संसाधन 2: तीन कहानियाँ

‘‘चौड़े मुँह वाली मेंढकी’’

बहुत पहले एक चौड़े मुंह वाली मेंढकी थी जिसे बहुत ज्यादा बात करने की आदत थी। एक बार उसने सोचा कि क्यों न दूसरी मादाओं के पास जाकर पता लगाऊँ कि वे अपने अपने बच्चों को क्या खिलाती हैं। यह सोचकर वह दूसरी माँओं को ढूंढने निकल पड़ी।

चौड़े मुंह वाली मेंढकी फुदकती हुई जा रही थी कि उसे एक चिड़िया माँ मिली। चौड़े मुंह वाली मेंढकी ने उससे पूछा, ‘‘तुम अपने बच्चों को क्या खिलाती हो?’’ (मेंढ़की का प्रश्न पूछने के लिए मुंह चौड़ा कर बोलने का अभिनय करें)

‘‘मैं अपने बच्चों को खिलाती हूँ......... (बच्चों से अनुमान लगाने को कहें कि चिड़िया माँ अपने बच्चों को क्या खिलाती होगी)....... कीड़े!’’

यह सुनकर चौड़े मुंह वाली मेंढकी ने अपना चौड़ा मुंह खोल कर कहा, ‘‘अच्छा! ऐसा क्या?’’ फिर चौड़े मुंह वाली मेंढकी को एक (चित्र दिखाएं) पूछें– ‘आप को क्या लगता है, इस बार उसे कौन मिला होगा?’) बकरी मां मिी। मेंढ़की ने उससे पूछा, ‘‘तुम अपने बच्चों को क्या खिलाती हो?’’। बकरी मां बोली, ’’मै अपने बच्चों को....... (छात्रों से अनुमान लगाने को कहें कि बकरी अपने बच्चों को क्या खिलाती होगी)....... दूध पिलाती हूं।’’ यह सुनकर चौड़े मुंह वाली मेंढकी ने अपना चौड़ा मुंह खोल कर कहा, ‘‘अच्छा! ऐसा क्या?’’ (इसी प्रकार अन्य जानवरों को जोड़कर कहानी बढ़ाइए। आखिर में एक ऐसा जानवर चुनिए जो ‘मेंढकी’ के लिए खतरनाक हो, जैसे कि सांप, भालू या मगरमच्छ, फिर कहानी बढ़ाइए)।

फिर चौड़े मुंह वाली मेंढकी को एक भालू मां मिली। उसने मुंह चौड़ा करके भालू मां से पूछा, ‘‘तुम अपने बच्चों को क्या खिलाती हो?’’ जब भालू मां ने मेंढकी को देखा तो वह बहुत खुश होकर बोली, ‘‘अहा!’’ भालू मां का बड़ा सा खुला मुंह देखकर मेंढ़की बहुत डर गई। भालू माँ बोली, ‘‘मैं अपने बच्चों को खिलाती हूं चौड़े मुंह वाले मेंढक।’’ सुनकर चौड़े मुंह वाली मेंढकी ने बहुत ही पतला मुंह खोलकर कहा, ‘‘अच्छा! ऐसा क्या?’’ (याद रखें इस बार बहुत ही छोटा मुंह खोल कर बोलें)।

‘‘बूढ़ा शेर और लालची यात्री’’

बहुत पुरानी बात है, एक जंगल में एक शेर रहता था। समय बीतने के साथ वह बूढ़ा हो चला था और शिकार नहीं कर पाता था। एक दिन जब वह एक झील के पास से गुजर रहा था तो उसे सोने का एक कड़ा दिखाई दिया। उसने फौरन ही कड़े को उठा लिया। उसने सोचा कि वह किसी को भी कड़े के लालच में फंसा कर अपना शिकार बना सकता है। वह यह सोच ही रहा था कि तभी झील के दूसरी तरफ से एक यात्री गुजरा।

ऐसे देखकर शेर को लगा कि ‘इस यात्री का शिकार किया जा सकता है।’ उसने यात्री को अपने पास बुलाने के लिए एक उपाय सोचा। शेर ने अपने पंजे में कड़ा उठाया और यात्री को दिखाकर पूछा, ‘क्या तुम यह कड़ा लेना चाहोगे? मुझे तो इसकी जरूरत नहीं है नहीं?’ यात्री लालच में फंस गया। वह कड़ा लेना चाहता था पर शेर के पास जाने में हिचक रहा था। हालांकि वह जानता था कि शेर के निकट जाने में खतरा है पर फिर भी वह सोने का कड़ा लेना चाहता था। उसने शेर से कहा, ‘‘मै। जानता हूं कि तुम एक खूंखार शेर हो, मै। तुम्हारे निकट आऊंगा तो तुम मुझे मार दोगे। मैं कैसे तुम्हारा विश्वास कर लूं।’’

यह सुनकर शेर ने भोलेपन का दिखावा करते हुए यात्री से कहा, ‘‘अपनी युवावस्था में मैं बहुत ही निर्दयी और खूंखार था पर उम्र के साथ मै। बदल गया हूं। एक सन्यासी की बातों से प्रभावित होकर मैंने सभी बुराईयां छोड़ दी हैं। मै इस विशाल संसार में अकेला हूं और अब केवल भलाई और परोपकर में ही जीवन बिताना चाहता हूं। और वैसे भी मैं अब बूढ़ा हो गया हूं, मेरे मुंह में दांत नहीं रहे और मेरे पंजों के नाखून भी अब पहले जैसे पैने (धारदार) नहीं हैं। इसलिए तुम्हें मुझसे डरने की कोई आवश्यकता नहीं है। यात्री बूढ़े शेर की बातों में आ गया। कड़े के लालच में वह शेर का डर भी भुला बैठा। वह झील में उतरकर दूसरी ओर आने के लिए बढ़ा।

पर जैसा कि शेर ने अनुमान लगाया था वह झील के बीच ही दलदल और कीचड़ में फंस गया। यह देखकर शेर ने उससे कहा, ‘डरो मत। मैं अभी तुम्हारी मदद को आता हूं।‘ ऐसा कह कर वह यात्री की ओर बढ़ा, शेर ने यात्री को दबोच लिया और यात्री को किनारे की ओर घसीट लाया। जब शेर उसे किनारे की ओर खींच रहा था तो यात्री पछताता जा रहा था और मन ही मन में विचार कर रहा था, ‘मैं नाहक ही इस शेर की चिकनी चुपड़ी बातों में आ गया। आखिरकार यह एक हिंसक जंगली जानवर ही है। काश मैंने लालच को अपनी सद्बुद्धि पर हावी न होने दिया होता तो मैं जिन्दा रहता’। परन्तु अब तो देर हो चुकी थी। शेर ने यात्री का शिकार कर उसे खा लिया। और इस तरह शेर अपनी दुष्टतापूर्ण योजना में सफल रहा और यात्री अपने ही लालच के कारण अपनी जान से हाथ धो बैठा।

इसी लिए कहते हैं – लालच बुरी बला

‘A Tale from Persia’

Long ago, a man from Persia hosted a Bedouin from the desert, sitting him at table with his wife, two sons and two daughters. The wife had roasted one chicken, and the host told his guest: ‘Share it out among us,’ meaning to make fun of him. The Bedouin said he did not know how, but if they humoured him he would try. When they agreed, he took the chicken and chopped it up, distributing it with these words: ‘The head for the head of the family,’ as he gave his host the bird’s head; ‘the two wings for the two boys, the two legs for the two girls,’ giving them out, and ‘the tail for the old woman,’ giving the wife the tail of the bird and finally, taking the best portion for himself, ‘The breast for the guest!’ he said.

Now, the next day, the host said to his wife (having enjoyed this joke) that she should roast five chickens, and when lunchtime came he told the Bedouin, ‘Share them out among us.’

‘I have an idea,’ his guest replied, ‘that you are offended.’

‘Not at all. Share them out.’

‘Would you like me to do it by even numbers or odd?’

‘By odd numbers.’

‘Very well,’ said the Bedouin. ‘You, your wife and one fowl make three.’ (Giving them one chicken.) ‘Your two sons and one fowl make three. Your two daughters and one fowl make three. And I and two chickens make three,’ he finished, taking two chickens for himself; and the joke was on the host again.

Seeing them eyeing his share, he smiled and continued, ‘Perhaps you are not content with my method. Shall I share them out by even numbers, then?’ When they said yes, he replied, ‘Well, then, my host, you and your two sons and one fowl make four. Your wife, her two daughters and one fowl make four.’ He passed the three male members of the household one chicken, and the three female members got one. ‘And,’ he concluded, giving himself three chickens, ‘myself plus three fowls makes four.’

अतिरिक्त संसाधन