1 विद्यालयों में गणितीय प्रमाण क्यों सिखाए जाएँ?
दुनियाभर में इस प्रकार की कई चर्चाएँ हो रही हैं कि क्या गणितीय प्रमाण विद्यालय की पाठ्यचर्या का भाग होना चाहिए। अध्यापकों को अक्सर प्रमाण पढ़ाने में कठिनाई होती है और विद्यार्थियों को अक्सर सीखने में परेशानी होती है। यह भी हमेशा स्पष्ट नहीं होता कि प्रमाण पर काम करने से किस प्रकार की गणितीय शिक्षा प्राप्त होती है। कुछ देशों में गणितीय प्रमाण की शिक्षा पूरी तरह से बंद ही कर दी गई है, यद्यपि अन्य देश इसे गणित में विवेक बोध के रूप में देखते हैं। भारत में, गणितीय प्रमाण अभी भी विद्यालय की पाठ्यचर्या का भाग है और कक्षा 9 और 10 की पाठ्यपुस्तकों के कई अध्यायों में गणितीय प्रमाण शामिल होते हैं।
विद्यालयों में गणितीय प्रमाण पर काम करने से मिलने वाली गणितीय सोच से जुड़ी कई सकारात्मक बातें हैं। शोधकर्ता बताते हैं कि गणितीय प्रमाण पर काम करने से कई तरह के गणितीय शिक्षण अवसर प्राप्त होते हैं। हन्ना (2000) ने इसका सारांश ऐसे बतायाः
- किसी कथन की सत्यता का सत्यापन
- यह सत्य क्यों है, इस बात का वर्णन करके व्याख्या
- विभिन्न परिणामों को सूक्तियों, मुख्य अवधारणाओं और प्रमेयों की किसी निगमनात्मक प्रणाली में व्यवस्थित करके व्यवस्थापन
- नए परिणामों की खोज या आविष्कार
- गणितीय ज्ञान प्रसारित करने के लिए संचार
- किसी प्रयोगाश्रित सिद्धात का निर्माण
- किसी परिभाषा का मतलब या किसी मान्यता के परिणामों की खोज
- सुविज्ञात तथ्यों का नई रूपरेखा में समावेशन और इस प्रकार इसे किसी एकदम नए नजरिए से देखना।
यह इकाई इस बात की खोजबीन करेगी और सुझाव देगी कि गणितीय प्रमाण की प्रक्रिया का उपयोग किस प्रकार उपर्युक्त जैसे शिक्षण अवसरों पर काम करके विद्यार्थियों में गणित की समझ बढ़ाने के उपकरण के रूप में किया जा सकता है।
विचार के लिए रुकें विद्यालय की पाठ्यचर्या में गणितीय प्रमाण के बारे में आपके विचार और राय क्या हैं? क्या इसे उसमें होना चाहिए? क्या आप इन शोधकर्ताओं द्वारा सुझाए गए शिक्षण अवसरों की सूची से सहमत हैं? किन–किन को आप सबसे महत्वपूर्ण मानते हैं? क्या इस प्रकार का गणितीय शिक्षण अभी आपकी कक्षा में होता है? यदि ऐसा है, तो आप इसे कैसे करते हैं? यदि नहीं, तो क्या आपके पास इस बारे में कोई विचार है कि आप अपने वर्तमान अभ्यास में क्या बदलना चाहेंगे? |
आप इस इकाई में क्या सीख सकते हैं