2 अवलोकन कौशल

सावधानीपूर्वक अवलोकन करने पर आमतौर पर आपके विद्यार्थी प्रश्न पूछेंगे। यह वैज्ञानिक अनुसंधान की शुरुआत है! साथ ही, वैज्ञानिकों को दूसरे वैज्ञानिकों द्वारा किए गए प्रयोगों को निष्कर्षों और प्राप्त परिणामों की ठीक–ठीक जांच करने के लिए दोहराना चाहिए। इसका मतलब हुआ व्यवस्थित ढंग से अवलोकन करना और उन्हें सावधानीपूर्वक रिकार्ड करना। इसकी शुरूआत से पहले ही, क्या देखना? सुनना या अनुभव करना है, यह निर्धारित कर लेना चाहिये, ताकि सभी लोग एक ही तरह से अवलोकन करें। इससे इकट्ठा किए गए डेटा की विभिन्न समूहों के बीच तुलना की जा सकती है। यह गतिविधि आपके विद्यार्थियों को जरूरी कौशल विकसित करने और वैज्ञानिक अनुसंधान की कठोर प्रकृति के महत्व के बारे में जाने पाने का एक तरीका है।

इस विषय के साथ जुड़े बहुत से विचार, उनकी अमूर्त प्रकृति के कारण विद्यार्थियों के लिए कठिन हैं। पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती है इसे वास्तव में देखना संभव नहीं है – इसके लिए कल्पना की जरूरत होती है। साथ ही, हम आम बोलचाल की भाषा में कहते हैं कि सूरज आसमान में चक्कर लगा रहा है, जबकि तथ्य यह है कि पृथ्वी घूम रही है। यद्यपि, हम पृथ्वी के घूमने के प्रभाव को देख पाते हैं, लेकिन इसकी गति को महसूस नहीं कर सकते। यह कैसे होता है? केवल इसकी व्याख्या करना विद्यार्थियों के लिए कठिन काम हो सकता है, या हो सकता है वे इसकी असली व्याख्या और स्वयं के विचारों को व्यक्त नहीं करेंगे और इससे उनके विचारों के दो समानांतर सेट हो जाएंगे जिनका एक दूसरे से कोई संबंध नहीं होगा। इसलिए इनमें से बहुत से विचारों के स्पष्टीकरण के लिए, आपको मॉडलों का प्रयोग करना पड़ेगा। इसलिए, यह महत्वपूर्ण है कि विद्यार्थियों को मॉडलों से परिचित कराने से पहले उन्हें इन बदलावों का अवलोकन करने, रिकार्ड करने और खोज करने का मौका दिया जाए ताकि वे इसके बारे में स्वीकृत विचारों को समझ सकें कि छाया कैसे बनती है, या बदलाव कैसे होता है?

विचार के लिए रुकें

  • आपके अनुसार छाया के बारे में खोज विद्यार्थियों में पृथ्वी और सूरज के बारे में कहाँ तक समझ पैदा कर सकेगी?
  • छाया–परीक्षण से आपके विद्यार्थी क्या सीखेंगे?
  • आप उनकी समझ को मान्य वैज्ञानिक विचारों तक कैसे ले जाएंगे?

केस स्टडी 2: चंद्रमा का अवलोकन करना

चन्द्रमा की कलाओं से विद्यार्थी खूब परिचित होंगे। इस गतिविधि में, श्रीमती चड्ढा बताती हैं कि कैसे उन्होनें अपने विद्यार्थियों को, चद्रंमा की कलाओं का सुव्यवस्थित अवलोकन करने और उन्हें रिकार्ड करने में सहायता की। कक्षा से बाहर काम करने संबंधी विषयों के बारे में जानने के लिए अब आपको संसाधन 2 में ‘स्थानीय संसाधनों का उपयोग करना’ पढ़ना चाहिए।

मैंने विद्यार्थियों से कहा कि वे एक महीने तक चंद्रमा का बारीकी से अवलोकन करने जा रहे हैं। मैंने गतिविधि को पूर्णिमा की रात से शुरू करने का निर्णय लिया ताकि वे होने वाले सभी बदलावों को आसानी से रिकार्ड कर सकें। उन्हें प्रत्येक रात चंद्रमा का एक चित्र बनाना था। मैंने उनसे यह कार्य एक समूह के रूप में करवाने का निर्णय लिया ताकि समूह का प्रत्येक सदस्य, सप्ताह में दो अवलोकन करे। प्रत्येक समूह प्रत्येक रात चंद्रमा के दो चित्र बनाता, इसलिए कि कहीं एक विद्यार्थी बनाना भूल जाए तो दूसरा काम आ जाए।

प्रत्येक दिन मैं विद्यार्थियों को याद दिलाती कि वे सोने से पहले चंद्रमा को देखें और इसके आकार का चित्र नोटबुक में बनाएं तथा तारीख लिखें। मैं इस बात की जांच करती थी कि अपने समूह के लिए चंद्रमा का चित्र कौन बनाने वाला है।

चूंकि ज्यादातर भारतीय पर्व, चंद्र कैलेंडर पर आधारित होते हैं, इसलिए मैंने विद्यार्थियों से अपने घर के बड़ों से उनके द्वारा मनाए जाने वाले पर्वों और रीति–रिवाजों के बारे में साक्षात्कार लेने के लिए कहा और चंद्रमा की कलाओं का अवलोकन करने के समय उन्होंने जो चित्र बनाए थे उन पर, उनके बारे में रिकार्ड कर लें। उनमें से कुछ ने अपनी बातचीत को अपने फोन पर रिकॉर्ड कर लिया था और कक्षा में हमने उनमें से कुछ को समूह में सुना।

चित्रों में आ रहे बदलावों को स्पष्ट रूप से देखने के लिये, विद्यार्थियों ने उन्हें दीवार पर लगा दिया। वे सचमुच अपने चित्र देखकर और काम की प्रगति से खुश थे।

चंद्रमा की गति का एक चक्र पूरा होने के बाद (28 दिन), हमने चित्रों को देखा और मैंने विद्यार्थियों से पूछा कि क्या वे इनमें कोई पैटर्न देख पा रहे हैं? उन्होंने आसमान में चंद्रमा के बदलते आकार पर ध्यान दिया था और इस पर भी कि किस तरह एक महीने में उसके आकार में नियमित बदलाव आता रहता है जब तक कि वे फिर से पूरा गोल चाँद नहीं बन जाते। विद्यार्थियों को सचमुच इस गतिविधि में मजा आया और उन्होंने चंद्रमा के बारे में ढेर सारे प्रश्न पूछे। मैं भी दीवार पर लगे चित्रों को देखकर खुश थी जिनकी संख्या क्रमशः बढ़ती गई थी। यह देखकर बहुत ही संतोष मिला कि विद्यार्थी सीखने में रुचि ले रहे हैं। मैंने सोचा कि अगले पाठ में मैं म़ॉडल का प्रयोग करके चंद्रमा की कलाओं के बारे में समझाऊंगी और उसे विद्यार्थियों के बनाए चित्रों के साथ जोड़कर दिखाऊंगी।

अगले महीने के मेरे कई विद्यार्थियों ने पिछली रात देखी गयी चंद्रमा की आकृति पर टिप्पणी की और मैंने देखा कि उनमें से कई, फिर से अपने चार्ट को देखकर आकृतियों की श्रृंखला की तुलना कर रहे थे।

विचार के लिए रुकें

श्रीमती चड्ढा ने ध्यान दिया कि इस कार्य ने किस तरह उनके विद्यार्थियों को प्रेरित कर दिया। आपके अनुसार यह क्या था? इससे उनकी शिक्षा पर क्या प्रभाव पड़ेगा? आप इनमें से कुछ विचारों का किस तरह इस्तेमाल कर सकते हैं?

चंद्रमा की कलाओं के विद्यार्थियों द्वारा अवलोकनों को अलग–अलग क्षेत्रों में मनाए जाने वाले धार्मिक त्योहारों के साथ जोड़ना, उनकी रुचि को जगाने के लिए एक अच्छी शुरुआत हो सकती है। सन्दर्भों के सार्थक और विद्यार्थी–संबंधित करने से उनके प्रति विद्यार्थियों की दिलचस्पी और जागरूकता बढ़ती है, जिससे वे बेहतर और सटीक अवलोकन कर सकेंगे। बारीकी से अवलोकन करने के अवसर प्रदान करने से विद्यार्थी दुनिया के बारे में ज्यादा सजग होगें और उनमें अधिक जानने के प्रति रुचि और प्रेरणा जगेगी।

आप अपने विद्यार्थियों से जो कुछ करने की अपेक्षा रखते हैं वह उनकी आयु पर निर्भर करेगा। बड़े विद्यार्थियों से ज्यादा अवलोकन करने और नोट बनाने की अपेक्षा रखी जा सकती है। आप छोटे विद्यार्थियों के साथ अवलोकन की सरल गतिविधि कर सकते हैं, या एक बार विद्यार्थियों के पृथ्वी के चक्कर लगाने, दिन और रात, तथा चंद्रमा के पृथ्वी का एक उपग्रह होने के बारे में परिचित हो जाने के बाद, इसी समझ के आधार पर, चंद्रमा बदलता हुआ क्यों प्रतीत होता है? समझ सकते हैं। संसाधन 5 में एक नमूना दिया गया है जिसका उपयोग आप विद्यार्थियों को अवलोकन रिकार्ड करने में मदद देने के लिए कर सकते हैं; संसाधनों का उपयोग कैसे करें? इसके लिए संसाधन 4 भी देखें।

विद्यार्थी छाया, रात और दिन, मौसमों और रात के आकाश के बारे में अपने जो विचार लेकर आते हैं उनके कारण भी उन्हें वैज्ञानिक सोच विकसित करने में कठिनाई हो सकती है। दुनिया की बहुत सारी संस्कृतियों में चंद्रमा के बदलते रूप के रहस्य से सम्बन्धित आकर्षक किस्से और गलत फहमियाँ हैं। इनमें से बहुत सारी कहानियां हमारी संस्कृति का हिस्सा हैं और आज भी ये सुनीं जाती हैं। लेकिन 1969 में जब पहली बार मानव ने चंद्रमा पर पैर रखा, उसके बाद से इसके बारे में हमारी समझ पूरी तरह बदल गई है।

हम अपनी दैनिक की भाषा में चंद्रमा को लेकर जिस तरह बात करते हैं वह भी दिग्–भ्रमित करने वाली हो सकती है। हम ’चन्द्रमा की रोशनी’ और ’रोशन चांद’ के बारे में बात करते हैं। ऐसे में कोई आश्चर्य की बात नहीं कि विद्यार्थियों को यह समझने में कठिनाई होती है कि चंद्रमा स्वयं प्रकाश का स्रोत नहीं है, बल्कि सिर्फ सूरज के प्रकाश को परावर्तित करता है। ज्यादातर विद्यार्थी विभिन्न कलाओं से गुजरते हुए चंद्रमा को देख चुके होंगे, और वे ’अमावस्या’, ’दूज का चांद’, ’पूर्णिमा’ जैसे शब्दों से परिचित भी होंगे। लेकिन वे सोच सकते हैं कि चंद्रमा के ये विभिन्न चरण या कलाएं पृथ्वी की छाया चंद्रमा पर पड़ने के कारण होते हैं, न कि चंद्रमा से पृथ्वी पर विभिन्न कोणों से प्रकाश के परावर्तित होने के कारण (ड्राइवर और अन्य, 1992)।

इन अवधारणाओं पर शिक्षा देना चुनौतीपूर्ण हो सकता है विशेषकर कक्षा के संसाधन सीमित होने की दशा में। नीचे दी गई सरल गतिविधि आपके विद्यार्थियों को यह समझाने में मदद कर सकती है कि क्यों, चंद्रमा प्रकाश का विकिरण करता हुआ दिखाई देता है? और कैसे इसके आकार और आकृति बदलती हुई दिखाई देती हैं।

गतिविधि 3: चंद्रमा की कलाओं को समझना

यह गतिविधि प्राथमिक के बड़े विद्यार्थियों के लिए उपयुक्त है, लेकिन मॉडलों का उपयोग करते हुए ऐसी ही गतिविधियां छोटे विद्यार्थियों के साथ भी की जा सकती हैं। कक्षा की इस गतिविधि के लिए आपको एक टॉर्च और एक बड़ी सफेद गेंद की जरूरत होगी। (यदि गेंद नहीं हो तो आप एक तरबूज या किसी अन्य बड़े गोल फल का इस्तेमाल कर सकते हैं।) आप चंद्रमा की कलाओं को दर्शाते मॉडल को दिखाने जा रहे हैं (देखें संसाधन 4)। विद्यार्थियों के बीच इस प्रयोग प्रदर्शन को करने से पहले इसका अभ्यास कर ले। आत्मविश्वास के साथ इसे करें। पूछे जाने वाले प्रश्न और आने वाले संभावित उत्तरों के बारे में आपको पता होना चाहिये।

  • आपको यह प्रयोग प्रदर्शन अंधेरे कमरे में करना होगा। गतिविधि शुरू करने से पहले, कक्षा में प्रकाश आने के जितने भी स्रोत हैं उन्हें बंद कर दें। खिड़कियों और दरवाजों से आने वाली रोशनी को, रोकने के लिए कंबल, पर्दे या कपड़ों के टुकड़े या कागज का इस्तेमाल करें।
  • कुर्सियों और डेस्क को किनारे कर कमरे में काफी जगह बना लें।

  • अपने विद्यार्थियों से कमरे के बीच में एक गोला बनाकर पास–पास बैठने के लिए कहें। कक्षा के आकार पर निर्भर करते हुए हो सकता है आपको भीतरी और बाहरी, दो गोले बनाने पड़े। समझाएं कि जिस वृत्त के अंदर वे लोग हैं वह पृथ्वी है। टॉर्च सूरज है और गेंद चंद्रमा।
  • बत्तियां बुझा दें। गेंद को हाथ में पकड़ें और विद्यार्थियों से पूछें कि क्या वे उसे ठीक से देख पा रहे हैं? उनसे पूछें कि क्या ’चंद्रमा’ प्रकाश दे रहा है?
  • एक विद्यार्थी से गोले से अलग खड़े होकर टॉर्च जलाने के लिए कहें। गेंद को ऐसे रखें कि टॉर्च से आने वाली प्रकाश की किरणें इस पर पड़े। स्पष्ट करें कि ’चंद्रमा’ प्रकाश नहीं दे रहा है, बल्कि ’सूरज’ से आने वाले प्रकाश को परावर्तित कर रहा है (चित्र 3)।
चित्र 3 विद्यार्थियों को चंद्रमा की विभिन्न कलाएं समझने में मदद करने वाली एक गतिविधि
  • विद्यार्थियों से कहें कि वे स्थिर बैठे रहें, और सामने देखें, और आपको देखते न रहें। टॉर्च पकड़कर रखने वाले विद्यार्थी को भी स्थिर रहने के लिए कहें। इसके बाद ’चंद्रमा’ के साथ गोले का चक्कर लगाएं, बीच–बीच में रुकें ताकि विद्यार्थियों को जो कुछ दिख रहा है उसका अवलोकन करने के लिए समय मिले। समझाएं कि आप ’चंद्रमा’ हैं जो ’पृथ्वी’ का चक्कर लगा रहा है।
  • विद्यार्थियों से पूछें, ‘जब चंद्रमा गुजरता है तो क्या उसकी आकृति बदलती है?’ और ‘आप चंद्रमा का कितना हिस्सा देख पा रहे हैं?’ (यह पूछकर उनकी मदद करें ‘पूरा?’, ‘आधा?’, ‘पूरा नहीं?’, आदि)
  • विद्यार्थियों को नए सिरे से बैठाएं और गतिविधि को कई बार दोहराएं ताकि सभी विद्यार्थियों को स्पष्ट रूप से अवलोकन का अवसर मिल सके। जिन विद्यार्थियों को इस बात की कम समझ है कि दिन और रात कैसे होते हैं? उन्हें इस तथा ऐसी ही अन्य गतिविधियों को करने के लिए ज्यादा समय और मौके देने होंगे ताकि वे विचारों को समझ पाएं।
  • जब आप ’पृथ्वी’ का चक्कर लगाएं, तो ’चंद्रमा’ के उसी एक ही हिस्से को विद्यार्थियों की ओर रखें। बताएं कि चंद्रमा का एक ही हिस्सा हमेशा पृथ्वी की ओर रहता है।

यह प्रयोग प्रदर्शन पूरा करने के बाद, अपने विद्यार्थियों से सूरज, चंद्रमा और पृथ्वी का एक आरेख बनाने के लिए कहें, जिसमें किरणें कैसे सूरज से परावर्तित होती हैं, यह दिखाने के लिए तीर के निशान का प्रयोग करने के लिए कहें।

प्रकाश का स्रोत (जैसे टॉर्च, लैंप या मोमबत्ती) और एक गेंद का प्रयोग करके यह प्रदर्शित किया जा सकता है कि कैसे हमारे यहां दिन होता है जब पृथ्वी का हमारा वाला हिस्सा सूरज की ओर मुंह किए होता है, और जो हिस्सा सूरज की ओर नहीं है, वहां रात होती है।

गतिविधि को पूरा करने के बाद, निम्नलिखित प्रश्नों के लिए अपने उत्तर को रिकार्ड करें–

  • इस गतिविधि के बारे में आपको क्या पसंद आया?
  • क्या ठीक–ठीक चला? आप यह कैसे जानते हैं?
  • क्या–क्या आपकी उम्मीद के अनुसार नहीं हो सका? और क्यों?

इस गतिविधि को ज्यादा प्रभावी बनाने के लिए अगली बार आप कौन सी चीज अलग तरीके से करेंगे?

विद्यार्थियों को चंद्रमा की कलाओं को समझाने के लिए गतिविधि 3 में मॉडलिंग और अवलोकन दोनों का मिलाजुला रूप प्रयोग किया गया। विद्यार्थियों को दिन और रात के बारे में समझाने में मदद के लिए आप इस तकनीक का प्रयोग कर सकते हैं। विद्यार्थी कमरे के चारों ओर बैठते हैं। एक विद्यार्थी बीच में टॉर्च लेकर खड़ा होता है, वह सूरज बन जाता है, और एक दूसरा विद्यार्थी पृथ्वी बन जाता है। धीरे– धीरे घूमने पर, वे देख पाएंगे कि किसी तरह पृथ्वी का आधा हिस्सा अंधेरे में रहता है और आधे हिस्से में प्रकाश रहता है। आप इसी तकनीक का प्रयोग कर उन्हें यह समझने में मदद कर सकते हैं कि कैसे पृथ्वी सूरज का चक्कर लगाती है और एक वर्ष एक पूरा चक्कर ही है।

छोटी आयु के विद्यार्थियों के मामले में, आसमान की वस्तुओं के बारे में शिक्षा पूरी तरह अवलोकनात्मक और गुणात्मक प्रकृति की होनी चाहिए। ऐसा करने से उनमें अवलोकन का कौशल विकसित करने और आंकड़े इकट्ठा करने में वे ज्यादा सटीक और सक्षम बन सकेंगे। सूरज, चंद्रमा, तारे, बादल, चिड़िया और हवाईजहाज – इन सबमें ऐसे गुण, उनकी स्थिति और गति होती हैं जिनका समय बीतने के साथ अवलोकन और वर्णन किया जा सकता है। अवलोकन और पैटर्न पहचानना पर्यावरण में जीवित वस्तुओं के बारे में जानना एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। उदाहरण के लिए, यह देखना कि पौधे कहां? और कैसे उगते हैं

1 अवलोकन कौशल को विकसित करना

3 सारांश