केस स्टडी में आप देखेंगे कि एक शिक्षक ने किसी अधिक चुनौतीपूर्ण विषय से जुड़ी भाषा को सीखने में अपने छात्रों की मदद कैसे की।
श्रीमान राहुल मेरठ के एक बड़े विद्यालय में छठी कक्षा को पढ़ाते हैं। यहाँ वे बता रहे हैं कि उन्होंने वनस्पतिशास्त्र के क्षेत्र में प्रयुक्त जटिल वैज्ञानिक शब्दावली से अपने छात्रों का परिचय कैसे कराया।
हमारी पाठ्य पुस्तक का अगला पाठ पौधों के अध्ययन से संबंधित था। मुझे पता था कि वैज्ञानिक संकल्पनाएँ व शब्दावली दोनों ही मेरी कक्षा के लिए मुश्किल लगने वाली थीं। अत: मैंने कई पाठों की श्रंखला की योजना बनाई, जो विषय व उसमें प्रयुक्त विशिष्ट भाषा, दोनों के अधिगम को जोड़ते थे।
पहले दिन, मैंने अपने छात्रों को पाठ्य पुस्तक में दिए विषय से परिचित कराया और यह जानने के लिए प्रश्न पूछे कि वे पौधों के बारे में पहले से कितना जानते थे। फिर मैंने छात्रों से बारी-बारी से पाठ के कुछ हिस्से को पढ़ने को कहा। कुछ तो नई शब्दावली के कारण और कुछ इसलिए कि विषय को बहुत सैद्धान्तिक रूप से प्रस्तुत किया गया था यह उनके लिए काफ़ी मुश्किल साबित हुआ। उनके प्रत्येक भाग को पढ़ने के बाद, मैंने उसे सरल शब्दों में बताया और उनकी समझ को बढ़ाने के लिए ब्लैकबोर्ड पर कुछ मेल खाते चित्र बनाए।
दूसरे दिन, मैंने अपनी कक्षा को छ: छात्रों के आठ समूहों में नियोजित किया, उन्हें बाहर ले गया और उन्हें विद्यालय के मैदान में मौजूद विभिन्न पौधों को देखने का समय दिया। मैंने उन्हें किसी पौधे को देखने व उसके अवलोकन में अन्तर बताया। मैंने प्रत्येक समूह को एक कार्य दिया। दो समूहों ने अपने देखे पौधों की ऊँचाई, तना व शाखाएँ देखीं। दो समूहों ने विभिन्न प्रकार की पत्तियों के आकार व संरचना को देखा। दो समूहों ने फूलों के कई भागों का अवलोकन किया। अन्तिम दो समूहों ने कुछ खर–पतवार को निकालकर इन पौधों के ज़मीन की सतह के नीचे के भागों का अध्ययन किया।
मैंने छात्रों को अपनी अभ्यास पुस्तिकाओं में उन्होंने जो देखा, उसके चित्र बनाने को कहा, और इस दौरान उन्हें अपने समूह के भीतर अपने विचारों की तुलना भी करनी थी। उनके काम करने के समय मैंने उनकी मदद की व उन्हें मार्गदर्शन दिया। ऐसा लगा कि वे कक्षा के बाहर की गई इस सहयोगात्मक गतिविधि में पूरी तरह डूबे हुए थे।
तीसरे दिन, मेरे छात्रों ने सही शब्दों को देखने के लिए पाठ्य पुस्तक का उपयोग करते हुए अपने चित्रों की लेबलिंग की। ऐसा करते समय वे विषय से जुड़ी वनस्पतिशास्त्र की विशिष्ट भाषा का उपयोग करने लगे।
चौथे दिन, समूहों ने अपने अवलोकन के बारे में बाकी कक्षा को छोटी प्रस्तुतियाँ बनाकर दिखाईं, जिसमें उन्होंने अपनी सीखी हुई शब्दावली का उपयोग किया व अपनी प्रस्तुतियों को अपने रेखांकनों से रोचक बनाया। बीच-बीच में मैंने प्रश्न पूछकर उन्हें रास्ता बताया, जैसे ‘लताएँ झाड़ियों से भिन्न कैसे होती हैं?’ मैंने बाकी कक्षा को भी प्रस्तुति देने वालों से प्रश्न पूछने को आमंत्रित किया।
मैंने देखा कि पहले पाठ्य पुस्तक पढ़ने के बाद कक्षा के बाहर की प्रयोगात्मक गतिविधि ने मेरे छात्रों की पाठ की नई संकल्पनाओं की समझ को बहुत बढ़ा दिया व उन्हें उससे संबंद्ध शब्दावली से जुड़ने को प्रोत्साहित किया। प्रस्तुति देने की तैयारी करने के कारण उन्हें उस जानकारी को स्पष्ट रूप से जानने व उसकी संकल्पना को दृढ़ करने में मदद मिली।
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इन गतिविधियों में, छात्र पौधों के लिए दैनिक उपयोग की एवं वैज्ञानिक, दोनों तरह की शब्दावली सीखते हैं और उस भाषा को अपने स्थानीय वातावरण में पाए जाने वाले पौधों पर प्रयोग कर पाते हैं। यह उनके सीखने को सुदृढ़ करता है व उसे अर्थपूर्ण बनाता है। उन्हें साथ काम करके पौधों का वर्णन करना पड़ता है व अपनी जोड़ी हुई जानकारी को बाकी कक्षा के समक्ष प्रस्तुत करना पड़ता है।
श्रीमान राहुल अपने छात्रों से यह पूछकर इन पाठों की श्रंखला आरंभ करते हैं कि वे पौधों के बारे में पहले से क्या जानते हैं। प्रमुख संसाधन ‘विचारशीलता को प्रोत्साहित करने हेतु प्रश्न पूछने का उपयोग’ पढ़कर कक्षा की इस तकनीक के बारे में और जानें।
विषय के अगले पाठ को देखें जो आप पढ़ाने वाले हैं और उस शब्दावली को पहचानें जो उस विषय के लिए विशिष्ट है।
बोलने, सुनने, पढ़ने या लिखने की एक रुचिकर गतिविधि की योजना बनाएँ जिसमें आपके छात्र इस शब्दावली का उपयोग करने का अभ्यास करेंगे। आपको श्रीमान राहुल की तरह चार पाठों की योजना बनाने की आवश्यकता नहीं। एक पाठ की योजना बनाकर शुरू करें और इसमें छात्रों के उस विषय के पुराने ज्ञान का उपयोग करें। अपने सहकर्मियों के साथ अपने विचारों को साझा करें।
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