3 प्रोजेक्ट दलों का निर्माण और प्रबंधन करना

विद्यार्थियों के सामाजिक और सहयोगी कौशलों को विकसित करने के लिये, विद्यार्थियों के छोटे समूहों से प्रोजेक्ट्स कराना सही होता है (चित्र 1), यद्यपि इन्हें जोड़ियों में या अकेले भी किया जा सकता है। किसी प्रोजेक्ट टीम के लिये चार विद्यार्थी सामान्यतः सबसे अच्छे होते हैं। इससे बड़े समूहों में प्रत्येक विद्यार्थी का योगदान बहुत कम होता है और उनके लिये यह सहायक नहीं होता है। इससे छोटे समूहों में प्रत्येक विद्यार्थी को करने के लिये बहुत अधिक काम होता है। लेकिन अंत में अपनी कक्षा के आकार, उपलब्ध संसाधनों और प्रोजेक्ट की प्रकृति के आधार पर आपको निर्णय लेना होता है।

चित्र 1 साझा प्रोजेक्ट पर काम करते हुए विद्यार्थी

यदि, आपके विद्यार्थियों के लिये नया नहीं हो मिश्रितलिंगी समूह समलिंगी समूहों की तुलना में बेहतर होते हैं। मिश्रित क्षमता के समूहों के लिये भी यह सच है। सहयोग नहीं करने वाले विद्यार्थियों को एक ही समूह में न रहें। आप इस पर भी विचार कर सकते हैं कि विद्यार्थी रहते कहाँ हैं। यदि आप अपने विद्यार्थियों से अपेक्षा कर रहे हों कि वे स्कूल के बाहर भी प्रोजेक्ट पर काम करेंगे, तो पास–पास रहने वाले विद्यार्थियों को एक समूह में रखना मददगार होगा। आपको सुनिश्चित करना होगा कि जिन विद्यार्थियों को पढ़ने या लिखने में कठिनाई आती है उन्हें इन कौशलों में निपुण विद्यार्थियों के समूह में रखें। सर्वोत्तम समूह वह होगा जिसमें विद्यार्थियों के कौशल आपस में पूरक हों और जहाँ पर विद्यार्थी एक दूसरे की सहायता करते हों। पाठ से पहले ही आप समूह बना लें और फिर समूह के नामों को पढ़कर सुनाएं या कक्षा की दीवार, नोटिस बोर्ड पर समूहों की सूची लगा दें।

समूह तभी सही काम करते हैं जब प्रत्येक विद्यार्थी को एक निश्चित भूमिका दी गई हो। उस प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिये वास्तविक संसार में जिन भूमिकाओं की आवश्यकता हो वही भूमिकाएं दी जानी चाहिएं। नेता, अनुसंधानकर्ता या रिकॉर्डर जैसी भूमिकाओं के लिये आपको विद्यार्थियों को सुझाव देने होंगे। प्रत्येक विद्यार्थी उस विषय के एक पहलू पर जानकारी जुटाए और फिर सारे साथ मिल कर उसका विश्लेषण करें और प्रस्तुतिकरण करें।

केस स्टडी 1: शिक्षिका सीमा एक प्रोजेक्ट शुरू करती हैं

शिक्षिका सीमा अपने विद्यार्थियों को प्रोजेक्ट समूहों में बाँटती हैं।

मैंने निर्णय लिया कि कक्षा X को ऊर्जा के स्त्रोत के अध्याय पर एक प्रोजेक्ट पर काम करना होगा। इससे काफी अपेक्षाएं थी, क्योंकि यदि सभी उपस्थित हों, तो कक्षा में 80 विद्यार्थी हैं। पाठ्यपुस्तक में अच्छा अध्याय है, लेकिन हम एक बड़े शहर के बाहरी हिस्से में रहते हैं, इसलिये यदि इंटरनेट चाहिये तो किसी इंटरनेट कैफे में जाना होगा। मैंने कक्षा में बॉक्सों में जानकारी इकट्ठा करनी शुरू की और अपने विद्यार्थियों से भी जानकारी जमा करने के लिए कहा। एक सप्ताहांत में मैंने इंटरनेट से कुछ जानकारी प्रिंट कर ली और उसे बॉक्सों में रखा।

मैंने अपने विद्यार्थियों को चार के समूहों में बाँटा। मैंने लड़कों और लड़कियों को एक साथ रखा, और यह भी ध्यान रखा कि वे और उनके मित्र कहाँ रहते हैं। मैंने पढ़ाई में अच्छे और कमजोर दोनों को साथ रखा और पक्का किया कि कमजोर विद्यार्थियों के साथ समूह में उनके मित्र रहें जो उनकी मदद कर सकें। इसमें मुझे बहुत समय लगा और काम शुरू होने पर मुझे कुछ विद्यार्थियों की अदला–बदली करनी पड़ी । लेकिन मैंने ये चुपचाप किया क्योंकि मैं नहीं चाहती थी कि उन्हें पता चले कि समूह बदले जा सकते हैं! लड़के और लड़कियों की संख्या समान नहीं थी, तो दो लड़कियां ऐसे समूहों में पहुँचीं जहां तीन लड़के थे। वे खुश नहीं थीं, सो मैंने एक समूह लड़कों का ही बना दिया और दो लड़कियों को एक साथ रख दिया। मुझे लगता है ऐसा लचीलापन महत्वपूर्ण रहा। मुझे समझ में आया कि प्रोजेक्ट कार्य के लिये समूह बनाना मुश्किल होता है। जब वे काम कर रहे हों तब मैं उन पर सावधानीपूर्वक नजर रखूंगी और पता करूंगी कि कौन विद्यार्थी साथ में अच्छे से काम करते हैं।

2 जानकारी खोजना

4 विद्यार्थियों को समय का प्रबंधन प्रभावी ढंग से करने में मदद करना