संसाधन 2: प्रश्न पूछने की रणनीतियां

यहां कुछ रणनीतियाँ बताई गई हैं जिन्हें आप अपनी कक्षा में प्रश्न पूछने के लिए और विद्यार्थियों के उत्तरों पर प्रतिक्रिया देने के लिए उपयोग में ला सकते हैं।

स्वैच्छिक उत्तरदाताओं का उत्तर देना

विद्यार्थियों से अपने हाथ उठाने के लिए कहा जाता है ताकि पता चले सके कि कौन–कौन स्वेच्छा से उत्तर देना चाहेगा। इसमें सोचने का समय सामान्यतः बहुत कम होता है और यदि विद्यार्थी हाथ ऊपर उठाने की बजाय जोर से बोलकर उत्तर बता देते हैं, तो दूसरे विद्यार्थियों के लिए सोचने का समय और भी कम हो जाता है। इस पद्धति में भागीदारी कम होती है। तथा वही विद्यार्थी स्वेच्छा से उत्तर देना नहीं चाहते हैं। विद्यार्थी जान लेते हैं कि यदि वे अपना हाथ नहीं उठाएँगे तो उनसे नहीं पूछा जाएगा। शिक्षकों के इस पद्धति को पसंद करने का एक कारण यह है कि इससे विद्यार्थियों के ऊपर कोई दबाव नहीं आता। केवल उन्हीं विद्यार्थियों को उत्तर देना पड़ता है जो देना चाहते हैं।

यदि बंद प्रश्नों के साथ इस पद्धति का उपयोग किया जाए, तो संवाद और फीडबैक के अवसर सीमित हो जाते हैं, क्योंकि जो लोग स्वेच्छा से हाथ उठाते हैं। वे संभावित रूप से वही होते हैं जो सही उत्तर जानते हैं।

एक नामित विद्यार्थी का उत्तर देना

विद्यार्थियों को प्रश्न का उत्तर देने के लिए शिक्षक द्वारा नामित किया जाता है। इसमें फायदा यह है कि सोचने का समय बढ़ जाता है। शिक्षक प्रश्न पूछता है और ठहर जाता है, इस तरह विद्यार्थियों को सोचने के लिए मौका मिलता है। फिर शिक्षक प्रश्न का उत्तर देने के लिए किसी एक विद्यार्थी का नाम पुकारता है। इससे भी सहभागिता बढ़ती है क्योंकि शिक्षक प्रायः उन लोगों को चुनेगा जो स्वेच्छा से उत्तर देने के लिए अनिच्छुक हैं। यद्यपि, इससे विद्यार्थी असहज महसूस कर सकते हैं और शिक्षक भी इस तकनीक से असहज महसूस करने वाले विद्यार्थियों की मदद करने के उद्देश्य से प्रश्नों की चुनौती को सीमित रखने के लोभ में पड़ सकते हैं।

प्रश्न उछालना

जब कोई विद्यार्थी किसी प्रश्न का उत्तर दे देता है, तब यह बताने की बजाय कि वह उत्तर सही है या गलत, शिक्षक किसी और को उत्तर देने के लिए कहता है। उदाहरण के लिए, ’संजय, तुम क्या सोचते हो? दित्ता, क्या तुम इसमें कुछ जोड़ सकते हो?’

यह भागीदारी के स्तर को बढ़ा देता है और विद्यार्थियों को संभव उत्तरों के बारे में कुछ और सोचने का मौका देता है। यह कक्षा में संवाद को भी बढ़ा देता है और शिक्षक को और अधिक अपेक्षा करने वाले या अधिक लंबे उत्तर की मांग करने वाले प्रश्न पूछने का मौका दे देता है। जिस व्यक्ति की तरफ प्रश्न ’उछाला’ जाता है, वह एक स्वैच्छिक या एक नामित उत्तरदाता हो सकता है।

जोड़ियाँ/समूह

प्रश्नों का उत्तर देने के लिए विद्यार्थी छोटे समूहों या जोड़ियों में काम करते हैं। विद्यार्थी किसी विचारोत्तेजक प्रश्न का उत्तर देने के लिए या किसी लघु कार्य को पूरा करने के लिए छोटे समूहों में या जोड़ियों में काम करते हैं। शिक्षक फिर समूह के भीतर एक स्वैच्छिक व्यक्ति को उत्तर देने की अनुमति देते हुए बारी–बारी से प्रत्येक समूह को उत्तर का अंश बताने के लिए कहता है। उदाहरण के लिए, ’किस प्रकार की चीजों के कारण बीमारियाँ पैदा होती हैं? क्या तुम मुझे बीमारी होने का एक कारण बता सकते हो?’ फिर शिक्षक एक और कारण पूछने के लिए दूसरे समूह के पास चला जाएगा।

विकल्प के रूप में, शिक्षक चर्चा से पहले ही एक व्यक्ति को नामित भी कर सकता है। नामित विद्यार्थी अपने समूह की ओर से उत्तर देता है, लेकिन उनके पास बाकी समूह के साथ बातचीत करने का मौका भी होता है ताकि वे अपने उत्तर के बारे में आश्वस्त हो सकें।

इस पद्धति से अत्यधिक भागीदारी को बढ़ावा मिलता है। इससे शिक्षक चुनौतीपूर्ण प्रश्न पूछ पाता है और सोचने के लिए काफी समय देता है। चूंकि प्रश्नों के अधिक चुनौतीपूर्ण होने की संभावना होती है, इसलिए यह बेहतर संवाद और फीडबैक के अवसर भी खोल देता है।

और अधिक चर्चा को बढ़ावा देना

विचारोत्तेजक प्रश्न पर चर्चा के लिए, और एक दूसरे के उत्तरों का मूल्याँकन करने के लिए विद्यार्थी समूहों में काम करते हैं। उदाहरण के लिए, शिक्षक एक ऐसा प्रश्न पूछ सकता है जिसकी अलग–अलग व्याख्याएँ संभव हैं, या जिसके कई संभावित उत्तर हैं (हम बीमारी को किस प्रकार से रोक सकते हैं?)। शिक्षक चर्चा का निरीक्षण करेगा (क्या सभी के कोई न कोई उत्तर हैं? क्या आपको और समय चाहिए?) और फिर वे अपने समूह का उत्तर देने के लिए एक व्यक्ति को नामित करेंगे। शिक्षक उत्तर को, उसका मूल्याँकन किए बगैर, दर्ज करेगा और फिर दूसरे समूह से उनका उत्तर पूछेगा। जब शिक्षक के पास प्रश्न के अनेक उत्तर हो जाएंगे, तब वह एक समूह से उन उत्तरों पर टिप्पणी करने के लिए कहेगा (क्या आप इन सभी उत्तरों से सहमत हैं? अगर नहीं, तो क्यों नहीं?), या वे एक फॉलो–अप प्रश्न पूछेंगे (इनमें से कौन सी विधि सबसे प्रभावी या क्रियान्वयन में सबसे आसान हो सकती है?)।

इस पद्धति में अत्यधिक भागीदारी निहित है और यह आपके विद्यार्थियों को अपने उत्तरों के बारे में सोचने के लिए बहुत समय देती है। यह संवाद को भी बढ़ावा देती है, और यदि प्रश्न पर्याप्त चुनौतीपूर्ण हों तो अपेक्षाकृत ’सुरक्षित’ वातावरण में ज्यादा ऊंचे दर्जे के चिंतन को बढ़ावा देती है। जिन विद्यार्थियों को कार्य कठिन जान पड़ता है, वे बेनकाब नहीं होते, बल्कि विचारों के बारे में चिंतन करने के लिए प्रोत्साहित होते हैं।

जोड़ियों में जांच

शिक्षक एक प्रश्न पूछता है और विद्यार्थियों को उत्तर के बारे में स्वतः सोचने के लिए समय दे दिया जाता है। फिर वे जोड़ियों मे उत्तरों की तुलना करते हैं और एक दूसरे के उत्तरों पर फीडबैक देते हैं। वे उत्तर के बारे में कुछ ऐसा कहते हैं जो अच्छा है और कुछ ऐसा भी कहते हैं जिसमें सुधार किया जा सकता है। शिक्षक फिर सही उत्तर देता है या उत्तर देने के लिए एक जोड़ी को नामित करता है। प्रश्नों के बारे में सोचने में प्रत्येक को भागीदारी करनी होती है। इसमें सोचने और चर्चा करने के लिए काफी अवसर होते हैं। एक बार फिर, अत्यधिक अपेक्षा करने वाले या चुनौतीपूर्ण प्रश्नों के लिए इस्तेमाल करने के लिए यह अच्छी पद्धति है।

(स्रोतः पैटी, 2009 पर आधारित)

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