1 विद्यार्थी प्रश्न क्यों पूछते हैं

विभिन्न कारणों से थ्वद्यार्थीथी छोटी आयु से ही प्रश्न पूछना प्रारंभ कर देते हैं, जिनमें उनके आसपास की दुनिया के सम्बन्ध में कौतुहलता सम्मिलित है। अक्सर वे इसलिये प्रश्न करते हैं, जिससे कि वे जो जानते हैं, उनसे कड़ियाँ जोड़ने में सहायता पा सकें।

विद्यार्थियों के सभी प्रश्नों के उत्तर देना सरल नहीं होता और कुछ प्रश्नों के उत्तर तुरंत देना आवश्यक भी नहीं होता लेकिन उन सभी प्रश्नों का आदर किया जाना चाहिये और सभी को गंभीरता से लिया जाना चाहिये। यह सदा सरल नहीं होता जब आप व्यस्त होते हैं अथवा आप जो पढ़ा रहे हैं, उसके सन्दर्भ में वह प्रश्न अप्रासंगिक प्रतीत होता है। यद्यपि, प्रश्न को स्वीकार करना और उसका उत्तर देना विद्यार्थियों को प्रदर्षित षित करता है कि आप उनके निवेदन और विचारों को महत्व देते हैं। यह उनको अपने परिवेश के सम्बन्ध में जिज्ञासु बने रहने के लिये प्रोत्साहित करेगा। परन्तु उनके प्रयासों को अनदेखा करने अथवा उनकी हँसी उड़ाने से विज्ञान में उनकी भागीदारी पर और सीखनेवाले के रूप में उनका अपने ऊपर के विश्वास पर हानिकारक प्रभाव पड़ सकता है।

गतिविधि 1: विद्यार्थियों के प्रश्नों का विश्लेषण करना

विद्यार्थियों द्वारा किये गये प्रश्नों की इस सूची को देखें (हार्लेन, 1985 से रूपांतरित):

  1. शिशु कुत्ते को क्या कहा जाता है?
  2. मैं बीमार क्यों पड़ती हूँ?
  3. यदि मैं लाल और नीले पेंट को मिलाऊँ, तो मुझे कौनसा रंग मिलेगा?
  4. साँप कितने समय तक जीवित रहते हैं?
  5. क्या दूसरे ग्रहों पर लोग होते है?
  6. मैं स्वयं को तालाब में क्यों देख सकता हूँ?
  7. एक गाड़ी कैसे काम करती है?
  8. आकाश नीला क्यों है?
  9. यदि ईश्वर ने दुनिया बनायी, तो ईश्वर को किसने बनाया?
  10. अगली बार वर्षा कब होगी?

इन सभी स्वैच्छिक प्रश्नों के उत्तर आप कैसे देंगे? इनमें से किन प्रश्नों का उत्तर देना आपके लिये सरल होगा? किनका उत्तर देना कठिन होगा? आपको ऐसा क्यों लगता है?

विद्यार्थियों द्वारा पूछे जाने वाले प्रश्नों के आधार पर आप कुछ ऐसी कार्यनीतियाँ प्रयोग में ला सकते हैं, जिससे आपको प्रश्न का उत्तर देने में सहायता मिले और विद्यार्थियों की रुचि बनी रहे। यह आवश्यक नहीं है कि सभी प्रश्नों का उत्तर तुरंत दिया जाये अथवा बिल्कुल दिया भी जाये। सभी प्रश्न लाभकारी प्रश्न नहीं होते, जो ‘प्रायोगिक’ विज्ञान की ओर अवश्य ले जायें, लेकिन फिर भी उन्हें किसी प्रकार की प्रतिक्रिया की अवश्य आवश्यकता होती है; ऐसा हो सकता है कि आपको उत्तर पता नहीं है और आप पता लगायेंगे अथवा आप उत्तर नहीं दे सकते, क्योंकि यह किसी को पता नहीं है।

इनमें से कुछ प्रश्नों का बहुत सरलता से उत्तर दिया जा सकता है, क्योंकि विद्यार्थियों को केवल सूचना चाहिये। अन्य प्रश्न इतने सरल नहीं हैं। उदाहरण के लिये, प्रश्न 9 का उत्तर आपके निजी विश्वासों पर आश्रित है। प्रश्न 5 के लिये, आप ‘नहीं’, नहीं कह सकते और आपका कुछ कहना भी आवश्यक है, जैसे कि ‘हम अभी तक नहीं जानते हैं’। अन्य सभी प्रश्नों का उत्तर दिया जा सकता है, लेकिन कुछ प्रश्न छोटी आयु के विद्यार्थियों के लिये अधिक कठिन हैं। इसका कारण यह है कि व्याख्या समझने के लिये उनके पास उपयुक्त अनुभव नहीं है। आपकी थोड़ी सावधानीपूर्वक की गयी पूछताछ की सहायता से प्रश्न 3 का प्रयोग सम्मिलित विज्ञान के कुछ पहलुओं की खोज को प्रारंभ करने के लिये किया जा सकता है। ये अधिक लाभकारी प्रकार के प्रश्न हैं क्योंकि ये संभावित और आगे किये जा सकने वाले कार्य अथवा खोज की ओर संकेत देते हैं।

कुछ प्रश्नों के उत्तर आपको ज्ञात नहीं भी हो सकते जब तक कि आप थोड़ी अनुसंधान न कर लें। कई शिक्षक अपने विद्यार्थियों को स्वयं के प्रश्न हल करने देने से डरते हैं, यह सोचकर कि कहीं विद्यार्थियों के प्रश्न के उत्तर देने में वे असफल न हो जायें।

यह दृष्टिकोण क्यों महत्वपूर्ण है

2 विद्यार्थी किन प्रकारों के प्रश्न पूछते हैं?