2 विद्यार्थी किन प्रकारों के प्रश्न पूछते हैं?

अब केस स्टडी 1 पिढ़ये।

केस स्टडी 1: श्रीमती दास के विद्यार्थी वस्तुओं को छाँटने और वर्गीकृत करने के लिये प्रश्न करते हैं।

श्रीमती दास कक्षा III के 57 विद्यार्थियों को पढ़ाती हैं। स्थानीय संसाधनों का प्रयोग करके स्थानीय पर्यावरण और विज्ञान की खोज करने में वह अपने विद्यार्थियों की सहायता करने में अति इच्छुक हैं। वे विस्तार से बताती हैं कि कैसे उन्होंने एक छँटाई की गतिविधि व्यवस्थित की और अपने विद्यार्थियों को वस्तुओं के सम्बन्ध में प्रश्न करने के लिये प्रोत्साहित किया।

मैंने सदा अपनी कक्षा के साथ क्रियात्मक गतिविधियाँ करने में आनंद प्राप्त किया है। मैं चाहती थी कि वे सजीव और निर्जीव वस्तुओं के बीच के अंतर का पता करें। इसलिये मैंने कक्षा के आसपास से और बाहर से वस्तुओं का एक समूह इकट्ठा किया। मैंने छोटे जानवरों के कुछ चित्र भी सम्मिलित किये, जो मैंने पत्रिकाओं से काटे थे। मैंने दो लेबल तैयार किये (‘जीवित’ और ‘जीवित नहीं’) और उन्हें अपने विद्यार्थियों के सामने मेज़ पर रख दिये [आकृति 1]।

आकृति 1 एक कक्षा गतिविधि के लिये लेबल।

मैंने छहः विद्यार्थियों वाले दो समूहों के साथ काम किया जबकि बाक़ी की कक्षा ने अन्य काम किये। मैंने यह दो सत्रों में किया, जिसमें पहले में पाँच समूह थे और दूसरे में भी समान थे। मैंने विद्यार्थियों की प्रत्येक जोड़ी को एक वस्तु दी और उन्हें यह सोचने के लिये कहा कि अपनी वस्तु के सम्बन्ध में वे किन प्रश्नों का उत्तर चाहते थे। सभी ने ऐसे प्रश्नों का सुझाव दिया–

  • यह क्या है?
  • क्या यह पौधा है अथवा जानवर है?
  • यह कहाँ रहता है?
  • यह क्या खाता है?
  • क्या यह वास्तविक है?
  • यह आपको कहाँ मिला?
  • क्या यह मृत है?
  • क्या यह जीवित है?
  • क्या यह खतरनाक है?
  • क्या यह ज़हरीला है?

ये सभी उस प्रकार के प्रश्न थे, जो आप इस आयु के विद्यार्थियों द्वारा पूछे जाने की अपेक्षा रखते हैं। उनका अधिक ध्यान उनको नाम देने और सरल सूचना को अपनी वर्तमान समझ और अनुभव में स्थित करने पर केन्द्रित था।

जब उन सब ने काम कर लिया, तब मैंने उनसे पूछा कि इन प्रश्नों के क्या कोई उत्तर दे सकता है? वे कुछ प्रश्नों के उत्तर दे पाये, लेकिन दूसरों के नहीं। अधिकतर, वे वस्तुओं को नाम बताने में सक्षम थे जिसमें अधिकतर जानवरों के चित्र सम्मिलित थे, अपेक्षाकृत वे उतनी संख्या में पौधों को नाम नहीं बता पाये, केवल थोड़े से अन्य वस्तुओं को ही नाम बता सके। उनके प्रश्न ‘क्या यह मृत है?’ को लेते हुए मैंने विद्यार्थियों से पूछा कि वे क्या वस्तुओं को ‘जीवित’ और ‘जीवित नहीं’ में छाँट पाए।

सभी विद्यार्थियों ने भाग लिया - उन्होंने भी, जो सामान्यतः पूरी-कक्षा की बात–चीतों में प्रश्नों के उत्तर देने से हिचकते हैं। जब समूह अपनी बात–चीत को लेकर संघर्ष की स्थिति में आया तब मैंने प्रश्न पूछे, अन्यथा मैं केवल सुनती रही। मैंने एक समूह से पूछा कि उन्होंने एक सूखे पत्ते को ‘जीवित नहीं’ में क्यों डाला था? और अन्य समूह से पूछा कि उन्होंने अपने सूखे पत्ते को ‘जीवित’ में क्यों डाला था? यह स्पष्ट था कि वे पत्ते को लेकर दुविधा में थे और इसलिये हमने बात–चीत की क्या वह कभी जीवित भी था? अंत में हम उसे ‘कभी सजीव’ नामक एक नए समूह में जोड़ने के लिये सहमत हुए।

मेरे विद्यार्थियों को एक धातु के टुकड़े के सम्बन्ध में यह तय करना सरल लगा, लेकिन एक सूती कपडे के टुकड़े को वर्गीकृत करना कठिन लगा। ऐसा इसलिये था, क्योंकि वह कभी जीवित था और अब एक कपड़ा बना दिया गया था। बात–चीत ने और उनके प्रश्न पूछने ने मेरे विद्यार्थियों को सजीव और निर्जीव वस्तुओं के बीच के अंतर के सम्बन्ध में सोच को सुस्पष्ट करने में सहायता दी। संवादात्मक कार्य के कारण उनका कौतुहल जाग उठा।

विचार के लिए रुकें

  • इस प्रकार की गतिविधि विद्यार्थियों को कैसे अधिक सक्रिय और जिज्ञासु बनने में अथवा और अधिक लाभकारी प्रश्नों को पूछने में सहायता करती है?

1 विद्यार्थी प्रश्न क्यों पूछते हैं

3 विद्यार्थियों के प्रश्नों को वर्गीकृत करना