आपके क्षेत्र या राज्य के अन्य विद्यालय आपके लिए महत्वपूर्ण संसाधन हैं और सलाह और सहायता के स्रोत है। आपके विद्यालय की भीतरी चुनौतियों पर ध्यान केंद्रित करना बहुत आसान है लेकिन यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि अन्य विद्यालयों में भी वैसी ही चुनौतियाँ है और उनके खोजे हुए उपायों से आपको भी मदद मिल सकती है। ऐसा भी हो सकता है कि आप अन्य विद्यालयों के साथ सीखने के अवसरों का निर्माण करने और उपायों को ढूंढ़ने पर काम करें। उदाहरण के लिए, आप अपने क्षेत्र के अन्य तीन विद्यालयों के साथ भागीदारी कर सकते हैं ताकि निधि का निर्माण करके विज्ञान प्रयोगशाला उपकरणों को खरीदकर बारी-बारी से प्रत्येक विद्यालय में उसका लाभ पहुँचा सकें, या आप एक साथ मिलकर अंतर्विद्यालयी क्रीडा प्रतियोगिताओं का आयोजन कर सकते हैं जिससे छात्रों के क्रीडा पाठ्यक्रम का विस्तार होगा और साथ ही वरिष्ठ छात्रों को कोचिंग और आयोजकों की भूमिका निभाने का अवसर भी प्राप्त होगा।
इसी तरह, स्थानीय तौर पर स्वैच्छिक संगठन भी होंगे (गैर सरकारी संगठन, जिन्हें आमतौर पर NGOs कहते हैं) जिनके साथ आप भागीदारी में काम कर सकते हैं। हो सकता है कि इन संगठनों के पास वैकल्पिक तरीके हों जिनसे आपके विद्यालय में शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार हो और जो विभिन्न अध्यापन और सीखने के संसाधनों, तरीकों, सामग्रियों को प्रदान करें और सबसे अच्छी प्रथाओं को आपके साथ बांटें जिससे आपके विद्यालय को लाभ पहुँच सकता है।
भारत के महानगरों में संचालित होने वाले कुछ सांध्य विद्यालयों में, सफल विद्यालय नेता अन्य सांध्य विद्यालयों में परामर्शदाता के तौर पर ‘अपनी कहानियाँ सुनाने’ के लिए जाते हैं। इसका उद्देश्य है कि विद्यालय नेताओं के बीच गुणवत्तापूर्ण बातचीत शूरू की जा सके ताकि वे अपनी चुनौतियों, सफलताओं और रणनीतियों को एक दूसरे के साथ साझा करना शूरू करें। विचारों के ऐसे विनिमय को विद्यालय नेतृत्व और छात्रों की पढ़ाई को सुधारने के अवसर के तौर पर देखा जाना चाहिए। भेंटों के दौरान, अनुभवी परामर्शदाता अपने अनुभव बांटते हैं और शिष्यों को अपने विद्यालय में निरीक्षण के लिए आमंत्रित करते हैं।
शूरूआती मुलाकातें ‘कहानियाँ’ सुनने और साझा करने पर ध्यान केन्द्रित करती हैं, जिसे सकारात्मक संबंध बनाने के लिए नींव के पत्थरों के तौर पर देखा जा सकता है। परामर्शदाता शिष्य के साथ विद्यालय की अनौपचारिक चहलकदमी करने के लिए जा सकता है, और विद्यालय के विभिन्न पहलुओं के संचालन को सिर्फ सुनकर और दैनंदिन घटनाओं और परिस्थितियों को देखकर समझ सकता है। कई बार इसे ‘सीखने की चहलकदमी’ कहा जाता है और चर्चा के लिए उपयोगी निरीक्षण प्रदान कर सकता है। सीखने की साझी चहलकदमी के बाद अधिक औपचारिक कक्षा निरीक्षण किये जा सकते हैं जो विशिष्ट अध्यापन और सीखने की प्रथाओं पर ध्यान देते हैं।
परामर्शदाता-शिष्य मुलाकातें विद्यालय प्रथाओं की समझ पर ध्यान केन्द्रित करती हैं और शिष्यों को उनकी चुनौतियों का सामना करने में मदद करती है। परामर्शदाता द्वारा शिष्य का या अपने विद्यालय का ‘निरीक्षण’ करने का अथवा ‘प्रदर्शन’ करने का कोई अर्थ नहीं है। वस्तुतः अनुभवी परामर्शदाता भी प्रक्रिया से कुछ हासिल करता है, क्योंकि अन्य विद्यालयों के भ्रमण और अपने शिष्यों के साथ चर्चा के जरिए वह भी सीख रहा होता है। अच्छा परामर्श मॉडल दो-तरफा सीखने की प्रक्रिया होती है जो दोनों विद्यालयों को सुधार के पथ पर अग्रसर करती है।
वृत्त अध्ययन 2 में इसका उदाहरण है कि कैसे विद्यालयों के बीच स्थानीय साझेदारी से ज्ञानार्जन हासिल होता है एवं सम्मिलित विद्यालय नेताओं को सहयोग मिलता है। अब अपनी खुद की परिस्थिति के बारे में सोचें और अपनी सीखने की डायरी में अपने इलाके के उन सभी विद्यालयों और गैर-सरकारी संस्थाओं की सूची बनाएं जिनके साथ आप सहयोग कर सकते हैं।
आप चाहें तो अपने विद्यालय में अन्य को शामिल करने के लिए इस गतिविधि को और विस्तार दे सकते हैं। उदाहरण के लिए, आप एक पोस्टर लगा सकते हैं जिस पर आपका स्टाफ अन्य विद्यालयों और गैर सरकारी संस्थाओं के नाम लिख सकता है, और उन संस्थानों के साथ उनके जो संपर्क हों उनकी जानकारी दे सकता है – अगर पहले से कोई संपर्क हो, जिसे और बेहतर किया जा सकता हो, तो यह बहुत मददगार हो सकता है।
जब आपके पास संभावित साझेदार संस्थानों की सूची तैयार हो जाए, तो सोचें कि आपकी साझेदारी किन चीजों पर केंद्रित होगी। आपके विचार आपके विद्यालय में मौजूद किसी चुनौती से संबंधित हो सकते हैं, जैसे निम्न प्रदर्शन करने वाले विद्यार्थियों की जरूरतों की पूर्ति करना, या प्रौद्योगिकी तक पहुंच। हो सकता है कि इस चुनौती को पहले ही पहचान लिया गया हो – जैसे कि आपकी विद्यालय विकास योजना में – या फिर यह एक ऐसा मौका हो सकता है जिस पर आपने अभी तक विचार न किया हो। एक बार फिर, आप चाहें तो इसका खुलासा अपने स्टाफ के सामने कर सकते हैं, जो उनके खुद के कौशलों और रुचियों से संबंध रखने वाले कुछ नए विचार प्रस्तुत कर सकता है। उदाहरण के लिए, हो सकता है कि कोई युवा अध्यापिका किसी नृत्य के कार्यक्रम के लिए उस विद्यालय से साझेदारी का सुझाव दे जिसमें बड़ा सभा कक्ष है, और उस नृत्य कार्यक्रम में स्थानीय नृत्य किए जाएं। इससे दूसरे विद्यालय को यह मौका मिलेगा कि सभा कक्ष के उपयोग के बदले में वह उस अध्यापिका के कौशल को साझा कर सकेगा या दोनों विद्यालयों के विद्यार्थी सहयोग कर पाएंगे।
जब आपके पास विचार और संभावित साझेदार तैयार हो तो अगला चरण यह है कि अन्य संस्थानों के साथ संपर्क करें और जांचें कि आपके विद्यालय के साथ सहकार्य करने में वे कितनी रुचि रखते हैं। इस बात की काफी संभावना है कि यदि वे स्वयं को होने वाल लाभ पहचान सकें और साझेदारी में दोनों विद्यालयों का लाभ हो रहा हो तो वे सहयोग करना चाहेंगे। तो आपको ऐसे कुछ विचार रखने होंगे जिससे उनकी रुचि जागृत हो और संवाद आरंभ हो। तथापि, याद रखें कि साझेदारी दो-तरफा होती है, और यह कि आपको इस बारे में सहमति पर पहुंचना होगा कि आप साथ मिल कर किस प्रकार कार्य करेंगे। ऐसा नहीं होना चाहिए कि आपके विचारों की प्रस्तुति, अपने विचार लाने की और आपके प्रस्ताव को सुधारने की कोशिश कर रहे दूसरे साझेदार को अलग कर दे या रोक दे।
अब संसाधन 2 में दिए गए टेंप्लेट का उपयोग करते हुए अपनी किसी एक संभव साझेदारी का आकलन करें। आप उसे स्वयं ही पूरा भर पाने में या अंतिम रूप देने में सक्षम नहीं हो पाएंगे, पर इस प्रक्रिया से आपको संभावित साझेदार(रों) से बात करते समय अपनी चर्चाओं के लिए एक ढांचा मिल जाएगा, और आप साझेदारी की व्यवहार्यता पर भी विचार कर पाएंगे।
चर्चा
हो सकता है कि आपने संभावित साझेदारों और सहकार्य के क्षेत्रों के बारे में ढेर सारे विचार सोच लिए हों। ध्यान रखें कि सहकार्यों और साझेदारियों को सुचारू रूप से चलने लायक स्थिति में पहुंचाने में समय और प्रयास लगते हैं, इसलिए इस बारे में यथार्थवादी सोच अपनाएं कि एक बार में आप कितनी साझेदारियों में संलग्न हो सकते हैं। यह भी याद रखना महत्वपूर्ण है कि हालांकि स्वयं साझेदारी का प्रस्ताव विकसित करना एक उपयोगी आरंभ बिंदु है, पर ये सहकार्य तब सबसे अच्छी तरह कार्य करते हैं जब दोनों पक्ष संभावनाओं और लाभों पर विचार करें। अगर इसे कर लिया जाए तो आपके प्रस्ताव के सफल होने की संभावना बढ़ जाएगी। साझेदारियों में बहुत समय लग सकता है और संभव है कि वे तब तक फलदायी न हों जब तक कि दोनों पक्ष संभावित परिणामों, जोखिमों और खतरों पर स्पष्ट न हो जाएं।
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