1 कठिन शब्दों को समझना

विज्ञान की भाषा विशिष्ट और तकनीकी भाषा होती है, जिसके कारण यह पाठयक्रम का खास विषय होती है। विद्यार्थियों द्वारा वैज्ञानिक शब्दावली को समझने में तीन मुख्य प्रकार की समस्याओं का सामना किया जाता है।

  • अपरिचित शब्द: वैज्ञानिक अक्सर चिर–परिचित वस्तुओं के लिए वैज्ञानिक शब्दों का इस्तेमाल करते हैं। उदाहरण के लिए, किसी वैज्ञानिक द्वारा ‘पानी’ के स्थान पर ‘जल (एकुआ)’, ‘प्रकाश (लाइट)’ के स्थान पर ‘फोटो’ तथा जब ‘छोटा’ कहने का आशय होगा तो वह ‘व्यष्टि (माइक्रो)’ का इस्तेमाल करता है। तब इनमें से अनेक शब्दों को जटिल, संयुक्त शब्दों को बनाने के लिए एक साथ जोड़ दिया जाता है, जैसे फोटोसिन्थेसिस (प्रकाश–संश्लेषण) या माइक्रोस्कोप (सूक्ष्मदर्शी)।
  • विशेषज्ञतापूर्ण अर्थ: विज्ञान में अनेक शब्दों के दैनिक जिंदगी में अर्थ होते हैं और साथ ही उनके विशिष्ट वैज्ञानिक अर्थ भी होते हैं, जैसे उर्जा, आचरण या क्षमता आदि। प्रायः विद्यार्थियों को गलतफहमियां हो जाता है कि कौन से अर्थ का प्रयोग किया जाए तथा उन्हें भिन्न–भिन्न संदर्भों में स्वीकार्य वैज्ञानिक शब्दों को पढ़ाने की आवश्यकता होती है।
  • कठिन अवधारणाएं: विज्ञान में अनेक गैर–तकनीकी शब्दों का इस्तेमाल किया जाता है, जैसे ‘प्रकाशन (इलुमिनेट)’, ‘घटक (फैक्टर)’ या ‘सिद्धातं (थ्योरी)’। अक्सर अध्यापक यह मान लेते हैं कि उनके विद्यार्थी ऐसे शब्दों के अर्थ समझते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि उन्हें पढ़ना आसान होता है। लेकिन अक्सर इन शब्दों का आशय जटिल कठिन वैज्ञानिक अवधारणाओं से होता है। विद्यार्थियों को इसे सार रूप में प्रस्तुत अवधारणाओं की केवल आंशिक या गलत समझ होती है।

यह दृष्टिकोण क्यों महत्वपूर्ण है

2 जटिल संयुक्त शब्दों को समझना