभी घटक (परिकल्पना, संसाधन, कौशल, प्रोत्साहन एवं कार्य नियोजन) मौजूद हों, तो भी हो सकता है कि परिवर्तन सफल न हो। इस मामले में, आवश्यक कौशलों को विकसित करना श्री चड्ढा की अपेक्षाओं से अधिक कठिन था – अध्यापकों को एक प्रशिक्षण पाठ्यक्रम की बजाए सतत सहयोग और प्रोत्साहन चाहिए था।
परिवर्तन का कोई भी सिद्धांत इस बात का आदर्श विवरण नहीं है कि परिवर्तन कैसे होता है, पर वह नेता को अपनी परिस्थितियों में परिवर्तन के बारे में सोचने में मदद तो दे ही सकता है। ग्लाइकर का परिवर्तन का सूत्र (बेकहार्ड, 1975 में उद्धृत) एक और ऐसा सिद्धांत है जो परिवर्तन की प्रक्रिया आरंभ करते समय मददगार हो सकता है। यह सूत्र वे आवश्यक गुण बताता है जो परिवर्तन के अंदर यदि हुए तो वह आपके विद्यालय में अंतस्थ हो जाएगा।
सूत्र इस प्रकार है :
D × V × F > R
और इसकी व्याख्या इस प्रकार है:
विद्यालय प्रमुख के लिए चुनौती यह है कि शिक्षक/शिक्षिकाओं को उस बदलाव के के लिए राजी कर सकें, जिससे वे असंतुष्ट हैं। संभव है कि आपके अध्यापक कई चीजों से ‘असंतुष्ट’ हों जैसे संसाधनों की कमी, उनकी कक्षा का आकार, उनसे जिस मात्रा में कार्य करने की अपेक्षा की जाती है या समय पर गृहकार्य पूरा करने वाले विद्यार्थियों की संख्या आदि। पर उनके इन चीजों से ‘असंतुष्ट’ होने की संभावना कम है – उनकी कक्षा में हो रहे भागीदारीपूर्ण ज्ञानार्जन की मात्रा, वे जो सीसीई कर रहे हैं उसकी मात्रा आदि।
अपने अध्यापकों को प्रेरित करने के लिए और आप जो चाह रहे हैं उस प्रकार के परिवर्तन लाने हेतु राज़ी करने के लिए आप कई चीजें कर सकते हैं। यहां भारत के कुछ विद्यालय प्रमुखों के दो उदाहरण दिए जा रहे हैं:
श्रीमती कपूर निराश थीं क्योंकि उनके अध्यापक परीक्षणों और परीक्षाओं के अंक-पत्र पूरे नहीं करते थे, इसलिए वे इस बात का उचित विश्लेषण नहीं कर पा रहीं थीं कि प्रत्येक वर्ष समूह कैसी प्रगति कर रहा था। उन्होंने परीक्षणों में अंक दिए और उन्हें वापस सौंपा, पर फिर वे कहने लगे कि उनके पास अभिलेख रखने का समय नहीं है। श्रीमती कपूर ने कहा कि उन्हें अभिभावक बैठकों के लिए अभिलेख पत्र चाहिए होंगे, पर कुछ अध्यापकों ने कहा कि इन बैठकों में तो कोई आता ही नहीं है। श्रीमती कपूर स्थानीय गावँ गईं और कुछ अभिभावकों से बात की। अभिभावकों ने उन्हें अपने खेत वगैरह के बारे में बताया और बताया कि वे कितने व्यस्त हैं। उन्हें अभिभावक बैठकों में क्यों आना चाहिए यह समझाने के लिए श्रीमती कपूर ने समानता का उदाहरण इस्तेमाल किया। उन्होंने कहा कि जब वे बीज बोते हैं तो वे उन्हें यूं ही खेत में छोड़ नहीं देते हैं। वे उन्हें नियमित रूप से जांच कर यह पक्का करते हैं कि उन्हें पानी की कमी न हो, कीट या पीडक न लगें तथा पौधे फलें-फूलें। उन्हें अपने बच्चों के लिए भी यही करना होगा। श्रीमती कपूर ने समझाया कि बच्चे बीज की तरह होते हैं और उन्हें अभिभावक बैठकों में आकर यह जांचना चाहिए कि बच्चे विद्यालय में सीख रहे हैं और फल-फूल रहे हैं। अगली अभिभावक बैठक में उपस्थिति काफी बेहतर थी। कुछ अध्यापक शर्मिंदा थे क्योंकि वे अभिभावकों को उनके बच्चे की प्रगति के विस्तृत अभिलेख नहीं दिखा पाए थे। विद्यालय में अभिलेख रखने के कार्य में सुधार आने लगा और श्रीमती कपूर प्रगति का अधिक प्रभावी विश्लेषण करने में समर्थ हो गईं।
पहले उदाहरण में श्री अपराजिता एक ऐसे मुद्दे से निपटे जिससे उनके अध्यापक पहले से असंतुष्ट थे। दूसरे उदाहरण में श्रीमती कपूर को थोड़ी चतुराई का इस्तेमाल करके ऐसी परिस्थितियां बनानी पड़ीं जिनमें अध्यापकों को खुद यह महसूस हुआ कि उन्हें विद्यार्थियों की प्रगति के अभिलेख रखने की आवश्यकता है। आप कुछ अन्य रणनीतियों का भी इस्तेमाल कर सकते हैं, जैसे:
![]() विचार करें
|
परिवर्तन का एक अन्य सिद्धांत है ‘बल क्षेत्र विश्लेषण’। परिवर्तन की यह पद्धति आपको उन स्थितियों पर फोकस करने के लिए प्रोत्साहित करती है जो पहले से मौजूद हैं और जो पहले तो परिवर्तन में सहयोग करेंगी और दूसरे, वे विरोध के संभावित स्रोतों की पहचान करेंगी।
बल क्षेत्र विश्लेषण कैसे करें:
अगले केस स्टडी में, श्री अग्रवाल ने अपने माध्यमिक विद्यालय में गृहकार्य के प्रति दृष्टिकोण में परिवर्तन लाने के लिए बल क्षेत्र विश्लेषण का उपयोग किया है (हालांकि इसका उपयोग प्राथमिक विद्यालय में भी किया जा सकता है)।
पिछले सत्र के मेरे अधिगम भ्रमणों और स्टाफ-कक्ष में अध्यापकों के हुए वार्तालापों के दौरान, मैंने पाया कि विद्यार्थियों द्वारा किए जा रहे गृहकार्य को लेकर काफी असंतुष्टि थी। वह अकसर हड़बड़ी में किया हुआ, अव्यवस्थित या अधूरा होता था या फिर किया ही नहीं गया होता था। अध्यापक निराशा महसूस कर रहे थे क्योंकि विद्यार्थी कार्य को ठोस रूप देने का मौका गवां रहे थे और उन्हें लग रहा था कि वे अपने विद्यार्थियों के साथ सकारात्मक संबंध बनाने की बजाए लगातार उनके पीछे पड़े हुए थे।
मैंने सत्र के शुरूआत में एक स्टाफ बैठक बुलवाई और समझाया कि मैं इस मुद्दे से साथ मिलकर निपटना चाहता हूँ। मैंने ऐसी चीजों को उद्धृत किया जो मैंने देखीं थीं और लोगों ने कही थीं और जल्द ही गृहकार्य के खराब स्तर के बारे में जीवंत चर्चा होने लगी थी। मैंने बैठक एक कक्षा में आयोजित की थी ताकि हम बल क्षेत्र विश्लेषण करने के लिए ब्लैकबोर्ड का इस्तेमाल कर सकें।
हम जो परिवर्तन लाना चाहते थे वह था विद्यार्थियों द्वारा किए जा रहे गृहकार्य की गुणवत्ता सुधारना। हमने उन सभी चीजों के बारे में सोचने की कोशिश की जिनसे हमें इसमें मदद मिल सकती थी और जो इसे कठिन बना सकती थीं।
हमने प्रेरक बलों के रूप में इनकी पहचान की:
और हमने अवरोधक बलों के रूप में इनकी पहचान की:
कुछ विद्यार्थियों को शाम में घरेलू कार्यों में हाथ बँटाना पड़ता है और उनके पास गृहकार्य करने का समय नहीं होता।
केस स्टडी 3 में श्री अग्रवाल और उनके अध्यापकों द्वारा सूचीबद्ध प्रेरक बलों और अवरोधक बलों पर नजर डालें। अब इन्हें चित्र 4 के समान रूप देने की कोशिश करें, सबसे शक्तिशाली मुद्दों (जैसे एसएमसी द्वारा गृहकार्य की अनुश्रवण) के लिए सबसे लंबे तीर और सबसे महत्वपूर्ण मुद्दों (जैसे अध्यापकों द्वारा उपयुक्त गृहकार्य तय करना) के लिए सबसे मोटे तीर। सबसे महत्वपूर्ण कारकों को अपने चित्र में सबसे ऊपर रखें। श्री अग्रवाल की सूची का उपयोग करने से आपको इस विधि का अभ्यास करने का मौका मिलेगा।
अपनी सीखने की डायरी में चित्र बनाते समय, विचार करें कि क्या कुछ ऐसा है जिसे आप अपनी खुद की परिस्थितियों से उस सूची में जोड़ेंगे और प्रेरक बलों का उपयोग करने तथा निरोधक बलों को घटाने के लिए आप क्या कुछ कर सकते हैं।
चर्चा
सबसे पहले मुद्दों को सूचीबद्ध एवं श्रेणीबद्ध करके तथा उसके बाद उन्हें भार (महत्व) देकर आप अवरोधक बलों से निपटने और प्रेरक बलों से अधिकतम लाभ उठाने के अपने प्रयासों को वरीयता के क्रम में व्यवस्थित कर सकते हैं। क्या चीजें महत्वपूर्ण हैं और क्या चीजें परिवर्तन प्रेरित करती हैं उनका नज़र से बाहर हो जाना आसान है। इस प्रकार की चित्रात्मक प्रस्तुतियों से आपको अपने निष्कर्षों को संगठित रूप देने तथा अन्य के साथ साझा करने में मदद मिल सकती है। परिवर्तन लाने के लिए श्री अग्रवाल ने क्या किया यह जानने के लिए वृत्त अध्ययन 4 पढ़ें।
अपनी सूचियां बनाने के बाद हमने तय किया कि सबसे बड़ा प्रेरक बल यह है कि गृहकार्य से पाठ्यक्रम पूरा करने का मौका मिलता है। हम पाठ्यपुस्तक के कुछ हिस्से को पढ़ने का कार्य तय कर सकते हैं, पर कई अध्यापकों ने यह माना कि उन्होंने यह कभी नहीं जांचा कि कार्य को समझा गया है या नहीं। सबसे छोटे प्रेरक बलों में से एक था अभिभावकों से मिलने वाला सहयोग/समर्थन। ऐसा इसलिए था क्योंकि हम जिस इलाके में रहते हैं वहां बहुत से अभिभावक खुद ही शिक्षित नहीं हैं और इसलिए वे इसकी महत्ता नहीं देख सकते। (मैंने निजी तौर पर भी यह पाया कि सबसे बड़े प्रेरक बलों में से एक थीं सुश्री नागराजू, एक शिक्षिका जो संपूर्ण अभ्यास को लेकर बहुत उत्साही थीं और अपनी कक्षा में गृहकार्य को सुधारने को लेकर दृढ़निश्चयी थीं।)
सबसे बड़ा अवरोधक बल था विद्यार्थियों का शाम को घरेलू कार्य या सवैतनिक कार्य करने की अपेक्षा रखना। (हालांकि, निजी तौर पर, मैंने पाया कि सीखने में सहयोग करने वाले अच्छी गुणवत्ता के गृहकार्य अभ्यास तय करने में लगने वाला अतिरिक्त नियोजन स्पष्ट रूप से एक समस्या था, और 20 वर्षों के अध्यापन अनुभव वाले श्री मेघनाथन इस बारे में बहुत नकारात्मक थे।)
वर्णित किए गए परिवर्तन सिद्धांतों में से प्रत्येक एक मामूली भिन्न दृष्टिकोण उपलब्ध कराता है और मामूली भिन्न चीजों पर जोर देता है। तथापि, वे बहुत सी विशेषताएं साझा करते हैं। परिवर्तन इनसे प्रभावित होता है:
एक शिक्षण और विद्यालय प्रमुख के तौर पर आप अपनी भूमिका में बहुत से परिवर्तन अनुभव करेंगे। एक परिवर्तन या पहल के बारे में सोचें जो सफल से कम रहा हो। शायद यह लोगों को उत्साहित करने में असफल रहा, या उसका समय खराब था या बहुत अधिक महत्वाकांक्षी था। यह एक ऐसा परिवर्तन हो सकता है जो आपने आयोजित किया था, या शायद किसी अन्य व्यक्ति द्वारा आयोजित किया गया था। यह क्यों असफल हुआ इसकी पहचान करने के लिए ऊपर वर्णित सिद्धांतों का उपयोग करें।
अगर आप परिवर्तन में दोबारा सम्मिलित थे, क्या भिन्न किया जा सकता था? सिद्धांतों में से प्रत्येक कुछ ऐसा पहचान करने का प्रयास करें जो एक अंतर पैदा करे। आप किसी अन्य विद्यालय नेता के साथ अपने विचारों को साझा करने को उपयोगी पा सकते हैं, क्योंकि चर्चा से अन्य व्याख्याएं और दृष्टिकोण बाहर आ सकते हैं।
चर्चा
परिवर्तन असफल हो सकता है क्योंकि सिद्धांत 1 में दिए गए कदमों में से एक पूरा नहीं किया गया, या कम अनुमान लगाया गया। ऐसा हो सकता है कि वर्तमान (सिद्धांत 2) के साथ अपर्याप्त असंतोष हो, परिकल्पना पर्याप्त स्पष्ट न हो या पहले कदम बहुत अधिक महत्वाकांक्षी हों। यह संभव है कि परिवर्तन की अगुवाई करने वाले लोगों ने उन कारणों पर ध्यान न दिया हो जो उनकी सहायता कर सकते थे या उन्हें रोकते (सिद्धांत 3)।
वैकल्पिक रूप से, सारे सावधानीपूर्वक किए गए नियोजन के बावजूद, यह संभव है कि परिवर्तन बहुत अधिक महत्वाकांक्षी था या केवल एक व्यक्ति कार्य कर रहा था। परिवर्तन अक्सर उस समय अधिक प्रभावी होता है जब कोई दल इसकी अगुवाई करता है।
OpenLearn - नेतृत्व के परिप्रेक्ष्य: आपके विद्यालय में बदलाव का कार्यान्वयन करना Except for third party materials and otherwise, this content is made available under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-ShareAlike 4.0 Licence, full copyright detail can be found in the acknowledgements section. Please see full copyright statement for details.