5 नेतृत्व की पद्धतियाँ

शैक्षणिक परिवर्तन का नेतृत्व करने के लिए कौन सी पद्धतियाँ सबसे उपयुक्त हैं इस विषय पर बहस जारी है। शिक्षा-शास्त्रियों और प्रैक्टीशनरों ने कई दृष्टिकोण प्रस्तुत किए हैं, जिनमें से कुछ पर हम इस खंड में चर्चा करेंगे। यह महत्वपूर्ण है कि आपको, एक विद्यालय प्रमुख के रूप में, सारा काम खुद ही नहीं करना चाहिए। शारीरिक रूप से थक जाने के अलावा, आपको बेहतर प्रतिक्रिया मिलने की संभावना तब होती है जब हर व्यक्ति कोई भूमिका निभाता है। जबकि कुछ लोगों को विशिष्ट कर्तव्य और दायित्व सौंपे जा सकते हैं, अन्य लोग केवल निर्णय लेने में भाग लेते हैं – लेकिन अधिकतम सहभागिता का मूल्य सिद्धान्त अधिकतम संलिप्तता/हिस्सेदारी है।

जब परिवर्तन थोपा जाता है, तब नियोजन, कार्यान्वयन और समयसीमा पर प्रायः निर्देश दिए जाते हैं। आपको इसे अपने विद्यालय के लिए स्पष्ट रूप से परिभाषित परिणामों वाली योजना में बदलने की जरूरत पड़ेगी। एक स्पष्ट संप्रेषण तय करना और हर व्यक्ति को बताना कि उससे किस प्रकार की भूमिका अदा करने की अपेक्षा की गई है उपयोगी होता है। हालांकि सुनियोजित परिवर्तन सफलता का आश्वासन नहीं देता है, वह प्रक्रियाओं को सरल बनाने में और संभावित बाधाओं की पहचान को आसान अवश्य बनाता है।

केस स्टडी 3: श्री राऊल को परिवर्तन करने में कठिनाई हो रही है

श्री राऊल पूर्वी दिल्ली में एक पब्लिक विद्यालय में विद्यालय प्रमुख हैं। बचपन से उनका शौक दूसरों की सहायता करना रहा है, जो शिक्षक के रूप में प्रशिक्षण लेने के लिए उनकी प्रेरणा था। वे अपनी पद्धति का वर्णन इस तरह से करते हैं:

दो वर्ष पहले विद्यालय प्रमुख बनने के बाद से, राऊल ने अपने कुछ स्टाफ के साथ व्यवहार करने में चुनौतियों का सामना किया है। हालांकि वे नए शिक्षकों को पढ़ाने और उत्पादक पाठ? प्रदान करने में सहायता करने की अपनी क्षमता के बारे में आश्वस्त हैं, उन्हें अनेक अत्यंत अनुभवी शिक्षकों के साथ व्यवहार करने में कुछ कठिनाई हुई है।

श्री राऊल के प्रयासों का अधिकांश शिक्षकों द्वारा स्वागत किया जाता है, लेकिन वे अपने तीन सबसे अनुभवी कर्मचारियों के साथ उल्लेखनीय प्रगति नहीं कर पा रहे हैं। वे उनके कुछ सिद्धांतों से अपरिचित हैं, और दावा करते हैं कि उनकी पद्धतियाँ अधिक उपयुक्त हैं क्योंकि वे मानते हैं कि छात्र सबसे अच्छी तरह से तब सीखते हैं जब वे शिक्षक को बोलते हुए सुनते हैं।

गतिविधि 3: श्री राऊल को सलाह

श्री राऊल को आप क्या सलाह देंगे? आप इस परिवर्तन प्रक्रिया का सामना कैसे करेंगे और उन तीन अनुभवी कर्मचारियों को कैसे सम्मिलित करेंगे? अपनी अवधारणाओं को अपनी सीखने की डायरी में नोट करें।

Discussion

सफल परिवर्तन में आने वाली आम बाधाओं में शामिल है, कार्यान्वयन की प्रतिबद्धता का अभाव, कुछ प्रतिभागियों का प्रतिरोध, अपर्याप्त संसाधन और उस पर्यावरण में अप्रत्याशित बदलाव जहाँ परिवर्तन स्थित है। श्री राऊल के स्टाफ के मामले में, हम निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि परिवर्तन में मुख्य बाधाएं हैं, लंबे अर्से से चले आ रहे रवैये और पद्धतियाँ जिन्हें सर्वश्रेष्ठ काम करने में सक्षम माना जाता है। आपकी सलाह शायद तीनों शिक्षकों से वैयक्तिक रूप से या एक साथ शामिल करने की होगी। इसमें ‘समग्र टीम’ पद्धति शामिल हो सकती है जहाँ स्टाफ मिलकर उनकी पद्धति में ‘साइन अप’ कर सकते हैं। यह हमेशा महत्वपूर्ण होता है कि आपके शिक्षकों की उपलब्धियों और अनुभव को मान्यता दी जाय क्योंकि नई अवधारणाओं या दृष्टिकोणों को इन पर विकसित करना होता है। अगले खंड को पढ़ते समय, विचार करें आपके द्वारा सुझाया गया दृष्टिकोण उन नेतृत्व शैलियों के साथ कैसे सामंजस्य स्थापित करता है जिनकी रूपरेखा प्रस्तुत की गई है।

नेतृत्व शैलियाँ

सहयोगात्मक नेतृत्व में दो अनिवार्य घटक होते हैं: टीम और मतैक्य। स्टाफ के मध्य एक आम मतैक्य के आधार पर निर्णय लिए जाते हैं, इसलिए हर व्यक्ति की बात सुनने के लिए सामूहिक चर्चाओं या परामर्शों को जगह दी जाएगी। सहयोगात्मक नेतृत्व को परिवर्तन की अगुवाई और प्रबंधन करने की एक सकारात्मक पद्धति माना जाता है, क्योंकि वह लोगों को पास लाती है और साझा समझ का विकास करती है। कुछ आलोचक तर्क देते हैं कि परिवर्तन की गति कभी-कभी मतैक्य के निर्माण के लिए पर्याप्त समय नहीं देती है और इसलिए वे इस पद्धति की व्यावहारिकता पर सवाल उठाते हैं।

हाल के वर्षों में एक और पद्धति शैक्षणिक नेतृत्व संवाद पर हावी हुई है जिसका नाम है वितरित नेतृत्व (Distributed Leadership)। ग्रॉन्न (2003) के अनुसार, वितरित नेतृत्व का मतलब विद्यालय के भीतर कई लोगों के बीच फैला दायित्व का बोध है। वितरित नेतृत्व विद्यालयों को नेतृत्व के काम में स्टाफ के व्यापक हिस्से को शामिल करके जटिल या अत्यावश्यक कार्य से निपटने का अवसर देता है।

इस पद्धति के बारे में कई भिन्न दृष्टिकोण हैं, जो खास तौर पर सीमाओं और उत्तरदायित्व के मुद्दों से संबंधित हैं। हैरिस (2008) का कहना है कि वितरित नेतृत्व पर अब भी वरिष्ठ नेताओं का दृढ़ नियंत्रण है और वे सुझाव देते हैं कि वितरित नेतृत्व और प्रतिनिधायन के बीच फर्क अस्पष्ट सा है। हार्टली (2010) भी इस अवधारणा का समर्थन करते हैं, जिनका तर्क यह है कि विद्यालय की रणनीति की दिशा पर शिक्षकों और छात्रों का बहुत सीमित प्रभाव होता है, इसलिए वितरित नेतृत्व मुख्यतः वरिष्ठ नेताओं द्वारा तय किए गए कार्यों और लक्ष्यों के माध्यम से पूर्वपरिभाषित संगठनात्मक लक्ष्यों को साध्य करने का एक तरीका है। उन विद्यालयों में जहाँ पारंपरिक अनुक्रम भूमिकाओं और दायित्वों को परिभाषित करते हैं, वहाँ प्राधिकार और दायित्व को इस ढंग से वितरित करने पर व्यग्रता और अविश्वास उत्पन्न हो सकता है।

विद्यालयों में प्रजातांत्रिक नेतृत्व का उद्देश्य अनिवार्य रूप से ऐसा पर्यावरण बनाना है जो प्रतिभागिता, साझा मूल्यों, खुलेपन, लचीलेपन और दयालुता का समर्थन करता है। फरमैन और स्टारैट, ने अपने लेख ‘विद्यालयों में प्रजातांत्रिक समुदाय के लिए नेतृत्व’ (2002, पृ. 118), में कहा कि प्रजातांत्रिक लीडरशिप को ‘सुनने, समझने, सहानुभूति प्रकट करने, विचार-विमर्श करने, बोलने, वाद-विवाद करने और संघर्षों को परस्पराधीनता की भावना के साथ हल करने और सबकी भलाई के लिए काम करने’ की क्षमता की जरूरत पड़ती है। इसलिए प्रजातांत्रिक विद्यालय नायक के पहुँच के भीतर होने और अन्य लोगों की अवधारणाओं और समाधानों को स्वीकार करने के लिए तैयार होने की संभावना होती है।

फरमैन और स्टारैट ने आगे कहा कि, प्रजातांत्रिक विद्यालयों में, नेतृत्व हितधारकों और उनकी विशेषज्ञता में निहित होता है न कि नौकरशाही में। इसमें हितधारकों को निर्णय लेने और ऐसी स्थितियाँ स्थापित करने में शामिल किया जाता है जो परामर्श, सक्रिय सहयोग, सम्मान और सभी की भलाई के लिए सामुदायिक बोध को बढ़ावा देती हैं। आलोचक इस बात पर सवाल उठाते हैं कि क्या इस प्रकार की नेतृत्व शैली वाकई में निर्णयों तक पहुँचने में हर व्यक्ति के मत को ध्यान में रखती है, और तर्क देते हैं कि अंतिम निर्णय तो फिर भी वरिष्ठ नेता ही लेते हैं।

रूपांतरणात्मक नेतृत्व उन नए लक्ष्यों की पहचान करता है जो पद्धति में परिवर्तनों को प्रेरित करेंगे और अन्य लोगों को समझाते हैं कि वे उससे अधिक प्राप्त कर सकते हैं जितना उनके विचार से संभव है। वह नायक की केंद्रीय भूमिका पर बलपूर्वक जोर देता है। नायक को अन्य लोगों को राजी करने और उनमें उत्साह जगाने में समर्थ होना चाहिए, इसलिए उसे:

  • भविष्य में संगठन के रूप की स्वप्न करनी चाहिए
  • स्वीकार करना चाहिए कि उसके सहकर्मियों को उस स्वप्न को साझा करना चाहिए यदि उसे साकार करना है
  • सहकर्मियों से यह बात मनवाने के लिए कठिन परिश्रम करना चाहिए कि वह स्वप्न साकार करने योग्य है
  • स्वप्न को साकार करने की ओर सहयोगात्मक ढंग से काम करना चाहिए।

गतिविधि 4: अभिप्रेरक के रूप में नायक

उन कुछ परिवर्तनों पर विचार करें जो आपने शिक्षक या विद्यालय प्रमुख के रूप में अनुभव किए हैं। यह कोई अच्छा अनुभव हो सकता है या हो सकता है आपको परिवर्तनों के विषय में संदेह रहे हों (उदाहरण के लिए, आपके विद्यालय में गतिविधि पर आधारित शिक्षण-प्रक्रिया का आरंभ, या बहु-स्तरीय कक्षाओं पर संशोधित मार्गदर्शन को लागू करना)। अपनी सीखने की डायरी में वर्णन करें कि:

  • आपको नायक द्वारा कैसे प्रेरित किया गया
  • आपने नायक के रूप में अन्य लोगों को कैसे प्रेरित किया
  • आपने अपने आपको नायक के रूप में कैसे प्रेरित बनाए रखा।

Discussion

सभी नेताओं को परिवर्तन के विषय में स्वयं अपनी भावनाओं का सामना भी करना होगा, और इस बात की जागरूकता कि परिवर्तन कैसे लोगों को आम तौर पर प्रभावित करता है, इसमें आपकी मदद करेगी। परिवर्तन की अवधि में, यह सुनिश्चित करना नायक का काम है कि वे वैयक्तिक रूप से और विद्यालय के समुदाय, दोनों में सकारात्मक रुख बनाए रखें। यह आवश्यक है कि विद्यालय प्रमुख को यथा संभव एक कार्य के अनुकूल वातावरण का निर्माण करना होगा जहाँ हर व्यक्ति समझने में सक्षम हो कि क्या चल रहा है और परिवर्तनों का सामना कर सके। यदि परिवर्तन को पर्याप्त चर्चा, परामर्श और स्पष्टीकरण के बिना थोपा जाता है, तो अधिकांश लोगों को सकारात्मक ढंग से प्रतिक्रिया करने में कठिनाई होगी।

केस स्टडी 4: सुश्री पटेल विद्यालय प्रमुख के रूप में अपनी चिंताओं का वर्णन करती हैं

विद्यालय नायक होने के नाते, सुश्री पटेल हाल के महीनों में विद्यालय द्वारा की गई प्रगति से खुश थीं, लेकिन उन्हें कुछ मुद्दों के बारे में चिंता थी। उन्होंने अपनी चिंताओं का वर्णन करने के लिए प्रबंधक के रूप में अपनी भूमिका और नायक के रूप में अपनी भूमिका के बीच अंतर स्थापित किया।

एक मैनेजर के रूप में, सुश्री पटेल संतुष्ट थीं कि विद्यालय में प्रशासन, वित्त, भौतिक संसाधनों, स्टाफ के विकास, संचार और विद्यालय के विकास के मुद्दों की सार-संभाल करने के लिए आवश्यक टीमें थीं। इसके अलावा, पाठ्यक्रम के नियोजन और निगरानी, आकलन का प्रबंधन करने, और विशिष्ट शिक्षण जरूरतों वाले विद्यार्थियों की सहायता के काम में विभिन्न टीमें लगी थीं। उन्होंने प्रदेश प्राधिकरण और DIET द्वारा आयोजित सभी प्रशिक्षण, वर्कशॉपों और चर्चा फोरमों में सहभागिता संयोजित की थी। उन्होंने सुनिश्चित किया कि प्रशिक्षण और वर्कशॉपों में भाग लेने वाले शिक्षक लौटकर स्टाफ की अगली बैठक में रिपोर्ट करें कि उन्होंने क्या सीखा है और वे एसएमसी को रिपोर्ट लिखकर भेजती थीं।

एक नायक के रूप में, सुश्री पटेल इस बारे में चिंतित थीं कि हालांकि विषय की टीमें अच्छी तरह से स्थापित की गई थीं, वे अनियमित रूप से बैठक करती थीं, गलत बिंदु नोट करती थीं और कार्यवाही के बिंदुओं का अनुसरण नहीं करती थीं। सुश्री पटेल ने देखा कि टीम की बैठकों के बाद अधिक कुछ नहीं बदला था और कि प्रशिक्षण के बाद की सामूहिक चर्चाएं सतही थीं और यदा-कदा होती थीं, तथा लोगों के पास उनके बारे में उत्साहित होने के लिए समय या ऊर्जा नहीं के बराबर थी। शिक्षण पद्धतियाँ पर विचार-विमर्श अब भी बहुत सीमित था और पद्धति को बदलता नहीं प्रतीत होता था।

सुश्री पटेल का स्टाफ सहयोग करने के लिए तैयार लगता था और सामान्यतः उनके द्वारा सुझाए गए परिवर्तनों को लागू करने का प्रयास करता था। तथापि, वे मुद्दों के साथ वास्तव में न तो संलग्न होते थे, और न ही नई चीजों का सुझाव देते या परिवर्तन को अपने आप लागू करते थे। वास्तव में, वे कुछ हद तक थके हुए लगते थे, और उन्हें जोशीले अन्वेषकों के समूह, जिनमें वे उन्हें विकसित करना चाहती थीं, की बजाय ‘उत्तरजीविता मोड’ के रूप में वर्णित समूह में रखा जा सकता था। उन्हें महसूस हुआ कि विद्यालय को सीखने की प्रक्रिया के लिए प्रयोजन और उत्कंठा के बोध को फिर से पाने की जरूरत है।

गतिविधि 5: टीम के दृष्टिकोण का महत्व

आप ऐसी स्थिति में क्या करेंगे? अपनी सीखने की डायरी में नोट्स बनाते हुए, निम्न बिंदुओं को संबोधित करें।

  • इस मामले के वर्णन की तुलना आपके विद्यालय की स्थिति के साथ किस हद तक की जा सकती है?
  • सुश्री पटेल के विद्यालय को पुनर्जीवित करने में उनकी मदद करने के लिए आप क्या सलाह देंगे?
  • सुश्री पटेल के लिए एक कार्यवाही योजना बनाएं।

Discussion

इस गतिविधि के लिए कोई ‘सही’ उत्तर नहीं हैं। आपके अपने विद्यालय में टीमवर्क और स्व-मूल्यांकन के मुद्दों के साथ आपको शामिल करने में मदद करने के लिए आपको सुश्री पटेल की विशेष स्थिति के बारे में सोचना चाहिए। कई विद्यालय इस विद्यालय की तरह होते हैं, जहाँ स्टाफ बस ‘काम करने का उपक्रम करता है’ और एक दिन से दूसरे दिन तक जाता रहता है – स्वीकार करते हुए, न कि रूपांतरित होते हुए। सुश्री पटेल द्वारा अनुभव किए गए स्टाफ की परेशानी के प्रकार को संबोधित करने के लिए मूल बात है उस स्थिति को समझना जिसमें स्टाफ स्वयं को पाता है। यदि आप समझ लें कि उनके उत्साह का अभाव कहाँ से शुरू हो रहा है, तो शायद आप उन्हें अधिक उपयुक्त और संवेदी ढंग से शामिल कर सकते हैं।

4 परिवर्तन की योजना बनाना और उसका नेतृत्व करना

6 परिवर्तन के मार्ग की बाधाओं पर काबू पाना